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#11 |
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![]() ‘‘मुनिवर, यह कोई खेल नहीं ! सचमुच मैं तपस्या करने के लिए ही जा रहा हूँ। ध्रुव ने स्पष्ट शब्दों में कहा। ‘‘उफ़ ! यह बात है! इस छोटी सी बात को लेकर तुम तपस्या करने जा रहे हो? मेरे साथ चलो, मैं देखूँगा कि तुम्हारे पिता तुमको अपनी जांघ पर क्यों कर नहीं बिठाते?'' नारद ने कहा। ‘‘स्वामी, मैं किसी की दया नहीं चाहता। सबसे उत्तम नारायण का अनुग्रह मुझे चाहिए। इसी वास्ते मैं तपस्या करने के लिए जंगल में जा रहा हूँ।'' ध्रुव ने कहा। ‘‘तपस्या करना कोई हँसी-खेल की बात नहीं, बेटा ! जंगल में शेर, बाघ वगैरह खूँख्वार जानवर होते हैं! धूप, जाड़ा और बरसात का सामना करना पड़ता है ! मेरी बात मानकर घर चलो।'' नारद ने समझाया। ‘‘मुनिवर, मैं क्षत्रिय हूँ ! अपमान सहते हुए ज़िंदा नहीं रह सकता ! क्या आप मुझे कायरता की दवा पिलाने आये हैं?'' ध्रुव ने पूछा। ‘‘बेटा ध्रुव ! मैंने तुम्हारा दृढ़ निश्चय जानने के लिए ही ये बातें कहीं ! एक जमाने में मैंने भी अनाथ बालक बनकर अनेक अपमान और अत्याचारों का शिकार हो अंत में तपस्या की थी। तुम मधुवन में जाकर ‘ॐ नमो नारायण !' का जाप करते तपस्या करो; मैं तुमको आशीर्वाद देता हूँ ! अपने कार्य में सफल होकर लौट आओ !'' नारद ने समझाया। ये बातें सूत मुनि के मुँह से सुनकर मुनियों ने पूछा, ‘‘मुनीन्द्र ! नारद ने अपमान और अत्याचारों का सामना कैसे किया? नारद का वृत्तांत सुनने का कुतूहल हमारे मन में पैदा हो रहा है !'' |
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#12 |
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धन्यवाद अभय जी अच्छी कथा पोस्ट की आप ने गजेन्द्र मोक्ष की कहानी तो शायद दूसरी कक्षा के संस्कृत के किताब में आती थी...........क्या मैं सही हूँ??????
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#13 |
Exclusive Member
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अभी तक जो आपने पढ़ी वो सुरुबात थी अब आपलोगों के समछ पेस कर रहा हू सम्पूर्ण श्री भागवत पुराण (सम्पूर्ण बिसनु पुराण) बिलकुल पहले अधाय से
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