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Old 08-10-2013, 09:55 PM   #161
aspundir
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Default Re: प्रेरक प्रसंग

‘ओ…रिक्शे वाले, आजाद नगर चलोगे?‘सज्जन व्यक्ति जोर से चिल्लाया।

‘हाँ-हाँ क्यों नहीं?’ रिक्शे वाला बोला।

‘कितने पैसे लोगे?’

‘बाबू जी दस रुपए।’

‘अरे दस रुपए बहुत ज्यादा हैं मैं पाँच रुपए दूँगा।’

रिक्शे वाला बोला,‘साहब चलो आठ…’

‘अरे नहीं मैं पाँच रुपए ही दूँगा।’

रिक्शेवाला सोचने लगा, दोपहर हो रही है जेब में केवल बीस रुपए, इनसे बच्चों के लिए एक समय का भरपेट खाना भी पूरा नहीं होगा।



मजबूर होकर बोला ठीक है साब बैठो।

रास्ते में रिक्शे वाला सोचता जा रहा था, आज का इंसान दूसरे इंसान को इंसान तो क्या जानवर भी नहीं समझता।

ये भी नहीं सोचा यहाँ से आजाद नगर कितनी दूर है, पाँच रुपए कितने कम हैं। मैं भी क्या करूँ ? मुझे भी रुपयों की जरूरत है इसलिए इसे पाँच रुपए में पहियों की गति के साथ उसका दिमाग भी गतिशील था।

आजाद नगर पहुँचने के बाद जैसे ही वह रिक्शे से नीचे उतरा।



एक भिखारी उसके सामने आ गया। सज्जन व्यक्ति ने अपने पर्स से दस रुपए उस भिखारी को दे दिए और पाँच रुपए रिक्शे वाले को।

रिक्शेवाला बोला, साहब मेरे से अच्छा तो यह भिखारी रहा जिसे आपने दस रुपए दिए। मैं इतनी दूर से लेकर आया और मेरी मेहनत के सिर्फ पाँच रुपए ?’

सज्जन व्यक्ति बोला, ‘भिखारी को देना पुण्य है। मैंने उसे अधिक रुपए देकर पुण्य कमाया है।’

‘और जो मेरी मेहनत की पूरी मजदूरी नहीं दी ऐसा करके क्या तुम पाप के भागीदार नहीं? ’रिक्शेवाले ने कहा।

उसकी बात सुनते ही सज्जन व्यक्ति को क्रोध आ गया।



वह बोला -’तुम लोगों से मुँह लगाना ही फिजूल है।

(..अगर आप किसी गरीब को सताकर और भिखारी को भीख देकर ये सोचते हो कि आपने पुण्य कमाया है तो आप गलत हो।)
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Old 08-10-2013, 11:14 PM   #162
internetpremi
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Default Re: प्रेरक प्रसंग

कहानी अच्छी लगी।
पर आजकल वास्तविकता कुछ और है।
कई शहरों में, मीटर होते हुए भी, रिक्शावाले सवारियों से अधिक किराया एंठ रहे हैं।
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Old 14-10-2013, 10:46 PM   #163
Dr.Shree Vijay
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Default Re: प्रेरक प्रसंग

__________________


*** Dr.Shri Vijay Ji ***

ऑनलाईन या ऑफलाइन हिंदी में लिखने के लिए क्लिक करे:

.........: सूत्र पर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे :.........


Disclaimer:All these my post have been collected from the internet and none is my own property. By chance,any of this is copyright, please feel free to contact me for its removal from the thread.



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Old 20-11-2013, 11:43 PM   #164
aspundir
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Default Re: प्रेरक प्रसंग

बहुत पुरानी कथा है । किसी गांव में दो भाई रहते थे ।

बडे की शादी हो गई थी । उसके दो बच्चे भी थे ।



लेकिन छोटा भाई अभी कुंवारा था ।
दोनों साझा खेती करते थे ।

एक बार उनके खेत में गेहूं की फसल पककर तैयार हो गई ।



दोनों ने मिलकर फसल काटी और गेहूं तैयार किया ।



इसके बाद दोनों ने आधा-आधा गेहूं बांट लिया ।



अब उन्हें ढोकर घर ले जाना बचा था । रात हो गई थी, इसलिए यह काम अगले दिन ही हो पाता ।



रात में दोनों को फसल की रखवाली के लिए खलिहान पर ही रुकना था । दोनों को भूख भी लगी थी ।

दोनों ने बारी-बारी से खाने की सोची । पहले बड़ा भाई खाना खाने घर चला गया ।



छोटा भाई खलिहान पर ही रुक गया । वह सोचने लगा- भैया की शादी हो गई है, उनका परिवार है, इसलिए उन्हें ज्यादा अनाज की जरूरत होगी ।

यह सोचकर उसने अपने ढेर से कई टोकरी गेहूं निकालकर बड़े भाई वाले ढेर में मिला दिया ।



बड़ा भाई थोड़ी देर में खाना खाकर लौटा । उसके बाद छोटा भाई खाना खाने घरचला गया ।



बड़ा भाई सोचने लगा - मेरा तो परिवार है, बच्चे हैं, वे मेरा ध्यान रख सकते हैं

लेकिन मेरा छोटा भाई तो एकदम अकेला है, इसे देखने वाला कोई नहीं है ।

इसे मुझसे ज्यादा गेहूं की जरूरत है । उसने अपने ढेर से उठाकर कई टोकरी गेहूं छोटे भाई वाले गेहूं के ढेर में मिला दिया!

इस तरह दोनों के गेहूं की कुल मात्रा में कोई कमी नहीं आई। हां, दोनों के आपसी प्रेम और भाईचारे में थोड़ी और वृद्धि जरूर हो गई ।
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Old 20-11-2013, 11:43 PM   #165
aspundir
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Default Re: प्रेरक प्रसंग

एक बार एक टीचर बच्चो से मजाक में कहती है -

जो बच्चा कल स्वर्ग से मिट्टी लायेगा, मैं उसे इनाम दूँगी..!
अगले दिन क्लास में सब बच्चों से पूछती है.
कोई बच्चा लाया क्या मिट्टी...?

सारे बच्चे खामोश रहते हैं...
एक बच्चा उठकर टीचर के पास जाता है और कहता है,
लीजिये मैडम, मैं लाया हूँ स्वर्ग से मिट्टी..!

टीचर उस बच्चे को डांटते हुए कहती है;
मुझे बेवकूफ़ समझता है..कहाँ से लाया है ये मिट्टी..?
बच्चा रोने लगता है और कहता है;
.
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.
"अपनी माँ के चरणों के नीचे से लाया हूँ..."
.
.
..
आप ही ने एक बार कहा था कि माँ के "चरणों में स्वर्ग होता है......"
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Old 22-11-2013, 08:19 PM   #166
rajnish manga
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Default Re: प्रेरक प्रसंग

प्रेरक प्रसंगों की श्रंखला की एक मजबूत कड़ी.
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Old 22-11-2013, 11:16 PM   #167
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Default Re: प्रेरक प्रसंग

बहुत समय पहले की बात है किसी गाँव में मोहन नाम का एक किसान रहता था . वह बड़ा मेहनती और ईमानदार था . अपने अच्छे व्यवहार के कारण दूर -दूर तक उसे लोग उसे जानते थे और उसकी प्रशंशा करते थे . पर एक दिन जब देर शाम वह खेतों से काम कर लौट रहा था तभी रास्ते में उसने कुछ लोगों को बाते करते सुना , वे उसी के बारे में बात कर रहे थे .
मोहन अपनी प्रशंशा सुनने के लिए उन्हें बिना बताये धीरे -धीरे उनके पीछे चलने लगा , पर उसने उनकी बात सुनी तो पाया कि वे उसकी बुराई कर रहे थे , कोई कह रहा था कि , “ मोहन घमण्डी है .” , तो कोई कह रहा था कि ,” सब जानते हैं वो अच्छा होने का दिखावा करता है …”
मोहन ने अबसे पहले सिर्फ अपनी प्रशंशा सुनी थी पर इस घटना का उसके दिमाग पर बहुत बुरा असर पड़ा और अब वह जब भी कुछ लोगों को बाते करते देखता तो उसे लगता वे उसकी बुराई कर रहे हैं . यहाँ तक कि अगर कोई उसकी तारीफ़ करता तो भी उसे लगता कि उसका मजाक उदय जा रहा है . धीरे -धीरे सभी ये महसूस करने लगे कि मोहन बदल गया है , और उसकी पत्नी भी अपने पति के व्यवहार में आये बदलाव से दुखी रहने लगी और एक दिन उसने पूछा , “ आज -कल आप इतने पर्हसान क्यों रहते हैं ;कृपया मुझे इसका कारण बताइये.”
मोहन ने उदास होते हुए उस दिन की बात बता दी . पत्नी को भी समझ नहीं आया कि क्या किया जाए पर तभी उसे ध्यान आया कि पास के ही एक गाँव में एक सिद्ध महात्मा आये हुए हैं , और वो बोली , “ स्वामी , मुझे पता चला है कि पड़ोस के गाँव में एक पहुंचे हुए संत आये हैं ।चलिये हम उनसे कोई समाधान पूछते हैं .”
अगले दिन वे महात्मा जी के शिविर में पहुंचे .

मोहन ने साड़ी घटना बतायी और बोला , महाराज उस दिन के बाद से सभी मेरी बुराई और झूठी प्रशंशा करते हैं , कृपया मुझे बताइये कि मैं वापस अपनी साख कैसे बना सकता हूँ ! !”
महातम मोहन कि समस्या समझ चुके थे .

“ पुत्र तुम अपनी पत्नी को घर छोड़ आओ और आज रात मेरे शिविर में ठहरो .”, महात्मा कुछ सोचते हुए बोले .
मोहन ने ऐसा ही किया , पर जब रात में सोने का समय हुआ तो अचानक ही मेढ़कों के टर्र -टर्र की आवाज आने लगी .
मोहन बोला , “ ये क्या महाराज यहाँ इतना कोलाहल क्यों है .”

“पुत्र , पीछे एक तालाब है , रात के वक़्त उसमे मौजूद मेढक अपना राग अलापने लगते हैं !!!”
“पर ऐसे में तो कोई यहाँ सो नहीं सकता ??,” मोहान ने चिंता जताई।
“हाँ बेटा , पर तुम ही बताओ हम क्या कर सकते हैं , हो सके तो तुम हमारी मदद करो “, महात्मा जी बोले .
मोहन बोला , “ ठीक है महाराज , इतना शोर सुनके लगता है इन मेढकों की संख्या हज़ारों में होगी , मैं कल ही गांव से पचास -साथ मजदूरों को लेकर आता हूँ और इन्हे पकड़ कर दूर नदी में छोड़ आता हूँ .”
और अगले दिन मोहन सुबह -सुबह मजदूरों के साथ वहाँ पंहुचा , महात्मा जी ही वहीँ खड़े सब कुछ देख रहे थे .
तालाब जयादा बड़ा नहीं था , 8-10 मजदूरों ने चारों और से जाल डाला और मेढ़कों को पकड़ने लगे …थोड़ी देर की ही मेहनत में सारे मेढक पकड़ लिए गए.
जब मोहन ने देखा कि कुल मिला कर 50-60 ही मेढक पकडे गए हैं तब उसने माहत्मा जी से पूछा , “ महाराज , कल रात तो इसमें हज़ारों मेढक थे , भला आज वे सब कहाँ चले गए , यहाँ तो बस मुट्ठी भर मेढक ही बचे हैं .”
महात्मा जी गम्भीर होते हुए बोलेंगे , “ कोई मेढक कहीं नहीं गया , तुमने कल इन्ही मेढ़कों की आवाज सुनी थी , ये मुट्ठी भर मेढक ही इतना शोर कर रहे थे कि तुम्हे लगा हज़ारों मेढक टर्र -टर्र कर रहे हों . पुत्र, इसी प्रकार जब तुमने कुछ लोगों को अपनी बुराई करते सुना तो तुम यही गलती कर बैठे , तुम्हे लगा कि हर कोई तुम्हारी बुराई कर रहा है पर सच्चाई ये है कि वे लोग मुठ्ठी भर मेढक के सामान ही थे. इसलिए अगली बार किसी को अपनी बुराई करते सुनना तो इतना याद रखना कि हो सकता है ये कुछ ही लोग हों जो ऐसा कर रहे हों , और इस बात को भी समझना कि भले तुम कितने ही अच्छे क्यों न हो कुछ लोग होंगे ही होंगे जो तुम्हारी बुराई करेंगे।”
अब मोहन को अपनी गलती का अहसास हो चुका था , वह पुनः पुराना वाला मोहन बन चुका था.
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Old 25-11-2013, 09:41 PM   #168
aspundir
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Default Re: प्रेरक प्रसंग

लोहे की दुकान में अपने पिता के साथ काम कर रहे एक बालक ने अचानक ही अपने पिता से पुछा – “पिताजी इस दुनिया में मनुष्य की क्या कीमत होती है ?”
पिताजी एक छोटे से बच्चे से ऐसा गंभीर सवाल सुन कर हैरान रह गये.
फिर वे बोले “बेटे एक मनुष्य की कीमत आंकना बहुत मुश्किल है, वो तो अनमोल है.”
बालक – क्या सभी उतना ही कीमती और महत्त्वपूर्ण हैं ?
पिताजी – हाँ बेटे.
बालक कुछ समझा नही उसने फिर सवाल किया – तो फिर इस दुनिया मे कोई गरीब तो कोई अमीर क्यो है? किसी की कम रिस्पेक्ट तो कीसी की ज्यादा क्यो होती है?
सवाल सुनकर पिताजी कुछ देर तक शांत रहे और फिर बालक से स्टोर रूम में पड़ा एक लोहे का रॉड लाने को कहा.
रॉड लाते ही पिताजी ने पुछा – इसकी क्या कीमत होगी?
बालक – 200 रूपये.
पिताजी – अगर मै इसके बहुत से छोटे-छटे कील बना दू तो इसकी क्या कीमत हो जायेगी ?
बालक कुछ देर सोच कर बोला – तब तो ये और महंगा बिकेगा लगभग 1000 रूपये का .
पिताजी – अगर मै इस लोहे से घड़ी के बहुत सारे स्प्रिंग बना दूँ तो?
बालक कुछ देर गणना करता रहा और फिर एकदम से उत्साहित होकर बोला ” तब तो इसकी कीमत बहुत ज्यादा हो जायेगी.”
फिर पिताजी उसे समझाते हुए बोले – “ठीक इसी तरह मनुष्य की कीमत इसमे नही है की अभी वो क्या है, बल्की इसमे है कि वो अपने आप को क्या बना सकता है.”
बालक अपने पिता की बात समझ चुका था .
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Old 29-11-2013, 05:58 PM   #169
aksh
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मै आज इस सूत्र को गति-मान देख कर अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूँ..और आप सभी का धन्यवाद देता हूँ जिनके योगदान की वजह से ये सूत्र अच्छी गति से चल रहा है..!!
__________________
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Old 30-11-2013, 06:07 PM   #170
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Default Re: प्रेरक प्रसंग

जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी - जल्दी करने की इच्छा होती है , सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं , उस समय ये बोध कथा , " काँच की बरनी और दो कप चाय " हमें याद आती है ।
दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं ...
उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची ... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ ... आवाज आई ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे - छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये h धीरे - धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये , फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ ... कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले - हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ .. अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा .. सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली , चाय भी रेत के बीच स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई ...
प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया –
इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो ....
टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान , परिवार , बच्चे , मित्र , स्वास्थ्य और शौक हैं ,
छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , और
रेत का मतलब और भी छोटी - छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है ..
अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते , रेत जरूर आ सकती थी ...
ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है ... यदि तुम छोटी - छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा ... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो , वही महत्वपूर्ण है ... पहले तय करो कि क्या जरूरी है ... बाकी सब तो रेत है ..
छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे .. अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि " चाय के दो कप " क्या हैं ? प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले .. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया ...
इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये ।
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