03-08-2013, 09:59 PM | #11 |
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Re: एक नन्ही सी प्रेम-कथा
सुमित के पापा दिविशा के पापा से कह रहे थे “साहब को बुला के बाँधने का इससे अच्छा तरीका नहीं हो सकता था, भाईसाहब |” "मैडम भी कहाँ मान रही थी शादी के लिए इतनी आसानी से " दिविशा के पापा ने कहा | सुमित की मम्मी ने उठकर दिविशा और सुमित को गले से लगा लिया और सुमित से बोलीं "डायरी में फोटो तो संभाल ली, डायरी भी तो संभाल के रखनी चाहिए थी ना" आंसू अभी भी थे आँखों में उनकी, बस उनका कारण बदल चुका था | p.s. : कुछ लव-स्टोरी बिना लफड़े-लोचे के भी पूरी हो जाती हैं |
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
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