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Old 02-01-2015, 10:43 AM   #11
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खलील जिब्रान



बच्चे

तुम्हारे बच्चे तुम्हारे बच्चे नहीं हैं
वह तो जीवन की अपनी आकाँक्षा के बेटे बेटियाँ हैं
वह तुम्हारे द्वारा आते हैं लेकिन तुमसे नहीं
वह तुम्हारे पास रहते हैं लेकिन तुम्हारे नहीं.
तुम उन्हें अपना प्यार दे सकते हो लेकिन अपनी सोच नहीं
क्योंकि उनकी अपनी सोच होती है
तुम उनके शरीरों को घर दे सकते हो, आत्माओं को नहीं
क्योंकि उनकी आत्माएँ आने वाले कल के घरों में रहती हैं
जहाँ तुम नहीं जा सकते, सपनों में भी नहीं.
तुम उनके जैसा बनने की कोशिश कर सकते हो,
पर उन्हें अपने जैसा नहीं बना सकते,
क्योंकि जिन्दगी पीछे नहीं जाती, न ही बीते कल से मिलती है.

तुम वह कमान हो जिससे तुम्हारे बच्चे
जीवित तीरों की तरह छूट कर निकलते हैं
तीर चलाने वाला निशाना साधता है एक असीमित राह पर
और अपनी शक्ति से तुम्हें जहाँ चाहे उधर मोड़ देता है
ताकि उसका तीर तेज़ी से दूर जाये.
स्वयं को उस तीरन्दाज़ की मर्ज़ी पर खुशी से मुड़ने दो,
क्योंकि वह उड़ने वाले तीर से प्यार करता है
और स्थिर कमान को भी चाहता है.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
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Old 02-01-2015, 01:15 PM   #12
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खलील जिब्रान


लोमड़ी


एक लोमड़ी ने सुबह के वक़्त जब अपनी छाया पर दृष्टि डाली तो बोली, “ आज मुझे नाश्ते के लिए एक ऊंट मिलना चाहिए.”

उसने सुबह का सारा समय ऊंट की तलाश करते हए गुज़ार दिया. उसे ऊंट न मिला. लेकिन जब दोपहर के समय उसने दोबारा अपनी छाया देखी तो बोली, “मेरे लिए एक चूहा ही काफी होगा.”




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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
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Old 02-01-2015, 01:24 PM   #13
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खलील जिब्रान


मनुष्य की सभ्यता और कुत्ते
आभार: राजेंद्र तेला ‘निरंतर’

तीन कुत्ते धूप खाते हुए बातें करते जाते थे।
पहले कुत्ते ने मानो

स्वप्न देखते हुए कहा,
वास्तव में यह बड़े आनन्द की बात है कि
हम इसश्वानयुगमें पैदा हुए हैं।


तब दूसरा कुत्ता बोला,
अजी, इतना ही नहीं ,
कला के प्रति भी हमारा झुकाव हुआ है।
चंद्रमा को देखकर हम लोग
अपने पूर्वजों की अपेक्षा
अधिक ताल-स्वर से भौंकते हैं।
जब हम पानी में अपना
प्रतिबिम्ब देखते हैं तो हमें
अपना चेहरा पूर्वकाल की अपेक्षा
अधिक सुघड़ नज़र आता है।
भला, सोचो तो सही,
कितनी सहूलियत से हम लोग
जल,थल और आकाश की यात्रा करते हैं।
देखो न, हमारे आराम के लिए,
यहां तक कि हमारी
आंख,कान,नासिका के सुख के लिए,
कैसे-कैसे आविष्कार हुए हैं।


तब तीसरे कुत्ते ने कहा,
सबसे अधिक आश्चर्यजनक बात तो यह है
कि इस श्वानयुग में कितना
सुस्थिर विचार-साम्य है।


इसी समय उन्होंने देखा कि
कुत्ता पकड़नेवाला चला रहा है।
तीनों कुत्ते छलांग मारते हुए गली में भागे।
भागते-भागते तीसरे कुत्ते ने कहा,
प्राण बचाना चाहते हो तो जल्दी भागो,
सभ्यता हमारे पीछे पड़ी हुई है।
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Old 02-01-2015, 02:52 PM   #14
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खलील जिब्रान




कल हमने राजाओं के हुक्म की तामील की और सम्राटों के सामने नतमस्तक हुये परन्तु आज हम केवल सत्य के सामने झुकते हैं, सुन्दरता का अनुसरण करते हैं और केवल प्रेम का आदेश मानते है.
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खलील जिब्रान


कुरूपता और सुन्दरता

एक दिन कुरूपता और सुंदरता सागर के तट पर मिलीं। वे एक-दूसरे से बोलीं, 'चलो सागर में स्नान करें।'

उन्होंने वस्त्र उतारे और पानी में तैरने लगीं। कुछ समय बाद कुरूपता तट पर वापस आ गई। उसने सुंदरता के कपड़े पहने और चली गई।

कुछ देर बाद सुंदरता भी पानी से बाहर आ गई। लेकिन उसे अपना परिधान नहीं मिला। बिना कपड़ों के उसे बड़ी शर्म आई। इसलिए उसने कुरूपता का परिधान पहना और अपने रास्ते चली गई।

आज तक स्त्री-पुरुष इन दोनों में एक को दूसरा समझने की गलती करते हैं।

फिर भी कुछ लोग ऐेसे हैं, जिन्होंने सुंदरता का चेहरा देखा है। वे उनके पहरावे से धोखा नहीं खाते। और कुछ ऐसे लोग भी हैं जो कुरूपता के चेहरे को पहचानते हैं। उनकी आंखें उसके कपड़ों में भी उसे पहचान जाती हैं।

यह लघु कथा हमें इस बात की समझ देती है कि सब खूबसूरत दिखने वाले लोग अच्छे नहीं होते। और सभी बदसूरत इंसान बुरे नहीं होते। इस ऊपरी खोल के भीतर झांक कर ही अक्लमंद लोग किसी भी रिश्ते को बनाते या छोड़ते हैं।

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Old 05-01-2015, 12:14 AM   #16
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खलील जिब्रान


वृद्धावस्था

युवक कवि ने उस दिव्य रानी से कहा, “मैं तुमसे प्यार करता हूँ.”

दिव्य रानी ने उत्तर दिया, “मेरे बच्चे, मैं भी तुमसे स्नेह करती हूँ.”

“परन्तु मैं तुम्हारा बच्चा नहीं हूँ, मैं मनुष्य हूँ. मैं तुम्हें प्यार करता हूँ.”

दिव्य रानी ने कहा, ”मैं कितने ही पुत्र और पुत्रियों की माता हूँ. और वे भी अपने पुत्र - पुत्रियों के माता - पिता बन चुके हैं. मेरा एक पुत्र तो अवस्था में तुमसे कहीं बड़ा है.”

तब युवक ने फिर कहा, “फिर भी मैं तुमसे प्यार करता हूँ.”

उसके बाद अधिक दिन नहीं बीते कि दिव्य रानी की मृत्यु हो गयी. लेकिन इससे पहले कि उसका आख़िरी सांस पृथ्वी के महान श्वांस में विलीन हो जाता, उसने अपने मन से कहा, “मेरे प्यारे, मेरे बच्चे! युवक कवि, बहुत संभव है कि किसी दिन हम - तुम फिर मिलें और उस समय मेरी अवस्था सत्तर वर्ष की नहीं होगी.”
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खलील जिब्रान


छाया
जून का महीना था. एक दिन एक घास के तिनके ने सनोवर की छाया से कहा, “तुम प्रायः मेरे दायें-बाएं आ कर खड़ी हो जाती हो और परेशान करती हो”.

छाया ने उत्तर दिया.”मेरा इसमें क्या दोष है? ज़रा ऊपर की और देखो. यह वृक्ष हवा के झूले पर पूर्व से पश्चिम की ओर, सूर्य और धरती के बीच झोंके ले रहा है.”

तिनके ने ऊपर की और देखा वृक्ष को देखने का यह उसके लिए पहला ही अवसर था. उसने अपने मन में कहा, “इसमें ऐसा क्या है? है तो यह घास ही. ज़रा बड़ी है तो क्या हुआ?”

फिर वह चुप हो गयी.
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खलील जिब्रान


श्राप
एक वृद्ध व्यक्ति ने मुझसे कहा, ”तीस साल हो गए,एक नाविक मेरी लड़की को लेकर भाग गया. मैंने उन दोनों को बुरी तरह कोसना शुरू कर दिया. मैंने लड़के के अनिष्ट का श्राप दिया. क्योंकि मैं अपनी बेटी से बहुत प्यार करता था और उसे वापिस पाना चाहता था.

इसके बाद बहुत दिन नहीं बीते कि वह युवक नाविक जहाज सहित समुद्र-तल में जा पहुंचा. उसी के साथ मेरी प्यारी बेटी भी हमेशा के लिए खो गयी.

“इसलिए तुम मुझे एक युवक और युवती का हत्यारा समझो. मेरा श्राप ही दोनों के विनाश का कारण था. अब जब कि मैं कब्र में जाने को तैयार हूँ, इश्वर से उसके लिए क्षमा यातना करता हूँ.”

यह सब उस वृद्ध व्यक्ति ने कहा तो जरूर, पर उसके कथन में दंभ का अहसास था. और ऐसा लगता था कि उसे अब भी अपने श्राप देने की शक्ति का घमंड था.
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खलील जिब्रान


दो शिकारी

वसंत ऋतु में एक झील के किनारे हर्ष और शोक की मुलाक़ात हुई. अभिवादन के बाद दोनों झील के किनारे बैठ कर बात-चीत करने लगे.

हर्ष तो पृथ्वी पर मौजूद प्राकृतिक सुन्दरता का, परबत का, वन्यान्य जीवन के चमत्कारों का नित्य प्रति सुनाई देने वाले प्रातःकालीन व सांध्यकालीन संगीत के बारे में रस लेकर चर्चा करने लगा.

तब शोक हर्ष के कथन से सहमती प्रगट की क्योंकि वह समय के आकर्षण व उसके सौंदर्य से परिचित था. जिस समय शोक मैदानों और पर्वतों की सुन्दरता के बारे में बोल रहा था तो उसकी वाणी सजीव हो उठी थी.इस प्रकार हर्ष और शोक काफी देर तक बात करते रहे. दोनों एक दूसरे से सहमत होते हुए दिखाई दे रहे थे.

उसी समय उस झील के किनारे पर दो शिकारी दिखाई दिए. जैसे ही उन्होंने झील के चारों ओर दृष्टि उठा कर देखा, उनकी नज़र इन दोनों पर पड़ी. शिकारियों में से एक बोला, “आखिर ये दोनों कौन है?”

“दोनों कौन? मुझे तो केवल एक ही दिखाई दे रहा है.”

तब पहले शिकारी ने कहा, “लेकिन वहां तो मुझे दो दिख रहे हैं.”

दूसरा बोला, “मैं तो एक को ही देख पा रहा हूँ. और झील में छाया भी तो एक की ही पद रही है.”

“नहीं वहाँ दो ही हैं. पहला शिकारी बोला, “और झील में छाया भी दो ही की है.”

दूसरे शिकारी ने असहमत होते हुए कहा, “लेकिन मैं तो एक ही को देख पा रहा हूँ.”

पहले ने फिर कहा, “मगर मैं तो दो जनों को देख रहा हूँ.”

आज भी उन दोनों में बहस जारी है. एक शिकारी का कहना है कि उसके मित्र को कोई एनटीआर रोग हो गया है जिसके कारण उसे एक की जगह दो दिखाई देने लगे हैं. दूसरा शिकारी कहता है, “मेरे मित्र को कुछ कम दिखाई देता है.”
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खलील जिब्रान


प्रेम

हमसे प्रेम के विषय में कुछ कहो.

तब उसने अपना मस्तक ऊंचा किया और सामने खड़े लोगों पर नज़र डाली.सब तरफ शान्ति छ गयी. तब उसने गंभीर स्वर में कहना शुरू किया.

जब प्रेम तुम्हें अपनी तरफ बुलाये तो उसका अनुगमन करो. हो सकता है तुम्हारी राहें कठिन और विषम हों.

जब उसके पंख तुन्हें धकेलना चाहें तो तुम आत्म समर्पण कर दो, भले ही उन पंखों के नीचे छुपी तलवार तुम्हें घायल कर दे. और जब वह तुमसे बोले तो तुम उस पर विश्वास करो, भले ही उसकी आवाज तुम्हारे सपनों को चूर चूर कर दे, ठीक ऐसे जैसे तेज आँधियों में बगीचा उजड़ जाता है.

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