25-11-2012, 08:19 AM | #181 |
Member
Join Date: Nov 2012
Location: दिल्ली
Posts: 242
Rep Power: 12 |
Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
प्रसिद्ध राजा अश्वघोष के मन में वैराग्य हो गया यानि संसार और दुनियादारी से उसे अरुचि हो गई। घर-परिवार को छोड़कर वे यहां-वहां ईश्वर और सच्ची शांति की खोज में भटकने लगे। कई दिनों के भूखे प्यासे अश्वघोष एक दिन भटकते हुए एक किसान के खेत पर पहुंचे। अश्वघोष ने देखा कि वह किसान बड़ा ही प्रसन्न, स्वस्थ व चेहरे से बड़ा ही संतुष्ट लग रहा था। अश्वघोष ने किसान से पूछा,''मित्र तुम्हारी इस प्रशन्नता और संतुष्टि का राज क्या है? देखने में तो तुम थोड़े गरीब या सामान्य ही लगते हो। '' किसान ने जवाब दिया,'' सभी जगह ईश्वर के दर्शन और परिश्रम में ही परमात्मा का अनुभव करना ही मेरी इस प्रसन्नता और संतुष्टि का कारण है।'' अश्वघोष ने कहा,''मित्र उस ईश्वर के दर्शन और अनुभव मुझे भी करा दोगे तो मुझ पर बड़ी कृपा होगी।'' अश्वघोष की इच्छा जानकर किसान ने कहा,''ठीक है... पहले आप कुछ खा-पी लें, क्योंकि तुम कई दिनों के भूखे लग रहे हो।'' किसान ने घर से आई हुई रोटियां दो भागों में बांटीं। दोनों ने नमक मिर्ची की चटनी से रोटियां खाईं। फिर किसान ने उन्हें खेत में हल चलाने के लिये कहा। थोड़ी देर में ही श्रम से थके हुए और कई दिनों बाद मिले भोजन की तृप्ति के कारण राजा अश्वघोष को नींद आने लगी। किसान ने आम के पेड़ के नीचे छाया में उन्हें सुला दिया। जब राजा अश्वघोष सो कर उठे, तो उस दिन जो शांति और हल्केपन का अहसास हुआ वह महल की तमाम सुख-सुविधाओं में भी आज तक नहीं हुआ था। राजा को किसान से पूछे गए अपने प्रश्र का जवाब खुद ही मिल गया। जिसकी तलाश में राजा दर-दर भटक रहा था वह शांति का रहस्य राजा को मिल गया कि ईश्वर पर अटूट आस्था और परिश्रम ही सारी समस्याओं का हल है। |
25-11-2012, 08:22 AM | #182 |
Member
Join Date: Nov 2012
Location: दिल्ली
Posts: 242
Rep Power: 12 |
Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
हमेशा प्रभु का नाम जपो
एक बार नरोत्तम नाम का राजा हुआ करता था। वह बहुत ताकतवर था। उसके राज्य में दो छोटी लड़कियाँ थीं - एक का नाम था "तपी" और दूसरी का "जपी"।एक बार उन दोनों के मन में राजा से मिलने का विचार आया। उन्हें यह भी आशा थी कि राजा उन्हें कुछ दान स्वरूप देगा। कम उम्र होने के कारण उनके मन में कोई स्पष्ट विचार नहीं था कि राजा से मिलने पर वे उनसे क्या मांगेगी। वे सीधे दरबार पहुंच गयीं और सुरक्षा उपायों से भयभीत होकर चुपचाप खड़ी हो गयीं। तपी बोली - "जय पुरुषोत्तम!" यह सुनकर राजा ने सोचा कि वह ईश्वर से कुछ मांगना चाहती है। जपी बोली - "जय नरोत्तम!" अपना नाम सुनकर राजा बहुत खुश हुआ। राजा ने तपी को रु. 5/- देकर विदा कर दिया। इसके बाद वह अंदर गया और उसने एक बड़े से कद्दू को बीच से काटकर उसमें सोने के सिक्के भर दिए। सोने के सिक्के भरने के बाद उसने कद्दू को फिर से बंद कर दिया और बाहर आकर वह कद्दू जपी को दे दिया। जपी उस कद्दू को लेकर दरबार के बाहर आ गयी। चूकिं कद्दू आकार में बड़ा और सोने के सिक्कों से भरा हुआ था अतः उसे वह कद्दू उठाकर ले जाने में भारी लगने लगा। बाहर निकलकर उसने उस कद्दू को एक सब्ज़ी विक्रेता को मात्र 25 पैसे में बेच दिया और प्रसन्नतापूर्वक घर चली गयी। वह सब्ज़ी विक्रेता बिल्कुल भी ईमानदार नहीं था। तपी रु.5/- लेकर यह सोचती हुई इधर-उधर टहल रही थी कि इस पैसे का क्या किया जाए। तभी उसे अपने माता-पिता और भाई-बहिनों की याद आयी। वह सब्ज़ी विक्रेता के पास कद्दू खरीदने पहुंची। सब्ज़ी विक्रेता ठग था इसलिए उसने 25 पैसे में खरीदा गया वह कद्दू रु. 5/- में तपी को बेच दिया। |
25-11-2012, 08:23 AM | #183 |
Member
Join Date: Nov 2012
Location: दिल्ली
Posts: 242
Rep Power: 12 |
Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
तीन हजार उपदेश और एक भी याद नहीं
प्रत्येक रविवार चर्च जाने वाले एक व्यक्ति ने एक समाचारपत्र के संपादक को ख़त लिखा कि प्रत्येक रविवार को चर्च जाने में कोई लाभ नहीं है और यह समय की बर्बादी है। अपने पत्र में उसने लिखा - "मैं पिछले 30 वर्षों से नियमित रूप से चर्च जा रहा हूं। अब तक मैंने 3000 से ज्यादा उपदेश सुने हैं और आज उनमें से एक भी याद नहीं है। मेरे ख्याल से मैंने अपना समय बर्बाद किया है और पादरी लोग भी उपदेश देकर भक्तों का समय बर्बाद कर रहे हैं।" "संपादक के नाम ख़त" कॉलम में यह ख़त छपने के बाद काफी विवाद खड़ा हो गया तथा कुछ दिनों तक अखबार की सुर्खियों में बना रहा जब तक कि एक अन्य व्यक्ति ने इसका खंडन करते हुए यह पत्र नहीं लिखा - "मुझे शादी किए हुए 30 वर्ष हो गए हैं और मेरी पत्नी ने मेरे लिए अब तक 32,000 से अधिक बार स्वादिष्ट भोजन पकाया है किंतु मुझे अब तक खाए गए सभी पकवानों के बारे में ठीक से कुछ याद नहीं है। किंतु मैं इतना अवश्य जानता हूं कि इस भोजन ने मुझे कामकाजी बनाए रखने के लिए आवश्यक ऊर्जा दी है। यदि मेरी पत्नी ने मेरे लिए ये भोजन नहीं पकाया होता तो मैं अब तक शारीरिक रूप से मर चुका होता। इसी तरह यदि मैं नियमित रूप से चर्च नहीं गया होता तो आध्यात्मिक रूप से मर चुका होता।" |
25-11-2012, 08:23 AM | #184 |
Member
Join Date: Nov 2012
Location: दिल्ली
Posts: 242
Rep Power: 12 |
Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
समुद्र मंथन
समुद्र मंथन की पौराणिक कहानी आप जानते होंगे. जब अमृत प्राप्ति के लिए असुर और देव मिल-जुल कर समुद्र का मंथन करने लगे तब अमृत प्राप्ति से पहले विष की प्राप्ति हुई थी. और ऐसा विष जो तमाम जगत को नष्ट करने की शक्ति रखता था. विश्व को इसके प्रभाव से बचाने के लिए उसे शिव ने अपने कंठ में धारण किया. विष की वजह से उनका कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए. आपको भी अपने जीवन में अमृत तुल्य चीजें प्राप्त करनी हो तो मंथन करना होगा. और यह भी ध्यान रखें कि मंथन से पहले पहल विष निकलेगा, विष तुल्य चीजों की ही प्राप्ति होगी. और उसे आपको धारण भी करना होगा. उसके प्रभाव से बचने के उपाय भी करने होंगे. और उसके बाद विश्वास रखिए, अंत में मंथन से आपको अमृत की प्राप्ति होगी. |
25-11-2012, 08:23 AM | #185 |
Member
Join Date: Nov 2012
Location: दिल्ली
Posts: 242
Rep Power: 12 |
Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
चवन्नी की सिद्धि
स्वामी रामतीर्थ ऋषिकेश में गंगा के किनारे टहल रहे थे. वहाँ उनको एक योगी मिला. आरंभिक बातचीत के बाद योगी ने बताया कि उन्हें सिद्धि प्राप्त है. स्वामी ने योगी से पूछा कि वे कितने वर्ष से साधना कर रहे हैं और उन्हें क्या सिद्धि प्राप्त है.योगी ने बताया कि वे पिछले चालीस वर्षों से हिमालय में तपस्या कर रहे हैं और उन्हें यह सिद्धि प्राप्त है कि वे तेज गंगा की धारा को नंगे पाँव चलते हुए पार कर सकते हैं जैसे कि सूखी जमीन. इस पर स्वामी ने कहा – इसके अलावा कोई और सिद्धि आपको प्राप्त है? योगी ने कहा – क्या पानी पर जमीन की तरह चलना कोई कम सिद्धि है? स्वामी ने फिर कहा – यह तो चवन्नी छाप सिद्धि है. गंगा के एक किनारे से दूसरे किनारे जाने के लिए नावें हैं, जो आपको चवन्नी में पहुँचा देते हैं. आपने अपने जीवन के बहुमूल्य चालीस वर्ष सिर्फ चवन्नी की सिद्धि हासिल करने में लगा दिये हैं! |
25-11-2012, 08:23 AM | #186 |
Member
Join Date: Nov 2012
Location: दिल्ली
Posts: 242
Rep Power: 12 |
Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
अनुकूलन
एक नौजवान ने विरासत में मिली अपनी सारी दौलत गंवा दी। जैसा कि ऐसे मामलों में अक्सर होता है, गरीब होते ही उसके सभी मित्र भी उससे किनारा कर गए। अपनी बुद्धि के अनुसार वह एक स्वामी जी की शरण में पहुंचा और उनसे बोला - "मेरा अब क्या होगा? न मेरे पास धन है, न ही मित्र।" स्वामी जी ने उसे ढांढस बंधाते हुए कहा - "चिंता मत करो बेटे। मेरे शब्दों को याद रखना। कुछ दिनों में सब कुछ ठीक हो जायेगा।" नौजवान की आँखों में आशा की किरण दिखायी दी। उसने पूछा - "क्या मैं फिर से धनवान हो जाऊंगा?" स्वामी जी ने उत्तर दिया - "नहीं। तुम्हें गरीबी और अकेले रहने की आदत हो जायेगी।" |
25-11-2012, 08:25 AM | #187 |
Member
Join Date: Nov 2012
Location: दिल्ली
Posts: 242
Rep Power: 12 |
Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
गप्प
एक शिष्य ने अपने गुरू से इस बात के लिए पश्चाताप किया कि उसे गप्प मारने की आदत है। गुरूजी ने बुद्धिमत्तापूर्ण तरीके से कहा कि "यदि तुम गप्प में नया मिर्चमसाला नहीं डालते तो यह इतनी बुरी बात नहीं है।" |
25-11-2012, 08:25 AM | #188 |
Member
Join Date: Nov 2012
Location: दिल्ली
Posts: 242
Rep Power: 12 |
Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
संघर्ष से ही शक्ति और विवेक प्राप्त होता है
महाभारत के युद्ध में द्रोणाचार्य को कौरवों का सेनापति बनाया गया। युद्ध के पहले ही दिन वे अत्यंत वीरता और उत्साह के साथ लड़े किंतु अंत में उन्हें अर्जुन द्वारा पराजय का सामना करना पड़ा। पहले ही दिन पराजय होने से दुर्योधन को बहुत बुरा लगा और वह द्रोणाचार्य के पास जाकर बोला - "गुरूदेव! अर्जुन आपका शिष्य रहा है। आप उसे कुछ ही पलों में हरा सकते हैं। फिर आप इतना बिलंब क्यों कर रहे हैं?" कुछ देर चुप रहने के बाद द्रोणाचार्य बोले - "तुम ठीक कह रहे हो दुर्योधन! उसके द्वारा युद्ध में प्रयोग की जाने वाली युक्ति और रणनीति से मैं भलीभांति अवगत हूं परंतु मैंने अपना सारा जीवन शाही विलासितापूर्ण तरीके से व्यतीत किया है जबकि अर्जुन ने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया है। संघर्ष के ही कारण उसने मुझसे ज्यादा शक्ति और विवेक प्राप्त कर लिया है।" |
25-11-2012, 08:25 AM | #189 |
Member
Join Date: Nov 2012
Location: दिल्ली
Posts: 242
Rep Power: 12 |
Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
स्वर्ण के लिए खुदाई
एंड्र्यू कार्नेगी युवावस्था में ही अमेरिका चले आए थे, और वहाँ आजीविका के लिए छोटी-मोटी नौकरी करने लगे थे. बाद में वे अमेरिका के सबसे बड़े स्टील निर्माता बने. एक समय उनकी कंपनी में 43 करोड़पति काम करते थे. किसी ने उनसे कभी पूछा था कि वे अपनी कंपनी के कर्मचारियों के साथ कैसे काम करते हैं. एंड्र्यू कार्नेगी ने जवाब दिया – “लोगों के साथ काम करना तो सोने के खदान में काम करने जैसा है. आपको एक तोला सोना पाने के लिए टनों में मिट्टी खोदना पड़ता है. और जब आप खोदते रहते हैं तो आप मिट्टी को नहीं देखते. आपकी निगाहें चमकीले सोने के टुकड़े ढूंढने में लगी रहती है.” हर व्यक्ति में, हर परिस्थिति में कुछ न कुछ उत्तम रहता ही है. अलबत्ता इन्हें पाने के लिए यदा कदा खुदाई गहरी करनी पड़ती है, क्योंकि ये सतह पर दिखाई नहीं देते.सफल व्यक्ति हंस की तरह काम करते हैं - हंस मिलावटी दूध के पात्र में से दूध को पी लेता है, और जल को छोड़ देता है. |
25-11-2012, 08:26 AM | #190 |
Member
Join Date: Nov 2012
Location: दिल्ली
Posts: 242
Rep Power: 12 |
Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
चतुर जौहरी
शहर में एक बेहद सफल, धनवान जौहरी था. उसकी जवाहरातों की दुकान का बड़ा नाम था. बीच बाजार में बड़ी सी दुकान थी, और बड़े बड़े शोकेस में चमचमाते जवाहरात हर एक का ध्यान बरबस खींच लेते थे. एक दिन नवाब उस दुकान में खरीदारी करने पहुँचे. दुकानदार और कर्मचारी नवाब के सामने एक से एक जवाहरात और नई डिजाइन के गहने पेश करने लगे.मगर नवाब को उनमें से कोई पसंद नहीं आए. वो जल्दी ही इस सिलसिले से बोर होने लगा. अंत में नवाब जब चलने को हुआ तो उसकी नजर कोने पर पड़े रत्नजटित एक साड़ी-पिन पर पड़ी, जिसे उसके सामने पेश नहीं किया गया था. नवाब ने जौहरी से उसके बारे में पूछा, तो जौहरी ने नवाब को बताया कि वह एक अलग किस्म का, प्राचीन, परंतु बेहद कीमती जेवर है. डिजाइन भले ही आज के हिसाब से आकर्षक न लगे, मगर जेवर पुश्तैनी, भाग्यवर्धक है. जौहरी ने नवाब की दृष्टि की भी तारीफ की कि उन्हें यह छोटा, परंतु खास जेवर अलग से दिखाई दिया.नवाब ने वह साड़ी-पिन ऊंची कीमत देख कर खरीद लिया. नवाब के जाने के बाद जौहरी के पुत्र ने जो व्यापार के गुर अपने पिता से सीख रहा था, अपने पिता से कहा – “यह साड़ी-पिन तो बेहद साधारण था, यह मूल्यवान भी नहीं था, इसमें कुछ कमी थी, और इसे तुड़वाकर आप नया डिजाइन बनवाने वाले थे...”चतुर जौहरी ने अपने पुत्र को व्यापार का गुर समझाया - “कीमतें ग्राहकों के मुताबिक तय होती हैं. नवाब के लिए यहाँ मौजूद हर जवाहरातों और जेवरों की कीमत धूल बराबर ही थी. सवाल उनके पसंद के जेवर का था. एक बार उनके पसंद कर लेने के बाद कीमत तो हमें ही तय करनी थी. यदि नवाब की हैसियत मुताबिक कीमत नहीं बताता तो वह उसे खरीदता ही नहीं!...” |
Bookmarks |
Tags |
hindi forum, hindi stories, short hindi stories, short stories |
|
|