My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > Art & Literature > Hindi Literature
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 02-11-2010, 08:37 AM   #11
Video Master
Senior Member
 
Join Date: Oct 2010
Location: जयपुर
Posts: 301
Rep Power: 16
Video Master will become famous soon enoughVideo Master will become famous soon enough
Send a message via Yahoo to Video Master
Default

मलेठिया जी बहुत अच्छी लघु कथाये प्रस्तुत की धन्यवाद
Video Master is offline   Reply With Quote
Old 02-11-2010, 05:08 PM   #12
ndhebar
Special Member
 
ndhebar's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Kerrville, Texas
Posts: 4,605
Rep Power: 50
ndhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond repute
Send a message via Yahoo to ndhebar
Default आशीर्वाद

आशीर्वाद
वह युवक गरीब था। वह संत के पास जाता था। वह उनके यहां आश्रम की साफ सफाई करता और फिर अपने काम पर चला जाता था। अक्सर वह संत से अपने लिये आशीर्वाद मांगता और कहता था कि आप आशीर्वाद दें तो मेरे पास ढेर सारा पैसा और संपत्ति आ जाये।
संत ने कहा :- तुम क्या इसलिये ही इस आश्रम की सेवा करते हो?
युवक ने पूरी ईमानदारी से कहा-हां, मेरा उद्देश्य तो यही है कि ढेर सारी संपत्ति आये। इसलिये ही सर्वशक्तिमान का दर्शन करने आपके यहां आता हूं। किराये का मकान है, पटरी पर सामान लगाकर बेचता हूं। पता नहीं नीली छतरी वाला मेरी कब सुनेगा?
संत ने कहा-‘चिंता मत करो। वह सभी को अवसर देता हैं।
युवक ने निराशा में कहा-‘पता नहीं कब सुनेगा?’
संत ने हंसकर कहा-‘जब तुम्हारे सामने अवसर आयेगा तो नीली छतरी वाला आवाज नहीं देगा। चुपचाप तुम्हारे लिये रास्ता खोलता जायेगा।’
युवक चला गया। समय ने पलटा खाया। वह अधिक धन कमाने लगा। वह इतना व्यस्त हो गया कि उसने आश्रम में जाना ही छोड़ दिया। कुछ बरस बाद वह एक दिन सुबह वैसे ही उस आश्रम पहुंचा और झाड़ू लगाने लगा।
संत ने उसे देखकर आश्चर्य जताया और कहा-‘क्या बात है? इतने बरसों बाद तुम यहां आये हो? सुना है कि बहुत बड़े सेठ बन गये हो।’
हां उसने कहा-‘बहुत धन कमाया। बच्चों की अच्छे घरों में शादी की। पैसे की कोई कमी नहीं। ढेर सारे रिश्ते बन गये हैं पर ऐसा लगता है कि सभी पैसे के लिये रिश्ता निभा रहे हैं। बहुत संपत्ति है पर दिल में चैन नहीं है। ऐसा लगता था कि यहां रोज मंदिर आता रहूं पर आ नहीं सका। आज तय किया कि यहीं आकर मुझे चैन मिल सकता है। वह धन दौलत तो बस दिखावा है। नीली छतरी वाले ने सब दिया पर जिंदगी का चैन नहीं दिया।
संत के कहा-‘पर तुमने वह उससे मांगा ही कब था। वैसे तुम भी तो सर्वशक्तिमान की इस आश्रम की सेवा धन मांगने के लिये कर रहे थे तो फिर दूसरों को क्यों दोष देते हो?जो तुमने मांगा था वह मिल गया। फिर अब फिर इस आश्रम की सेवा करने क्यों आ गये? करो, हो सकता है कि दिल चैन भी मिल जाये। हम तो तुम्हें न पहले रोकते थे न अब रोकेंगे। न पहले कुछ मांगा था न अब मांगेंगे।’
उसने उदास होते हुए उनके चरणों में माथा टेक दिया और कहा-‘अब कुछ मांगने के लिये यहां सेवा नहीं करूंगा। बस दिल को शांति मिल जाये।’
संत ने कहा-‘पहले यह तय करो कि कुछ मांगने के लिये आश्रम की सेवा नहीं करोगे या बदले में दिल की शांति चाहिये। सच तो यह है कि चाहे कुछ भी मांगने से मिल जाये पर दिल का चैन नहीं मिलता। इसलिये पहले वाले ही रास्ते पर चलो कि सेवा के बदले कुछ मांगना नहीं है।’
वह उदास भाव से संत को देखने लगा और फिर बोला-‘मुझे कुछ नहीं चाहिये। बस मुझे सेवा करने दीजिये।’
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को
मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए
बिगड़ैल
ndhebar is offline   Reply With Quote
Old 03-11-2010, 12:32 PM   #13
malethia
Special Member
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 43
malethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond repute
Default

दंभी

एक पढ़ा-लिखा दंभी व्यक्ति नाव में सवार हुआ। वह घमंड से भरकर नाविक से पूछने लगा, ‘‘क्या तुमने व्याकरण पढ़ा है, नाविक?’’

नाविक बोला, ‘‘नहीं।’’

दंभी व्यक्ति ने कहा, ‘‘अफसोस है कि तुमने अपनी आधी उम्र यों ही गँवा दी!’’

थोड़ी देर में उसने फिर नाविक से पूछा, “तुमने इतिहास व भूगोल पढ़ा?”

नाविक ने फिर सिर हिलाते हुए ‘नहीं’ कहा।

दंभी ने कहा, “फिर तो तुम्हारा पूरा जीवन ही बेकार गया।“

मांझी को बड़ा क्रोध आया। लेकिन उस समय वह कुछ नहीं बोला। दैवयोग से वायु के प्रचंड झोंकों ने नाव को भंवर में डाल दिया।

नाविक ने ऊंचे स्वर में उस व्यक्ति से पूछा, ‘‘महाराज, आपको तैरना भी आता है कि नहीं?’’

सवारी ने कहा, ‘‘नहीं, मुझे तैरना नही आता।’’

“फिर तो आपको अपने इतिहास, भूगोल को सहायता के लिए बुलाना होगा वरना आपकी सारी उम्र बरबाद होने वाली है क्योंकि नाव अब भंवर में डूबने वाली है।’’ यह कहकर नाविक नदी में कूद तैरता हुआ किनारे की ओर बढ़ गया।

मनुष्य को किसी एक विद्या या कला में दक्ष हो जाने पर गर्व नहीं करना चाहिए।
malethia is offline   Reply With Quote
Old 04-11-2010, 03:28 PM   #14
ndhebar
Special Member
 
ndhebar's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Kerrville, Texas
Posts: 4,605
Rep Power: 50
ndhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond repute
Send a message via Yahoo to ndhebar
Default संतोष का पुरस्कार

संतोष का पुरस्कार

आसफउद्दौला नेक बादशाह था। जो भी उसके सामने हाथ फैलाता, वह उसकी झोली भर देता था। एक दिन उसने एक फकीर को गाते सुना- जिसको न दे मौला उसे दे आसफउद्दौला। बादशाह खुश हुआ। उसने फकीर को बुलाकर एक बड़ा तरबूज दिया। फकीर ने तरबूज ले लिया, मगर वह दुखी था। उसने सोचा- तरबूज तो कहीं भी मिल जाएगा। बादशाह को कुछ मूल्यवान चीज देनी चाहिए थी।

थोड़ी देर बाद एक और फकीर गाता हुआ बादशाह के पास से गुजरा। उसके बोल थे- मौला दिलवाए तो मिल जाए, मौला दिलवाए तो मिल जाए। आसफउद्दौला को अच्छा नहीं लगा। उसने फकीर को बेमन से दो आने दिए। फकीर ने दो आने लिए और झूमता हुआ चल दिया। दोनों फकीरों की रास्ते में भेंट हुई। उन्होंने एक दूसरे से पूछा, 'बादशाह ने क्या दिया?' पहले ने निराश स्वर में कहा,' सिर्फ यह तरबूज मिला है।' दूसरे ने खुश होकर बताया,' मुझे दो आने मिले हैं।' 'तुम ही फायदे में रहे भाई', पहले फकीर ने कहा।

दूसरा फकीर बोला, 'जो मौला ने दिया ठीक है।' पहले फकीर ने वह तरबूज दूसरे फकीर को दो आने में बेच दिया। दूसरा फकीर तरबूज लेकर बहुत खुश हुआ। वह खुशी-खुशी अपने ठिकाने पहुंचा। उसने तरबूज काटा तो उसकी आंखें फटी रह गईं। उसमें हीरे जवाहरात भरे थे। कुछ दिन बाद पहला फकीर फिर आसफउद्दौला से खैरात मांगने गया। बादशाह ने फकीर को पहचान लिया। वह बोला, 'तुम अब भी मांगते हो? उस दिन तरबूज दिया था वह कैसा निकला?' फकीर ने कहा, 'मैंने उसे दो आने में बेच दिया था।' बादशाह ने कहा, 'भले आदमी उसमें मैंने तुम्हारे लिए हीरे जवाहरात भरे थे, पर तुमने उसे बेच दिया। तुम्हारी सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि तुम्हारे पास संतोष नहीं है। अगर तुमने संतोष करना सीखा होता तो तुम्हें वह सब कुछ मिल जाता जो तुमने सोचा भी नहीं था। लेकिन तुम्हें तरबूज से संतोष नहीं हुआ। तुम और की उम्मीद करने लगे। जबकि तुम्हारे बाद आने वाले फकीर को संतोष करने का पुरस्कार मिला।'
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को
मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए
बिगड़ैल
ndhebar is offline   Reply With Quote
Old 08-11-2010, 08:00 PM   #15
Hamsafar+
VIP Member
 
Hamsafar+'s Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 9,746
Rep Power: 49
Hamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond repute
Default " कुछ आदर्श कहानियाँ "

एक बार एक सेठ पूरे एक वर्ष तक चारों धाम की यात्रा करके आया, और उसने पूरे गॉंव में अपनी एक वर्ष की उपलब्धी का बखान करने के लिये प्रीति भोज का आयोजन किया। सेठ की एक वर्ष की उपलब्धी थी कि वह अपने अंदर से क्रोध-अंहकार को अपने अंदर से बाहर चारों धाम में ही त्याग आये थे।

सेठ का एक नौकर था वह बड़ा ही बुद्धिमान था, भोज के आयोजन से तो वह जान गया था कि सेठ अभी अंहकार से मुक्त नही हुआ है किन्तु अभी उसकी क्रोध की परीक्षा लेनी बाकी थी। उसने भरे समाज में सेठ से पूछा कि सेठ जी इस बार आपने क्या क्या छोड़ कर आये है ? सेठ जी ने बड़े उत्साह से कहा - क्रोध-अंहकार त्याग कर आया हूं। फिर कुछ देर बाद नौकर ने वही प्रश्न दोबारा किया और सेठ जी का उत्तर वही था अन्तोगत्वा एक बार प्रश्न पूछने पर सेठ को अपने आपे से बाहर हो गया

और नौकर से बोला - दो टके का नौकर, मेरी दिया खाता है, और मेरा ही मजाक कर रहा है। बस इतनी ही देर थी कि नौकर ने भरे समाज में सेठ जी के क्रोध-अंहकार त्याग की पोल खोल कर रख दी। सेठ भरे समाज में अपनी लज्जित चेहरा लेकर रह गया। इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि दिखावे से ज्यादा कर्त्तव्य बोध पर ध्यान देना चाहिए।
__________________

हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है कृपया हिंदी में लेखन व् वार्तालाप करे ! हिंदी लिखने के लिए मुझे क्लिक करें!

Last edited by Hamsafar+; 08-11-2010 at 08:04 PM.
Hamsafar+ is offline   Reply With Quote
Old 08-11-2010, 08:03 PM   #16
Hamsafar+
VIP Member
 
Hamsafar+'s Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 9,746
Rep Power: 49
Hamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond repute
Default

प्रेम और भक्ति में हिसाब!

एक पहुंचे हुए सन्यासी का एक शिष्य था, जब भी किसी मंत्र का जाप करने बैठता तो संख्या को खडिया से दीवार पर लिखता जाता। किसी दिन वह लाख तक की संख्या छू लेता किसी दिन हजारों में सीमित हो जाता। उसके गुरु उसका यह कर्म नित्य देखते और मुस्कुरा देते।

एक दिन वे उसे पास के शहर में भिक्षा मांगने ले गये। जब वे थक गये तो लौटते में एक बरगद की छांह बैठे, उसके सामने एक युवा दूधवाली दूध बेच रही थी, जो आता उसे बर्तन में नाप कर देती और गिनकर पैसे रखवाती। वे दोनों ध्यान से उसे देख रहे थे। तभी एक आकर्षक युवक आया और दूधवाली के सामने अपना बर्तन फैला दिया, दूधवाली मुस्कुराई और बिना मापे बहुत सारा दूध उस युवक के बर्तन में डाल दिया, पैसे भी नहीं लिये। गुरु मुस्कुरा दिये, शिष्य हतप्रभ!

उन दोनों के जाने के बाद, वे दोनों भी उठे और अपनी राह चल पडे। चलते चलते शिष्य ने दूधवाली के व्यवहार पर अपनी जिज्ञासा प्रकट की तो गुरु ने उत्तर दिया,

'' प्रेम वत्स, प्रेम! यह प्रेम है, और प्रेम में हिसाब कैसा? उसी प्रकार भक्ति भी प्रेम है, जिससे आप अनन्य प्रेम करते हो, उसके स्मरण में या उसकी पूजा में हिसाब किताब कैसा?'' और गुरु वैसे ही मुस्कुराये व्यंग्य से।

'' समझ गया गुरुवर। मैं समझ गया प्रेम और भक्ति के इस दर्शन
__________________

हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है कृपया हिंदी में लेखन व् वार्तालाप करे ! हिंदी लिखने के लिए मुझे क्लिक करें!
Hamsafar+ is offline   Reply With Quote
Old 08-11-2010, 08:07 PM   #17
Hamsafar+
VIP Member
 
Hamsafar+'s Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 9,746
Rep Power: 49
Hamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond repute
Default

भाग्य और पुरुषार्थ

एक बार दो राज्यों के बीच युद्ध की तैयारियां चल रही थीं। दोनों के शासक एक प्रसिद्ध संत के भक्त थे। वे अपनी-अपनी विजय का आशीर्वाद मांगने के लिए अलग-अलग समय पर उनके पास पहुंचे। पहले शासक को आशीर्वाद देते हुए संत बोले, ‘तुम्हारी विजय निश्चित है।’

दूसरे शासक को उन्होंने कहा, ‘तुम्हारी विजय संदिग्ध है।’ दूसरा शासक संत की यह बात सुनकर चला आया किंतु उसने हार नहीं मानी और अपने सेनापति से कहा, ‘हमें मेहनत और पुरुषार्थ पर विश्वास करना चाहिए। इसलिए हमें जोर-शोर से तैयारी करनी होगी। दिन-रात एक कर युद्ध की बारीकियां सीखनी होंगी। अपनी जान तक को झोंकने के लिए तैयार रहना होगा।’

इधर पहले शासक की प्रसन्नता का ठिकाना न था। उसने अपनी विजय निश्चित जान अपना सारा ध्यान आमोद-प्रमोद व नृत्य-संगीत में लगा दिया। उसके सैनिक भी रंगरेलियां मनाने में लग गए। निश्चित दिन युद्ध आरंभ हो गया। जिस शासक को विजय का आशीर्वाद था, उसे कोई चिंता ही न थी। उसके सैनिकों ने भी युद्ध का अभ्यास नहीं किया था। दूसरी ओर जिस शासक की विजय संदिग्ध बताई गई थी, उसने व उसके सैनिकों ने दिन-रात एक कर युद्ध की अनेक बारीकियां जान ली थीं। उन्होंने युद्ध में इन्हीं बारीकियों का प्रयोग किया और कुछ ही देर बाद पहले शासक की सेना को परास्त कर दिया।

अपनी हार पर पहला शासक बौखला गया और संत के पास जाकर बोला, ‘महाराज, आपकी वाणी में कोई दम नहीं है। आप गलत भविष्यवाणी करते हैं।’ उसकी बात सुनकर संत मुस्कराते हुए बोले, ‘पुत्र, इतना बौखलाने की आवश्यकता नहीं है। तुम्हारी विजय निश्चित थी किंतु उसके लिए मेहनत और पुरुषार्थ भी तो जरूरी था। भाग्य भी हमेशा कर्मरत और पुरुषार्थी मनुष्यों का साथ देता है और उसने दिया भी है तभी तो वह शासक जीत गया जिसकी पराजय निश्चित थी।’ संत की बात सुनकर पराजित शासक लज्जित हो गया और संत से क्षमा मांगकर वापस चला आया।
__________________

हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है कृपया हिंदी में लेखन व् वार्तालाप करे ! हिंदी लिखने के लिए मुझे क्लिक करें!
Hamsafar+ is offline   Reply With Quote
Old 08-11-2010, 08:13 PM   #18
Hamsafar+
VIP Member
 
Hamsafar+'s Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 9,746
Rep Power: 49
Hamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond repute
Default

मन का राजा


राजा भोज वन में शिकार करने गए लेकिन घूमते हुए अपने सैनिकों से बिछुड़ गए और अकेले पड़ गए। वह एक वृक्ष के नीचे बैठकर सुस्ताने लगे। तभी उनके सामने से एक लकड़हारा सिर पर बोझा उठाए गुजरा। वह अपनी धुन में मस्त था। उसने राजा भोज को देखा पर प्रणाम करना तो दूर, तुरंत मुंह फेरकर जाने लगा।

भोज को उसके व्यवहार पर आश्चर्य हुआ। उन्होंने लकड़हारे को रोककर पूछा, ‘तुम कौन हो?’ लकड़हारे ने कहा, ‘मैं अपने मन का राजा हूं।’ भोज ने पूछा, ‘अगर तुम राजा हो तो तुम्हारी आमदनी भी बहुत होगी। कितना कमाते हो?’ लकड़हारा बोला, ‘मैं छह स्वर्ण मुद्राएं रोज कमाता हूं और आनंद से रहता हूं।’ भोज ने पूछा, ‘तुम इन मुद्राओं को खर्च कैसे करते हो?’ लकड़हारे ने उत्तर दिया, ‘मैं प्रतिदिन एक मुद्रा अपने ऋणदाता को देता हूं। वह हैं मेरे माता पिता। उन्होंने मुझे पाल पोस कर बड़ा किया, मेरे लिए हर कष्ट सहा। दूसरी मुद्रा मैं अपने ग्राहक असामी को देता हूं ,वह हैं मेरे बालक। मैं उन्हें यह ऋण इसलिए देता हूं ताकि मेरे बूढ़े हो जाने पर वह मुझे इसे लौटाएं।

तीसरी मुद्रा मैं अपने मंत्री को देता हूं। भला पत्नी से अच्छा मंत्री कौन हो सकता है, जो राजा को उचित सलाह देता है ,सुख दुख का साथी होता है। चौथी मुद्रा मैं खजाने में देता हूं। पांचवीं मुद्रा का उपयोग स्वयं के खाने पीने पर खर्च करता हूं क्योंकि मैं अथक परिश्रम करता हूं। छठी मुद्रा मैं अतिथि सत्कार के लिए सुरक्षित रखता हूं क्योंकि अतिथि कभी भी किसी भी समय आ सकता है। उसका सत्कार करना हमारा परम धर्म है।’ राजा भोज सोचने लगे, ‘मेरे पास तो लाखों मुद्राएं है पर जीवन के आनंद से वंचित हूं।’ लकड़हारा जाने लगा तो बोला, ‘राजन् मैं पहचान गया था कि तुम राजा भोज हो पर मुझे तुमसे क्या सरोकार।’ भोज दंग रह गए।

एक मछुआरा था । उस दिन सुबह से शाम तक नदी में जाल डालकर मछलियाँ पकड़ने की कोशिश करता रहा , लेकिन एक भी मछली जाल में न फँसी ।

जैसे -जैसे सूरज डूबने लगा , उसकी निराशा गहरी होती गयी । भगवान का नाम लेकर उसने एक बार और जाल डाला । पर इस बार भी वह असफल रहा . पर एक वजनी पोटली उसके जाल में अटकी । मछुआरे ने पोटली निकला और टटोला तो झुंझला गया और बोला -' हाय ये तो पत्थर है !' फिर मन मारकर वह नाव में चढा ।

बहुत निराशा के साथ कुछ सोचते हुए वह अपने नाव को आगे बढ़ता जा रहा था और मन में आगे के योजनाओं के बारे में सोचता चला जा रहा था । सोच रहा था 'कल दुसरे किनारे पर जाल डालूँगा । सबसे छिपकर ...उधर कोई नही जाता ....वहां बहुत सारी मछलियाँ पकड़ी जा सकती है ... । '

मन चंचल था तो फिर हाथ कैसे स्थिर रहता ? वह एक हाथ से उस पोटली के पत्थर को एक -एक करके नदी में फेंकता जा रहा था । पोटली खाली हो गयी । जब एक पत्थर बचा था तो अनायास ही उसकी नजर उसपर गयी तो वह स्तब्ध रह गया । उसे अपने आँखों पर यकीन नही हो रहा था , यह क्या ! ये तो ‘नीलम ’ था .

मछुआरे के पास अब पछताने के अलावा कुछ नही बचा था . नदी के बीचोबीच अपनी नाव में बैठा वह सिर्फ अब अपने को कोस रहा था ।

प्रकृति और प्रारब्ध ऐसे ही न जाने कितने नीलम हमारी झोली में डालता रहता है जिन्हें पत्थर समझ हम ठुकरा देते हैं।
__________________

हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है कृपया हिंदी में लेखन व् वार्तालाप करे ! हिंदी लिखने के लिए मुझे क्लिक करें!
Hamsafar+ is offline   Reply With Quote
Old 08-11-2010, 08:48 PM   #19
Hamsafar+
VIP Member
 
Hamsafar+'s Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 9,746
Rep Power: 49
Hamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond repute
Default

रघुवीर अपने बीमार बच्चे के लिए फल खरीदने के लिए आया था। फलों के बढ़े हुए दाम सुनकर मन ही मन सोच रहा था, ‘क्या लूं और क्या न लूं? लूं भी कुछ या न लूं? लेना तो पड़ेगा थोड़ा बहुत शंकर के लिए। कितनी महंगाई हो गई है? फलों के दाम भी कहां से कहां पहुंच गए हैं?’


तभी एक अमीर महिला कार से उतरी। उसने बिना दाम पूछे एक किलो बढ़िया सेब और एक दर्ज़न बढ़िया केले खरीदे और पांच सौ रुपए का नोट निकालकर दुकानदार को पकड़ा दिया। दुकानदार ने चार सौ और कुछ रुपए उसे वापस कर दिए। रुपए वापस मिलते देख बरबस ही उस महिला के मुंह से निकला, ‘फ्रू ट तो सस्ते ही चल रहे हैं।’

यह सुनकर रघुवीर ने उस औरत की तरफ देखा। उसे लगा कि महंगाई नहीं बढ़ी है, सिर्फ उसी के पास रुपए नहीं है। जिसके पास रुपए हैं, उसके लिए कोई महंगाई नहीं है।

..वह वहीं खड़ा था और वह महिला जा चुकी थी।
__________________

हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है कृपया हिंदी में लेखन व् वार्तालाप करे ! हिंदी लिखने के लिए मुझे क्लिक करें!
Hamsafar+ is offline   Reply With Quote
Old 08-11-2010, 08:59 PM   #20
Hamsafar+
VIP Member
 
Hamsafar+'s Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 9,746
Rep Power: 49
Hamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond reputeHamsafar+ has a reputation beyond repute
Default

संवेदना

ज्यों ही बस बाएं-दाएं डिगती, वह अपने गोद के बच्चे के साथ उसी तरफ झुककर लगभग गिरने को होती। अभी गांव के स्टैंड से वह बस में चढ़ी थी। उसकी याचक दृष्टि सीट पर बैठे हर यात्री से थोड़ी जगह मांग रही थी। बस का डंडा पकड़े वह कभी सीधे खड़े रहने का प्रयत्न करती, कभी बीमार व कमज़ोर बच्चे का रोना सुनकर उसे कंधे से चिपकाए रखने की कोशिश करती।

बस अगले स्टैंड पर रुकी। कुछ यात्री और चढ़े। ‘ओ हो, आइए शर्मा जी, यहां आ जाइए। मैंने आपके लिए जगह रख छोड़ी है।’ गुप्ता बाबू ने खिसकते हुए कहा। शर्माजी बैठ गए। बस फिर चल पड़ी। अगले स्टैंड पर बस रुकी। शर्माजी व गुप्ता बाबू नीचे उतरे। वह दोनों सामाजिक सुधार सेवा समिति के कार्यालय की ओर बढ़ चले।

वह महिला भी उतरी तथा उस कार्यालय की बगल में बने अस्पताल की तरफ चल पड़ी। गोद का बच्च अब भी कमज़ोर मिमियाहट के साथ मां के कंधे को मज़बूती से पकड़े रखने का प्रयत्न कर रहा था।
__________________

हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है कृपया हिंदी में लेखन व् वार्तालाप करे ! हिंदी लिखने के लिए मुझे क्लिक करें!
Hamsafar+ is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks

Tags
hindi, hindi stories, nice stories, small stories, stories


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 07:40 PM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.