13-07-2013, 07:36 PM | #11 |
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Re: शब्द चर्चा
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16-07-2014, 02:01 PM | #12 |
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Re: शब्द चर्चा
अनिश्चितता का सिद्धांत :
हाइसनबर्ग का अनिश्चितता का सिद्धांत विज्ञान और गणित की उन समस्याओं में से एक है जो अज्ञेय हैं. क्वांटम भौतिकी का यह सिद्धांत कहता है कि हम किसी पार्टिकल की स्थिति और उसकी गति/दिशा को एक साथ नहीं जान सकते. इसके बारे में सोचने पर बहुत मानसिक उथलपुथल होती है. इसने ब्रह्माण्ड को देखने और समझने के हमारे नज़रिए में बड़ा फेरबदल कर दिया. अभी भी हमारे स्कूलों में परमाणु की संरचना को सौरमंडल जैसी व्यवस्था के रूप में दिखाया जाता है जिसमें केंद्र में नाभिक में प्रोटोन और न्यूट्रौन रहते हैं और बाहर इलेक्ट्रौन उपग्रहों की भांति उनकी परिक्रमा करते हैं. लेकिन परमाणु का ऐसा चित्रण भ्रामक है. नील्स बोर के ज़माने तक सभी लोग परमाणु के ऐसे ही भ्रामक चित्रण को सही मानते थे लेकिन वर्नर हाइसनबर्ग ने अपने अनिश्चितता के सिद्धांत से इसमें भारी उलटफेर कर दिया. वर्नर हाइसनबर्ग जर्मनी के सैद्धांतिक भौतिकविद थे और उन्होंने 1920 के दशक में नील्स बोर के साथ परमाणुओं और पार्टिकल्स की संरचना के क्षेत्र में साथ में बहुत काम किया था. अपने मौलिक चिंतन से हाइसनबर्ग ने कुछ नवीन निष्पत्तियां कीं. इस सिद्धांत को उन्होंने इस प्रकार बताया: यह पता कैसे चलेगा कि कोई पार्टिकल कहाँ है? उसे देखने के लिए हमें उसपर प्रकाश फेंकना पड़ेगा अर्थात हमें उसपर फ़ोटॉन डालने होंगे. जब फ़ोटॉन उस पार्टिकल से टकरायेंगे तब उस टक्कर के परिणामस्वरूप पार्टिकल की स्थिति परिवर्तित हो जायेगी. इस तरह हम उसकी स्तिथि को नहीं जान पाएंगे क्योंकि स्थिति को जानने के क्रम में हमने स्तिथि में परिवर्तन कर दिया. तकनीकी स्तर पर यह सिद्धांत कहता है कि हम पार्टिकल की स्तिथि और उसके संवेग को एक साथ नहीं जान सकते. यह पूरा तो नहीं पर कुछ-कुछ उस ‘ऑब्ज़र्वर’ इफेक्ट की भांति है जहाँ कुछ प्रयोग ऐसे होते हैं जिनमें परीक्षण का परिणाम प्रेक्षक (ऑब्ज़र्वर) की स्तिथि में बदलाव होने से बदल जाता है. इस प्रकार अणुओं और परमाणुओं की सौरमंडलीय व्यवस्था ध्वस्त हो गयी. अब इलेक्ट्रौन को पार्टिकल के रूप में नहीं बल्कि संभाव्यता प्रकार्य (प्रॉबेबिलिटी फंक्शन्स) के रूप में देखा जाता है. हम उनके कहीं होने की संभावना की गणना कर सकते हैं पर यह नहीं बता सकते कि वे कहाँ हैं. वे कहीं और भी हो सकते हैं. हाइसनबर्ग ने जब इस सिद्धांत की घोषणा की तब बहुत विवाद भी हुए. आइन्स्टीन ने अपना प्रसिद्द उद्धरण भी कहा, “ईश्वर पासे नहीं फेंकता”. और इसके साथ ही भौतिकी भी दो भागों में बाँट गयी. एक में तो विस्तार और विहंगमता का अध्ययन किया जाने लगा और दूसरी में अतिसूक्ष्म पदार्थ का. इन दोनों का एकीकरण अभी तक नहीं हो पाया है.
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16-07-2014, 09:36 PM | #13 |
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Re: शब्द चर्चा
शब्द चर्चा के अंतर्गत संस्कृत, हिंदी, उर्दू, फ़ारसी और इनसे इतर भी अन्यान्य भाषाओं के चुने हुये शब्दों की व्युत्पत्ति और व्याख्या आपने भाषा वैज्ञानिक आधार पर कर के यह समझाने की सफल कोशिश की है कि किसी शब्द की यात्रा एक भाषा से दूसरी भाषा तक, एक स्थान से दूसरे स्थान तक, एक संस्कृति से दूसरी संस्कृति तक चलती रहती है. यही एक जीवंत भाषा की पहचान है. इस शोधपूर्ण आलेख को फोरम पर प्रस्तुत करने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद, वार्ष्णेय जी.
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