10-03-2012, 09:05 PM | #11 |
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Re: आयुर्वेदिक औषधियां
उच्च रक्त चाप में (हाई ब्लड प्रेशर): सर्पगंधाघनवटी, रसोन वटी, सूतशेखर (स्वर्णयुक्त), मोती (मुक्तापिष्टी)। पांडू (खून की कमी पर): पुनर्नवादि मंडूर, मंडूर भस्म, लोहासव, कांतिसार, नवायस लौह, ताप्यादि लौह। कामला (पीलिया) में: लिवकेयर सीरप, आरोग्यवर्द्धिनी, अविपत्तिकर चूर्ण रोहितकारिष्ट, चन्द्रकला रस, प्रवाल पंचामृत। शरीर की सूजन में: पुनर्नवारिष्ट, पुनर्नवामंडूर, शोथिर लौह, दुग्ध वटी (शोथ)। |
10-03-2012, 09:05 PM | #12 |
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Re: आयुर्वेदिक औषधियां
मस्तिष्क संबंधी : सिर में भारीपन, आंखों से पानी बहना, कान में दर्द, नाक बहना, नाक में सूजन आदि में : अकसर सर्दी-बरसात में सुबह के समय तथा खाने के बाद होता है- लक्ष्मीविलास रस, अणुतौल।
पैत्तिक (सिर में दाह, नाक में खून आना आदि। गर्मी में दोपहर के समय सिर में दर्द होना) : स्वर्ण सूतशेखर रस, अणु तेल, रक्त स्तंभक, च्यवनप्राश, खमीरा संदल। वातिक (सिर दर्द के साथ चक्कर, नींद न आना, आंखों में शुष्कता आदि) : गोदती भस्म, मृगश्रंग भस्म, अणुतौल। अनन्तवात व सूर्यावर्त (आधीसीसी का सिर दर्द) : अणु तेल, षडबिन्दु तेल, स्वर्ण सूतशेखर रस, गोदती भस्म, शिरःशूलादि वज्र रस, त्रिफला चूर्ण। स्मृति वर्द्धक व बुद्धि वर्द्धक औषधियां : ब्राह्मी रसायन, अश्वगंधारिष्ट, ब्राह्मी सारस्वत चूर्ण, घृत, बादाम तेल |
10-03-2012, 09:06 PM | #13 |
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Re: आयुर्वेदिक औषधियां
नींद न आना, चित्तभ्रम, घबराहट, बेचैनी आदि में : अश्वगंधारिष्ट ब्राह्मी रसायन, सारस्वतारिष्ट, ख्मीरा, गावजवां, जवाहर मोहरा, सूतशेखर रस व बादाम तेल।
अपस्मार (हिस्टीरिया, मूर्छा) आदि में : अश्वगंधारिष्ट, वात कुलांतक रस, ब्राह्मी रसायन, सारस्वतारिष्ट, ख्मीरा, जातिफलादि चूर्ण, वृहत्* वात चिंतामणि, स्मृतिगागर रस, स्नायु शक्तिदा। |
18-03-2012, 06:33 PM | #14 |
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Re: आयुर्वेदिक औषधियां
आरोचक से तात्पर्य है कि भोजन को ग्रहण करने में ही रुचि न हो या यों कहें कि भूख होते हुए भी व्यक्ति भोजन करने में असमर्थ हो, तो वह आरोचक या ‘मन न करना’ कहलाता है।
आरोचक का अर्थ सीधे-सीधे यह कह सकते हैं कि भूख लगी हो और भोजन भी स्वादिष्ट हो, फिर भी भोजन अच्छा न लगे और गले के नीचे न उतरे। कारण चाय-कॉफी का अधिक सेवन, विषम ज्वर (मलेरिया) के बाद, शोक, भय, अतिलोभ, क्रोध एवं गंध, छाती की जलन, मल साफ नहीं आना, कब्ज होना, बुखार होना, लीवर तथा आमाशय की खराबी आदि। लक्षण खून की कमी, हृदय के समीप अतिशय जलन एवं प्यास की अधिकता, गले से नीचे आहार के उतरने में असमर्थता, मुख में गरमी एवं दुर्गंध की उपस्थिति, चेहरा मलिन एवं चमकहीन, किसी कार्य की इच्छा नहीं, अल्पश्रम से थकान आना, सूखी डकारें आना, मानसिक विषमता से ग्रस्त होना, शरीर के वजन में दिन-ब-दिन कमी होते जाना, कम खाने पर भी पेट भरा प्रतीत होना। घरेलू योग 1. भोजन के एक घंटा पहले पंचसकार चूर्ण को एक चम्मच गरम पानी के साथ लेने से भूख खुलकर लगती है। 2. रात में सोते समय आँवला 3 भाग, हरड़ 2 भाग तथा बहेड़ा 1 भाग-को बारीक चूर्ण करके एक चम्मच गुनगुने पानी के साथ लेने से सुबह दस्त साफ आता है एवं भूख खुलकर लगती है। 3. भोजन में पतले एवं हलके व्यंजनों का प्रयोग करने से खाया हुआ जल्दी पच जाता है, जिससे जल्दी ही भूख लग जाती है। 4. खाना खाने के बाद अजवायन का चूर्ण थोड़े से गुड़ के साथ खाकर गुनगुना पानी पीने से खाया हुआ पचेगा, भूख लगेगी और खाने में रुचि पैदा होगी। 5. भोजन के बाद हिंग्वष्टक चूर्ण एक चम्मच खाने से पाचन-क्रिया ठीक होगी। 6. भोजन के बाद सुबह-शाम दो-दो चम्मच झंडु पंचासव सीरप लें, इससे खाया-पिया जल्दी पच जाएगा और खाने के प्रति रुचि जाग्रत् होगी। 7. हरे धनिए में हरी मिर्च, टमाटर, अदरक, हरा पुदीना, जीरा, हींग, नमक, काला नमक डालकर सिलबट्टे पर पीसकर बनाई चटनी खाने से भोजन की इच्छा फिर से उत्पन्न होती है। 8. भोजन करने के बाद थोड़ा सा अनारदाना या उसके बीज के चूर्ण में काला नमक एवं थोड़ी सी मिश्री पीसकर मिलाने के बाद पानी के साथ एक चम्मच खाने से भूख बढ़ती है। 9. एक गिलास छाछ में काला नमक, सादा नमक, पिसा जीरा मिलाकर पीने से पाचन-क्रिया तेज होकर आरोचकता दूर होती है। आयुर्वेदिक योग पंचारिष्ट, कुमार्यासव, पंचासव दो-दो चम्मच भोजन के बाद पीना चाहिए। आरोग्यवर्दिनी वटी, गैसांतक वटी या क्षुब्धानाशक वटी में से किसी एक की दो-दो वटी भोजन के बाद सुबह-शाम लें। पथ्य सलाद, पेय पदार्थ, छाछ, पाचक चूर्ण आदि लेना पथ्य है। अपथ्य चाय, कॉफी, बेसन, तेज मसाले एवं सूखी सब्जियाँ अपथ्य हैं। बचाव इस रोग से बचने का सबसे बढ़िया तरीका सुबह-शाम भोजन करके एक घंटा पैदल घूमना एवं सलाद तथा हरी पत्तीदार सब्जियों का प्रयोग करना है। |
18-03-2012, 06:35 PM | #15 |
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Re: आयुर्वेदिक औषधियां
अग्निमांद्य
पहचान अल्प मात्रा में लिया गया आहार भी ठीक से न पचे, मस्तक और पेट में वजन मालूम पड़े और शरीर में हड़फुटन हो तो समझिए कि अग्निमांद्य से पीड़ित हैं अर्थात् पेट में भूख की अग्नि (तड़प) मंद हो रही है या पाचन-क्रिया की गति कम हो गई है। कारण 1. सामान्य कारण:- अजीर्ण होने पर भी भोजन करना, परस्पर विरुद्ध आहार लेना, अपक्व (कच्चा) भोजन करना, द्रव पदार्थों का अधिक सेवन करना, ज्यादा गरम तथा ज्यादा खट्टे पदार्थों का सेवन, भोजन के बाद अथवा भोजन के बीच में पानी पीने का अभ्यास, कड़क चाय का अति सेवन आदि। 2. विशिष्ट कारण:- खाने की नली की बनावट जन्म से ही विकृतमय होना, आँतपुच्छ में सूजन, खून की कमी, एस्प्रीन सैलीसिलेट्स आदि का अधिक सेवन। लक्षण इसका प्रमुख लक्षण खाने के बाद पेट भारी रहना है। मुँह सूखना, अफारा, जी मिचलाना, भोजन के प्रति अरुचि, भूख न लगना, दुर्बलता, सिर में चक्कर खाना, मुँह से धुँआँ जैसा निकलना, पसीना आना, शरीर में भारीपन होना, उलटी की इच्छा, मुँह में दुर्गंध, मुँह में पानी भर आना, खट्टी डकारें आना आदि। घरेलू योग 1. अग्निमांद्य में गरम पानी पीना चाहिए। 2. भोजन करने से पहले अदरक की कतरन में सेंधा नमक डालकर चबाने से भूख खुलती है एवं अग्निमांद्य नष्ट होता है। 3. सिरका और अदरक बराबर-बराबर मिलाकर भोजन से पहले नित्य खाने से अग्निमांद्य दूर होगा। 4. घी से युक्त खिचड़ी के प्रथम निवाले के साथ हिंग्वष्टक चूर्ण खाने से अग्निमांद्य दूर होगा। 5. लवणभास्कर चूर्ण को गाय के दूध की छाछ के साथ नित्य लेने से अग्निमाद्य नष्ट होता है। 6. बथुए का रायता नित्य सेवन करने से भोजन में रुचि बढ़ती है और भूख खुलकर लगती है। 7. दोनों समय के भोजन के बीच पाँच घंटे का फासला रखकर दोपहर का भोजन 10 बजे एवं शाम का भोजन 5 बजे तक कर लें। भोजन के पहले एवं बाद में पानी नहीं पीने से खाया हजम होकर भूख खुलेगी, जिससे अग्निमांद्य दूर होगा। 8. भोजन में कद्दू एवं लौकी का रायता खाने से खाना जल्दी पचता है। 9. दिन भर में केवल एक बार ही भोजन करने से एवं एक समय फलाहार लेने से भी अग्निमांद्य नष्ट होता है। 10. भूख से कम एवं खूब चबा-चबाकर खाने से भोजन जल्दी पच जाएगा एवं भूख की मंद अग्नि दूर होगी। आयुर्वेदिक योग 1. पंचारिष्ट या पंचासव सीरप- किसी एक की दो-दो चम्मच सुबह-शाम भोजन के बाद लें। 2. आरोग्यवर्दिनी वटी, गैसांतक वटी, गैसेक्स, यूनीइंजाम-इनमें से किसी एक की दो-दो वटी भोजन के बाद सुबह-शाम छाछ के साथ लें। 3. लवणभास्कर चूर्ण, पंचसकार चूर्ण, हिंग्वष्टक चूर्ण में से कोई भी एक चम्मच पाचक चूर्ण गरम पानी के साथ लें। पथ्य सलाद, छाछ, खिचड़ी, हरी सब्जियाँ एवं रसेदार पदार्थ खाना पथ्य है। अपथ्य भूख नहीं लगने पर भी भोजन करना, चाय-कॉफी अधिक मात्रा में लेना, बासी खाना अपथ्य है। बचाव भोजन करके दिन या रात में तुरंत नहीं सोना चाहिए। |
18-03-2012, 06:37 PM | #16 |
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Re: आयुर्वेदिक औषधियां
संग्रहणी
पहचान मंदाग्नि के कारण भोजन न पचने पर अजीर्ण होकर दस्त लगते लगते हैं तो यही दस्त संग्रहणी कहलाती है। अर्थात् खाना खाने के बाद तुरंत ही शौच होना या खाने के बाद थोड़ी देर में अधपचा या अपरिपक्व मल निकलना संग्रहणी कही जाती है। इस रोग के कारण अन्न कभी पचकर, कभी बिना पचे, कभी पतला, कभी गाढ़ा कष्ट या दुर्गंध के साथ शौच के रूप में निकलता है। शरीर में दुर्बलता आ जाती है। कारण इस रोग का प्रमुख कारण विटामिन बी कॉम्प्लेक्स, सी एवं कैल्सियम की कमी होना है। वातज संग्रहणी:- जो मनुष्य वातज पदार्थों का भक्षण करे, मिथ्या आहार-विहार करे और अति मैथुन करे तो बादी कुपित होकर जठराग्नि को बिगाड़ देती है। तब वातज संग्रहणी उत्पन्न होती है। पित्तज संग्रहणी:- जो पुरुष गरम वस्तु का सेवन अधिक करे, मिर्च आदि तीक्ष्ण, खट्टे और खारे पदार्थ खाए तो उसका पित्त दूषित होकर जठराग्नि को बुझा देता है। उसका कच्चा मल निकलने लगता है तब पित्तज संग्रहणी होती है। कफज संग्रहणी:- जो पुरुष भारी, चिकनी व शीतल वस्तु खाते हैं तथा भोजन करके सो जाते हैं, उस पुरुष का कफ कुपित होकर जठराग्नि को नष्ट कर देता है। लक्षण वातज:- खाया हुआ आहार कष्ट से पचे, कंठ सूखे, भूख न लगे, प्यास अधिक लगे, कानों में भन-भन होना, जाँघों व नाभि में पीड़ा होना आदि। पित्तज:- कच्चा मल निकले, पीले वर्ण का पानी मल सहित गुदाद्वार से निकलना और खट्टी डकारें आना। कफज:- अन्न कष्ट से पचे, हृदय में पीड़ा, वमन और अरुचि हो, मुँह मीठा रहे, खाँसी, पीनस, गरिष्ठता और मीठी डकारें आना। घरेलू योग 1. सोंठ, पीपल, पीपलामूल, चव्य एवं चित्रक का 8 ग्राम चूर्ण नित्य गाय के दूध से बनी छाछ के साथ पिएँ, ऊपर से दो-चार बार और भी छाछ पिएँ तो वात संग्रहणी दूर होगी। 2. 8 ग्राम शुद्ध गंधक, 4 ग्राम शुद्ध पारद की कजली, 10 ग्राम सोंठ, 8 ग्राम काली मिर्च, 10 ग्राम पीपली, 10 ग्राम पांचों नमक, 20 ग्राम सेंकी हुई अजवायन, 20 ग्राम भूनी हुई हींग, 24 ग्राम सेंका सुहागा और एक पैसे भर भुनी हुई भाँग-इन सबको पीसकर-छानकर कजली मिला दें। उसके बाद इसे दो दिन बाद भी पीसें तो चूर्ण बन जाए। यह 2 या 4 ग्राम चूर्ण गाय के दूध से बनी छाछ के साथ पीने से वात संग्रहणी मिटती है। 3. जायफल, चित्रक, श्वेत चंदन, वायविडंग, इलायची, भीमसेनी कपूर, वंशलोचन, जीरा, सोंठ, काली मिर्च, पीपली, तगर, पत्रज और लवंग बराबर-बराबर लेकर चूर्ण बनाकर इन सबके चूर्ण से दुगुनी मिश्री और थोड़ी बिना सेंकी भाँग-ये सब मिलाकर इसमें से 4 या 6 ग्राम चूर्ण गाय के दूध की छाछ के साथ पंद्रह दिनों तक सेवन करें तो पित्त संग्रहणी दूर होगी। 4. रसोत, अतीस, इंद्रयव, तज, धावड़े के फूल सबका 8 ग्राम चूर्ण गाय के दूध की छाछ के साथ या चावल के पानी के साथ पंद्रह दिनों तक लें तो पित्त संग्रहणी नष्ट होगी। 5. हरड़ की छाल, पिप्पली, सोंठ, चित्रक, सेंधा नमक और काली मिर्च का 8 ग्राम चूर्ण नित्य गाय के दूध की छाछ के साथ पंद्रह दिन तक सेवन करें तो कफ संग्रहणी दूर होगी। आयुर्वेदिक योग अभ्रक गुटिका, संग्रहणी कटक रस, हिमालय की डॉयरेक्स-इनमें से किसी एक की दो-दो गोली सुबह-शाम छाछ के साथ लें। पथ्य संग्रहणी के रोगी को हमेशा हलका एवं पाचक भोजन ही करना चाहिए। अपथ्य भारी, आमोत्पादक, क्षुधानाशक, चिकना पदार्थ, अधिक परिश्रम अति मैथुन और चिंता से दूर रहे। |
22-03-2012, 01:22 AM | #17 |
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Re: आयुर्वेदिक औषधियां
शहद को आयुर्वेद में अमृत माना गया है। माना जाता है कि रोजाना सही ढंग से शहद लेना सेहत के लिए अच्छा होता है। लेकिन शहद का सेवन करने के फायदे ही नहीं नुकसान भी हो सकते हैं। इसलिए शहद का सेवन जब भी करें नीचे लिखी बातों को जरूर ध्यान रखें।
- चाय, कॉफी में शहद का उपयोग नहीं करना चाहिए। शहद का इनके साथ सेवन विष के समान काम करता है। - अमरूद, गन्ना, अंगूर, खट्टे फलों के साथ शहद अमृत है। - शरीर के लिये आवश्यक, लौह, गन्धक, मैगनीज, पोटेशियम आदि खनिज द्रव शहद में होते हैं। - शहद के एक बड़ा चम्मच में 75 ग्राम कैलोरी शक्ति होती है। - किसी कारणवश आप को शहद सूट नहीं किया तो या खाकर किसी तरह की परेशानी महसूस हो रही हो तो नींबू का सेवन करें। - इसे आग पर कमी न तपायें। - मांस, मछली के साथ शहद का सेवन जहर के समान है। - शहद में पानी या दूध बराबर मात्रा में हानिकारक है। - बाजरू चीनी के साथ शहद मिलाना अमृत में विष मिलाने के समान है। - शहद सर्दियों में गुनगुने दूध या पानी में लेना चाहिये। - एक साथ अधिक मात्रा में शहद न लें। ऐसा करना नुकसानदायक होता है। शहद दिन में दो या तीन बार एक चम्मच लें। - घी, तेल, मक्खन में शहद विष के समान है। |
22-03-2012, 01:27 AM | #18 |
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Re: आयुर्वेदिक औषधियां
किचन में जब चटपटा खाना बनाने की बात हो या सलाद को जायकेदार बनाना हो तो कालीमिर्च का प्रयोग किया जाता है। पिसी काली मिर्च सलाद, कटे फल या दाल शाक पर बुरक कर उपयोग में ली जाती है। इसका उपयोग घरेलु इलाज में भी किया जा सकता है।आज हम आपको बताने जा रहे हैं कालीमिर्च के कुछ ऐसे ही रामबाण प्रयोग।
- त्वचा पर कहीं भी फुंसी उठने पर, काली मिर्च पानी के साथ पत्थर पर घिस कर अनामिका अंगुली से सिर्फ फुंसी पर लगाने से फुंसी बैठ जाती है। - काली मिर्च को सुई से छेद कर दीये की लौ से जलाएं। जब धुआं उठे तो इस धुएं को नाक से अंदर खीच लें। इस प्रयोग से सिर दर्द ठीक हो जाता है। हिचकी चलना भी बंद हो जाती है। - काली मिर्च 20 ग्राम, जीरा 10 ग्राम और शक्कर या मिश्री 15 ग्राम कूट पीस कर मिला लें। इसे सुबह शाम पानी के साथ फांक लें। बावासीर रोग में लाभ होता है। - शहद में पिसी काली मिर्च मिलाकर दिन में तीन बार चाटने से खांसी बंद हो जाती है। - आधा चम्मच पिसी काली मिर्च थोड़े से घी के साथ मिला कर रोजाना सुबह-शाम नियमित खाने से नेत्र ज्योति बढ़ती है। - काली मिर्च 20 ग्राम, सोंठ पीपल, जीरा व सेंधा नमक सब 10-10 ग्राम मात्रा में पीस कर मिला लें। भोजन के बाद आधा चम्मच चूर्ण थोड़े से जल के साथ फांकने से मंदाग्रि दूर हो जाती है। - चार-पांच दाने कालीमिर्च के साथ 15 दाने किशमिश चबाने से खांसी में लाभ होता है। - कालीमिर्च सभी प्रकार के संक्रमण में लाभ देती है। - यदि आपका ब्लड प्रेशर लो रहता है, तो दिन में दो-तीन बार पांच दाने कालीमिर्च के साथ 21 दाने किशमिश का सेवन करे। - बुखार में तुलसी, कालीमिर्च तथा गिलोय का काढ़ा लाभ करता है। - कालीमिर्च, हींग, कपूर का (सभी पांच-पांच ग्राम) मिश्रण बनायें। फिर इसकी राई के बराबर गोलियां बना लें। हर तीन घंटे बाद एक गोली देने से उल्टी, दस्त बंद होते है। |
22-03-2012, 01:28 AM | #19 |
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Re: आयुर्वेदिक औषधियां
पथरी में अमृत है कुलथी
कुलथी उड़द के समान होती है। रंग इसका लाल होता है। इसकी दाल बनाकर रोगी को दी जाती है, जिससे पथरी निकल जाती है। इसे पथरीनाशक बताया गया है। गुर्दे की पथरी और मसाने की पथरी के लिए यह फायदेमंद औषधि है। आयुर्वेद में गुणधर्म के अनुसार कुलथी में विटामिन ए पाया जाता हैे। यह शरीर में विटामिन ए की पूर्ति कर पथरी को रोकने में मददगार है। बाजार में पंसारी की दुकान पर यह आसानी से मिल जाती है। प्रभाव कुलथी के सेवन से पथरी टूटकर या धुलकर छोटी हो जाती है, जिससे पथरी सरलता से मूत्राशय में जाकर पेशाब के रास्ते से बाहर आ जाती है। मूत्रल गुण होने के कारण इसके सेवन से पेशाब की मात्रा और गति बढ़ जाती है, जिससे रूके हुए पथरी कण पर दबाव ज्यादा पड़ने के कारण वह नीचे की तरफ खिसक कर बाहर हो जाती है। इस्तेमाल 1 सेंटीमीटर से छोटी पथरी में यह सफ ल औषधि है। 25 ग्राम कुलथी को 400 मिलीलीटर पानी में पकाकर लगभग 100 मिलीलीटर पानी शेष रहने पर 50-50 मिलीलीटर सुबह शाम एक माह रोगी को पिलाने से पेशाब के साथ निकल जाती है। लेने के पहले और बाद में जांच करवा लें, नतीजा सामने आ जाएगा। इसे अन्य दाल की तरह भी खाया जा सकता है। कुलथी 25 ग्राम लेकर मोटी-मोटी दरदरी कूटकर 16 गुने पानी में पकाएं, चौथा भाग पानी शेष रहने पर उतारकर छान लें, इसमें से 50 मिलीलीटर सुबह शाम लेते रहें। इसमें थोड़ा सेंधा नमक मिला लें। पथरी दुबारा ना हो जिस व्यक्ति को एक बार पथरी पैदा हो जाती है, उसे फिर से होने का भय बना रहता है। इसलिए पथरी निक ालने के बाद भी रोगी कभी-कभी इसका सेवन करते रहें। कुलथी पथरी में अमृत के समान है। -वैद्य बंकटलाल पारीक |
22-03-2012, 01:30 AM | #20 |
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Re: आयुर्वेदिक औषधियां
स्मृति वर्घक ब्राह्मी
बुद्धि, स्मरण शक्ति तथा अध्ययन कर्ताओं के लिए उपयोगी औषधियों में "ब्राह्मी" का नाम सर्वोपरि है। इसका नाम ही ब्राह्मी से जुड़ा है जो सृष्टि के रचयिता एवं विद्याओं के स्त्रोत वेदों के सर्वज्ञाता हैं। इस औष्ाधि का प्रयोग उन लोगों के लिए उपयोगी है जो पढ़ने, लिखने, बोलने तथा निर्णय लेने का कार्य करते हैं। इनमें सभी वैज्ञानिक, विधिवेत्ता, प्राध्यापक, प्रशासक, संपादक, कवि, लेखक शामिल हैं। विद्यार्थियों की तो यह परम हितकारी है। ब्राह्मी के छोटे-छोटे पौधे पूरे देश में जलाशयों के किनारे पैदा होते हैं, पर हरिद्वार से बद्री नारायण तक के पावन पर्वतीय क्षेत्र में सबसे ज्यादा तथा उत्कृष्ट गुणवत्ता वाली ब्राह्मी उत्पन्न होती है तथा वहीं से संग्रह होकर सारे देश में औष्ाधि विक्रेताओं के पास आती है। ब्राह्मी से मिलते-जुलते रंग रूप वाली तथा लगभग इन्हीं गुणों वाली दूसरी औषधि मंडूक पर्णी भी है। इन दोनों में भेद मुश्किल से हो पाता है। इसलिए ये दोनों ही मिलीजुली उपलब्ध होती हैं। ब्राह्मी के पौधे जमीन पर फैले, इसके पत्तों का अग्रभाग गोलाकार डंठल की तरह पत्ते संकरे इन पर छोटे-छोटे निशान फूल नीलिमा युक्त सफेद मोटाई अपेक्षाकृत कम तथा इसकी हर शाखा में से जड़े निकलकर जमीन में घुसती जाती है। जबकि मंडूक पर्णी के पत्ते अपेक्षाकृत मोटे पत्ते का अग्रभाग नोकदार उठल की तरह चौड़ा तथा फूल लाल होते हैं। पत्ते ब्राह्मी से कुछ बड़े होते हैं। इसके डालों से भी जड़े निकलकर पृथ्वी में घुसी रहती हैं। ब्राह्मी स्वाद में कड़वी जबकि मंडूक पर्णी कसैलेपन युक्त कड़वी तथा चबाने पर विशेष्ा गंध युक्त होती है। ब्राह्मी को संस्कृत में ब्राह्मी, सरस्वती, शारदा, हिन्दी गुजराती व मराठी में ब्राह्मी, अंग्रेजी में इंडियन पेनीवर्ट तथा वनस्पति विज्ञान में हरवेस्टिस मोनिएरा या मोनिरा कुनी फोलिया कहते हैं। आयुर्वेद के मतानुसार ब्राह्मी शीतल, मल को नीचे धकेलने वाली, हलकी, मेधावर्घक, कसैली-कड़वी, विपाक में मधुर- आयुवर्घक, वृद्धावस्था रोकने वाली, स्वर की मधुरता व स्मरण शक्ति बढ़ाने वाली, कुष्ठ, पांडु, रक्त विकार, प्रमेह, विष्ा, सूजन, ज्वर, खांसी मिटाने वाली, अग्नि प्रदीपक, ह्वदय को हितकर, वातपित्त कफ तीनों दोष्ाों की नाशक, प्लीहावृद्धि, वातरक्त, श्वास, यक्ष्मा में लाभ दायक दिव्य महौष्ाधि है। इसका पंचांग (पूरा पौधा) ही उपयोगी है। रासायनिक विश्लेषण इसमें ब्राह्मीन नामक एक उपक्षार मिलता है जो छोटी मात्रा में रक्तचाप बढ़ाता तथा ह्वदय को मांसपेशियों, श्वास प्रणाली, गर्भाशय और छोटी आंतों को उत्तेजना प्रदान करता है। इसमें कुछ कुचले जैसा पर उससे कम विषैला असर भी होता है। ब्राह्मी में एक उड़नशील तेल मिलता है जो इसे धूप में सुखाने या आग पर गर्म करने से उड़ जाता है। यह तेल इसके गुणों का मुख्य आधार है अत: इसे बचाना चाहिए। ब्राह्मी हिस्टीरिया, अपस्मार (मिर्गी) तथा उन्माद रोगों में बहुत लाभदायक पाई गई है। इसके सेवन से इन तीनों रोगों में उल्लेखनीय लाभ मिलता है। इसके साथ शंखपुष्पी, बच तथा कूठ का मिश्रण अत्यधिक गुणकारक असर करता है तथा ब्राह्मी की विषाक्तता को कम करते हैं। ब्राह्मी मस्तिष्क को पुष्टि व शांति देती है। इसके प्रयोग से मज्जा तंतुओं के रोग मिटते हैं। अनावश्यक तथा अनर्गल बोलना, शीघ्र उत्तेजित हो जाना, चारों तरफ से उदासीनता बनाना आदि रोग ब्ा्राह्मी के उपयोग से मिर्गी के दौरों की तीव्रता, अवधि तथा आवृत्ति में कमी आती है व हिस्टीरिया पूरी तरह मिट जाता है। शास्त्रीय उपयोग ब्राह्मी से ब्राह्मी घृत, सारस्वत घृत, सारस्वत चूर्ण, सारस्वतारिष्ट, ब्राह्मी रसायन, ब्राह्मीवटी, ब्राह्मी चूर्ण, ब्राह्मी शर्बत आदि शास्त्रोक्त नुस्खों के अलावा प्राय: हर आयुर्वेदिक औष्ाध निर्माता कंपनी अपने पृथक-पृथक प्रोप्रायटरी योग बनाकर अनेक टेब्लेट, सीरप, कैप्सूल वगैरह बनाते हैं। पर इस बात से सभी सहमत हैं कि ब्ा्राह्मी मस्तिष्क, ह्वदय, मज्जा, तंतुओं के रोगों, अनेक मानसिक रोगों तथा स्नायु तंत्र के रोगों में आयुर्वेद का गरिमापूर्ण प्रतिनिधित्व कर मानस रोगियों का कल्याण करती है। बुद्धिवर्घक योग प्रतियोगिता के इस दौर में सबके प्रयोग के लिए एक अनुभूत प्रयोग प्रस्तुत है- छाया में सुखाए ब्राह्मी के पत्ते, शंखपुष्पी पंचांग, बचदूधिया, कूठशतावर, विदारीकंद, छोटी इलायची, छिले हुए बादाम, मालकांगनी तथा जटामांसी का चूर्ण बनाएं। अन्य चीजों से जटामांसी आधी, बच चौथा भाग लें। चूर्ण को पांच ग्राम की मात्रा में पानी के साथ चटनी की तरह पीस गाय के मीठे दूध तथा दो चम्मच गाय के घी के साथ मिला कर पीवें, स्मरण शक्ति तीव्र होगी। -वैद्य हरिमोहन शर्मा |
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