27-03-2013, 12:54 AM | #11 |
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Re: इधर-उधर से
1. एक लोमड़ी ने सुबह के समय अपनी छाया पर दृष्टि डाली और कहा, "मुझे आज कलेवे के लिए ऊँट मिलना चाहिए." उसने सुबह का सारा समय ऊंट को ढूँढने में व्यतीत कर दिया, लेकिन जब दोपहर को उसने दूसरी बार अपनी छाया देखी तो कहा, "मेरे लिए एक चूहा ही काफी होगा." 2. एक बार जब मैं एक मृतक दास को दफ़न कर रहा था, तो कब्र खोदने वाला मेरे पास आया और बोला, "जितने भी लोग यहाँ दफ़न करने के लिए आते हैं, उनमे से मैं तुम्हें पसंद करता हूँ." मैंने कहा, "यह सुन कर मुझे ख़ुशी हुयी.; लेकिन आखिर तुम मुझे क्यों पसंद करते हो?" उसने जवाब दिया, "बात यह है कि और लोग तो यहाँ रोते हुए आते हैं और रोते हुए जाते हैं, मगर तुम हँसते हुए आते हो और हँसते हुए जा रहे हो." लेखक: खलील जिब्रान |
29-03-2013, 12:40 AM | #12 |
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Re: इधर-उधर से
Last edited by rajnish manga; 29-03-2013 at 11:30 PM. |
29-03-2013, 11:33 PM | #13 |
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Re: इधर-उधर से
मित्रो, अंग्रेजी में कुछेक शब्द इस प्रकार के होते हैं जिन्हें हम किसी भी ओर से पढ़ें उनके स्पेलिंग और उच्चारण एक ही होता है. ऐसे शब्द को “palindrome” कहते हैं. उदाहरण के लिए कुछ शब्द इस प्रकार हैं: rotator dad redivider इस परिभाषा के अनुसार “malayalam” भी एक palindrome है. हिंदी में भी इसी प्रकार के कुछ शब्द होते हैं. मुझे छुटपन की बात याद आती है. हम बच्चे आपस में हिंदी शब्दों का एक खेल खेलते थे जिसमे एक बच्चा दूसरे बच्चे से वह शब्द बताने का अनुरोध करता था जो शुरू से अंत तक और अंत से शुरू तक एक जैसे अक्षरों और एक से उच्चारण वाला होता था. प्रश्न करने वाला बच्चा पूछता था, “तीन अक्षर का मेरा नाम, उल्टा सीधा एक समान, आता हू खाने के काम. बोलो क्या?” उत्तर मिलता था - “डालडा” इस प्रकार के और भी शब्द हम ढूंढ सकते हैं जो तीन या तीन से अधिक अक्षरों के हैं और जो उलटे-सीधे एक समान पढ़े और उच्चारित किये जाते हैं. |
30-03-2013, 12:16 AM | #14 |
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Re: इधर-उधर से
मित्रो, अंग्रेजी के महान कवि पी.बी.शैली की जानी मानी दो कविताओं से निम्नलिखित पंक्तियाँ ली गई हैं. इनकी विशेषता यह है कि इन्हें अक्सर मिसाल के तौर पर प्रयुक्त किया जाता है जैसे कई शे’र और दोहों को हम ‘मिसाली’ कहते हैं यानि मिसाल देने योग्य और उन्हें उपयुक्त समय पर इस्तेमाल करते हैं.
We look before and after and pine for what is not, Our sweetest songs are those that tell of saddest thought. (From To A skylark by P.B.Shelley) हम समय की रेत पर चल, उसे ढूंढते जो है नहीं, पीड़ा से जो गीत उगा वो सबसे मादक और हसीं. The trumpet of prophecy, O Wind, If winter comes, can spring be far behind. (From Ode to the West Wind by P.B.Shelley) पछुआ पवन उद्घोषणा करती है सुन, क्या सार है, शिशिर के आगमन के साथ ही मधुमास भी तैयार है. Last edited by rajnish manga; 03-04-2013 at 12:35 PM. |
30-03-2013, 11:31 PM | #15 |
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Re: इधर-उधर से
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30-03-2013, 11:40 PM | #16 |
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Re: इधर-उधर से
शनिवार / 30 नवम्बर 1996 की डायरी का एक अंश: Last edited by rajnish manga; 30-03-2013 at 11:43 PM. |
31-03-2013, 12:08 AM | #17 |
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Re: इधर-उधर से
राजा भोज और चार चोर
एक बार रात के समय चार चोर धारा नगरी में चोरी करने निकले. उन दिनों राजा भोज भी कभी कभी भेष बदल कर अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए महल से बाहर निकलते थे. उस रात राजा भोज जब घूम रहा था तो उसकी मुलाक़ात इन चारों चोरों से हो गई. चोरों ने भेष बदले राजा से पूछा कि तू कौन है ? राजा ने कहा जो तुम हो वही मैं भी हूँ. राजा समझ गया कि ये चोर हैं. सो उसने उन चोरों से कहा,”यह भी खूब रही. भगवान् संयोग मिलाता है तो यूं मिलाता है.मैं भी चोर हूँ. आज रात को हम पाँचों मिल कर चोरी करते हैं और जो माल मिलेगा उसे पांच जगह बराबर बराबर बाँट लेंगे. चोरों ने कहा, ”तुममे क्या गुण है ? हम तुम्हें साथ क्यों ले जाएँ और तुम्हें क्यों हिस्सा दें?” राजा ने कहा, ”पहले तुम बताओ कि तुममे क्या क्या गुण हैं, फिर मैं अपना गुण बताऊंगा?” उनमें से एक चोर ने कहा,”मैं आँख बंद करके बता सकता हूँ कि धन कहां पड़ा है.” दूसरे ने कहा, ”मुझे देखते ही सब पहरेदारों को नींद आ जाती है.” तीसरे ने कहा, ”मैं जिस ताले को देख लेता हूँ वह खुद-ब-खुद खुल जाता है.” चौथे ने कहा, ”मैं जिस व्यक्ति को एक बार देख लूँ, उसे मैं अँधेरे में भी पहचान सकता हूँ.” इस पर राजा ने कहा, ”फिर तो हमें धन मिलने मैं कोई अड़चन नहीं होगी.” चोरों ने कहा, “सो तो ठीक है, लेकिन तुम भी तो अपना गुण बताओ,जिसके बल पर तुम हमसे अपना हिस्सा मांग रहे हो.” राजा बोला, ”न्यायाधीश के सामने मैं जा कर अगर खड़ा हो जाऊं तो उसकी मति फिर जाती है और वह अपनी सुनाई हुयी फांसी की सजा भी रद्द कर देगा.” चोरों ने कहा, “तब तो ठीक है, अब पकडे जाने पर सजा का भय भी नहीं रहेगा.” पाँचों निकले चोरी करने के लिए. पहले चोर ने आँखें बंद कर के बताया कि राजा के तहखाने में फलां जगह माल रखा है. पहले वहीँ चला जाए. पाँचों चले राजा के तहखाने में चोरी करने. वहां संगीनों का पहरा था. दूसरा चोर आगे बढ़ा तो पहरेदार अपने आप गहरी निद्रा में चले गए. अब तीसरा चोर आगे बढ़ा, तो जितनी भी तिजोरियां वहाँ रखी थीं, उन सबके ताले अपने आप खुल गए. चोरों ने खूब धन बटोरा और गठरियों में बाँध कर बाहर निकल आये. दूर जंगल में लाकर सारा धन एक गहरा गड्ढा खोद कर गाड़ दिया और तय किया कि कल इसे आपस में बाँट लेंगे. चारों चोर अपने अपने घर चले गए. राजा भी अपने महल में आकर सो गया. प्रातः होते ही हल्ला मच गया कि तहख़ाना टूट गया है और बहुत सा धन चोरी चला गया है.पहरेदारों को बुलाया गया. पूछने पर उन्होंने कहा, “महाराज, हमें तो कुछ पता नहीं कि यह चोरी कब और कैसे हुई? दोषी हम जरूर हैं और इसके लिए उचट सजा पाने के लिए हम इंकार नहीं करते, लेकिन सही बात तो यह है कि हम सारे लोगों को एक साथ ही ऐसी गहरी निद्रा आ गयी जैसे किसी ने जादू कर दिया हो.” विशेषज्ञों ने बताया कि ताले इतने मजबूत हैं और इतनी कारीगरी से बनाए गए हैं कि न तो ये सहज ही तोड़े जा सकते हैं, न इन्हें खोलने के लिए दूसरी चाबी ही बनाई जा सकती है. तब सवाल उठता है कि यह काण्ड हो कैसे गया. राजा ने कहा, “जो हुआ सो हुआ, किन्तु ऐसा लगता है कि कोई दैवी चमत्कार या देवी घटना हुयी है, लेकिन फिर भी इन चोरों का पता लगाने के लिए कोशिश तो होनी ही चाहिए. चारो तरफ आदमी दौड़ाए गए. संयोग की बात कि चारों चोर एक ही जगह पकड़ में आ गए. वे न्यायाधीश के सामने पेश किये गए और न्यायाधीश ने उन्हें सूली पर चढाने का हुक्म दिया. चोरों को सूली पर लटकाने के लिए जब ले जाया जाने वाला था, तो राजा भोज भी न्यायाधीश के बगल में आ कर बैठ गया. राजा को देखते ही चौथा चोर जोर से चिल्लाया, “अरे तुम हो! अच्छी बात है – हम चारों आदमीयों ने तो अपने करतब, अपनी कला तुम्हें दिखा दी, अब तुम इस तरह पत्थर की मूरत बने क्या देख रहे हो? तुम भी अपना करतब दिखाओ – फिर किस दिन काम आयेगी दोस्ती तेरी.” सुन कर राजा हंसा और न्यायाधीश से कह कर उनकी सूली की सजा रद्द करवा दी. चोरों को अपने पास बैठाया और उनसे कहा कि तुम जैसे गुणी आदमियों को चोरी जैसा नीच धंधा कभी नहीं करना चाहिए. बल्कि सुसंस्कृत नागरिक की तरह जीवन बिताना चाहिए. तुम लोग आज से मेरे पास रहो.” चोरों ने उस दिन से चोरी करना छोड़ दिया और वे राजा के पास सम्मानपूर्वक रहने लगे. ***** Last edited by rajnish manga; 31-03-2013 at 09:07 PM. |
31-03-2013, 01:35 AM | #18 | |
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Re: इधर-उधर से
Quote:
ढोल के भीतर पोल हर चमकती हुयी वस्तु हीरा नहीं होती है .
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
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31-03-2013, 11:12 PM | #19 | |
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Re: इधर-उधर से
दूरतः पर्वताः रम्याः
(पर्वत दूर से बड़े रमणीक दिखाई देते हैं) Quote:
जय जी, सूत्र भ्रमण करने और मूल्य-सामग्री-संवर्धन करने के लिए आपका आभारी हूँ. निश्चय ही, आपके द्वारा सुझाए गए तीनों मुहावरे उपरोक्त सूक्ति के बहुत नज़दीक हैं. |
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01-04-2013, 12:08 AM | #20 |
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Re: इधर-उधर से
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