21-08-2014, 12:42 AM | #181 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
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21-08-2014, 12:46 AM | #182 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
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21-08-2014, 12:50 AM | #183 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
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21-08-2014, 12:55 AM | #184 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
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25-08-2014, 04:56 PM | #185 | |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
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09-09-2014, 12:56 AM | #186 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
Anand Narayan Mulla
आनन्द नारायण मुल्ला जन्म: 1 अक्तूबर 1901 (लखनऊ) निधन: 12 जून 1997 आनन्द नारायण मुल्ला कश्मीरी पंडित परिवार से थे और उनका जन्म लखनऊ में हुआ था. उनके पिता श्री जगत नारायण मुल्ला भी अपने समय के प्रख्यात वकील थे जो लखनऊ विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी रह चुके है. आनन्द नारायण जुबली हाई स्कूल के विद्यार्थी थे और लखनऊ विश्वविद्यालय से ही उन्होंने स्नातकोत्तर स्तर तक की शिक्षा पूरी की. 1946 से 1952 के बीच वह भारत-पाक ट्रिब्यूनल के चेयरमैन रहे और 1954 से 1961 तक इलाहाबाद हाई कोर्ट के बड़े दबंग न्यायाधीश रहे.मुल्ला ने एक मुकद्दमे में दिए गये ऐतिहासिक फैसले में उत्तर प्रदेश पुलिस बल को ‘संगठित अपराधियों का गिरोह’ कह कर परिभाषित किया.
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09-09-2014, 12:58 AM | #187 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
सन 1995 में अंजुमन-ए-तरक्की-ए-उर्दू ने उर्दू ज़ुबान के प्रति की गई उनकी सेवाओं को याद करते हुये “आनन्द नारायण मुल्ला की अदबी खिदमात” नामक स्मारक ग्रन्थ प्रकाशित करवाया.
सताने को सता ले आज ज़ालिम जितना जी चाहे मगर इतना कहे देते हैं कि मर्दान-ए-वतन हम हैं सुलायेगी हमें खाक-ए-वतन आगोश में अपनी न फ़िक्र-ए-गोर है हमको न मोहताज-ए-कफ़न हम हैं उन्हें उर्दू जुबान से बेइन्तेहा मुहब्बत थी. उन्होंने यहाँ तक कह दिया था कि ‘मैं अपना मज़हब छोड़ सकता हूँ लेकिन उर्दू जुबान नहीं.’ उन्होंने कट्टरपंथियों की इस बात का खुल कर विरोध किया जो मानते थे कि उर्दू सिर्फ मुसलमानों की जुबान है. जिस भाषा में ‘पहले आप’ वाली संस्कृति परवान चढ़ी वह अब दिखाई नहीं देती. वह अब ‘पहले मैं’ में ढल चुकी है. जिस प्रकार की भाषा उन्होंने अपनी शायरी में प्रयोग की है, क्या उस प्रकार की तहज़ीब और अदब से भरी भाषा आज के युग में दिखाई देती है? उनका एक शे’र देखें:- जिसके ख़याल में हूँ गुम उसको भी कुछ ख़याल है मेरे लिये यही सवाल...............सबसे बड़ा सवाल है
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09-09-2014, 01:02 AM | #188 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
वे उच्च कोटि के न्यायविद, राजनीतिज्ञ और बेहतरीन शायर थे। राजनीति में आने से पहले आनंद नारायण मुल्ला 1954 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायधीश बने और 1961 तक जिम्मेदारी निभायी। सुप्रीम कोर्ट में उन्होंने वकालत की प्रैक्टिस भी की। निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर 1967 में लखनऊ से लोकसभा के लिए चुने गए और 1972 से 1978 तक राज्य सभा के सदस्य भी रहे। वह उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी के चेयरमैन रहे और उन्हें साहित्य अकादमी एवार्ड एवं इकबाल सम्मान भी हासिल हुआ। वह 1997 में 96 साल की उम्र में इस दुनिया-ए-फ़ानी से रुख्सत हो गये।
दलगत राजनीति की मजबूत बेड़ियों को काटकर किसी निर्दलीय उम्मीदवार का लोकसभा चुनाव जीतना कितना मुश्किल काम है, यह किसी से छिपा नहीं है। वर्ष 1967 में हुए लोकसभा के चौथे चुनाव में आनंद नारायण मुल्ला लखनऊ से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े और अपनी बेदाग़ प्रतिष्ठा के बल पर चुनाव जीते। आज तक उसके बाद लखनऊ से कोई अन्य निर्दलीय प्रत्याशी जीत कर लोकसभा में नहीं आया।
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09-09-2014, 01:08 AM | #189 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
जस्टिस आनन्द नारायण मुल्ला का एक चित्र हमें गुनाह भी करने को ज़िंदगी कम है. नज़र जिसकी तरफ़ करके निगाहें फेर लेते हो क़यामत तक फिर उस दिल की परेशानी नहीं जाती
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09-09-2014, 01:11 AM | #190 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
ग़ज़ल आनन्द नारायण मुल्ला दुनिया है ये किसी का न इस में क़ुसूर था
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