My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > New India > Knowledge Zone
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 09-12-2010, 12:08 PM   #11
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,261
Rep Power: 35
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post Re: महात्मा गांधी :: A mega Thread

नए सूत्र की बधाई
बहुत ही अच्छा सूत्र है बहना इसे निरंतर बनाये रखना !
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook, YouTube.
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 09-12-2010, 12:10 PM   #12
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: महात्मा गांधी :: A mega Thread

ब्रिटिश सरकार भारत की स्थिति को नियंत्रित नहीं कर पा रही थी। चारों ओर उसके खिलाफ भारतीयों ने मोर्चा खेल दिया था। 1945 में ब्रिटेन में हुए चुनावों में चर्चिल हार गये, लेबर सरकार सत्ता में आई। नया प्रधानमंत्री भारत को अपने हाथ से निकलना नहीं देना चाहता था। लॉर्ड वॉवेल को वापस भारत भेजा गया। वापस आने पर उसने एक नयी योजना की घोषणा की। जिसके अनुसार नये संविधान की शुरूआत के रूप में प्रांतीय और केंद्रिय विधान सभाओं के चुनाव होने थे। इंग्लैंड से एक कैबिनेट मिशन आया। इस मिशन का उद्देश भारतीय नेताओं से बातचीत कर संयुक्त भारत के लिये संविधान बनाना था। लेकिन कांग्रेस और मुस्लिमों को एक साथ लेकर चलने में वे नाकाम रहे। मुस्लिमों की राय भारत से अलग होने की थी।
12 अगस्त 1946 को वाइसराय ने वार्ता के लिए जवाहरलाल नेहरू को आमंत्रित किया। उधर जिन्ना ने 'सीधी कार्रवाई दिन' का ऐलान कर दिया। बंगाल में काफी खून-खराबा हुआ। देश के कोने-कोने में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे। गांधीजी के समझ में नहीं आ रहा था कि अलग से मुस्लिम राष्ट्र की माँग क्यों की जा रही है? उन्होंने मुहम्मद अली जिन्ना से अनुरोध करते हुए कहा था, ूयदि तुम चाहो तो मेरे टुकड़े कर लो, पर भारत को दो हिस्सों में न बाँटो।" गांधीजी दिल्ली की भंगी बस्ती में रहने चले गये, जहाँ दिन-प्रतिदिन हिंसा के खिलाफ उनका स्वर जोर पकड़ता गया।
तभी दिल को दहला कर रख देने वाला समाचार आया। पूर्वी बंगाल के नोआखली जिले में कई निर्दोष नागरिक सांप्रदायिक दंगे में मारे गये। अब गांधीजी के लिए शांत बैठे रहना असंभव था। उन्होंने निश्चय किया कि दोनों धर्में के बीच गहराती जा रही खाईं को वे अवश्य पाटेंगे, भले ही उसके लिए उन्हें अपने प्राणों का बलिदान देना पड़े। उनका कहना था, ूयदि भारत को आजादी मिल भी गई और उसमें हिंसा होती रही तो वह आजादी गुलामी से भी बदतर होगी।" नोआखली में मुस्लिम सरकार सत्ता में थी, गांधीजी ने वहाँ पदयात्रा करने का निर्णय लिया। जब वे कलकत्ता में थे तो उन्हें समाचार मिला कि नोआखली का बदला लेने के लिए बिहार में भी हिंसा का घिनौना कार्य किया गया। गांधीजी का दिल रोने लगा। यह वही स्थल था जहाँ से इस महात्मा ने भारत में अपना पहला सत्याग्रह शुरू किया था। गांधीजी ने बिहारियों को चेतावनी देते हुए कहा कि, "यदि हिंसक कार्रवाई जल्द नहीं रोकी गई तो वे तब तक उपवास रखेंगे जब तक उनकी मृत्यु नहीं हो जाती।" गांधीजी के इस प्रण को सुनते ही तुंत बिहार में हिंसा रोक दी गई। गांधीजी नोआखली रवाना हो गये।
वहाँ के हालात ने उन्हें विचलित कर दिया। जिस क्षेत्र में वे प्रेम व भाईचारे का मंत्र ले गये थे। वहाँ तो एक समुदाय दूसरे समुदाय के खून का प्यासा हुआ था। कई लोगों की हत्याएँ हुई। महिलाओं पर बलात्कार हुए और कईयों का जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया। गांधीजी के रोंगटे खड़े हो गये। पुलिस सुरक्षा को इंकार करते हुए, केवल एक बंगाली स्टेनोग्राफर को साथ लिए 77 वर्ष का यह महात्मा गाँव-से-गाँव तक, घर-से-घर तक की पदयात्रा कर रहा था। गांधीजी दोनों धर्मों के बीच प्रेम का सेतु (पुल) बनाना चाहते थे। वे फलाहार ही करते और हिंदु-मुस्लिम के दिलों को एक करने के लिए दिन-रात एक कर रहे थे। "मेरे जीवन का एक ही उद्देश्य है कि ईश्वर हिंदुओं और मुस्लिमों के दिलों को मिलायें। एक दूसरे के प्रति उनके मन में कोई डर या दुश्मनी न रहे।"
नोआखली में 7 नवंबर 1946 से 2 मार्च 1947 तक गांधीजी रहे। इसके बाद वे बिहार चले गये। यहाँ भी उन्होंने वही किया, जो नोआखली में किया था। गाँव-से-गाँव तक की पदयात्रा की। लोगों को उनकी गलती का एहसास कराने के साथ जिम्मेदारियों से भी परिचित कराया। घायलों के इलाज के लिए उन्होंने रूपए इकट्ठे करने शुरू किये। यह गांधीजी का ही प्रभाव था कि एक धर्म की महिलाएँ दूसरे धर्म के लोगों के इलाज के लिए अपने गहने तक उतार कर दे रहीं थी। गांधीजी ने बिहार के लोगों से कहा, "यदि दुबारा उन्होंने हिंसा का मार्ग अपनाया, तो वे गांधीजी को हमेशा के लिए खो देंगे।"
नये वाइसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने मई 1947 में गांधीजी को दिल्ली बुलाया। जहाँ कांग्रेसी नेताओं के साथ जिन्ना भी उपस्थित थे। जिन्ना मुस्लिमों के लिए अलग राष्ट्र की माँग पर अड़े थे। गांधीजी ने जिन्ना को समझाने का लाख प्रयास किया पर वह टस-से-मस नहीं हुए।
आखिर वह दिन भी आ गया, जब भारत आजाद हुआ। 15 अगस्त 1947 को देश स्वतंत्र हुआ। गांधीजी ने इस दिन आयोजित किये गये समारोह में भाग न लेकर कलकत्ता जाना उचित समझा। जहाँ सांप्रदायिक दंगों की आग सब कुछ तहस-नहस कर रही थी। गांधीती के वहाँ जाने पर धीरे-धीरे स्थिति शांत हो गई। कुछ दिन वहाँ पर गांधीजी ने प्रार्थना एवं उपवास में गुजारें। दुर्भाग्य से 31 अगस्त को कलकत्ता दंगों की आग में जलने लगा। सांप्रदायिक दंगों की आड़ में लूट, हत्या, बलात्कार का भीषण कांड शुरू हुआ। अब गांधीजी के पा एक ही विकल्प था 'अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक व्रत करना।' गांधीजी की इस घोषणा ने सारी स्थिति ही बदल डाली। उनका जादू लोगों पर चल गया। 4 सितंबर को विभिन्न धर्मों के नेताओं ने उनसे इस धार्मिक पागलपन के लिए माफी माँगी। साथ ही यह प्रतिज्ञा की कि अब कलकत्ता में दंगे नहीं होंगे। नेताओं की इस शपथ के बाद गांधीजी ने व्रत तोड़ दिया। कलकत्ता तो शांत हो गया किंतु भारत-पाक विभाजन के कारण अन्य शहरों में दंगों ने जोर पकड़ लिया।
गांधीजी सितंबर 1947 में तब दिल्ली लौटे तो उस शहर में भी सांप्रदायिक दंगे भड़के हुए थे। पश्चिमी पाकिस्तान में हिंदुओं और सिखों पर हुए निमर्म अत्याचार ने आग में घी का काम किया। दिल्ली के सिखों और हिंदुओं ने बदले की भावना से कानून को अपने हाथ में ले लिया। मुस्लिमों के घरों को लूटा गया, धार्मिक स्थलों को नुकसान पहुँचाया गया, हत्याओं का दौर शुरू हुआ। सरकार सख्त कदम उठाना चाहती थी, लेकिन जनता के सहयोग के बिना वह कुछ भी कर पाने में असमर्थ थी। इस डरावने और अराजकता के माहौल में गांधीजी निडर होकर रास्ते पर आ खड़े हुए। लोगों के बीच इस तरह आने का साहस कर ना उसी महात्मा के वश की बात थी।
गांधीजी का जन्मदिन आ गया। 2 अक्तूबर को पूरे देश में ही नहीं, बल्कि विश्व में उनका जन्मदिन धूमधाम से मनाया जाने वाला था। गांधीजी को बधाइयाँ देने वालों का ताताँ बँध गया। गांधीजी ने कहा, "बधाई कहाँ से आ गई? इधर देश जल रहा है। चारों ओर हिंसा का साम्राज्य है। मेरे हृदय में जरा भी प्रसन्नता नहीं...। लोगों को इस तरह लड़ते-झगड़ते देख मुझे और जीने की बिलकुल इच्छा नहीं होती।"
गांधीजी की पीड़ा बढ़ती ही जा रही थी। उनके दिल्ली में होने के बावजूद हिंसा-लूटपाट रूकने का नाम नहीं ले रहा था। अभी भी शहर के मुसलमान निडर होकर दिल्ली की सड़कों पर नहीं चल सकते थे। गांधीजी पाकिस्तान भी जाना चाहते थे ताकि वहाँ के पीड़ितों के लिए भी कुछ कर सकें। लेकिन दिल्ली के हालात काफी नाजुक थे। ऐसे बुरे दौर में दिल्ली को छोड़ना उनके लिए संभव नहीं था। गांधीजी स्वयं को असहाय महसूस करने लगे। 'मैने अपने आपको कभी भी इतना असहाय महसूस नहीं किया था।' वे 13 जनवरी 1948 को उपवास पर बैठ गये। उन्होंने यह भी कहा, 'ईश्वर ने मुझे व्रत रखने के लिए ही भेजा है।' उन्होंने लोगों सं कहा कि वे उनकी चिंता न करें, बल्कि 'नई रोशनी' की खोज में जुटें।
परिस्थितियाँ बदलने जा रही थीं। यह कहना मुश्किल है कि रोशनी किस-किसके दिल में उतरी। 18 जनवरी को दुख-दर्द भरे सप्ताह के बाद गांधीजी के पास विभिन्न धर्मों, संस्थाओं और हिंदु संघ 'आर एस एस' के लोग गांधीजी से मिलने दिल्ली के बिरला हाउस आये। वहाँ गांधीजी स्तिर पड़े हुए थे। उन्होंने लोगों का मुस्कुरा कर स्वागत किया। सभी लोगों के गांधीजी को एक पत्र दिया, जिसमें लिखा था - 'हम सब लोगों के प्राणों की रक्षा करेंगे। मुस्लिमों का विश्वास जीतेंगे। अब फिर दिल्ली में इस तरह की घटनाएँ नहीं होंगी।' गांधीजी ने अपना व्रत तोड़ दिया। संसार के विभिन्न कोने में इस घटना की चर्चा हुई।
अब तक गांधीजी के व्रत ने विश्व के करोड़ों लोगों के दिलों को छू लिया था। लेकिन कट्टर हिंदुओं पर इसका अलग प्रभाव पड़ा। उन्हें लगा कि गांधीजी ने इस तरह का व्रत करके हिंदुओं को 'ब्लैकमेल' किया है। गांधीजी के पाकिस्तान के प्रति दृष्टिकोन पर भी उनका नजरिया कुछ ज्यादा अच्छा नहीं था।
व्रत समाप्ति के दूसरे दिन हमेशा की तरह जब गांधीजी शाम की प्रार्थना में थे तो उन पर बम फेंका गया। सौभाग्य से निशाना चूक गया। गांधीजी बच गये। पर गांधीजी जरा भी विचलित नहीं हुए, वे नीचे बैठ गये और अपनी प्रार्थना जारी रखी। गांधीजी कई वर्षों से जनता के साथ प्रार्थना कर रहे थे। हर शाम वे जहाँ कहीं भी होते, वे अपनी प्रार्थना सभा खुले मैदान में रखते। जहाँ वे लोगों से वार्ता भी करते। इस प्रार्थना सभा में सभी का स्वागत था। इसमें रूढिवादिता को, किसी विशेष धर्म को कोई स्थान नहीं था। सभी लोग प्रार्थना गीत गाते। अंत में गांधीजी हिंदी भाषा में दो शब्द बोलते। यह जरूरी नहीं था कि वे किसी धार्मिक थीम पर ही बोलें, वे दिन भर की किसी भी घटना पर बोलते। यह गांधीजी का नियम था। वे किसी भी विषय पर बोलते लेकिन उनका मकसद लोगों को सही दिशा देना ही होता था।
कई बार गांधीजी का सुनने सैकड़ों तो कई अवसरों पर हजारों की भीड़ उमड़ती। जहाँ भी उनकी प्रार्थना सभा होती उनके अनुयाइयों का ताताँ लग जाता। एक छोटे से मंच पर बैठकर गांधीजी अपनी बात कहते। हिंसा का क्रम जारी था। गांधीजी इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए लोगों से आग्रह करते रहे। पाकिस्तान के विभाजन और बदले की भावना से समाज का एक बड़ा वर्ग क्रोधित था। गांधीजी को चेतावनी दी गई कि उनका जीवन खतरे में है। पुलिस अधिकारी चिंतित थे, क्योंकि गांधीजी ने सुरक्षा लेने से इंकार कर दिया। 'अपने ही देश में, अपने ही लोगों के बीच मुझे सुरक्षा लेने की आवश्यकता नहीं।' 40 वर्ष पूर्व दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी ने कहा था, "जीवन में सभी की मृत्यु निश्चित है। चाहे कोई अपने भाई के हाथों मरे, चाहे किसी रोग का शिकार होकर या फिर किसी और बहाने। मरना कोई दुख की बात नहीं है। मैं इससे नहीं डरता।"
गांधीजी को मृत्यु से भय नहीं था। बम फेंके जाने की घटना के दस दिन बाद 30 जनवरी 1948 के दिन गांधीजी बिरला पार्क के मैदान में प्रार्थना सभा के लिए जा रहे थे। वे कुछ मिनट देरी से पहुँचे। समय से पाँच-दस मिनट देरी से पहुँचने के कारण वे मन-ही-मन में बड़बड़ाने लगे। 'मुझे ठीक पाँच बजे यहाँ पर पहुँचना था।' गांधीजी ने वहाँ पहुँचते ही अपना हाथ हिलाया, भीड़ ने भी अपने हाथों को हिलाकर उनका अभिवादन किया। कई लोग उनके पाँव छूकर आशीर्वाद लेने के लिए आगे बढ़े। उन्हें ऐसा करने से रोका गया क्योंकि गांधीजी को पहले ही देरी हो चुकी थी। लेकिन पूना के एक हिंदू युवक ने भीड़ को चीरते हुए अपने लिए जगह बनाई। गांधीजी के नजदीक पहुँचते ही उसने अपनी अटॉमेटिक पिस्तोल से गांधीजी के दिल को निशाना बनाते हुए तीन गोलीयाँ दाग दी। गांधीजी गिर पड़े, उनके होठों से ईश्वर का नाम निकला - 'हे राम'। इससे पहले की उन्हें अस्पताल ले जाया जाता, उनके प्राण निकल चुके थे। प्रेम का यह पुजारी दुनिया को अलविदा कह गया।
teji is offline   Reply With Quote
Old 09-12-2010, 12:10 PM   #13
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: महात्मा गांधी :: A mega Thread

अपने ही लोगों द्वारा महात्मा की हत्या उन लोगों के लिए शर्म की बात थी जो गांधीजी के प्रेम, सत्य, अहिंसा के सिद्धांत को न समझ सके। राष्ट्र की उमड़ी भावना को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने दुखी, करूणाभरी आवाज में रेडियो पर कुछ यूँ कहा -
"वह ज्योति चली गई, जिसने लोगों के अंधकारमय जीवन को रोशनी दी। चारों ओर अंधेरा हो गया है। मैं चुप नहीं रह सकता। लेकिन मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं आप लोगों से क्या कहूँ और कैसे कहूं। हम सबके लाड़ले नेता, जिन्हें हम 'बापू' कहते थे, देश के राष्ट्रपिता अब नहीं रहें... हमारे सिर से उनका साया चला गया। 'बापू' ने देश को जो प्रकाश दिया था वह कोई सामान्य नहीं था। वह जीवन जीने का मंत्र देने वाली ज्योति थी। उस रोशनी ने देश के कोने-कोने में उजाला फैलाया। संपूर्ण विश्व ने इसे देखा। उनके सत्य, प्रेम, अहिंसा के दिपक हमेशा इस देश के लोगों को अपनी रोशनी देते रहेंगे.....।"
ऐसे लोग मर कर भी जिंदा रहते है। गांधीजी ने अपने दम पर विश्व को यह दिखला दिया कि प्रेम, सत्य और अहिंसा का मार्ग ही श्रेष्ठ मार्ग है। इसी का प्रयोग करके उन्होंने देश को आजादी दिलाई। समाज के गरीब, असहाय और अछूतों के उद्धार के लिए किये गये उनके कार्यों को भी भुलाया नहीं जा सकता। स्वराज, सत्याग्रह, प्रार्थना, सत्य, प्रेम, अहिंसा, स्वतंत्रता के संबंध में उनके सिद्धांत बड़े बेशकीमती रत्न हैं। गांधीजी का जीवन लोगों के लिए था। उन्होंने मानवता के लिए अपना बलिदान दे दिया। यह भी सच है कि जिस व्यक्ति ने सबको अपने बराबर समझा, हमारे इस युग में उसके बराबर कोई नहीं था। जितना भी हम उनके बारे में जानते हैं, बस यही कि वह 'कथनी-करनी' में एकनिष्ठ रहने वाले थे। सबसे बुद्धिमान, संवेदनशील, ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, सिद्धांतवादी थे। ऐसे महापुरुष बार-बार जन्म नहीं लेते। गांधीजी के विचारो पर चलकर देश की वर्तमान और भविष्य की पीढ़ी सुनहरे भारत का सुनहरा इतिहास लिख सकती है।


'हे बापू तुम्हें नमन!'
teji is offline   Reply With Quote
Old 09-12-2010, 12:15 PM   #14
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: महात्मा गांधी :: A mega Thread

महात्मा गांधी को भारत का राष्ट्रपिता कहा जाता है।

महात्मा गांधी को भारत का राष्ट्रपिता कहा जाता है। संविधान में उन्हें महात्मा की जगह राष्ट्रपिता कहे जाने के बहुत पहले नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने उन्हें यह संबोधन कस्तूरबा गांधी के निधन पर भेजे अपने शोक संदेश में दिया था।
बा और बापू `भारत छोडो आंदोलन` के दौरान गिरफ्तार कर पुणे के आगा खाँ पैलेस में नजरबंद किये गए थे। उस बंदी जीवन के दौरान ही 22 फरवरी 1944 को कस्तुरबा की मृत्यु हो गई थी। तब गांधीजी के प्रति चिंतित नेताजी ने आजाद हिंद रेडियो रंगून से 4 जून 1944 को महात्मा गांधी के नाम प्रसारित अपना संदेश इस प्रकार दिया था -
''आपके 'भारत छोडो' के आपके प्रस्ताव को यदि ब्रिटिश सरकार मानकर उस पर अमल करती है या हमारे देशवासी किसी तरह से प्रयास कर स्वयं को आजाद कराने में सफल होते हैं तो शायद हमसे ज्यादा प्रस़ता किसी दूसरे को नहप होगी। लेकिन हमें लगता है कि ऐसा नहप होगा और आपका आंदोलन अप्रभावी रहेगा।
हे हमारे देश के पिता! भारतीय स्वतंत्रता के इस पुणित संग्राम में हम आपके आशीर्वाद एवं शुभकामनाओं के अभिलाषी हैं।"
इस संदेश से महात्मा गांधी के प्रति नेताजी का सम्मान और उनकी गर्मजोशी को समझा जा सकता है जिसमें उन्होंने `राष्ट्रपिता` का संबोधन उन्हें दिया।
इस बात पर कई प्रश्न खडे किये जा सकते हैं कि महात्मा गांधी को आधुनिक भारत का राष्ट्रपिता कैसे कहा जा सकता है - पर इस भूभाग के लिए उनके अवदानों पर कोई आपत्ति नहप हो सकती।
लेकिन भारत, जैसा कि हम जानते हैं, पुरानी सभ्यता से उ़त होकर आज इस रूप में पहुँचा है। यह बहुत-सी संस्कृतियों और परंपराओंवाला भूखण्ड अगर एक राष्ट्र के रूप में पहचान रखता है, एक संविधान-एक झंडे-एक सरकार के अधीन एकजुट हुआ 15 अगस्त 1947 को तो इसके लिए महात्मा गांधी ने बडा काम किया। वे लाखों भारतीय हैं जिन्होंने महात्मा गांधी में `पिता` की छाया देखी और उन्हें `बापू` कहा।
- डॉ. सविता सिंह
teji is offline   Reply With Quote
Old 09-12-2010, 12:17 PM   #15
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: महात्मा गांधी :: A mega Thread

क्या गांधीजी ने अलग मुस्लिम राज्य के विचार का समर्थन किया?
क्या वे पाकिस्तान का निर्माण होने के लिए जिम्मेदार हैं?

लिखित इतिहास का अध्ययन करने से पता चलता है कि बडी चालाकी से इसमें तथ्यों के साथ छेडखानी की गई है। उन दिनों चल रही उग्र एवं पतनशील तथा अव्यवस्थित राजनीति के कारण गांधी बहुत सक्रिय हो गए थे। देश के विभाजन के प्रस्ताव और उसके विरुद्ध हुई हिंसके प्रतिक्रिया ने तनाव पैदा कर दी थी जिसके कारण मानवीय इतिहास में दर्दनाक पृथकतावादी हत्याएँ हुइऔ। कट्टर मुसलमानों की नजर में गांधी हिंदू थे जिन्होंने धार्मिक/सांप्रदायिक आधार पर पाकिस्तान के निर्माण का विरोध किया था। कट्टर हिंदुओं की नजर में वे हिंदुओं पर हुए अत्याचार का बदला लेने में बाधक थे। गोडसे इसी अतिवादी सोच की उपज था।
गांधी की हत्या दशकों से योजनाबद्ध तरीके से किया जा रहा मनःस्थिति में परिवर्तने का परिणाम थी। कट्टरपंथी हिंदुओं के फलने-फुलने में गांधी बाधक थे और समय के साथ यह भावना पागलपन में बदल गई। वर्ष 1934 से लेकर लगातार 14 वर्ष़ों में गांधी पर छह बार प्राणघातक हमले हुए। गोडसे द्वारा 30 जनवरी 1948 को किया गया हमला सफल रहा। अन्य पाँच हमलों का समय है जुलाई 1934, जुलाई एवं सितंबर 1944, सितंबर 1946 और 20 जनवरी 1948। गोडसे पूर्ववर्ती दो हमलों में शामिल था। वर्ष 1934, 1944 एवं 1946 के असफल हमले जब हुए तब पाकिस्तान का निर्माण और उसे 55 करोड रुपये दिये जाने का प्रस्ताव अस्तित्व में नहीं थे। इसकी साजिश बहुत पहले ही रची गई थी। `मी नाथूराम गोडसे बोलतोयञ इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि गांधी की हत्या का प्रश्न हमारे राष्ट्रीय जीवन से लुप्त नहीं हुआ है।
एक सभ्य समाज में मतभेदों का निराकरण खुले एवं स्पष्ट विचार-विमर्श के लोकतांत्रिक तरीकों से जनमत जागृति द्वारा किया जाता है। गांधी हमेशा इसके पक्षधर थे। गांधी ने बातचीत के लिए गोडसे को बुलाया था, पर इस अवसर का लाभ उठाने के लिए वह आगे नहीं आया। यह स्पष्ट करता है कि गोडसे का, मतभेदों को लोकतांत्रिक तरीके से निराकरण करने में, विश्वास का अभाव था (यानी विश्वास नहीं था)। ऐसे संकुचित मानसिकता के लोग अपने विरोधी को खत्म कर डालते हैं।
हिंदू मानसिकता भी पाकिस्तान के निर्माण की उतनी ही जिम्मेदार है जितना कि मुस्लिम कट्टरता। कट्टरवादी हिंदुओं ने मुसलमानों को `मलेच्छ` कहकर हेय–ष्टि से देखा और यह दृढ़विश्वास व्यक्त किया कि मुसलमानों के साथ उनका सह-अस्तित्व असंभव है। आपसी अविश्वास एवं आरोप प्रत्यारोप ने दोनों संप्रदायों के कट्टरपंथियों को बढावा दिया कि वे हिंदू एवं मुस्लिम दोनों की अलग राष्ट्रीयता बताएँ। इससे मुस्लिम लीग की इस मांग को बल मिला कि सांप्रदायिक प्रश्न का यही हल है। दोनों तरफ के लोगों के निहितार्थ़ों ने अलगाववादी मानसिकता को बढावा दिया और `नफरत` को उन्होंने बडी चालाकी से जायज बताते हुए इतिहास के तथ्यों से खिलवाड किया। यह गंभीर मामला है उस देश के लिए जिसकी सोच से आज भी यह प्रश्न गायब नहीं हुआ।
शायर इकबाल, जिन्होंने प्रसिद्ध गीत `सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्ताँ हमारा` लिखा है, पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने 1930 में अलग देश के सिद्धांत को जन्म दिया। कहने की जरूरत नहीं है कि इस मनःस्थिति को हिंदू अतिवादियों ने ही मजबूत किया था। वर्ष 1937 में अहमदाबाद में हिंदू महासभा का खुला सत्र आयोजित हुआ जिसमें वीर सावरकर ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा `भारत एक देश आज नहीं समझा जा सकता यहाँ दो अलग-अलग राष्ट्र मुख्य रूप से हैं - एक हिंदू और दूसरा मुस्लिम (स्वातंत्र्यवीर सावरकर, खण्ड 6, पेज 296, महाराष्ट्र प्रांतीय हिंदू महासभा, पुणे) वर्ष 1945 में, उन्होंने कहा था - मेरा श्री जिन्ना से द्वि-राष्ट्र के सिद्धांत से कोई विवाद नहीं है। हम, हिंदू स्वयं एक देश हैं और यह ऐतिहासिक तथ्य है कि हिंदू और मुस्लिम दो देश हैं (इंडियन एजुकेशनल रजिस्ट्रार 1943, खण्ड 2, पेज 10) यह अलगाववादी और असहमत अस्तित्व की मानसिकता दोनों पक्षों की थी जिससे पाकिस्तान के निर्माण को बल मिला।
इस मानसिकता के ठीक विपरित, गांधी अपने जीवन पर्यंत इन पर दृढ़तापूर्वक जोर देते रहे कि - ईश्वर एक है, सभी धर्म़ों का सम्मान करो, सभी मनुष्य समान हैं और अहिंसा न केवल विचार बल्कि संभाषण और आचरण में भी। उनकी दैनिक प्रार्थनाओं में सूक्तियां, धार्मिक गीत (भजन) तथा विभिन्न धर्मग्रंथों का पाठ होता था। उनमें विभि़ जातियों के लोग भाग लेते थे। अपनी मृत्यु के दिन तक गांधी का दृष्टिकोण यह था कि राष्ट्रीयता किसी भी व्यक्ति के निजी धार्मिक विचार से प्रभावित नहीं होती। अपने जीवन में अनेक बार अपनी जान को जोखिम में डालकर हिंदुओं तथा मुसलमानों में एकता के लिए काम किया। उन पर देश के विभाजन का आरोप लगाया जाता है जो गलत है। उन्होंने कहा था वे देश का विभाजन स्वीकारने के बदले जल्दी मृत्यु को स्वीकारेंगे। उनका जीवन खुली किताब की तरह है, इस संबंध में तर्क की आवश्यकता नहीं है।
गांधी के नेतृत्व में रचनात्मक कार्य़ों के जरिए सांप्रदायिक एकता ने कांग्रेस के कार्यकमों में महत्वपूर्ण स्थान पाया। राष्ट्रीय स्तर के मुस्लिम नेता एवं बुद्धिजीवी,मसलन; अब्दुल गफ्फार खान, मौलाना आजाद, डॉ. अंसारी हाकिम अजमल खान, बदरूद्दीन तैयबजी, यहाँ तक कि मो. जिन्ना कांग्रेस में पनपे। यह स्वाभाविक ही था कि कांग्रेस देश के विभाजन का प्रस्ताव नहीं मानती लेकिन कुछ हिंदुओं और मुसलमानों की उत्तेजना ने देश में अफरातफरी और कानून-व्यवस्था का संकट पैदा कर दिया। सिंध, पंजाब, बलुचिस्तान पूर्वोत्तर प्रांतों और बंगाल में कानून-व्यवस्था का संकट गहरा गया। श्री जिन्ना ने अडियल रुख अपना लिया। लॉर्ड माउंटबेटन ब्रिटिश कैबिनेट द्वारा तय समय सीमा से बंधे थे और सभी प्रश्नों का त्वरित हल चाहते थे। फलतः श्री. जिन्ना की जिद से पाकिस्तान बना।
विभाजन एकमात्र हल माना गया। वर्ष 1946 में हुए राष्ट्रीय चुनाव में मुस्लिम लीग को 90 प्रतिशत सीटें मिली । ऐसे में कांग्रेस के लिए अपनी बात रखना मुश्किल हो रहा था। गांधी ने 5 अप्रैल 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन को कहा कि अगर श्री. जिन्ना को प्रधानमंत्री बनाने पर देश का विभाजन नहीं होगा तो वे अंग्रेजों की यह इच्छा स्वीकार लेंगे। लेकिन दूसरी तरफ लॉर्ड माउंटबेटन कांग्रेस को देश का विभाजन के लिए मनाने में सफल रहे। गांधी को इसके बारे में अंधेरे में रखा गया। उनको जब इसका पता चला तो वे हैरान हो गए। उनके पास एकमात्र उपाय आमरण अनशन था। आत्मचिंतन के बाद वे इस नतीजे पर पहुँचे कि इससे हालात और बिगडेंगे तथा कांग्रेस एवं पूरा देश शर्मिंदा होगा।
यह कहा जाता है कि श्री. जिन्ना पाकिस्तान के सबसे बडे पैरोकार थे और लॉर्ड माउंटबेटन की प्रत्यक्ष या परोक्ष कृति से वे अपने लक्ष्य में सफल रहे। तब दोनों को अपना निशाना बनाने के बदले गोडसे ने सिर्फ गांधी की हत्या क्यों की जो अपने जीवन के अंतिम दिन तक, कांग्रेस द्वारा विभाजन का प्रस्ताव माने जाने का विरोध कर रहे थे ? कांग्रेस ने 3 जून 1947 को विभाजन का प्रस्ताव स्वीकारा था और पाकिस्तान अस्तित्व में आया। या फिर, जैसा कि वीर सावरकर ने कहा है कि जिन्ना के द्वि-राष्ट्र के सिद्धांत से उनका कोई विरोध नहीं है -तो क्या सिर्फ और सिर्फ गांधी से उनका विरोध था!
इस दृष्टि से गांधी उस स्थिति में बिना विरोध के सब कुछ मान लिये गए। यह आवश्यक है कि गांधी के व्यक्तित्व के उस पक्ष को जाना जाय जिसके कारण वे कट्टर हिंदुओं की आँखों की किरकिरी बने। हालांकि वे निष्ठावान हिंदू थे, उनके अनेक अनन्य मित्र गैर हिंदू थे। इसके कारण वे `एक इश्वर, सर्व धर्म समभाव`, के सिद्धांत तक पहुँचे और उसे अपने आचरण में ढाला। उन्होंने वर्णभेद, छुआछूत को हिंदू समाज से दूर किया, अंतर्जातीय विवाह को बढावा दिया। उन्होंने उन विवाहों को आशीर्वाद दिया जिसमें वरगवधू में से कोई एक अछूत हो। सवर्ण हिंदुओं ने इस सुधारवादी पहल को गलत अर्थ़ों में लिया। इसने पागलपन की राह पकडी और वे (गांधी) उनके शिकार हुए।
teji is offline   Reply With Quote
Old 09-12-2010, 12:19 PM   #16
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: महात्मा गांधी :: A mega Thread

क्या कश्मीर में पाकिस्तानी अतिक्रमण के बावजूद गांधी ने भारत सरकार को बाध्य किया कि वह पाकिस्तान को बकाया 55 करोड रुपए दे?



संपत्ति एवं दायित्वों के बँटवारे की शर्त़ों के मुताबिक भारत को 55 करोड रुपए की दूसरी किश्त चुकानी थी। कुल 75 करोड रुपए पाकिस्तान को दिया जाना था जिसकी एक किश्त के रूप में 20 करोड रुपए उसे पहले ही दिये जा चुके थे। पाकिस्तानी सेना के परोक्ष समर्थन से कश्मीर में उग्र हुए स्वाधीनता संग्रामियों ने यह हरकत दूसरी किश्त दिये जाने के पहले ही शुरू कर दी थी। तब भारत सरकार ने दूसरी किश्त रोकने का निर्णय लिया और लॉर्ड माउंटबेटन ने इसे परस्पर समझौते का उल्लंघन माना था। उन्होंने अपने विचारों से महात्मा गांधी को अवगत भी करा दिया था। गांधी की नजर में `जैसे को तैसा` की नीति अनुचित थी और हालांकि वायसराय के नजरिए से वे सहमत थे कि समझौते का उल्लंघन हुआ है। इसका मिश्रण उन्होंने अपने शुरू किये अनशन में दिखा। उन्होंने उपवास दिल्ली में सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए किया था। गांधी सितंबर 1947 में कलकत्ता से दिल्ली आए थे और शांति स्थापना के लिए पंजाब जाने वाले थे। जब सरदार पटेल ने दिल्ली की विस्फोटक स्थिति की जानकारी उन्हें दी तो उन्होंने अपनी आगे की यात्रा रद्द कर दी और दिल्ली में शांति बनाए रखने के कारण `करो या मरो` के दृढ़संकल्प के साथ दिल्ली में रुकने का निश्चय कर लिया।
पाकिस्तान से भागकर दिल्ली आए हिंदुओं - जिन्होंने अपने संबंधियों की हत्याएँ देखीं, उन्हें लापता पाया, जिनकी औरतों के साथ बलात्कार हुआ और जिनकी संपत्तियाँ छिनी गइऔ थीं - उन्होंने विस्फोटक स्थितियाँ बना दी थप। स्थानीय हिंदू अपने शहर में आए हिंदुओं के प्रति पाकिस्तान में हुए बर्ताव से व्यथित थे तो मुस्लिमों में अतिरंजना जिससे दिल्ली बिस्फोट के मुहाने पर पहुँच गई थी। इससे हत्याएँ, बलात्कार/छेडखानी, घरों एवं संपत्तियों की लूट बढ गई जिससे गांधी रोष से भर उठे। इसका सबसे दर्दनाक पहलू यह था कि यह सब उस भारत भूमि पर घटित हो रहा था जिसने अहिंसा के जरिए विदेशी साम्राज्यवाद को समाप्त कर दिया था। इसी वैचारिक पृष्ठभूमि में उन्होंने दिल्ली में सांप्रदायिक सद्भाव एवं शांति के लिए आमरण अनशन शुरू कर दिया। इसी दौरान भारत सरकार ने पाकिस्तान को बकाया 55 करोड रुपए देने का फैसला लिया। इस घालमेल में गांधी आलोचना के पात्र बन गए।
ये तथ्य बताते हैं कि गांधी ने उपवास, भारत सरकार पर नैतिक दबाव बनाने के लिए शुरू नहीं किया था।
डॉ. सुशीला नायर ने जब गांधी का निर्णय सुना तो वह भागकर अपने भाई प्यारेलाल के पास पहुँची और उन्हें सूचित किया कि गांधी ने दिल्ली के लोगों का पागलपन जब तक खत्मे नहीं होता तब तक उपवास करने का फैसला लिया है। उन विपरित परिस्थितियों में भी पाकिस्तान को 55 करोड रुपए दिये जाने की बात न होना यह बताता है कि गांधी की उपवास का मकसद दिल्ली में शांति की स्थापना कराना था, न कि पाकिस्तान को पैसा दिलाना।
गांधी ने 12 जनवरी 1947 को प्रार्थना सभा में इसका कोई उल्लेख नहीं किया। अगर पाकिस्तान को पैसा दिलाना उपवास की शर्त होती तो वे जरूर उसका उल्लेख करते।
13 जनवरी को प्रवचन में भी उन्होंने इसकी कोई चर्चा नहीं की।
15 जनवरी को, उनके उपवास से संबंधित एक विशेष प्रश्न के उत्तर में भी उन्होंने इसका उल्लेख नहीं किया था।
भारत सरकार की प्रेस विज्ञप्ति में इसका कोई उल्लेख नहीं है।
गांधी पर उपवास त्यागने के लिए डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में गठित कमेटी द्वारा दिये गए आश्वासन में भी इस बात की चर्चा नहीं है।
teji is offline   Reply With Quote
Old 09-12-2010, 12:20 PM   #17
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: महात्मा गांधी :: A mega Thread

क्या गांधी की तुष्टिकरण नीति के कारण मुस्लिम आक्रामक हुए?

मुस्लिमों का तुष्टिकरण के आरोपों के संबंध में कहना है कि यह समझा जाना चाहिए कि देश में हिंदू एवं मुसलमानों में मतभेद शुरू से ही रहे हैं जिसका साम्राज्यवादी ताकतों ने बडी चालाकी से इस्तेमाल किया जिसका परिणाम देश के विभाजन के रूप में सामने आया। गांधीजी के बहुत पहले बाल गंगाधर तिलक सरीखे नेताओं ने राष्ट्रीय संघर्ष के दौरान मुसलमानों के विभाजन की दिशा में ठोस कदम उठाए थे जो लखनऊ दााsषणापत्र में दिखता है। लोकमान्य तिलक, एनी बेसेंट और मोहम्मद जि़ा ने एक फार्मूला तैयार किया था जिसमें मुसलमानों को उनकी आबादी की तुलना में अधिक प्रतिशतता दी गई थी। लखनऊ दाsषणा पत्र के पक्ष में तिलक के स्पष्ट एवं दृढ़ बयान सिद्ध करते हैं कि गांधीजी से बहुत पहले तिलक ने मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति अपनायी थी। `मी नाथूराम गोडसे बोलतोय` के लेखक प्रदीप दलवी इस नाटक को प्रतिबंधित करने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले को अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला मानते हैं। यह सत्य को छिपाने तथा संविधान प्रदत्त बुनियादी अधिकारों की रक्षा पर रोक मानते हैं। संविधान अपनी धारा 19(2) व्दारा इस आजादी के दुरुपयोग पर रोक की सुविधा भी (शासन को) देता है। प्रदीप दलवी और उनके जैसे लोगों के सावधानीपूर्वक विश्लेषण की भी जरूरत है। अभिव्यक्ति की आजादी के बहाने वे हत्या के अधिकार की वकालत करते हैं और जो उनसे सहमति नहीं रखते वे घृणा और हिंसा को इससे बढावा मिलने की बात कहते हैं। इस पर विचार करने की जरूरत है कि एक ऐसे व्यक्ति की हत्या जो अहिंसा, शांति और प्रेम की बात करता था और नवजात शिशु की तरह सुरक्षारहित था उसकी हत्या को जायज ठहराना कितना उचित है।
गोडसे नहीं हैं पर उनका विक्षिप्त दर्शन दुर्भाग्य से हमारे साथ है। इस तरह के नाटकों से हमारे विद्यार्थियों में गलत शिक्षा का प्रेसार हो सकता है। इसको केवल साने ने समझा और उसे खारिज करने की बात कही थी।


teji is offline   Reply With Quote
Old 09-12-2010, 12:25 PM   #18
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: महात्मा गांधी :: A mega Thread

धन्य-धन्य हो गांधी बापू धन्य तेरी कुरबानी।
हो धन्य तेरी कुरबानी।
भूल नहीं सकती है दुनिया तेरी अमर कहानी।
धन्य-धन्य हो गांधी बापू.....
यह तेरा ही खून नहीं है मानवता का।
खून अमन का आजादी का दुखियारी जनता का।
सबके मुख पर आ!सू हैं सबके मुख पर वीरानी।
धन्य-धन्य हो गांधी बापू.....
हम सब तेरे कातिल हैं हम खूनी तेरे बापू।
पाप कभी यह धो न सकेंगे सारी कौम के आ!सू।
दाग कभी यह धो न सकेगा गंगा का भी पानी।
धन्य-धन्य हो गांधी बापू.....
तूने सीना तान के शाही ताकत को ललकारा।
'छोडो भारत' 'छोडो भारत' गज उठा था नारा।
जेलों में बन गयी बुढापा तेरी वीर जवानी।
धन्य-धन्य हो गांधी बापू.....
तू अ!धियारे भारत में उजियारा बनकर आया।
घर-घर जाकर तूने आजादी का दिया जलाया।
तुझसे ही हमने अपनी यह कीमत है पहचानी।
धन्य-धन्य हो गांधी बापू.....
तेरी कीमत पूछे कोई आज वह नोआखाली से।
कैसा फूल है टूटा अपने गुलशन की डाली से।
तूने सबका सुख-दुख बा!टा सबकी पीडा जानी।
धन्य-धन्य हो गांधी बापू.....
जलती आग में कूद के तूने फूटकी आग बुझाई।
अपनी जान ग!वाकर लाखों की जान बचाई।
आखिर सच की जीत हुई और हार झूठ ने मानी।
धन्य-धन्य हो गांधी बापू.....
अमर रहेगा अमर रहेगा मौत से जो लडता है।
आजादी के नाम पे मरने वाला कब करता है ?
जब तक दुनिया है गजेगी तेरी अमृत वाणी।
धन्य-धन्य हो गांधी बापू.....
teji is offline   Reply With Quote
Old 09-12-2010, 12:28 PM   #19
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: महात्मा गांधी :: A mega Thread

गांधीवादः डॉ. राममनोहर लोहिया
गांधीवाद कुछ अधिक नाकाफी साबित हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि देश में आज जो कुछ चल रहा है वह गांधीवाद नहीं है, बल्कि गांधीवाद और मार्क्सवाद का एक घटिया सम्मिश्रण है। यह बात सार रूप में सही है, लेकिन इससे गांधीवाद की कमजोरी साबित होती है कि मार्क्सवाद उसे सम्मिश्रण के लिए मजबूर कर देता है, और यह भी कि उसका सर्वश्रेष्ठ अंश ।पर नहीं आ पाता। गांधीवाद आज अपनी दो शाखाओं में प्रकट हो रहा है, सरकारी और मठी। जिसे गांधीवाद माना जाता है, उसमें ये दोनों सरकारी और मठी रूप ही शामिल हैं। कुजात गांधीवाद के बारे में आगे कहूंगा। अपने मान्य रूप में गांधीवाद, जीत हासिल करने के बाद बेजान साबित हुआ है। उसमें कोई तेजी नहीं रह गई है, जिससे शक पैदा होता है कि शायद उसमें कभी तेजी थी ही नहीं। मठी गांधीवाद पूरी तरह सरकारी सहारे पर जिंदा है। सरकारी गांधीवाद एक सीमित सरकारी क्षेत्र वाले नियोजन की हवाई चीज के पीछे भागने के अलावा कुछ नहीं करता। दोनों ही आत्मतुष्ट और खुश हैं, जिसमें नीचे से उपर बढती हुई विलासिता का भी अभाव नहीं है।


teji is offline   Reply With Quote
Old 09-12-2010, 12:29 PM   #20
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: महात्मा गांधी :: A mega Thread

गांधीवादः डॉ. राममनोहर लोहिया
विपक्ष के रूप में गांधीवाद अपने ढंग से वंतिकारी था। सरकारी गांधीवाद बिलकुल रूढिवादी, प्रतिष्ठित और बेजान रूप में दकियानूसी है। मार्क्सवाद, अपनी सीमाओं के अन्दर विपक्ष और सरकार दोनों ही रूपों में वन्तिकारी होता है। उसके वंतिकारी चरित्र में सरकारी होने या न होने से कोई बाधा या फर्क नहीं पडता। समय-समय पर उसकी गतिशीलता में जो बाधा आती है, वह मुख्य रूप से तात्कालिक विदेश नीति के कारण, और दूसरे नम्बर पर सैद्धान्तिक प्रश्नों की विछत समझ से पैदा होती है। उसके सनारूढ होने का उसके उत्साह में कमी आने से कोई खास संबंध नहीं होता, उत्साह में कमी दूसरे कारणों से आती है। वास्तव में मार्क्सवाद जब सना के लिए संघर्ष करता है, उसकी तुलना में सना हासिल करने के बाद अधिक वंतिकारी होता है। सना हासिल करने के बाद उसके लिए जरूरी होता है कि वह संपनि, धर्म और अन्य सम्बन्धों की पुरानी व्यवस्था को बदले। गांधीवाद के साथ ऐसा नहीं है। सरकार में आने के बाद गांधीवाद का आचरण ऐसा रहा है, जैसे उसे कुछ करना ही नहीं, उसके अपने कोई कार्य ही नहीं हैं। सरकारी गांधीवाद ने अपने रोजमर्रा के काम की सूची गैर-गांधीवादी किताबों से बनाई है, जिसका आधार है कि परिवर्तन जितना कम हो उतना अच्छा और जिसका उद्देश्य यह नहीं है कि वह अन्य सिद्धान्तों से भिन्न रीति से शासन चला सकता है, बल्कि यह कि वह अन्य सिद्धान्तों जितना ही अच्छा शासन चला सकता है। सरकारी गांधीवाद बिल्कुल परिवर्तन नहीं करता, वह हर चीज को पहले जैसी रहने देता है।
teji is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 03:23 PM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.