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01-12-2014, 09:46 PM | #1 |
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Re: उपन्यास: जीना मरना साथ साथ
‘‘सुनलहीं न हो, साला के कहलिए हल की छोड़ इ शुदर मुदर के साथ, कुछ नै मिले बाला, पर नै मानलै और बोडीगार्ड रखलै, चल गेलै भित्तर...। सांढ़ा ने यह कहानी छेड़ी तो कई शुरू हो गए। कामरेड के हत्या के मामले में एक दर्जन से अधिक लोग बंदी थी।
‘‘हां हो, साला के खतम करे ले कहां कहां से समान नै जुटावे पड़लै, सन्तालिस के आगे रिवॉल्वर की टिकतै। बगैचा में घेर के पहले त बोडीगडबा के कहबे कैलिए की तों भाग जो, पर साला पक्का सिपाही हलै कहलै हमरो मार दा पर भागबो नै।’’ बीपो सिंह ने बड़े ही शान से कहा। ‘‘साला रार सुदर के भड़काबो हलै, गेलै। चंदा कर के ऐतना रूपया जमा कर देलिए हें कि केस सलटा जइतै।’’ वीरगाथ की तरह बखान चलती रही और मेरा मन इस सब में अकुलाता रहा। सामान्तवाद की इस गाथा में मेरा मन नहीं रम रहा था पर अनमनसक हो कर सुनना भी मजबूरी थी। मेरा मन बाहर की घटनाओं को जानने के लिए मचलने लगा। फिर मुझसे भी मेरी कहानी लोगो ंने जाननी चाही। ‘‘कैसे फंसइलहीं हो, त भागलीं काहे, छोड़ देथीं हल त जेल के हवा नै ने खाइले पड़तो हल।’’कई तरह के सवाल। पर जबाब कौन देता, किसके पास जबाब था। मैं चुप चाप सुनता रहा। >>>
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
11-12-2014, 10:47 PM | #2 |
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Re: उपन्यास: जीना मरना साथ साथ
अगले दिन गांव का विपिन राम मिलने आया। कई दोस्त थे पर किसी ने हिम्मत नहीं किया पर वह गरीब होकर भी आया था। मेरा नाम पुकारा गया। दरवाजे पर गया। मिलने का नजराना दस रूपया था।
‘‘की हाल विपिन।’’ ‘‘बस, चलो अब जे होबै, साहस कैलहीं न हो इहे बहुत है। कल रीनमां के कोर्ट में बयान होतई और ओकर बहुत सीखाबल जा रहलै हें।’’ ‘‘चलहिं, अब पीछे मुड़े के कोई जगह नै है। जे होतई से होतई।’’ फिर उसी ने बताया कि पूरा गांव एक है और उसकी शादी के लिए डाक्टर, इंजीनियर लड़का का फोटो दिखाया जा रहा है। किसी तरह से उसे मनाने की बात कहीं जा रही है और कोर्ट में वह कह दे की उसका अपहरण हुआ। यानि की सबकुछ अब उसके उपर ही था। वह कोर्ट में बदल भी सकती है। जो हो। पर मुझे कुछ अजीब तरह का अनुभूति होने लगी। लगा जैसे प्यार की बाजी को मैं जीतना चाहता हंू और जीतने के लिए रीना का मेरे विरूद्ध बयान देना ही सही है। मन ही मन यही सांेचता रहा। शाम को करीब तीन बजे गांव के कुछ साथी हाथ में एक कागज लहराते हुए जेल की तरफ आ रहे थे और वे खुश थे। मैं समझ गया कि रीना में मेरे पक्ष में ही गवाही दी। मैं आज दिन भर सुबह से ही भारी मन लिए छत के बरामदे पर टहलता रहा। गेट पर गया और गवाही का कागज मेरे हाथ में आ गया। उसने मुझसे शादी किये जाने और मेरे साथ ही रहने की बात कही और प्यार के अप्रत्यक्ष जंग में उसकी जीत हो गई। मेरे गांव का तीन चार साथी आज आया था और उसने भी खुशी जाहीर की। शादी, प्लेटफॉर्म पर और वह भी भादो के मलमास महीने में! >>>
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
23-12-2018, 10:49 AM | #3 |
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Re: उपन्यास: जीना मरना साथ साथ
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10-01-2019, 03:31 PM | #4 |
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Re: उपन्यास: जीना मरना साथ साथ
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Last edited by rajnish manga; 13-01-2019 at 07:15 AM. |
30-01-2024, 01:48 PM | #5 |
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Re: उपन्यास: जीना मरना साथ साथ
सभी दोस्तों का शुक्रिया.
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