19-03-2014, 07:35 PM | #11 |
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Re: मुझे मत मारो :.........
कलियों को मुसकाने दो : खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो आने दो रे आने दो, उन्हें इस जीवन में आने दो जाने किस-किस प्रतिभा को तुम गर्भपात मे मार रहे हो जिनका कोई दोष नहीं, तुम उन पर धर तलवार रहे हो बंद करो कुकृत्य - पाप यह, नयी सृष्टि रच जाने दो आने दो रे आने दो, उन्हें इस जीवन में आने दो खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो जिस दहेज-दानव के डर से करते हो ये जुल्मो-सितम क्यों नहीं उसी दुष्ट-दानव को कर देते तुम जड़ से खतम भ्रूणहत्या का पाप हटे, अब ऐसा जाल बिछाने दो खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो बेटा आया, खुशियां आईं सोहर-मांगर छम-छम-छम बेटी आयी, जैसे आया कोई मातम का मौसम मन के इस संकीर्ण भाव को, रे मानव मिट जाने दो खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो चौखट से सरहद तक नारी फिर भी अबला हाय बेचारी? मर्दों के इस पूर्वाग्रह मे नारी जीत-जीत के हारी बंद करो खाना हक उनका, ऋनका हक उन्हें पाने दो खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो चीरहरण का तांडव अब भी चुप बैठे हैं पांडव अब भी नारी अब भी दहशत में है खेल रहे हैं कौरव अब भी हे केशव! नारी को ही अब चंडी बनकर आने दो खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो मरे हुए इक रावण को हर साल जलाते हैं हम लोग जिन्दा रावण-कंसों से तो आंख चुराते हैं हम लोग खून हुआ है अपना पानी, उसमें आग लगाने दो खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो नारी शक्ति, नारी भक्ति नारी सृष्टि, नारी दृष्टि आंगन की तुलसी है नारी पूजा की कलसी है नारी नेह-प्यार, श्रद्धा है नारी बेटी, पत्नी, मां है नारी नारी के इस विविध रूप को आंगन में खिल जाने दो खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो.......... (अंतरजाल से
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25-03-2014, 09:55 PM | #12 |
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Re: मुझे मत मारो :.........
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25-03-2014, 09:55 PM | #13 |
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04-04-2014, 04:32 PM | #14 |
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04-04-2014, 04:36 PM | #15 |
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Re: मुझे मत मारो :.........
माँ - बाप की आँखों का नूर है तू, हर अपने के दिल का गुरुर है तू, जाने क्यों तरस आता है मुझे, इस ज़माने के कमीनेपन पे, की सब होके भी, कितनी मजबूर है तू, जाने ये दुनिया क्यों, तुझसे इतना जलती है, माँ -बीवी सब को चाहिये, पर बेटी से डरती है, हर वक्त ये दुनिया तुझसे , दुश्मनी निभाती है, खिलने से पहले तुझे, मसल देना चाहती है, क्यों नहीं समझते ये पागल की, तुझसे ही दुनिया गुलज़ार, किसी मासूम की मासूमियत में तू, किसी दीवाने का खुमार है, शायद ये ज़माना, एक दिन समझ जायेगा, कितने बेटों की माँ, कितने आशिकों की आशिकी, न जाने तब तक ये , क्या - क्या गंवायेगा, ऐ - खुदा कर रहम इनपे, देख इनकी बेरुखी, क्यों न समझे ये पागल, एक मासूम की बेबसी, क्यों छीने ये हक उसका, जो तुने उसे बख्सा है, उसका ये अनमोल जीवन, क्या इतना ही सस्ता है ? ? ? ? ? ? ? ? ? ? कन्या भ्रूण हत्या रोकिये !
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08-04-2014, 04:56 PM | #16 |
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13-04-2014, 11:06 AM | #17 |
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Re: मुझे मत मारो :.........
ये बेटियाँ वरदान हैं प्रकृति का पुरुष को ये सबसे बड़ा दान हैं , धैर्य की गंगा हैंस्नेह की प्रतिमूर्ति हैं ये कुलों का अभिमान हैं , जननी मातृशक्ति हैंप्रेम का प्रकाश हैं ये हैं तो खानदान हैं , बेटियाँ हैं तो हम हैंसमर्पण हैं त्याग हैं ये हमारी प्राण हैं , सृष्टि का आधार हैं
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13-04-2014, 11:10 AM | #18 |
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वरदान हैं ये बेटियाँ
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14-05-2014, 01:29 PM | #19 |
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15-05-2014, 11:58 PM | #20 |
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माँ मुझको मत मारो ना : माँ मुझको मत मारो ना अजन्मी ही सही , पर तेरी बेटी हूँ , भूल मुझसे क्या हुई ? बतला दो ना , माँ मुझको मत मारो ना. आने दो मुझको धरा पर , तेरी गोद में खेलूंगी , कभी न सताऊँगी, ये वादा ले लो ना . अवसर जो दिया प्रभु ने , उसको मत छीनो ना , माँ मुझको मत मारो ना. घर के आँगन में ऊधम मचाऊंगी, तेरा खूब दिल बहलाऊँगी , तेरे अनुशासन में रह कर हौले से बढ़ जाऊंगी . बनकर तेरी सहेली माँ मै , तेरा हाथ बटाऊँगी . तुम दिखी उदास अगर तो , मै रो पडूँगी . दुःख तेरे सारे हर लूंगी . मै निर्दोष निहत्थी , तुम ममता की मूरत हो, मै अपूर्ण अरुपा , तुम खिली खिली सी सूरत हो , पुकार मेरी सुन लो ना. माँ मुझको मत मारो ना. पढ़ा लिखा कर मुझको , जीवन के उच्च शिखर पर , तुम पहुंचा देना , गलत करूँ मै तो , मुझको समझा देना . पाकर तेरा स्पर्श माँ मै , ख़ुशबू बन महकूँगी , घर को सुरभित कर दूँगी. भैया के हाथों में राखी बांधूंगी , बहू बनी जिस घर की, घर उसका भी खुशियों से भर दूँगी. माँ बनकर मै कल्पना चावला सी , नाम तेरा जग भर में कर दूँगी. मेरा यकीं कर लो ना , माँ मुझको मत मारो ना. माँ ,लगता है , तुम मुझ पर होने वाले खर्चों से डरती हो , मेरी शादी में तुम खर्च जरा भी ना करना और दहेज़ लोभियों से तुम मेरा ब्याह भी मत करना . मै खुश रहूँगी, मुझको इस जग को समझाना है , इस दहेज़ के दानव ने छीना, हम बेटिओं का आशियाना है , इस कुप्रथा को हर हाल में अब मिटाना है , तुम समझ गयी बोलो ना , मौन अब तोड़ भी दो ना , माँ मुझको मत मारो ना. रचनाकार : राजेश जैन राही साभार :.........
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