15-02-2014, 12:45 AM | #11 |
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
15-02-2014, 10:21 AM | #12 |
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Re: Jabalpur & Indore (M.P.)
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15-02-2014, 12:19 PM | #13 |
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Re: Jabalpur & Indore (M.P.)
सुंदर ज्ञानवर्धक जानकरी.........
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16-02-2014, 11:48 AM | #14 |
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Re: Jabalpur & Indore (M.P.)
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17-02-2014, 02:59 PM | #15 |
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Re: Jabalpur & Indore (M.P.)
प्रोत्साहन देने के लिये आप दोनों मित्रों का अतिशय धन्यवाद.
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18-04-2014, 04:31 PM | #16 |
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Re: Jabalpur & Indore (M.P.)
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22-04-2014, 03:34 PM | #17 |
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Re: Jabalpur & Indore (M.P.)
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26-05-2014, 03:57 PM | #18 |
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Re: Jabalpur & Indore (M.P.)
माण्डू, रानी रूपमती और बाज बहादुर
श्रेय: प्रताप सहगल यह शब्द सुनते ही मन में रोमान कीस्वर लहरियाँ तेज़ी से बजने लगती हैं। यह दो अक्तूबर दो हज़ार ग्यारह की सुहावनी सुबहथी और हम लोग महेश्वर से माण्डू की ओर जा रहे थे। आज शशि ने अपने जीवन के सड़सठ वसंतपार किए हैं और हम दो घंटे की यात्रा के बाद माण्डू के प्रवेश द्वार पर हैं। उसप्रवेश द्वार पर मोटे अक्षरों में प्रेम की यह इबारत चमक रही है –‘प्रणय नगरीमाण्डू में आपका स्वागत है’। मझोली पहाड़ियों के बीच बसे माण्डू के साथ जुड़ी रूपमतिऔर बाज बहादुर की प्रेम कहानी प्रसिद्धि के चरम शिखर पर बैठी प्रेमियों औरसैलानियों को आमंत्रित करती रहती है। प्रेम – सुनने में एक बहुत छोटा सा शब्द, लेकिन इसके साथ जुड़ी हुई हैं अनंत कहानियाँ, इतिहास के बदलते, बनते कई मोड़। सामाजिक और व्यैक्तिक स्तर पर समय के साथ जुड़ते रूप, अर्थ और ध्वनियाँ। प्रेम जितनी आसानी से पकड़ में आता है उससे कहीं ज़्यादा वक़्त लगताहै उसे समझने में, उसकी खुशबू बार-बार हाथों से छूटती है और बार-बार हम उसे पकड़ करमन के किसी ऐसे कोने में सुरक्षित कर लेना चाहते हैं कि बस उसकी खुशबू पहुँचे तोसिर्फ़ और सिर्फ़ हम तक। प्रेम को लेकर औरों की तरह मैं भी अक्सर परेशान रहा हूँ किप्रेम आखिर है क्या? प्रेम का माध्यम अगर देह है तो फ़िर प्रेम देह से बाहर कैसे है? क्या प्रेम सिर्फ़ कुत्ते की हड्डी है या अपने प्रिय के लिए सब कुछ छोड़ देने कीशक्ति। यहाँ तक कि अपनी हड्डी भी गल जाती हैं प्रेम में। >>>
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26-05-2014, 04:07 PM | #19 |
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Re: Jabalpur & Indore (M.P.)
इश्क मजाज़ी से इश्क हक़ीकीकी ओर जाना! कैसा अनुभव होता होगा वह, मैं नहीं जानता लेकिन यह ज़रूर जानता हूँ किकहीं कुछ ऐसा होता है किसी ख़ास के प्रति कि उसके होने और उसके न होने से ही फ़र्क़पड़ता है ज़िन्दगी जीने में। कि कुछ करना है उसके लिए सबसे ज़रूरी काम बन जाता है किकहीं कुछ छूट जाता है उसके ग़ैर-हाज़िरी में। ऐसी ही एक प्रणय-गाथा तैरती हुई महसूसहोती है माण्डू में। सदियों पहले हो चुकी बाज बहादुर और रूपमती की प्रेम-गाथा।माण्डू के लोक-गीतों और लोक-कथाओं में, माण्डू से गुज़रती हुई नर्मदा के पानी में, माण्डू के पेड़- पौधों में और माण्डू में कुछ खड़ी और कुछ ध्वस्त हो चुकी या हो रहीइमारतों में। वस्तुत: इसी प्रणय-गाथा को उन हवाओं में महसूस करने, उन्हें पकड़ने केलिए ही हमने बनाया था माण्डू जाने का कार्यक्रम।
कुछ साल पहले रेडियो के लिए एकनाटक तैयार किया था मैंने। तब तक नहीं देखा था मैंने माण्डू और ना हीं नर्मदा का दूरसे दिखता वह बहाव जो रूपमती महल के पिछवाड़े से होकर निकल जाता है। बस सिर्फ़ अपनीकल्पना के सहारे भरे थे रंग मैंने उस नाटक में बहती नदी में और वहाँ घूमते हुएमहसूस किया था रूपमती और बाज बहादुर को। नाटक में ही सुना था दोनों का संगीत औरडूबा रहा था उस संगीत की स्वर-लहरियों में। या बहुत साल पहले 1957 में बनी देखी थीएक फ़िल्म ‘रानी रूपमती’। रूपमती थी उसमें निरूपा राय और बाज बहादुर था भारत भूषण।रूपमती का वह चेहरा जो गा रहा था यह गीत –‘आ लौट के आ जा मेरे मीत, तुझे मेरे गीतबुलाते हैं। मेरा सूना पड़ा रे संगीत, तुझे मेरे गीत बुलाते हैं’। आज भी कई बार मेंगूँजता रहता है यह गीत लेकिन माण्डू में आकर ही इस गीत के मर्म को पकड़ पा रहा था।रूपमती की वियोग- पीड़ा बहुत घनी होकर कहीं मेरे अंदर उतर रही थी। ^ फिल्म रानी रूपमती के पोस्टर
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26-05-2014, 04:09 PM | #20 |
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Re: Jabalpur & Indore (M.P.)
कहाँ और कब शुरूहुई होगी बाज बहादुर और रानी रूपमती की यह प्रेम कहानी, इसका भी एक छोटा सा इतिहास है। इस प्रेम कहानी के घटने कासमय पंद्रहवीं शताब्दी का उत्तर-काल है और यह भी लगता है कि इस प्रेम कहानी नेलोक-मानस में जल्दी ही अपनी जगह बना ली और यह समय बदलने के साथ रूप भी बदलती रही।लोक इतिहास जब शब्द, संगीत, चित्रकला और स्थापत्य में जब सुरक्षित हो जाता है तोउसकी उम्र भी दराज़ होती है। लोक में चलती इन्हीं कविताओं और कहानी को सबसे पहले 1599 में अहमद-उल-उमरी ने फ़ारसी में सुरक्षित किया। उन्होंने इस कहानी के साथ 26 कविताओं को भी शामिल किया। यही मौलिक पाण्डुलिपि उनके पोते फ़ौलाद खां को मिली औरफ़ौलाद खां के मित्र मीर जाफ़र अली ने 1653 में इसकी एक प्रतिलिपि तैयार की।
मीर जाफ़रकी यही प्रतिलिपि दिल्ली के महबूब अली तक पहुँची। 1831 में महबूब अली के मृत्यु केबाद यही प्रतिलिपि दिल्ली की एक अनाम महिला के पास पहुँच गई। भोपाल के इनायत अलीइसे दिल्ली से आगरा लाए। बाद में यह पाण्डुलिपि सी.ई. लॉर्ड को जब मिली तो उन्होंने 1926 में एल.एम. करम्प से इसका अंग्रेज़ी में ‘दि लेडी आफ़ दि लोटस:रूपमती, क्वीन आफ़माण्डू: अ स्ट्रेंज टेल आफ़ फ़ेथफ़ुलनैस’ शीर्षक से अनुवाद करवाया और इस तरह से यहप्रेम-गाथा लोक मानस के साथ-साथ शब्द में भी सुरक्षित हो गई। हमारी गाड़ी तेज़ी सेभागी जा रही थी। हम माण्डू में प्रवेश कर चुके थे। माण्डू के चारों ओर का परकोटापैंतालीस किलोमीटर लंबी दीवार से घिरा हुआ है। >>>
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