14-03-2015, 04:36 PM | #11 |
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Re: मेलजोल
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14-03-2015, 04:39 PM | #12 |
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Re: मेलजोल
तमिल पाक्षिक पत्रिका नक्कीरन के सम्पादक आर. गोपाल के सहयोगी पत्रकार शिव सुब्रमनियम् जंगल में चन्दन तस्कर वीरप्पन की वीडियोग्राफी करते हुए-
वीरप्पन के साथियों के बारे में पत्रकार शिव सुब्रमनियम् का बयान- ‘They began making tea for all of us. They behaved as if I was a guest in their home; all of them were very well mannered and cordial.’ अंग्रेज़ी समाचार-पत्र ‘द हिन्दू’ में २ मार्च, २००२ को पत्रकार शिव सुब्रमनियम् के बारे में प्रकाशित समाचार का एक अंश- `Sivasubramaniam had role in Rajkumar kidnap' By Our Special Correspondent CHENNAI March 1. The Home Secretary, Naresh Gupta, today charged that the detained journalist, Sivasubramaniam, had a deep nexus with the sandalwood smuggler, Veerappan, and that he had a role in the abduction of the Kannada film actor, Rajkumar, two years ago. ``A lot of incriminating information came to light during interrogation of Mr. Sivasubramaniam by the Karnataka and Tamil Nadu police'', the Home Secretary said in a statement here. His nexus with Veerappan and his role, along with the Tamil extremist groups, TNLA and TNRT, in the abduction of the filmstar in 2000 ``are becoming clearer''. Mr. Sivasubramaniam also played a role in the kidnap of another journalist, Netrikkan Mani, and lawyer Krishnaswamy in June 1998. He was acting as a conduit between the Tamil extremists and outfits such as the TNRT and the TNLA. http://www.thehindu.com/2002/03/02/s...0202290400.htm
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14-03-2015, 04:43 PM | #13 |
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Re: मेलजोल
नेताओं और अपराधियों के बीच की साँठ-गाँठ और मिलीभगत को दर्शाता हुआ तमिल पाक्षिक पत्रिका नक्कीरन के सम्पादक आर. गोपाल का एक बयान-
The general public thinks there is a nexus between politicians and Veerappan. Is it true? Yes, he himself has named many of them in our video interview. He said so-and-so had come and taken sandalwood from him. It is true that there are connections between him and some politicians. But we took up the case because we felt it was our moral duty to expose the politicians who were constantly lying to us.
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14-03-2015, 04:44 PM | #14 |
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Re: मेलजोल
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14-03-2015, 04:51 PM | #15 |
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Re: मेलजोल
अब आप सभी को यह आश्चर्य ज़रूर हो रहा होगा कि दोस्ती होने के बावजूद ये आपस में लड़ते क्यों है? आज यदि कबीरदास जीवित होते तो इस सन्दर्भ में लिखते—
'पपुनेगुव' की दोस्ती, पीट सकै ना कोय। धन्धा चौपट तो बेहिचक, जूता—लात होय।। अर्थ स्पष्ट है— 'पपुनेगुव' अर्थात् पत्रकार, पुलिस, नेता, गुण्डा और वकील के बीच की दोस्ती से कोई आगे नहीं निकल सकता, किन्तु जब एक—दूसरे के कारण इनका धन्धा चौपट होता है तो ये आपस में बेहिचक जूता—लात करने लगते हैं। (अभी और है।)
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15-03-2015, 07:48 PM | #16 |
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Re: मेलजोल
इससे पहले हम कुछ और साक्ष्य प्रस्तुत करें, कबीरदास के कुछ और काल्पनिक दोहों पर नज़र डालते हैं, क्योंकि कबीरदास आज यदि जीवित होते तो पत्रकारों के बारे में भी कुछ कहते। क्या कहते? आइए, देखते हैं—
'पत्रकार लघु जानि कै, टाँग न दीजै डारि। थाना पुलिस बुलाय कै, तन सब दैहें फारि।।' अर्थ स्पष्ट है- कबीरदास कहते हैं- पत्रकार यदि छोटा भी हो तो भी उससे नहीं उलझना चाहिए। छोटा पत्रकार भी पुलिस भेजकर आपको थाने में घसीट सकता है और आपकी पिटाई करवा सकता है, क्योंकि पत्रकार और पुलिस की आपस में बड़ी मिलीभगत होती है। क्या कहा? इस दोहे का साक्ष्य प्रस्तुत करें। हर चीज़ का साक्ष्य हम थोड़े ही प्रस्तुत करते रहेंगे। यह तो कर के देखने की चीज़ है। आप खुद किसी पत्रकार को छेड़कर देखिए, आटे—दाल का भाव पता चल जाएगा।
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15-03-2015, 07:55 PM | #17 |
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Re: मेलजोल
अब यक्ष—प्रश्न है— पत्रकारों को पहचानें कैसे? तो इस बात पर भी आज यदि कबीरदास जीवित होते तो क्या लिखने से चूकते? आगे पढ़िए—
'पत्रकार हेरन मैं चला, मतिभ्रम मिला न कोय। एडिटर रिपोर्टर कॉरस्पान्डन्ट, एकहिं जाति होय।।' अर्थ स्पष्ट है— कबीरदास जी कहते हैं— पत्रकारों को ढूॅंढ़ने के लिए मैं निकला तो मेरी बुद्धि भ्रमित होने के कारण मुझे कोई पत्रकार नहीं मिला, क्योंकि आजकल पत्रकार एडिटर, रिपोर्टर और कॉरस्पान्डन्ट के नाम से जाने और पहचाने जाते हैं।
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15-03-2015, 08:00 PM | #18 |
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Re: मेलजोल
पत्रकार, पुलिस, नेता, गुण्डा और वकील- ये पाँचों एक साथ मिल जाएॅं तो क्या करना चाहिए? आगे पढ़िए—
‘पपुनेगुव’ पंच खड़े, काके लागूँ पाँय। नेता जीवट आपने, पाँचों दिया बताय।। अर्थ स्पष्ट है- ‘पपुनेगुव’ अर्थात् पत्रकार, पुलिस, नेता, गुण्डा और वकील- ये पाँचों एक साथ खड़े हों तो नेता का साथ पकड़ लेना चाहिए, क्योंकि नेता बड़ा ही जीवट होता है और नेता का परिचय सभी से होता है।
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15-03-2015, 08:05 PM | #19 |
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Re: मेलजोल
‘पपुनेगुव’ अर्थात् पत्रकार, पुलिस, नेता, गुण्डा और वकील की उन्नति की बात पर भी क्या कबीरदास कुछ लिखने से चूकते? आगे पढ़िए—
कबीरा उन्नति पाय कै, नेता मन्त्री बन जाय। पत्रकार एडिटर बनै, गुण्डा बाहुबली कहलाय।।1।। अर्थ स्पष्ट है- उन्नति होने पर नेता मन्त्री बन जाता है, पत्रकार सम्पादक बन जाता है और गुण्डा बाहुबली कहलाता है। वकील पीपी जज बनै, पुलिस कप्तान बन हड़काय। कबिरा कछु उन्नति नहीं, लेखक लेखक रहि जाय।।2।। अर्थ स्पष्ट है- उन्नति होने पर वकील पब्लिक प्रॉसिक्यूटर तथा जज बन जाता है और पुलिस शहर का कप्तान बनकर हड़काने लगता है, किन्तु कबीरदास की कोई उन्नति नहीं होती क्योंकि एक लेखक हमेशा लेखक ही रहता है।
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15-03-2015, 08:13 PM | #20 |
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Re: मेलजोल
कबीरदास के इतने दोहे पढ़कर रहीम क्या चुप बैठते? वे भी कुछ ज़रूर लिखते। कबीरदास के अत्याधुनिक काल्पनिक दोहों को पढ़कर आपको भी एक—आध दोहा लिखने का बड़ा मन कर रहा होगा। चलिए, रहीम का यह दोहा आप ही लिख डालिए।
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