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Old 22-02-2015, 11:59 PM   #11
Arvind Shah
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Arvind Shah is a splendid one to beholdArvind Shah is a splendid one to beholdArvind Shah is a splendid one to beholdArvind Shah is a splendid one to beholdArvind Shah is a splendid one to beholdArvind Shah is a splendid one to behold
Default Re: आस्था पर आग

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Originally Posted by pavitra View Post
Rajat ji आपकी बात का उत्तर दूँ उससे पहले आपको धन्यवाद कहना चाहती हूँ ....आपकी एक कहानी याद आगयी जो आपने अभी हाल ही में हमसे share की थी..... एक आदमी हमेशा जिन्ना के खिलाफ बोलता रहता था।
जिन्ना के सेक्रेटरी ने एक दिन उनसे कहा- 'आप क्यों नहीं उस आदमी के खिलाफ अपना बयान देते?'
जिन्ना ने कहा- 'अगर मैं उसके खिलाफ बोलूँगा तो वो बड़ा आदमी बन जाएगा। इसलिए दाँत पीसना ही सही रास्ता है!'


आज आपने मेरे बारे में बोलकर , forum पर मेरे कद में इजाफा कर दिया.......


अब बात आपकी कही बात की......जो आस्तिक लेखक वर्ग पर आरोप लगाते हैं , दरसल वो आस्तिक नहीं कट्टरपंथी होते हैं , जिन्हें लगता है कि सिर्फ उनका धर्म ही श्रेष्ठ है और अगर यही लेखक वर्ग किसी दूसरे धर्म का अपमान करें तो उन्हें कोई फर्क नहीं पडेगा । अगर आप मेरी बात कर रहे हैं तो मैं आपको बता दूँ कि मैं हिन्दू हूँ , और अगर आप मेरे सामने किसी भी अन्य धर्म के लिये भी कुछ ऐसा कहेंगे जो मेरी नजर में सही नहीं है तो मैं उसका भी विरोध करूँगी ही.....

आपने पी.के. मूवी का जिक्र किया ...मैंने भी वो मूवी देखी है और मुझे कहीं भी यह महसूस नहीं हुआ कि हमसे कहा जा रहा हो कि "मन्नतें पूरी नहीं होती"......उसमें तो साफ-साफ बताया गया है कि मन्नतें पूरी होती हैं , बस मन्नतें पूरी करने के नाम पर जो धन्धा होता है ,मूवी में उसका विरोध किया गया है.....मैं आपको फिल्म के scenes के उदाहरण भी दे देती लेकिन शायद मैं मुख्य मुद्दे से भटक जाऊँगी , इसलिये फिर कभी.......

अब आपने देवराज इन्द्र के बारे में कहा कि - "देवराज इन्द्र का सिंहासन उस समय हिलने नहीं लगता जब कोई जप-तप में लीन हो जाता है? देवराज इन्द्र का विचलित और चिन्तित होना क्या अपनी पदवी के प्रति उनके लालच को प्रदर्शित नहीं करता?"......आपसे किसने कहा कि देवराज इन्द्र इसलिये विचलित होते हैं कि उनकी पदवी उनसे छिन जायेगी??? कोई भी व्यक्ति जब अपने से श्रेष्ठ व्यक्ति को देखता है तो उससे उसे भय लगता ही है , तो जब कोई जप-तप में लीन हो जाता है तो हो सकता है देवराज इन्द्र को लगता हो कि कहीं ये मुझसे अधिक प्रिय ना हो जाये प्रभु को , और इसलिये वो विचलित होते हों ......आपको रामचरितमानस का वो प्रसंग याद होगा कि जब सीता जी के स्वयंवर के समय श्री राम जी खडे हुए थे तो हर व्यक्ति ने उन्हें अपनी अलग नजर से देखा , किसी को वो पुत्र , किसी को काल , किसी ने शत्रु के रूप में दिखे.........जाकि रही भावना जैसी , प्रभु मूरत देखी तिन तैसी......तो देवराज इन्द्र विचलित क्यों होते हैं इसपर लोगों के मत उनकी भावना के अनुसार अलग हो सकते हैं..... (अब ये ना समझियेगा कि मैं आपकी भावना पर सन्देह कर रही हूँ , मुझे पता है आपने भी ग्रन्थों में से ही पढा है पर वो ग्रन्थ लिखने वाले भी तो मनुष्य ही हैं , जो अपनी भावना के अनुसार ही लिखेंगे)

अब आपने कहा कि -अतएव यह सिद्ध हुआ कि शीतला देवी स्वयं इन विषाणु (virus) जन्य बीमारियों की जनक हैं और इन्हें निरोगी काया प्राप्त करने हेतु पूजा नहीं जाता, अपितु विषाणुजन्य बीमारियों को चंगा करने के उद्देश्य से पूजा जाता है

इस बारे में मैं बस इतना कहुँगी कि कुछ बातें बस कहने के लिये ही कही जाती हैं , भय एक ऐसी चीज है जिसके वशीभूत हो व्यक्ति कुछ भी कर सकता है , तो माता निकल आयी है इसका मतलब ये कतापि नहीं है कि माता ने बीमारी फैलायी है , सोचिये अगर मुझे खुद को ही घर साफ करना हो तो मैं क्यों पहले घर गन्दा करुँगी??? जब माता को खुद ही बीमारी ठीक करनी है तो वो क्यों पहले बीमार करेंगी??? (अब ये तो रही logic की बात) .....अब दूसरी तरह से देख लीजिये कि आप खुद कह रहे हैं कि माता विषाणुजन्य बीमारियों की जनक हैं , तो जो कारण हो दुख का उसको कोई क्यों दुख दूर करने के लिये पूजेगा??? आप खुद गौर करें अपनी कही बात पर.......

अब आपने कहा -
आक्षेप ही लगाना हो तो कल्कि अवतार के सन्दर्भ में तो डॉ. ज़ाकिर नायक के कथन पर लगाइए, हमारी छोटी सी तुच्छ रचना पर नहीं।

रजत जी जब जमीन में गलत बीज बोया जा रहा हो तभी उस बीज को निकाल देना अच्छा रहता है , जब बीज पेड बन जाये तब उसे कैसे भी नहीं निकाला जा सकता......आप जिनकी बात कर रहे हैं अगर उन्हें भी शुरुआत में ही सही दिशा मिली होती तो शायद आज आप हमें उनका उदाहरण ना दे रहे होते......आगे कोई लेखक हमें आपका उदाहरण ना दे इसलिये आपसे इतना लडना पड रहा है यहाँ.....


मैं बाकि सभी धर्मों का सम्मान करती हूँ ये जताने के लिये मुझे अपने धर्म का अपमान करना पडे , या मेरा धर्म श्रेष्ठ है ये बताने के लिये मुझे दूसरे धर्मों की निन्दा करनी पडे , ये उचित नहीं है।


और इस दुनिया में बहुत से लोग हैं जो वैमनस्य सोच रखते हैं , उनकी बातों से फर्क नहीं पडता अब आप "पडोसी" तो हैं नहीं , "फ्रेंड्लिस्ट" में आ चुके हैं तो आपकी बातों से फर्क पडता है , इसलिये ही इतना कहा , वरना ओवैसी , नायक सरीखे बहुत हैं इस दुनिया में ....अब वो गलत हैं तो हमें उनके competition में गलत थोडे ही बनना है........
बढिया विश्लेषण !
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Old 23-02-2015, 12:03 AM   #12
Arvind Shah
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Default Re: आस्था पर आग

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Originally Posted by kuki View Post
हमारे लिये तो आप भी तगडे ही हैं , क्युँकि आप जिनकी बात कर रहे हैं , उनका तो हमने नाम नाम भी नहीं सुना है , तो आप ज्यादा फेमस हैं
.............
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Old 23-02-2015, 10:11 AM   #13
Deep_
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Default Re: आस्था पर आग



माय हिन्दी फोरम!!!
यही तो वह मंच है जिस पर ईतने गुनी (और मेरे जैसे भी) लोग एक साथ ईतनी अच्छी बहस कर सकते है!
रजत जी ने समय, युग, काल की गिनती बताई...शायद उन्हों ने कहीं पर पढा होगा। लेकिन रजत जी, रजनीश जी, पवित्रा जी, अरवींद जी, कुकी जी और पुष्पा जी जैसे कई सदस्य अपने आप में ज्ञान का समुद्र अपने में समाए हुए है।

मुझे लगता है की ज्ञानी ही यह तय करता है की आनेवाली फसल/नसल कैसी होनी चाहिए। अगर "मन्दिर बन्द" जैसे मुद्दे पर बहस नहीं होती, तो यह तय हो जाता की हम सभी धार्मिकता के बारे में अधिक सेन्सीटीव नहीं है। लेकिन हम सेन्सीटीव है। हमें फर्क पडता है।

हाला की मेरे और श्री एम्प्टी माईण्ड जैसे लोग अपने एम्पटी दिमाग में नई बातें लोड करना चाहते है....वह रजत जी जैसे लोग ही तय करेंगे। क्यों की वे ही दिमाग हिला देने वाली बातें, दिमाग हिला देने वाले तरींको से लिख सकते है। ईस लिए अब रजत जी पर निर्भर है की वे हमें क्या देते है।

अब मुझे लग रहा है की अगर रजत जी ने ईश्वर को जैसे प्रदर्शित किया है, अगर उससे उल्टा लिखते....मतलब की ईश्वर की फेवर में लिखते तो? वह कितना अच्छा होता!
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Old 23-02-2015, 03:32 PM   #14
Pavitra
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Pavitra has a reputation beyond reputePavitra has a reputation beyond reputePavitra has a reputation beyond reputePavitra has a reputation beyond reputePavitra has a reputation beyond reputePavitra has a reputation beyond reputePavitra has a reputation beyond reputePavitra has a reputation beyond reputePavitra has a reputation beyond reputePavitra has a reputation beyond reputePavitra has a reputation beyond repute
Default Re: आस्था पर आग

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Originally Posted by Deep_ View Post


माय हिन्दी फोरम!!!
यही तो वह मंच है जिस पर ईतने गुनी (और मेरे जैसे भी) लोग एक साथ ईतनी अच्छी बहस कर सकते है!
रजत जी ने समय, युग, काल की गिनती बताई...शायद उन्हों ने कहीं पर पढा होगा। लेकिन रजत जी, रजनीश जी, पवित्रा जी, अरवींद जी, कुकी जी और पुष्पा जी जैसे कई सदस्य अपने आप में ज्ञान का समुद्र अपने में समाए हुए है।

मुझे लगता है की ज्ञानी ही यह तय करता है की आनेवाली फसल/नसल कैसी होनी चाहिए। अगर "मन्दिर बन्द" जैसे मुद्दे पर बहस नहीं होती, तो यह तय हो जाता की हम सभी धार्मिकता के बारे में अधिक सेन्सीटीव नहीं है। लेकिन हम सेन्सीटीव है। हमें फर्क पडता है।

हाला की मेरे और श्री एम्प्टी माईण्ड जैसे लोग अपने एम्पटी दिमाग में नई बातें लोड करना चाहते है....वह रजत जी जैसे लोग ही तय करेंगे। क्यों की वे ही दिमाग हिला देने वाली बातें, दिमाग हिला देने वाले तरींको से लिख सकते है। ईस लिए अब रजत जी पर निर्भर है की वे हमें क्या देते है।

अब मुझे लग रहा है की अगर रजत जी ने ईश्वर को जैसे प्रदर्शित किया है, अगर उससे उल्टा लिखते....मतलब की ईश्वर की फेवर में लिखते तो? वह कितना अच्छा होता!

दीप जी आपने मुझे ज्ञानी कहकर मेरी तो इज्जत और बढा दी.....
हाँलांकि बात आपकी सही है , आजकल तो रजत जी ही तय करते हैं कि forum पर members कितने active रहेंगे.....सबसे ज्यादा दिलचस्पी से उन्हीं के threads पढे जाते हैं , और सच कहूँ तो जवाब देना इतना कठिन नहीं होता जितना सवाल करना कठिन होता है....बात आगे बढाना इतना कठिन नहीं होता जितना बात शुरु करना कठिन होता है......मुझ जैसे लोग तो बात सिर्फ आगे बढाने का ही काम कर सकते हैं , ये तो रजत जी ही हैं जो बात शुरु करने की काबिलियत रखते हैं ।

और आप कबसे खुद को खाली दिमाग समझने लगे...???
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Old 23-02-2015, 06:15 PM   #15
Rajat Vynar
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Talking Re: आस्था पर आग

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Rajat ji आपकी बात का उत्तर दूँ उससे पहले आपको धन्यवाद कहना चाहती हूँ ....आपकी एक कहानी याद आगयी जो आपने अभी हाल ही में हमसे share की थी..... एक आदमी हमेशा जिन्ना के खिलाफ बोलता रहता था।
जिन्ना के सेक्रेटरी ने एक दिन उनसे कहा- 'आप क्यों नहीं उस आदमी के खिलाफ अपना बयान देते?'
जिन्ना ने कहा- 'अगर मैं उसके खिलाफ बोलूँगा तो वो बड़ा आदमी बन जाएगा। इसलिए दाँत पीसना ही सही रास्ता है!'


आज आपने मेरे बारे में बोलकर , forum पर मेरे कद में इजाफा कर दिया.......


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Originally Posted by kuki View Post
हमारे लिये तो आप भी तगडे ही हैं , क्युँकि आप जिनकी बात कर रहे हैं , उनका तो हमने नाम नाम भी नहीं सुना है , तो आप ज्यादा फेमस हैं
बिल्कुल गलत तथ्य आपने प्रस्तुत किया है। सच तो यह है कि अगर सोनी जी का कद तरबूज़ के बराबर है तो पवित्रा जी का कद खरबूज़ा के बराबर है। आप दोनों की तुलना में मेरा कद सिर्फ़ अंगूर के बराबर है।
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Old 23-02-2015, 09:59 PM   #16
Pavitra
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Default Re: आस्था पर आग

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Originally Posted by rajat vynar View Post
बिल्कुल गलत तथ्य आपने प्रस्तुत किया है। सच तो यह है कि अगर सोनी जी का कद तरबूज़ के बराबर है तो पवित्रा जी का कद खरबूज़ा के बराबर है। आप दोनों की तुलना में मेरा कद सिर्फ़ अंगूर के बराबर है।


आपने तो लगता है निश्चय ही कर लिया है मेरे हर तथ्य को गलत बताने का.....:/ ....
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Old 24-02-2015, 07:16 PM   #17
Rajat Vynar
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Talking Re: आस्था पर आग

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हमारे लिये तो आप भी तगडे ही हैं , क्युँकि आप जिनकी बात कर रहे हैं , उनका तो हमने नाम नाम भी नहीं सुना है , तो आप ज्यादा फेमस हैं
कुकी जी, मैं दूसरों की बात नहीं करता, किन्तु यदि आपने, सोनी पुष्पा जी और पवित्रा जी ने डॉ. ज़ाकिर नायक का नाम नहीं सुना तो यह मेरे लिए दुनियॉं का आठवॉं आश्चर्य है, क्योंकि दुनियॉं भर की ख़बर तो सबसे पहले आप लोगों तक ही पहुॅचती है। कारण— बुद्धिजीवी महिलाएॅं सीरियल—फ़िल्म के स्थान पर दिन भर टी.वी. न्यूज़ चैनल पर अपनी नज़रें गड़ाए रहती हैं। संदर्भवश आप सभी को बता दूॅं कि जाकिर नायक एक मुस्लिम विद्वान, लेखक और वक्ता हैं। जाकिर नायक इस्लामिक रिसर्च फांउडेशन के संस्थापक और अध्यक्ष हैं। दुबई से प्रसारित पीस टीवी नाम से इस्*लामिक चैनल चलाने वाले डॉ जाकिर नाईक का जन्*म मुंबई में हुआ। वह इस्*लाम के प्रचारक हैं और दूसरे धर्म के अनुयायियों को इस्*लाम में आमंत्रित करने का कार्य भी करते हैं। नाईक पर कई बार जहर घोलने वाले विवादित भाषण देने के आरोप लगते रहे हैं। उनकी हरकतों की वजह से ब्रिटिश सरकार भी नाईक के धार्मिक भाषणों पर प्रतिबंध लगा चुकी हैं। नाईक विदेशों में आयोजित होने वाली धर्मसभाओं में इस्*लाम का प्रतिनिधित्*व भी करते हैं।
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Old 24-02-2015, 07:22 PM   #18
Rajat Vynar
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अब मुझे लग रहा है की अगर रजत जी ने ईश्वर को जैसे प्रदर्शित किया है, अगर उससे उल्टा लिखते....मतलब की ईश्वर की फेवर में लिखते तो? वह कितना अच्छा होता!
लिखा क्यों नहीं है? आपका आरोप निराधार है। पढ़िए मेरा सूत्र— 'प्रश्नचिह्न' http://myhindiforum.com/showthread.php?t=14561
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