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#11 |
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![]() सुणिऐ मुखि सालाहण मंदु ॥ सुणिऐ जोग जुगति तनि भेद ॥ सुणिऐ सासत सिम्रिति वेद ॥ नानक भगतासदा विगासु ॥ सुणिऐ दूख पाप का नासु ॥९॥ |
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#12 |
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सुणिऐ सतु संतोखु गिआनु ॥
सुणिऐ अठसठि काइसनानु ॥ सुणिऐ पड़ि पड़ि पावहि मानु ॥ सुणिऐ लागै सहजि धिआनु ॥ नानक भगता सदा विगासु॥ सुणिऐ दूख पाप का नासु ॥१०॥ |
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#13 |
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सुणिऐ सरा गुणा के गाह ॥
सुणिऐ सेख पीर पातिसाह ॥ सुणिऐ अंधेपावहि राहु ॥ सुणिऐ हाथ होवै असगाहु ॥ नानक भगता सदा विगासु ॥ सुणिऐ दूख पाप का नासु ॥११॥ |
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#14 |
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मंने की गति कही न जाइ ॥
जे को कहै पिछै पछुताइ ॥ कागदि कलम न लिखणहारु ॥ मंने का बहिकरनि वीचारु ॥ ऐसा नामु निरंजनु होइ ॥ जे को मंनि जाणै मनि कोइ ॥१२॥ |
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#15 |
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मंनै सुरति होवै मनि बुधि ॥
मंनै सगल भवण की सुधि ॥ मंनै मुहि चोटा ना खाइ ॥ मंनै जम कै साथि न जाइ ॥ ऐसा नामु निरंजनुहोइ ॥ जे को मंनि जाणै मनि कोइ ॥१३॥ |
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#16 |
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मंनै मारगि ठाक न पाइ ॥
मंनै पति सिउ परगटु जाइ ॥ मंनै मगु न चलै पंथु ॥ मंनै धरम सेती सनबंधु ॥ ऐसा नामु निरंजनु होइ ॥ जे को मंनि जाणै मनि कोइ ॥१४॥ |
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#17 |
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मंनै पावहि मोखु दुआरु ॥
मंनै परवारै साधारु ॥ मंनै तरै तारे गुरु सिख ॥ मंनै नानक भवहिन भिख ॥ ऐसा नामु निरंजनु होइ ॥ जे को मंनि जाणै मनि कोइ ॥१५॥ |
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#18 |
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पंच परवाण पंच प्रधानु ॥
पंचे पावहि दरगहि मानु ॥ पंचे सोहहि दरि राजानु ॥ पंचा का गुरु एकु धिआनु ॥ जे को कहै करैवीचारु ॥ करते कै करणै नाही सुमारु ॥ धौलु धरमु दइआ का पूतु ॥ संतोखु थापि रखिआ जिनि सूति ॥ जे को बुझै होवै सचिआरु ॥ धवलै उपरि केता भारु ॥ धरती होरु परै होरु होरु ॥ तिस ते भारु तलै कवणु जोरु॥ जीअ जाति रंगा के नाव ॥ सभना लिखिआ वुड़ी कलाम ॥ एहु लेखा लिखि जाणै कोइ ॥ लेखालिखिआ केता होइ ॥ केता ताणु सुआलिहु रूपु ॥ केती दाति जाणै कौणु कूतु ॥ कीता पसाउ एकोकवाउ ॥ तिस ते होए लख दरीआउ ॥ कुदरति कवण कहा वीचारु ॥ वारिआ न जावा एक वार ॥ जो तुधु भावै साई भली कार ॥ तू सदा सलामति निरंकार ॥१६॥ |
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#19 |
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असंख जप असंख भाउ॥
असंख पूजा असंख तप ताउ ॥ असंख गरंथ मुखि वेद पाठ ॥ असंख जोग मनि रहहिउदास ॥ असंख भगत गुण गिआन वीचार ॥ असंख सती असंख दातार ॥ असंख सूर मुह भख सार ॥ असंख मोनि लिव लाइ तार ॥ कुदरति कवण कहा वीचारु ॥ वारिआ न जावा एक वार ॥ जो तुधुभावै साई भली कार ॥ तू सदा सलामति निरंकार ॥१७॥ |
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#20 |
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असंख मूरख अंध घोर ॥
असंख चोर हरामखोर॥ असंख अमर करि जाहि जोर ॥ असंख गलवढ हतिआ कमाहि ॥ असंख पापी पापु करि जाहि ॥ असंखकूड़िआर कूड़े फिराहि ॥ असंख मलेछ मलु भखि खाहि ॥ असंख निंदक सिरि करहि भारु ॥ नानकु नीचुकहै वीचारु ॥ वारिआ न जावा एक वार ॥ जो तुधु भावै साई भली कार ॥ तू सदा सलामति निरंकार ॥१८॥ |
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