11-03-2014, 01:32 AM | #11 |
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Re: रहस्य रोमांच की कहानियाँ
आलेख आभार: सौरभ राज मानव मस्तिष्क स्मृतियों को अपूर्व भण्डार है। जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त की सभी बातों को संजो कर रखे रहता है यह। जन्म से लेकर होश सम्भालने तक की भी बातें इस भण्डार में होती हैं किन्तु कभी उभर कर आ नहीं पातीं, हाँ किसी को हिप्नोटाइज कर ट्रांस में लाकर उन्हें भी अवचेतन के गर्त से चेतन की सतह तक लाया जा सकता है। होश सम्भालने के बाद की स्मृतियाँ अचेतन रूपी यादों के कब्र में पूरी तरह से दफन नहीं हो पातीं और अक्सर बुलबुले के रूप में चेतन तक आती रहती हैं। कल मुझे भी अपने बचपन की अनेक बातें याद आ गईं थी। याद आने का कारण था कल, राहुल सिंह के बुलावे पर, “छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग” के शिविर में पहुँच जाना। राहुल जी का स्नेह मुझे मिलता ही रहता है और विशेष कार्यक्रमों में वे मुझे कभी भी विस्मृत नहीं करते। “छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग” के उस शिविर में एक सत्र छत्तीसगढ़ी कहानियों का भी था। कहानी को छत्तीसगढ़ी में “कहिनी” कहा जाता है। इस शब्द ने मुझे अपने बचपन के दिनों में दादी माँ द्वारा सुनाई गई कितनी ही कहानियों को बरबस याद दिला दिया – भगवान राम की कहानी, श्रवण कुमार की कहानी, कृष्ण और सुदामा की कहानी, गज और ग्राह की कहानी आदि के साथ ही साथ “कोलिहा अउ बेन्दरा” के कहिनी “ढूँढ़ी रक्सिन” के कहिनी. >>>
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11-03-2014, 01:34 AM | #12 |
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Re: रहस्य रोमांच की कहानियाँ
इन सभी कहानियों को मेरी दादी माँ मुझे छत्तीसगढ़ी में सुनाया करती थीं। किसी भी दिन मैं रात को बगैर कहानी सुने सोता नहीं था। कहानी के सिवा और कुछ चारा भी तो नहीं था मेरे पास, रेडियो और टीवी तो दूर की बात है, घर में बिजली का कनेक्शन तक नहीं था। रात में ‘कन्दील’, ‘चिमनी’ या ‘फुग्गा’ की रोशनी और दादी माँ की कहानी मुझे बहुत ही भाती थीं। “खिरमिच” की कहानी मुझे बहुत पसन्द थी, पर “खिरमिच” की कहानी कभी-कभार ही मुझे सुनने को मिलता था क्योंकि उस कहानी को मुझे मेरी दादी माँ नहीं बल्कि मेरी माँ सुनाती थी, जिन्हें घर के काम-काज से कभी फुरसत ही नहीं मिल पाती था मुझे कहानी सुनाने के लिए।
इस कारण से जब भी मुझे मौका मिलता मैं माँ से जिद करके कहा करता था “माँ, आज मोला खिरमिच के कहिनी सुना ना” और वे कभी-कभार मेरे जिद को देखकर सुनाना शुरू कर देती थीं- “सुन रे गोपाल, दू बहिनी रहिन।” (“सुन रे गोपाल, दो बहनें थीं।”) मैं कहता, “हूँ”, क्योंकि मैं जानता था कि बिना हुँकारू के कहानी सुनाने का रिवाज ही नहीं था। “छोटे बहिनी के चार बेटा रहिस, मूड़ुल, हाथुल, गोड़ुल अउ खिरमिच।” (“छोटी बहन के चार बेटे थे, मूड़ुल, हाथुल, गोड़ुल और खिरमिच।”) “हूँ।” “बड़े बहिनी रहिस रक्सिन। वोहर अपन घरवाला अउ सब्बो लइका मन ला खा डारे रहिस।” (“बड़ी बहन राक्षसिन थी। उसने अपनेघरवाले और बच्चों को खा डाला था।”) “हूँ।” “एक दिन रक्सिन हा अपन छोटे बहिनीला कहिस के बहिनी, आज मोला बने नइ लागत हे, रात में मोर संग सुते बर तोर कोनो लइका ला भेज देबे का?” (“एक दिन राक्षसिन ने अपनी छोटी बहन से कहा कि बहन, आज मेरी तबियत ठीक नहीं है, रात में मेरी देखभाल के लिए अपने किसी बच्चे को भेज दोगी क्या?”) >>>
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11-03-2014, 01:37 AM | #13 |
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Re: रहस्य रोमांच की कहानियाँ
“हूँ।” “ले का होही, भेज देहूँ।” (“कोई बात नहीं, भेज दूँगी।”)
“हूँ।” रक्सिन के जाय के बाद छोटे बहिनीहा मूड़ुल ला कहिस, ‘अरे मूड़ुल, आज रात के तैं हा अपन बड़े दाई घर चल देबे सुते बर’।” (राक्षसिन के जाने के बाद छोटी बहन ने मूड़ुल से कहा, ‘अरे मूड़ुल, आज रात को तू अपनी बड़ी माँ के घर चल देना’।”) “हूँ।” सब्बो लइका मन जानत रहिन हे कि ओखर बड़े दाई हा रक्सिन हे, एखरे सेती मूड़ुल हा कहिस, ‘मैं नइ जाँव दाई, मोर मूड़ पिरात हे’।” (“सभी बच्चे जानते थे कि उनकी बड़ी माँ राक्षसिन है, इसीलिए मूड़ुल नेकहा, ‘मैं नहीं जाता माँ, मेरा सर दर्द कर रहा है’।”) “हूँ।” “तब वो हा हाथुल ला कहिस, ‘अरे हाथुल, आज रात के तैं हा अपन बड़े दाई घर चल देबे सुते बर’।” (“तब उसने हाथुल से कहा, ‘अरे हाथुल, आज रात को तू अपनी बड़ी माँ के घर चल देना’।”) “हूँ।” “हाथुल बोलिस, ‘मैं नइ जाँव दाई, मोर हाथ पिरात हे’।” (“हाथुल बोला, ‘मैं नहीं जाता माँ, मेरा हाथ दर्द कर रहा है’।”) “हूँ।” “फेर वो हा गोड़ुल ला कहिस, ‘अरे गोड़ुल, आज रात के तैं हा अपन बड़े दाई घर चल देबे सुते बर’।” (“फिर उसने गोड़ुल से कहा, ‘अरे हाथुल, आज रात को तू अपनी बड़ी माँ के घर चल देना’।”) “हूँ।” “गोड़ुल बोलिस, ‘मैं नइ जाँव दाई, मोर गोड़ पिरात हे’।” (“गोड़ुल बोला, ‘मैं नहीं जाता माँ, मेरा हाथ दर्द कर रहा है’।”) “हूँ।” “आखिर में वो हा खिरमिच ला कहिस, ‘अरे खिरमिच, आज रात के तैं हा अपन बड़े दाई घर चल देबे सुते बर’।” (“अन्त में उसने खिरमिच से कहा, ‘अरे खिरमिच, आज रात को तू अपनी बड़ीमाँ के घर चल देना’।”) “हूँ।” >>>
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11-03-2014, 01:38 AM | #14 |
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Re: रहस्य रोमांच की कहानियाँ
“खिरमिच बोलिस, ‘हव दाई, मैं हा चल दुहूँ’।” (“खिरमिच बोला, ‘ठीक है माँ, मैं चल दूँगा’।”)
“हूँ।” “साँझ होइस तो खिरमिच हा जंगल में अपन बड़े दाई घर पहुँ गइस।” (“शाम हुई तो खिरमिच जंगल में अपनी बड़ी माँ के घर पहुँच गया।”) “हूँ।” “वोखर बड़े दाई हा बहुत खुश होइस अउ कहिस के बेटा खिरमिच, बने करे रे। अब मैं हा जंगल में जात हौं, अधरतिया आहूँ। तैं हा खा-पी के सुत जाबे।” (“उसकी बड़ी माँ बहुत खुश हुई और बोली कि बेटा खिरमिच, तूने बहुत अच्छा किया। अब मैं जंगल में जा रही हूँ, आधी रात को वापस आउँगी। तू खा पी-कर सो जाना।) “हूँ।” “रक्सिन के जाए के बाद खिरमिच हा भात-साग खा के सुते के तैयारी करिस। एक ठिक मोटहा असन गोल सुक्खा लकड़ी ला खटिया में रख के ओढ़ा दिहिस अउ अपन हा लुका के सुत गे।” (“राक्षसिन के जाने के बाद खिरमिचने खाना खाकर सोने की तैयारी की। एक मोटी, गोल सूखी लकड़ी को उसने खाट पर रख कर ओढ़ा दिया और स्वयं छुप कर सो गया।”) “हूँ।” “अधरतिया होइस तो रक्सिन हा घर आइस। वोखर नाक में मनखे के गंध हा आत रहिस हे।” (“आधी रात हुई तो राक्षसिन घर वापस आई। उसकी नाक में आदमी की गंध आ रही थी।”) “हूँ।” >>>
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11-03-2014, 01:40 AM | #15 |
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Re: रहस्य रोमांच की कहानियाँ
एक राक्षसी [2]
“मानो गन, मानो गन, काला खाँव, कालाबचाँव, इही खिरमिच ला खाँव रे कहिके वो हा खटिया में रखे लकड़ी ला कटरंग-कटरंग चाब-चाब के खा डारिस।” (“मानव गंध, मानव गंध, किसको खाउँ, किसको बचाऊँ, इसी खिरमिच को खाउँगी कहते हुए उसे खाट पर रखे लकड़ी को चबा-चबा कर खा डाला।”) “हूँ।” “फेर हँउला भर पानी ला पी के कहिस के हत्त रे खिरमिच, हाड़ाच् हाड़ा रेहे रे, थोरको मास नइ रहिस तोर में।” (“फिर एक हुंडी पानी पीकर बोली कि हत्तेरे की रे खिरमिच, तू हड्डी ही हड्डी था, माँस जरा भी नहीं था तुझमें।”) “हूँ।” “अइसे कहिके रक्सिन हा सुत गे।” (“ऐसा कह कर राक्षसिन सो गई।”) “हूँ।” “बिहिनिया होइस तो खिरमिच चिचियाके कहिस जोहार ले बड़े दाई अउ दुआरी ला खोल के जल्दी से भाग गे।” (“सवेरा होने पर खिरमिच ने चिल्लाकर अपनी बड़ी माँ का अभिवादन किया और दरवाजा खोल कर जल्दी से भाग लिया।”) “हूँ।” “मैं हा खिरमिच ला नइ खा पाएवँ कहिके रक्सिन ला अखर गे।” (“मैं खिरमिच को नहीं खा पाई सोचकर राक्षसिन को अखरने लगा।”) “हूँ।” “कुछु दिन जाय के बाद रक्सिन हा फेर अपन छोटे बहिनी तीर आ के कहिस के बहिनी, आज मोला बने नइ लागत हे, रात में मोर संग सुते बर तोर कोनो लइका ला भेज देबे का?” (“कुछ दिन बीतने के बाद राक्षसिन ने अपनी छोटी बहन के पास आकर फिर से कहा कि बहन, आज मेरी तबियत ठीक नहीं है, रात में मेरी देखभाल के लिए अपने किसी बच्चे को भेज दोगी क्या?”) “हूँ।” >>>
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11-03-2014, 01:42 AM | #16 |
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Re: रहस्य रोमांच की कहानियाँ
“रक्सिन के जाय के बाद छोटे बहिनीहा मूड़ुल ला कहिस, ‘अरे मूड़ुल, आज रात के तैं हा अपन बड़े दाई घर चल देबे सुते बर’।” (राक्षसिन के जाने के बाद छोटी बहन ने मूड़ुल से कहा, ‘अरे मूड़ुल, आज रात को तू अपनी बड़ी माँ के घर चल देना’।”)
“हूँ।” “मूड़ुल हा कहिस, ‘मैं नइ जाँव दाई, मोर मूड़ पिरात हे’।” (“मूड़ुल ने कहा, ‘मैं नहीं जाता माँ, मेरा सर दर्द कर रहा है’।”) “हूँ।” “तब वो हा हाथुल ला कहिस, ‘अरे हाथुल, आज रात के तैं हा अपन बड़े दाई घर चल देबे सुते बर’।” (“तब उसने हाथुल से कहा, ‘अरे हाथुल, आज रात को तू अपनी बड़ी माँ के घर चल देना’।”) “हूँ।” हाथुल बोलिस, ‘मैं नइ जाँव दाई, मोरहाथ पिरात हे’।” (“हाथुल बोला, ‘मैं नहीं जाता माँ, मेरा हाथ दर्द कर रहा है’।”) “हूँ।” “फेर वो हा गोड़ुल ला कहिस, ‘अरे गोड़ुल, आज रात के तैं हा अपन बड़े दाई घर चल देबे सुते बर’।” (“फिर उसने गोड़ुल से कहा, ‘अरे हाथुल, आज रात को तू अपनी बड़ी माँ के घर चल देना’।”) “हूँ।” गोड़ुल बोलिस, ‘मैं नइ जाँव दाई, मोरगोड़ पिरात हे’।” (“गोड़ुल बोला, ‘मैं नहीं जाता माँ, मेरा हाथ दर्द कर रहा है’।”) “हूँ।” >>>
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11-03-2014, 01:43 AM | #17 |
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Re: रहस्य रोमांच की कहानियाँ
“आखिर में वो हा खिरमिच ला कहिस, ‘अरे खिरमिच, आज रात के तैं हा अपन बड़े दाई घर चल देबे सुते बर’।” (“अन्त में उसने खिरमिच से कहा, ‘अरे खिरमिच, आज रात को तू अपनी बड़ीमाँ के घर चल देना’।”)
“हूँ।” “खिरमिच बोलिस, ‘हव दाई, मैं हा चल दुहूँ’।” (“खिरमिच बोला, ‘ठीक है माँ, मैं चल दूँगा’।”) “हूँ।” “साँझ होइस तो खिरमिच हा जंगल मेंअपन बड़े दाई घर पहुँ गइस।” (“शाम हुई तो खिरमिच जंगल में अपनी बड़ी माँ के घर पहुँच गया।”) “हूँ।” “वोखर बड़े दाई हा बहुत खुश होइस अउ कहिस के बेटा खिरमिच, बने करे रे। अब मैं हा जंगल में जात हौं, अधरतिया आहूँ। तैं हा खा-पी के सुत जाबे।” (“उसकी बड़ी माँ बहुत खुश हुई और बोली कि बेटा खिरमिच, तूने बहुत अच्छा किया। अब मैं जंगल में जा रही हूँ, आधी रात को वापस आउँगी। तू खा पी-कर सो जाना।) “हूँ।” “रक्सिन के जाए के बाद खिरमिच हा भात-साग खा के सुते के तैयारी करिस। ए बार वोहर अतेक-अतेक पिसानला सान के वोखर एक ठिक पुतरा बनाइस अउ वोला खटिया में रख के सुता दिहिस अउ अपन हा लुका के सुत गे।” (“राक्षसिन के जाने के बाद खिरमिचने खाना खाकर सोने की तैयारी की। इस बार उसने बहुत सारा आटा गूँथकरएक पुतला बनाया तथा उसे खाट पर सुला दिया और खुद छुप कर सो गया।”) “हूँ।” “अधरतिया होइस तो रक्सिन हा घर आइस। वोखर नाक में मनखे के गंध हा आत रहिस हे।” (“आधी रात हुई तो राक्षसिन घर वापस आई। उसकी नाक में आदमी की गंध आ रही थी।”) “हूँ।” “मानो गन, मानो गन, काला खाँव, कालाबचाँव, इही खिरमिच ला खाँव रे कहिके वो हा खटिया में रखे पुतरा ला गुपुल-गुपुल के खा डारिस।” (“मानव गंध, मानव गंध, किसको खाउँ, किसको बचाऊँ, इसी खिरमिच को खाउँगी कहते हुए उसे खाट पर रखे पुतले को खा डाला।”) “हूँ।” >>>
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11-03-2014, 01:45 AM | #18 |
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Re: रहस्य रोमांच की कहानियाँ
“फेर हँउला भर पानी ला पी के कहिस के हत्त रे खिरमिच, मासेच् मास रेहे रे, हाड़ा एक्को नइ रहिस तोर में।” (“फिर एक हुंडी पानी पीकर बोली कि हत्तेरे की रे खिरमिच, तू मांस ही मांस था, हड्डी एक भी नहीं थी तुझमें।”)
“हूँ।” “अइसे कहिके रक्सिन हा सुत गे।” (“ऐसा कह कर राक्षसिन सो गई।”) “हूँ।” “बिहिनिया होइस तो खिरमिच चिचियाके कहिस जोहार ले बड़े दाई अउ दुआरी ला खोल के जल्दी से भाग गे।” (“सवेरा होने पर खिरमिच ने चिल्लाकर अपनी बड़ी माँ का अभिवादन किया और दरवाजा खोल कर जल्दी से भाग लिया।”) “हूँ।” “अब ए खिरमिच ला नइ छोड़वँ कहिके रक्सिन खिरमिच ला खाए बर वोखर पिछू भागिस।” (“इस बार मैं खिरमिच को नहीं छोड़ूँगी कहकर राक्षसिन खिरमिच कोखाने के लिए उसके पीछे भागी।”) “हूँ।” “खिरमिच हा डेरा के एक ठिक उच्च असन रूख में चढ़ गे।” (“डर कर खिरमिच एक ऊँचे वृक्ष पर चढ़ गया।”) “हूँ।” “रक्सिन ला रूख चढ़े बर नइ आत रहिस हे।” (“राक्षसिन को झाड़ पर चढ़ना नहीं आता था।”) “हूँ।” “वो हा जंगल के जम्मो बघवा मन ला बुला लिहिस जउन मन बारा झिन रहिस हे।” (उसने जंगल सभी बाघों को बुला लिया जो कि संख्या में बारह थे।”) “हूँ।” “एक बघवा उप्पर दुसर बघवा चढ़त गइनअउ सब ले उप्पर बघवा के पीठ में रक्सिन हा चढ़ गे।” (“एक बाघ के ऊपर दूसरा बाघ चढ़ गया और सबसे ऊपर वाले बाघ की पीठ पर राक्षसिन चढ़ गई।”) >>>
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11-03-2014, 01:46 AM | #19 |
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Re: रहस्य रोमांच की कहानियाँ
एक राक्षसी [3]
“रक्सिन ला अपन तीर पहुँचत देख के खिरमिच हा चिचिया के कहिस के लान तो रे लान तो डण्डा ला, मारौं तरी के बण्डा ला।” (राक्षसिन को अपने पास पहुँचते देख कर खिरमिच ने चिल्ला कर कहा कि डण्डा लाओ, मैं नीचे की छोटी पूछं वाले को मारूँगा।”) “हूँ।” “एला सुन के सबले निच्चे के बघवा, जउन हा बण्डा रहिस, डेरा भागिस।” (“यह सुनकर सबसे नीचे का बाघ, जिसकी पूँछ छोटी थी, डर कर भागा।”) “हूँ।” “वोखर भागे ले जम्मो बघवा मन दन्नदन्न गिर गे अउ उप्पर ले गिर के रक्सिन हा मर गे।” (“उसके भागने से सारे बाघ नीचे गिर गए और इतनी ऊँचाई से गिरने के कारण राक्षसिन मर गई।”) “हूँ।” “खिरमिच हा खुशी खुशी घर आ गे।” (“खिरमिच खुशी के साथ अपने घर आ गई) **
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11-03-2014, 06:05 PM | #20 |
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Re: रहस्य रोमांच की कहानियाँ
अभिशप्त हवेली (एक अंश)
ब्रॉम स्टोकर पुस्तक का मुख्य पात्र अपने दिवंगत बेटे की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए अपने पूर्वजो की विरासत अभिशप्त माने जाने वाले एस्क्हाम महल की मरम्मत कराता है । इटली का पुरातत्वविद विक्टर विसानियो उसे बताता है की एस्क्हाम महल कभी रोमन कबीले का मंदिर था और वे लोग उसके तहखाने में नरभक्षी चूहों को पालते थेऔर मानव रक्त और मांस की बलि देते थे । विसानियो लेखक को एस्क्हाम में न रहने की सलाह देता है क्योकि उसे उस महल में शैतानी आत्माओ के होने का अहसास होता है, पर लेखक विसानियो की बात टाल जाता है। जब एस्कहाम की मरम्मत का काम पूरा हो गया तो 16 जुलाई 1923 को मैं उसमें रहने के लिए आ गया । मैं अमेरिका का अपना सारा कारोबार समेटकर इंग्लैंड में सदा के लिए बसने का मन बना चुकाथा । मैंने जब एस्कहाम में रहने के लिए कदम रखा, तो मेरे साथ सात नौकर और नौ बिल्लिया भी थीं, जो मेरी पालतू थी । सारी की सारी बिल्लियां वेहद खूबसूरत और समझदार थी । मुझको कुत्तों के बजाय बिल्लियाँ पालने का शौक था । पालतू बिल्लियों में एक काले रंग वाली बिल्ली मेरी सबसे अधिक मुंहलगी थी । वह हमेशा मेंरे साथ रहती भी और मेरे पास ही बिस्तर पर सोती थी । इस काली बिल्ली को मै ‘क्वीन’ कहकर बुलाता था । उसकी शाही चाल भी उसके नाम के अनुरूप ही थी । एस्क्हाम में मेरे चार-पांच दिन तो बड़े आराम से बीते, कोई अशुभ घटना नहीं घटी । इन चार-पांच दिनों में मैंने अपने दिवंगत पुत्र अल्फ्रेड को कितनी बार याद किया, मैं बता नहीं सकता । फिर अचानक रहस्यमयी, विचित्र और भयानक घटनाओ का सिलसिला शुरू हो गया । मेरी पालतू बिल्लियों का व्यवहार बदल गया और वे व्याकुल होकर कुछ सूंघती, ढूंढती सारे एस्क्हाम महल में चक्कर काटती और मुंह से गुर्राहट जैसी आवाज निकालकर दीबारों पर जगह-जगह अपने पंजे मारने लगी । >>>
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