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Old 03-08-2016, 01:22 PM   #11
rajnish manga
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Default Re: नौ साल छोटी पत्नी

कुशल ने कहकहा लगाया और बोला, ‘तुम जरूर उसे फँसाओगी।

'फँसाऊँगी कैसे?

'उससे न तो खतों को नष्ट करते ही बनेगा और सँभाल कर रखेगी तो किसी वक्त भी राज खुल सकता है।कुशल ने कहा।

'भाड़ में जाये सुब्बी और उसके खत। अगर आप आप पिक्चर नहीं जायेंगे, तो मैं आपके लिए कुछ खरीद कर लाऊँगी।

'इतना प्यार न किया करो तिप्पो।कुशल ने तृप्ता की कलाई पकड़ ली और उसी रुई को तृप्ता के गाल पर घिसते हुए बोला, ‘पहले तो तुम इतनी...।

'बस-बस...।तृप्ता ने बात बीच में ही काट दी, ‘बताइए आपके लिए क्या लाऊँ?

'मेरे लिए एक खाट लाओ।कुशल की पिण्डलियों में फिर जोरों का दर्द होने लगा था।

तृप्ता जैसे प्रेम के अतिरेक में मचल उठी, गिनाने लगी, ‘नहीं, खाट नहीं। एक नयी बुश्शर्ट, एक आपकी प्रिय पुस्तक, नया टूथ ब्रश और...उसने कुछ सोचते हुए कहा, ‘और टॉफियाँ लॉलीपॉप!
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Old 03-08-2016, 01:23 PM   #12
rajnish manga
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Default Re: नौ साल छोटी पत्नी

'तुम सि़र्फ टॉफियाँ लालीपॉप ले आओ।

'नहीं, मैं सब चीजें लाऊँगी।'

'तुम्हारे पास कितने पैसे हैं?'

'पाँच रुपये।तृप्ता ने थूक निगलते हुए कहा।

'पाँच रुपयों से तो ये सब नहीं आयेगा, तुम्हारे पास जरूर और पैसे होंगे।

'कसम से, इतने ही हैं।तृप्ता ने कहा, ‘आप सोम से पूछ लें, वह पाँच रुपये ही दे कर गया था।

कुशल शेव बना चुका था, परन्तु तुरन्त नहाना नहीं चाहता था, बोला, ‘भला तुमने सोम से पैसे क्यों लिए?’ तृप्ता का चेहरा छिले आलू की तरह हो गया, बोली, ‘आपने मना किया होता तो कभी न लेती।

'पैसे लेने में तो कोई हर्ज नहीं था...।कुशल ने कहा, ‘क्यों नाहक उसका खर्च करवाया जाये। उस दिन दुकान पर आया तो बहुत से फल भी लेता आया था।झूठ बोल कर उसे खुशी हुई।

'आपने बताया क्यों नहीं?’
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Old 03-08-2016, 02:02 PM   #13
soni pushpa
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Default Re: नौ साल छोटी पत्नी

उम्र में ज्यदा फर्क की वजह से विचारों की असमानता होना स्वाभाविक है किन्तु मेरा मानना है की इंसान भले छोटा हो या उम्र का फर्क हो पर अ पनी शालीनता, संस्कार और सच्चाई और हिरदय की सरलता को बनाये रखना चहिये मन के बवंडर भले ही कुछ गलत करने को कहे पर इंसान को सच्चाई की समझ तो होनी ही चहिये .

भावात्मक कहानी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद भाई
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Old 04-08-2016, 12:05 AM   #14
rajnish manga
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Default Re: नौ साल छोटी पत्नी

भला इसमें बताने की क्या बात थी। और फिर तुमने भी तो नहीं बताया था कि वह पैसे भी दे गया है।

'बता तो दिया है।

'खैर!कुशल ने बात समाप्त होते देख टहोका दिया, ‘सोम तुम्हारा क्या लगता है?’

'बुआ का लड़का है। आपको कई बार तो बताया है।उसने चिढ़ कर कहा।

'मैं हर बार भूल जाता हूँ।कुशल ने हँसते हुए कहा, ‘तुम्हारे ब्याह में सबसे अलग-थलग खड़ा जिस ढंग से रो रहा था, उससे तो मैंने अनुमान लगाया था कि जरूर मेरा रकीब होगा।

'रकीब के मानी क्या होता है?’ तृप्ता ने तुरन्त पूछा।

'अरबी में बुआ के लड़के को रकीब कहते हैं।कुशल ने कहा और कंधे पर तौलिया रख कर बाथरूम में चला गया।

कुशल ने बाथरूम का दरवाजा बन्द किया, तो उसे खाट घसीटने की आवाज आयी। उसने महसूस किया कि नहाने से पहले सिगरेट मजा दे सकती है। वह खुद सिगरेट उठा लाता, मगर जब उसे चोर हाथों से ताला लगाने की आवाज आयी तो उसने खुद जाना उचित नहीं समझा। उसने तृप्ता को आवाज दी कि वह एक सिगरेट दे जाये। तृप्ता ने दूसरे ही क्षण झरोखे से सिगरेट और माचिस पकड़ा दी। सिगरेट पकड़ते हुए उसके मन में तृप्ता के प्रति प्यार उमड़ने लगा। उसे लग रहा था कि वह अपने मनोरंजन के लिए तृप्ता को परेशान कर रहा है।
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Old 04-08-2016, 12:07 AM   #15
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Default Re: नौ साल छोटी पत्नी

यह मनोरंजन का साधन भी अचानक उसके हाथ लग गया था। उस दिन एक पुस्तक ढूँढ़ते-ढूँढ़ते वह तृप्ता के ट्रंक की भी छानबीन न करता, तो शायद इससे वंचित ही रहता। पुस्तक न मिलने पर उसने महसूस किया था कि ट्रंक में वक्त काटने के लिए बहुत सी रोचक सामग्री भरी पड़ी है। ट्रंक में कपड़ों के नीचे एक साधारण-सा पर्स पड़ा था, पर्स में मैट्रीकुलेशन का सर्टिफिकेट, तुड़ी-मुड़ी सी दो एक तस्वीरें, जिनमें युवक भेस में तृप्ता का एक चित्र था, माला से बिखरे हुए कुछ मोती, एक मैला पिक्चर पोस्टकार्ड, एक सेंट की लगभग खाली शीशी बहुत हिफाजत से रखी हुई थी। मैट्रीकुलेशन का सर्टिफिकेट देख कर कुशल शिथिल हो गया था। उसे लग रहा था जैसे अनजाने में उससे चूजा जिबह हो गया हो। सर्टिफिकेट के हिसाब से तृप्ता की उमर कुशल से नौ साल कम बैठती थी। उसने सर्टिफिकेट से तृप्ता के अंक भी न पढ़े थे कि वापिस पर्स में रख दिया।

ट्रंक में सबसे नीचे अखबार का एक बड़ा कागज बिछा था, मगर साफ पता चलता था कि कागज के नीचे कुछ है, क्योंकि कागज एक जगह से ऐसे उठा हुआ था, जैसे उसके नीचे एक बड़ा मेढक पड़ा हो। कुशल ने बड़ी एहतियात से वह मेंढ़क निकाला। कागजों का एक खस्ता पुलिन्दा था, जिसमें दोनों के खत थे। सोम के भी और तृप्ता के भी, जो शायद तृप्ता ने चालाकी से वापिस ले लिये थे या सोम ने शराफत से लौटा दिये थे। खत पढ़ते पढ़ते कुशल, कितनी देर तक हँसता रहा था। तृप्ता ने वही बातें लिखीं थीं, जो कभी-कभी भावुक हो कर उससे भी किया करती है। सोम के खत पढ़ कर तो हँसी से लोटपोट हो गया था। सोम की शक्ल देख कर तो अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि वह इतना भावुक हो सकता है और हिज्जों की इतनी गलतियाँ कर सकता है। इस बार जब सोम आया था तो उसने थोड़ी-थोड़ी मूँछें भी बढ़ायी हुई थीं। कुशल को यह बात बड़ी अजीब लगी कि मूँछें बढ़ा कर भी आदमी भावुक हो सकता है। मूँछों वाला भावुक!
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Old 04-08-2016, 12:08 AM   #16
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Default Re: नौ साल छोटी पत्नी

शाम को जब तृप्ता बाजार से लौटी तो उसने कहा, ‘तृप्ता, तुम तीस बरस की कब होगी?’

'क्यों आप मूझे बूढ़ी देखना चाहते हैं?’

'नहीं बूढ़ी नहीं, लेकिन बच्ची भी नहीं। काश! तुम तीस साल की होती।कुशल हँस पड़ा था।

कुशल गुसलखाने से लौटा तो कमरे का रूप एकदम बदला हुआ था। खाट, जो इससे पहले कमरे के ठीक बीच पड़ी थी, अब दूसरे कमरे में खुलने वाले दरवाजे़ के साथ टिका दी गयी था। और उस पर अंगूरी रंग की एक नयी शीट बिछी थी। खाट के साथ ही दीवार की बगल में तृप्ता का ट्रंक पड़ा था, जिस पर उसी द्वारा काढ़ा हुआ एक सुन्दर मेजपोश बिछा था और जिसके ऊपर बैठी तृप्ता क्रोशिए से कुछ बुन रही थी। उसने आँखों में काजल की गहरी लकीरें खींच ली थीं। होंठ लिपिस्टिक के हल्के-से स्पर्श से किरमिजी हो गये थे।

कुशल ने यह परिवर्तन देखा तो, मुस्करा दिया। उसे मुस्कराते देख कर तृप्ता ने पूछा, ‘आप मुस्करा क्यों रहे हैं?’

तृप्ता क्रोशिए से पीठ खुजलाने लगी, जिससे उसका ब्लाउज कंधे के नीचे से गुब्बारे सा फूल गया था। कुशल के मन में क्षण भर के लिए यह विचार आया कि वह बाहर का दरवाजा बन्द कर आये, परन्तु स्नान करने से उसकी पिण्डलियों को थोड़ा-सा सुकून मिला था, जिसे वह कुछ देर और कायम रखना चाहता था। उसने सर पर कंघी फेरते हुए कहा, ‘तुम कहती हो तो नहीं मुस्कराता।
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Old 04-08-2016, 12:09 AM   #17
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Default Re: नौ साल छोटी पत्नी

'आप कुछ सोच रहे हैं।तृप्ता क्रोशिए पर दृष्टि गड़ा कर बोली, ‘क्या सोच रहे हैं?’

कुशल ने कुछ सोचने की कोशिश की और कल्पित प्रेमिका का पुराना किस्सा ले बैठा, बोलादरअसल मुझे शीला याद आ रही थी। जब मैं हँसता था, तो वह भी तुम्हारी तरह टोक देती थी। जब मैं सिगरेट पीता था, वह मुझसे दूर जा बैठती थी। जब कभी उसके घर जाता तो नौकर को भेज कर सिगरेट मँगवा देती। अजीब लड़की थी शीला....।

कुशल ने सिगरेट सुलगाया और खाली पैकेट नाटकीय अंदाज में दूर फेंक दिया। तृप्ता ने क्रोशिए से आँखें नहीं उठायीं। कुशल ने तृप्ता को लक्षित करके धुएँ का एक गहरा बादल उसकी ओर फेंका। उसे आशा थी कि ताजी लिपिस्टिक पर थोड़ा-सा धुआँ जरूर जम जायेगा। अपनी बात का प्रभाव न होते देख उसने बात आगे बढ़ायी कि कैसे वह शीला के साथ पिकनिक पर जाया करता था। और...

'बस... बस मैं और नहीं सुनूँगी।तृप्ता ने क्रोशिये से आँखें उठा कर कुशल की ओर अविश्वासपूर्वक देखते हुए कहा, ‘आप मेरा बेवकूफ बना रहे हैं।

कुशल ने एक लम्बा कश लिया और बोला, ‘अच्छा, अब तुम मेरा बेवकूफ बनाओ।इस बार उसने नाक से धुआँ छोड़ा। तृप्ता को चुप देख कर उसने कहा, ‘बनाओ भी।
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Old 04-08-2016, 12:10 AM   #18
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Default Re: नौ साल छोटी पत्नी

'क्या?’

'यही बेवकूफ।उसने तृप्ता की ओर सरकते हुए कहा, ‘तुम शायद समझती हो कि मैं पहले ही बेवकूफ हूँ।

'बेवकूफ तो आप मुझे बना रहे हैं।तृप्ता का चेहरा सुर्ख हो गया था और कड़वाहट पी जाने से उसने रुआँसी-सी हो कर कहा, ‘रकीब के मानी क्या होता है?’

'बुआ का लड़का।कुशल ने सिगरेट के टुकड़े को पैर से मसल दिया, ‘कहानी लेखिका हो कर इसका भी अर्थ नहीं पता?’ कुशल को मालूम था कि अब वह कहानी लेखिका का लबादा ओढ़ने के लिए विवश है।

'आपको मेरा कुछ पसन्द भी है?’ तृप्ता की आँखों में पानी चमकने लगा था। वह चाहता तो आसानी से तृप्ता को रुला सकता था, परन्तु उसने ऐसा नहीं किया। इधर-उधर सिगरेट का कोई बड़ा टुकड़ा ढूँढ़ते हुए उसने निहायत सादगी से कहा, ‘निश्चित ही मुझे तुम्हारी रचनाएँ पसन्द आ सकती हैं, लेकिन तुम सुनाओ, तब तो।
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Old 04-08-2016, 12:12 AM   #19
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तृप्ता ने कुशल की ओर नहीं देखा, उसकी बात भी अनसुनी कर दी और घुटनों में सर दे कर बैठ गयी। पहले तो कुशल के जी में आया कि तृप्ता को चुप करवाया जाये और उसी बहाने प्यार भी किया जाये, परन्तु उसने महसूस किया कि बिना सिगरेट के कश खींचे प्यार नहीं किया जा सकता, भावुक तो बिल्कुल नहीं हुआ जा सकता। कुशल जानता है कि तृप्ता भावुकता-रहित प्यार को स्वीकार नहीं करेगी। उसने घुटनों पर झुकी तृप्ता की ओर देखा और पाँव में चप्पल पहनने लगा। तृप्ता के झुक कर बैठने से उसकी पीठ भरी-पूरी और मांसल लग रही थी। सफेद वायल के ब्लाउज में से उसके ब्रेसियर की कसी हुई तनियाँ नजर आ रही थीं।

तृप्ता ने कुशल को चप्पल घसीटते हुए बाहर जाते देखा तो सिसकियाँ भरने लगी। कुशल के मन में तृप्ता के प्रति करुणा उमड़ रही थी। उसे दुकान से इस प्रकार उठ आने में कोई तुक नजर नहीं आ रही थी। उसे मालूम है कि अब वह तृप्ता को जितना भी मनाने का प्रयत्न करेगा, वह उसी मात्रा में रूठती चली जायेगी। मनाने के इस लम्बे सिलसिले से तो दुकान पर दिन भर टाइप करना कहीं आसान है, कुशल ने सोचा और पनवाड़ी से सिगरेट का पैकेट लिया।
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वह लौटा तो भरे टब में पानी गिरने की वही चिर-परिचित आवाज सुनायी दी। उसे लगा, जैसे सहसा किसी ने देर से उसके कानों में रखी रुई निकाल फेंकी हो या वह बरसों पुराने माहौल में लौट आया हो उसने देखा, तृप्ता खाट पर औंधी लेटी थी और उसने अपना मुँह तकिए में छिपा रखा था। स्टोव पर पानी उबल रहा था और जले हुए कागज स्टोव पर रखे पानी में तिर रहे थे।

कुशल ने बड़ी एहतियात से एक स्याह कागज उठाया और तृप्ता की पीठ पर पापड़ की तरह चूर्ण करते हुए बोला, ‘कहानी जला डाली क्या? उठो... ब्याहता स्त्रियाँ बच्चों की तरह नहीं रोया करती।

तृप्ता, जो धीमे-धीमे सुबक रही थी, फफक कर रोने लगी और उसकी हिचकी बँध गयी।

कुशल खाट के निकट पड़े ट्रंक पर बैठ गया और खुले ताले से खेलने लगा, जो मेजपोश पर पेपरवेट-सा पड़ा था। सिगरेट सुलगा कर भी वह तृप्ता को चुप कराने का साहस न बटोर सका, उसे लग रहा था, तृप्ता का रोना बिलकुल जायज है।


***समाप्त ***
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