06-02-2013, 01:57 AM | #181 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
एक व्यक्ति सड़क के किनारे टहल रहा था। चलते-चलते वह एक नौजवान से मिला, जो एक लंबे तार से जूझ रहा था। इस पर उस व्यक्ति ने पूछा, आप को इसमें क्या दिक्कत आ रही है। नौजवान ने कहा की जब भी मैं इसे सीधा करने की कोशिश करने लगता हूं, यह तार और उलझ जाता है। यही हालत हर इन्सान की है। हम इस तरह उलझे हुए है कि चाह कर भी अपनी उलझनों को समाप्त नहीं कर पा रहे हैं । हम एक समस्या का समाधान करते हैं और फिर सोचते हैं कि हमने सारी उलझनें समाप्त कर दी, परन्तु उसी समय दूसरी उलझन आ जाती है और हमारा जीवन इसी में बीत जाता है । फिर हम निराश होकर सोंचते है की कब ऐसा वक्त आएगा जब हम अपनी सारी उलझनों का निपटारा कर सकेंगे और हम शांति से रह सकेंगे। या फिर हम भगवान को कोसने लग जाएंगे कि हमने तो किसी का बुरा किया नहीं परन्तु हमारे साथ ऐसा क्यों हुआ? परन्तु इन्सान यह भूल जाता है की कभी न कभी उसने भी बुरा किया होता है। इन्सान कभी अपनी गलती नहीं मानता और भगवान पर उंगली उठा देता है। आज समाज में हर इंसान किसी न किसी तनाव से गुजर रहा है। इससे इनका जिस्म और दिमाग दोनों ही बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। तनाव सबसे ज्यादा हमारे दिमाग पर असर करता है और यही कारण है बीमारियों का। आप देख सकते हैं कि आज छोटे से लेकर बड़े तक कोई न कोई बीमारी है। तनाव का कोई एक कारण नहीं है। कई कारण होते है तनाव के परन्तु हम उसे सुलझाने के बजाय उसे नकारते हैं या उससे भागते हैं, जबकि जरूरत है कि हम ऐसा तरीका निकालें जिससे दिमागी तनाव और शरीर पर पड़ने वाले उसके प्रभाव को दूर किया जा सके और ऐसा करने से हम अपना जीवन शांति से बिता सकते हैं। एक यही मात्र रास्ता है तनाव से मुक्ति पाने का। किसी परेशानी को अगर हम ध्यान और शांतिपूर्वक सुलझाने की कोशिश करें तो हम अपना जीवन शांतिमय बना सकते हैं।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
06-02-2013, 02:01 AM | #182 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
फूट से होता है विनाश
एक जंगल में बटेर का बड़ा झुंड था। एक शिकारी ने उन बटेरों को देख लिया। सोचा कि अगर थोड़े-थोड़े बटेर रोज पकड़कर ले जाऊं, तो मुझे शिकार के लिए भटकने की जरूरत नहीं पड़ेगी। अगले दिन शिकारी बड़ा जाल लेकर आया। बहुत से चतुर बटेर खतरा समझ भाग गए। कुछ नासमझ और छोटे बटेर थे, वे फंस गए। शिकारी बटेरों के इतने बड़े खजाने को हाथ से नहीं जाने देना चाहता था। वह उन्हें पकड़ने की नई-नई तरकीबें सोचने लगा। फिर भी बटेर पकड़ में न आते। अब शिकारी बटेर की बोली बोलने लगा। आवाज सुनकर बटेर जैसे ही एकत्र होते, शिकारी जाल फैंककर उन्हें पकड़ लेता। इस तरकीब में शिकारी सफल हो गया। बटेर धोखा खा जाते और शिकारी के हाथों पकड़े जाते। धीर-धीरे उनकी संख्या कम होने लगी। एक रात एक बूढ़े बटेर ने सबकी सभा बुलाई और कहा, "इस मुसीबत से बचने का एक उपाय मैं जानता हूं। जब तुम लोग जाल में फंस ही जाओ, तो सब एक होकर वह जाल उठाना और किसी झाड़ी पर गिरा देना। जाल झाड़ी पर उलझ जाएगा और तुम नीचे से निकल जाना, लेकिन वह तभी हो सकता है, जब तुममें एकता होगी।" अगले दिन से बटेरों ने एकता दिखाई और वे शिकारी को चकमा देने लगे। शिकारी खाली हाथ लौटने लगा, तो उसकी पत्नी ने कारण पूछा। वह बोला बटेरों ने एकता का मंत्र जान लिया है। जिस दिन उनमें फूट पड़ेगी, वे फिर पकड़े जाएंगे। कुछ दिन बाद बटेरों का एक समूह जाल में फंसा, तो उनमें जाल को लेकर उड़ने पर बहस छिड़ गई। वे आपस की बहस कर ही रहे थे कि शिकारी आ गया और उसने सब बटेरों को पकड़ लिया। अगले दिन बूढ़े बटेर ने बचे हुए बटेरों को समझाया कि एकता ही संकट का मुकाबला कर सकती है। कलह से सिर्फ विनाश होता है। अगर इस बात को भूल जाओगे, तो अपना विनाश कर लोगे। फिर वह शिकारी कभी भी बटेर नहीं पकड़ सका।
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06-02-2013, 10:26 PM | #183 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
नए विचारों से ही होती है खोज
सवाल उठाने की इच्छा ही इनोवेशन के लिए प्रेरित करती है। इनोवेशन के लिए कुछ बातें बहुत अहम हैं। पहली बात यह है कि इनोवेशन का मतलब विज्ञान और तकनीक से कतई नहीं है। इनोवेशन छोटा भी हो सकता है और बड़ा भी। हमारे अंदर हम कर सकते हैं और हम करेंगे की भावना होनी चाहिये। दूसरी बात यह है कि हमें गरीबों की समस्याओं को दूर करने के लिए इनोवेशन करने चाहिए न कि अमीरों की। अमीर तो हर हाल में अपनी जरूरतों को पूरा कर सकते हैं क्योंकि उनके पास पैसा है। हमें पानी, भोजन, स्वास्थ्य जैसे क्षेत्र में नए प्रयोग करने चाहिए, ताकि गरीबों को राहत मिल सके। हमें कुछ नया करने वाले लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिये। नई खोज के लिए बहस और असहमति जरूरी है। जब हम बहस करते हैं और सवाल उठाते हैं तब नई चीजों के रास्ते खुलते हैं। सैम पित्रोदा ने एक बार एक समारोह में इससे जुड़ा एक दिलचस्प वाकया सुनाया। एक बार पित्रौदा ने अपने एक मित्र को अपने घर पर खाने के लिए न्यौता दिया और यह बात उन्होने अपनी डायरी में नोट कर ली ताकि उन्हे याद रहे कि वे मित्र किस दिन उनके घर खाना खाने आएंगे। इस बीच पित्रौदा अपनी डायरी पलटना भूल गए। उन्हें याद ही नहीं रहा कि उन्होने किसी मित्र को घर पर खाने का न्यौता दिया है। तय कार्यक्रम के मुताबिक पित्रौदा के मित्र मेरे घर पहुंच गए। उन्हें देखकर पित्रौदा को याद आया कि उन्हें आमंत्रित किया था। जाहिर है पित्रौदा ने उस दिन उनके खाने का कोई प्रबंध नहीं किया था इसलिए उन्हे काफी परेशानी हुई। तब उन्होने सोचा कि क्यों न एक ऐसी डायरी बनाई जाए जो हमें सही समय पर अलर्ट कर सके। इस तरह से उनके दिमाग में इलेक्ट्रानिक डायरी बनाने का ख्याल आया। एक साधारण विचार ने नई खोज को जन्म दिया। आइडिया कीमती होते हैं। उन्हें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। अगर दिमाग में कोई आइडिया आए तो सोचो और तुरंत काम शुरू करो।
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06-02-2013, 10:30 PM | #184 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
शीशे का अनोखा चमत्कार
किसी जंगल में एक बंदर रहता था। वह बहुत समझदार व चतुर था। एक बार वह जंगल घूमने निकला। उसे जंगल में एक थैला मिला। थेले में कंघा और एक शीशा था। उसने कंघा उठाया और उसे उलट-पलटकर देखने लगा। उसे कुछ समझ नहीं आया, तो उसने कंघा फैंक दिया। फिर उसने शीशा उठाया। उसे भी उलट-पलटकर देखने लगा। शीशे में अपना चेहरा देख कर उसे समझ आ गया की जो भी उसके सामने आएगा, इसमें दिखाई देगा। उसने सोचा कि इसका मैं क्या करूं? उसने वह शीशा वापस थैले में रख लिया और चल पड़ा। अब उसकी चाल कुछ बदली हुई थी। रास्ते में उसे भालू मिला। वह बोला, अरे ओ बंदर, इतना अकड़कर क्यों चल रहा है? भालू की बात सुन बंदर बोला, मैं तो ऐसे ही चलूंगा। तू क्या कर लेगा मेरा? तेरे जैसों को तो मैं अपने थैले में रखता हूं। उसी समय शेर वहां आ गया। शेर ने पूछा, तुम दोनों क्यों लड़ रहे हो? भालू ने कहा, महाराज यह बंदर अकड़ रहा है। शेर ने बंदर पूछा, अरे ओ बंदर। क्या यह सच है? बंदर ने शेर से भी अकड़ते हुए कहा, क्यों न अकडूं । मैं सबसे ताकतवर हूं। बंदर की बात सुन शेर को गुस्सा आ गया और बोला, भाग यहां से। एक पंजा मार दिया तो यहीं मर जाएगा । बंदर ने कहा तू मुझे क्या मारेगा? तेरे जैसे को तो में अपने थैले में रखता हूं। बंदर की निडरता देख शेर बोला, अच्छा मैं भी तो देखूं। निकाल मेरे जैसा शेर अपने थैले में से। बंदर ने थैला खोला, शीशा निकाला और शेर के मुंह के सामने कर दिया। शेर ने उसमें अपना चेहरा देखा और समझा कि इसमें कोई दूसरा शेर है। यह देख कर वह डर गया और उसने सोचा, यह बंदर सचमुच बड़ा ताकतवर है। इससे लड़ना ठीक नहीं। शेर ने बंदर से हाथ जोड़ते हुए कहा, भाई साहब, आपसे मेरा क्या झगड़ा? आप जो चाहें करें। शेर की बात सुन भालू भी डर गया। अब तो बंदर निडर होकर मजे से जंगल में रहने लगा।
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07-02-2013, 10:14 AM | #185 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
Nice moral stories, hats off to the poster.
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09-02-2013, 01:11 AM | #186 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
शोषण से बचाती है शिक्षा
डॉ. सीमा समर अफगान मानवाधिकार आयोग की अध्यक्ष हैं। इससे पहले वह अफगानिस्तान में महिला मामलों की मंत्री भी रह चुकी हैं। डॉ. सीमा लंबे समय से महिलाओं और बच्चों की शिक्षा व स्वास्थ्य के लिए काम कर रही हैं। एक बार उन्होने एक यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए महिला अधिकारों की रक्षा की वकालत की और कहा कि उनकी शुरुआती शिक्षा अफगानिस्तान के हेलमंड प्रांत में हुई। उनके स्कूल में लड़के-लड़कियां साथ पढ़ते थे। आज यह प्रांत हिंसा व जुर्म की चपेट में है। आज यहां बच्चियों को पढ़ाना बेहद कठिन है। उन पर हर समय धमकी का खतरा मंडराता है। उन्होने 1982 में काबुल यूनिवर्सिटी से मेडिकल की डिग्री हासिल की। लेकिन उन दिनों देश के हालात अच्छे नहीं थे। इसलिए उन्हे दीक्षांत समारोह में डिग्री हासिल करने का मौका नहीं मिला। वह तालिबान हिंसा व खौफ का दौर था। अफगानिस्तान में स्कूल तोड़ दिए गए व बच्चियों को स्कूल जाने से रोका गया। उन्होने देश में महिलाओं पर घोर अत्याचार देखे हैं। उन्हे याद है किस तरह हिंसा व खौफ की वजह से उनको अपना देश छोड़ना पड़ा था। वे अपने बेटे को लेकर पाकिस्तान चली गई थी। वहां शरणार्थी शिविरों में महिलाओं को बुरे हालात में देखा। महिला शरणार्थियों की हालत देखकर उन्होने शरणार्थियों के लिए अस्पताल बनाने का फैसला किया। पहले स्वास्थ्य शिविर में तीन सौ महिलाएं आईं। उन्हें इलाज की जरूरत थी। उनके बीच काम करके उन्होने महसूस किया कि महिलाओं को शोषण व अत्याचार से बचाने के लिए उन्हें शिक्षित करना जरूरी है। उन्हे लगता है कि अफगानिस्तान में हिंसा का दौर इतने लंबे समय तक इसलिए चला क्योंकि वहां महिलाओं को शिक्षा से महरूम रखा गया। याने कहा जा सकता है कि अगर महिलाएं शिक्षित हैं तो वे समाज व देश के हालात बदल सकती हैं। इससे जुड़े कई देशों के उदाहरण हमारे सामने भी हैं।
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09-02-2013, 01:14 AM | #187 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
चोरी न करने का निर्णय
संजय बहुत अच्छा बच्चा था, पर उसको चोरी करने की बुरी आदत थी। अध्यापक उसे कई बार दंड और कई बार धमकी भी दे चुके थे, परंतु फिर भी वह बच्चों के बस्तों से उनकी चीजें चुरा लेता था। सभी का शक संजय पर ही था कि उनके बस्तों से वही चीजें चुराता है। आखिर एक दिन अध्यापक ने संजय को तेज आवाज में डांटते हुए कहा, यदि अब किसी भी बच्चे का सामान चोरी हुआ तो मैं तुम्हें पाठशाला से निकाल दूंगा। इस बात को कुछ दिन बीत गए। एक दिन एक बच्चा अचानक रोने लगा। अध्यापक के पूछने पर उसने बताया की उसकी गणित की किताब खो गई है । यह सुन अध्यापक बहुत नाराज हुए और उन्होंने उस बच्चे को सबके बस्ते में अपनी किताब ढूंढने को कहा। सभी के बस्तों में देखने के बाद आखिर किताब पंकज के बस्ते में से मिली। यह देख कर अध्यापक को बहुत आश्चर्य हुआ कि पंकज जैसा ईमानदार और मेहनती बालक भी चोरी कर सकता है। पूरी कक्षा में सन्नाटा छा गया। सब एकदम चुप होकर इधर-उधर देखने लगे, क्योंकि किसी को भी इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था कि पंकज ऐसा कर सकता है। अध्यापक ने भी उसे कुछ नहीं कहा। सिर्फ आगे से ऐसा न करने को कह कर बैठा दिया। कुछ देर बाद अध्यापक के बाहर जाते ही संजय पंकज से पूछने लगा अरे, किताब तो मैंने चुराई थी, लेकिन वह तुम्हारे बस्ते में कैसे चली गई? पंकज ने कहा, यदि इस बार तुम पकड़े जाते, तो निश्चय ही अध्यापक तुम्हें पाठशाला से निकल देते। मैंने तुम्हें किताब उठाते और छिपाते हुए देख लिया था। फिर भी मैंने ऐसा किया क्योंकि मेरे अपमानित होने से तुम्हारा वर्ष बच गया और तुम्हारी मेहनत भी। संजय इस बात को सुन दुखी हुआ। उसने जीवन में कभी चोरी न करने का निश्चय किया और दूसरे ही दिन उसने पूरी कक्षा के सामने और अध्यापक के सामने अपनी गलती स्वीकार कर ली।
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09-02-2013, 01:17 AM | #188 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
इच्छा शक्ति से मिलता है लक्ष्य
महिला अधिकारों की रक्षा के लिए लोगों को जागरुक करने की जरूरत है। इसके लिए यह समझना होगा कि महिला अधिकार का सीधा सम्बंध मानवाधिकार से है। अफगानिस्तान जैसे देश में जहां महिलाओं को लंबे समय से शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी अधिकारों से वंचित रखा गया है, वहां मानवाधिकार हनन का मामला बनता है। यह देखकर पीड़ा होती है कि महिलाएं अपने पूरे जीवनकाल में एक बार भी डॉक्टर के पास नहीं जाती हैं यानी ये महिलाएं बिना इलाज के ही दम तोड़ देती हैं। शिक्षा व स्वास्थ्य इंसान का बुनियादी हक है। भला महिलाओं को इस अधिकार से कैसे वंचित रखा जा सकता है। इस मामले को गंभीरता से लेने की जरूरत है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को भी इस संबंध में मदद के लिए आगे आना चाहिए। महिलाएं सम्मान से जीना चाहती हैं। उन्हें पूरा हक है कि वे आम नागरिक की तरह आजादी व सम्मान के साथ जिएं। हां, हालात में कुछ सुधार हुआ है पर बहुत कुछ किया जाना बाकी है। कई बार बड़ी-बड़ी बातें होती हैं पर जमीनी हकीकत कुछ और ही होती है। अफगानिस्तान में आज भी बड़ी संख्या में महिलाओं को स्कूल जाने और बीमार होने पर इलाज पाने की सुविधा नहीं मिलती है। आर्थिक आत्म-निर्भरता के मामले में वे पुरुषों से बहुत पीछे हैं। कानूनी लड़ाई में महिलाओं के लिए न्याय पाना आसान नहीं होता। इसकी एक वजह यह भी है कि न्यायिक सेवा में बहुत कम महिलाओं को जगह मिली है। आखिर ऐसा क्यों है? महिलाओं को उनके हक से कब तक वंचित रखा जाएगा? उन्हें भी चाहिए आजादी व सम्मान। महिलाओं को समान अधिकार देने के लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति बेहद जरूरी है। इसके बगैर इस लक्ष्य को पाना कठिन होगा। हमको इतनी इच्छा शक्ति तो जागृत करनी ही होगी कि समाज का वह वर्ग जो अपने अधिकार से वंचित है उसे उसके अधिकार मिलें। देश और समाज की प्रगति के लिए ऐसा करना जरूरी है।
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09-02-2013, 01:21 AM | #189 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
देख रहा है भगवान
एक किसान अपने खेत में काम कर रहा था। उसका बेटा रामू भी वहीं था। पड़ोसी के खेत में गाजर उगी हुई थी। रामू ने एक गाजर खींचकर निकल ली। गाजर खींचते देख किसान रामू से बोला, बेटा वह खेत दूसरे किसान का है। तुमने गाजर क्यों निकाली? रामू बोला, मैं जानता हूं, यह खेत राधे काका का है, परंतु काका इस समय नहीं हैं। बेटे की बात सुन किसान बोला, राधे ने तुम्हें नहीं देखा, परंतु भगवान तो देख रहा है। वह सबको देखता है। रामू को अपने पिता की बात समझ आ गई। एक बार बरसात नहीं हुई। सभी खेत सूख गए। खाने के लिए भी किसी के घर में अनाज नहीं था। सभी किसान बहुत परेशान थे। भूख से बेचैन हो रामू का पिता सोचने लगा, क्या करूं? अनाज कहां से लाऊं? केवल पड़ौसी राधे के खलियान में ही अनाज था। पिछले साल उसके खेत में गेहूं की खूब पैदावार हुई थी। रामू के पिता ने राधे के खलियान से अनाज चोरी करने की योजना बनाई। रात को उसने रामू को जगाया। दोनों राधे के खलियान पर पहुंचे। किसान बोला, तुम देखते रहना। यदि कोई आए, तो मुझे बता देना। बेटे को समझाकर किसान राधे के खलियान में घुस गया। जैसे ही किसान ने अनाज उठाना शुरू किया रामू बोला, पिताजी रुक जाइए। किसान जल्दी से रामू के पास आकर बोला, क्या कोई यहां आ रहा है या कोई देख रहा है? रामू ने बड़े भोलेपन से कहा, पिताजी इस तरफ कोई आ तो नहीं रहा, लेकिन भगवान देख रहा है। रामू के मुख से यह सुनकर किसान की गरदन शर्म से झुक गई। उसका हाथ कांपने लगा। अनाज की बोरी हाथ से छूट गई। वह बोला, हां बेटे, भगवान तो देख ही रहा है। मैं भूल गया था। अच्छा हुआ तुमने याद दिला दिया। किसान ने बेटे को छाती से लगा लिया और भगवान से माफी मांगने लगा। फिर दोनों भगवान को याद करते हुए घर चल दिए। पिता ने सोचा, बुरा काम कभी भी, कैसी भी परिस्थिति में नहीं करना चाहिए।
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14-02-2013, 12:13 PM | #190 | |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
Quote:
बहुत सुन्दर और शिक्षाप्रद कथा कही है, अलैक जी. यदि इतनी सी बात को ह्रदय में धारण कर लिया जाए कि हर जीव में भगवान बसते हैं और भगवान हर जगह विद्यमान है तथा भगवान हर अच्छे बुरे काम को देखते हैं तो समाज की बहुत सी बुराइयों का उन्मूलन सहज ही हो जाएगा. शेयर करने के लिए धन्यवाद, अलैक जी. |
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