28-12-2012, 09:20 PM | #11 |
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Re: श्रीमद् भगवद् गीता
तस्य सञ्जनयन् हर्षं कुरुवृद्ध: पितामह: । सिंहनादं विनद्योच्चै: शंखं दध्मौ प्रतापवान् ॥१२॥ कौरवोंमें ज्येष्ठ, प्रतापी पितामह भीष्मने उस दुर्योधनके हृदयमें हर्ष उत्पन्न करते हुए उच्च स्वरसे सिंहकी दहाडके समान गरजकर शंख बजाया । |
28-12-2012, 09:20 PM | #12 |
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Re: श्रीमद् भगवद् गीता
तत: शंखाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखा: । सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत् ॥१३॥ इसके पश्चात् शड्ख और नगारे तथा ढोल, मृदंग और नरसिंघे आदि बाजे एक साथ ही बज उठे । उन सबकी वह आवाज़ बडी भयंकर हुई । |
28-12-2012, 09:20 PM | #13 |
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Re: श्रीमद् भगवद् गीता
ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ । माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शंङ्खौ प्रदध्मतुः ॥१४॥ इसके अनंतर सफेद घोडोंसे युक्त उत्तम रथमें बैठे हुए श्रीकृष्ण महाराज और अर्जुनने भी दिव्य शंख बजाये । |
28-12-2012, 09:21 PM | #14 |
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Re: श्रीमद् भगवद् गीता
पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः । पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः ॥१५॥ श्रीकृष्ण महाराजने पाज्चजन्य नामक, अर्जुनने देवदत्त नामक और भयानक कर्मवाले भीमसेनने पौण्ड्र नामक महाशंख बजाया । |
28-12-2012, 09:21 PM | #15 |
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Re: श्रीमद् भगवद् गीता
अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः । नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ ॥१६॥ कुंतीपुत्र राजा युधिष्ठिरने अनंतविजय नामक और नकुल तथा सहदेवने सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख बजाये । |
28-12-2012, 09:22 PM | #16 |
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Re: श्रीमद् भगवद् गीता
काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः । धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः ॥१७॥ द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते । सौभद्रश्च महाबाहुः शंखान्दध्मुः प्रुथक्प्रुथक ॥१८॥ श्रेष्ठ धनुषवाले काशिराज और महारथी शिखण्डी एवं धृष्टद्युम्न तथा राजा विराट और अजेय सात्यकि, राजा द्रुपद एवं द्रौपदीके पाँचों पुत्र और बडी भुजावाले सुभद्रापुत्र अभिमन्यु- इन सभी ने, हे राजन् ! सब ओरसे अलग-अलग शंख बजाये । |
28-12-2012, 09:23 PM | #17 |
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Re: श्रीमद् भगवद् गीता
स घोषो धार्तराष्ट्रणां हृदयानि व्यदारयत् । नभश्च पृथिविं चैव तुमुलो व्यनुनादायन् ॥१९॥ आकाश और पृथ्वी के बीच गुँजती हुई उस प्रचंड आवाजने धार्तराष्ट्रोंके (याने कौरवोंके) हृदय भेद दिये |
28-12-2012, 09:24 PM | #18 |
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Re: श्रीमद् भगवद् गीता
अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान् कपिध्वजः । प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः ॥२०॥ हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते । अर्जुन उवाच सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ॥२१॥ हे राजन् ! इस पश्चात् कपिध्वज अर्जुनने मोर्चा बाँधकर डटे हुए धृतराष्ट्र-सम्बन्धियोंको देखकर, उस शस्त्र-प्रहार की तैयारीके समय धनुष उठाकर ह्रषीकेश श्रीकृष्ण से यह वचन कहा – “हे अच्युत ! मेरे रथको दोनों सेनाओंके बीच में खडा कीजिये” । |
28-12-2012, 09:24 PM | #19 |
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Re: श्रीमद् भगवद् गीता
यावदेतान्निरीक्षे*ऽहं योद्धुकामानवस्थितान् । कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे ॥२२॥ और जब तक मैं युद्धक्षेत्रमें डटे हुए, युद्ध-अभिलाषी इन विपक्षी योद्धाओंको देख लूँ कि युद्धमें मुझे किन-किनके साथ युद्ध करना है, तबतक उसे खडा रखिये । |
28-12-2012, 09:24 PM | #20 |
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Re: श्रीमद् भगवद् गीता
योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः । धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धेप्रियचिकीर्षवः ॥२३॥ दुर्बुद्धि दुर्योधनका युद्धमें हित चाहनेवाले जो-जो ये राजा लोग इस सेनामें आये हैं, इन युद्ध करनेवालोंको मैं देख लूँ । |
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