My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > New India > Knowledge Zone
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 08-01-2011, 09:48 PM   #11
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: ##### विश्व प्रसिद्ध हस्तियाँ #####

Quote:
Originally Posted by pankaj bedrdi View Post
क्या मस्त जनकारी है teji je
Quote:
Originally Posted by khalid1741 View Post
लाजवाब सुत्र बेहतरीन जानकारी
आपको ++

थैंक्स दोस्तों. आप लोग भी इसमें contribute करो.
teji is offline   Reply With Quote
Old 08-01-2011, 09:53 PM   #12
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: ##### विश्व प्रसिद्ध हस्तियाँ #####

नास्त्रेदमस


नास्त्रेदमस फ्रांस के एक १६वीं (१५०३-१५६६) सदी के भविष्यवक्ता थे। नास्त्रेदमस केवल भविष्यवक्ता ही नही, डॉक्टर और शिक्षक भी थे। ये प्लेग जैसी बिमारियों का इलाज करते थे। इन्होने ने अपनी कविताओ के द्वारा भविष्य मे होने वाली घटनाओ का वर्णन किया था।

भविष्य के गर्भ मे छिपी बातों को हजारों साल पहले घोषणा करने वाले मशहूर भविष्यवक्ता नास्त्रेदमस का जन्म १४ दिसंबर १५०३ को फ्रांस के एक छोटे से गांव सेंट रेमी मे हुआ। उनका नाम मिशेल दि नास्त्रेदमस था बचपन से ही उनकी अध्ययन मे खास दिलचस्पि रही और उन्होनें लैटिन, यूनानी और हीब्रू भाषाओं के अलावा गणित, शरीर विज्ञान एवं ज्योतिष शास्त्र जैसे गूढ विषयों पर विशेष महारत हासिल कर ली। नास्त्रेदमस ने किशोरावस्था से ही भविष्यवाणियां करना शुरू कर दी थी। ज्योतिष मे उनकी बढती दिलचस्पी ने माता-पिता को चिंता मे डाल दिया क्योंकि उस समय कट्टरपंथी ईसाई इस विद्या को अच्छी नजर से नही देखते थे। ज्योतिष से उनका ध्यान हटाने के लिए उन्हे चिकित्सा विज्ञान पढने मांट पेलियर भेज दिया गया जिसके बाद तीन वर्ष की पढाई पूरी कर नास्त्रेदमस चिकित्सक बन गए।

२३ अक्टूबर १५२९ को उन्होने मांट पोलियर से ही डॉक्टरेट की उपाधि ली और उसी विश्वविद्यालय मे शिक्षक बन गए। पहली पत्नी के देहांत के बाद १५४७ मे यूरोप जाकर उन्होने ऐन से दूसरी शादी कर ली। इस दौरान उन्होनें भविष्यवक्ता के रूप मे खास नाम कमाया। एक घटना तो ऐसी थी जिससे पूरे यूरोप महाद्वीप मे फैल गई। एक बार वह अपने मित्र के साथ इटली की सडकों पर टहल रहे थे, उन्होनें भीड में एक युवक को देखा और जब वह युवक पास आया तो उसे आदर से सिर झुकाकर नमस्कार किया। मित्र ने आश्चर्यचकित होते हुए इसका कारण पुछा तो उन्होने कहा कि यह व्यक्ति आगे जाकर पोप का आसन ग्रहण करेगा। वास्तव मे वह व्यक्ति फेलिस पेरेती था जिसने १५८५ मे पोप चुना गया।

नास्त्रेदमस की भविष्यवाणियां की ख्याति सुन फ्रांस की महारानी कैथरीन ने अपने बच्चों का भविष्य जानने की इच्छा जाहिर की। नास्त्रेदमस अपनी इच्छा से यह जान चुके थे कि महारानी के दोनो बच्चे अल्पायु मे ही पुरे हो जाएंगे, लेकिन सच कहने की हिम्मत नही हो पायी और उन्होने अपनी बात को प्रतीकात्मक छंदो मे पेश किया। इसक प्रकार वह अपनी बात भी कह गए और महारानी के मन को कोई चोट भी नहीं पहुंची। तभी से नास्त्रेदमस ने यह तय कर लिया कि वे अपनी भविष्यवाणीयां को इसी तरह छंदो मे ही व्यक्त करेंगें।

१५५० के बाद नास्त्रेदमस ने चिकित्सक के पेशे को छोड अपना पूरा ध्यान ज्योतिष विद्या की साधना पर लगा दिया। उसी साल से अन्होंने अपना वार्षिक पंचाग भी निकालना शुरू कर दिया। उसमें ग्रहों की स्थिति, मौसम और फसलों आदि के बारे मे पूर्वानुमान होते थे। उनमें से ज्यादातर सत्य सावित हुई। नास्त्रेदमस ज्योतिष के साथ ही जादू से जुडी किताबों मे घंटो डूबे रहते थे। नास्त्रेदमस ने १५५५ में भविष्यवाणियों से संबंधित अपने पहले ग्रंथ सेंचुरी के प्रथम भाग का लेखन पूरा किया, जो सबसे पहले फ्रेंच और बाद मे अंग्रेजी, जर्मन, इतालवी, रोमन, ग्रीक भाषाओं मे प्रकाशित हुआ। इस पुस्तक ने फ्रांस मे इतना तहलका मचाया कि यह उस समय महंगी होने के बाद भी हाथों-हाथ विक गई। इस किताब के कई छंदो मे प्रथम विश्व युद्ध, नेपोलियन, हिटलर और कैनेडी आदि से संबंद्ध घटनाएं स्पष्ट रूप से देची जा सकती है।व्याख्याकारों ने नास्त्रेदमस के अनेक छंदो मे तीसरे विश्वयुद्ध का पूर्वानुमान और दुनिया के विनाश के संकेत को भी समझ लेने मे सफलता प्राप्त कर ली।

नास्त्रेदमस के जीवन के अंतिम साल बहुत कष्ट से गुजरे। फ्रांस का न्याय विभाग उनके विरूद्ध यह जांच कर रहा था कि क्या वह वास्ताव में जादू-टोने का सहारा लेते थे। यदि यह आरोप सिद्ध हो जाता, तो वे दंड के अधिकारी हो जाते। लेकिन जांच का निष्कर्ष यह निकला कि वेकोई जादूगर नही बल्कि ज्योतिष विद्या में पारंगत है। उन्हीं दिनों जलोदर रोग से ग्रस्त हो गए। शरीर मे एक फोडा हो गया जो लाख उपाचार के बाद भी ठीक नही हो पाया। उन्हे अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हो गया था, इसलिए उन्होने १७ जून १५६६ को अपनी वसीयत तैयार करवाई। एक जुलाई को पादरी को बुलाकर अपने अंतिम संस्कार के निर्देश दिए। २ जूलाई १५६६ को इस महान भविष्यवक्ता का निधन हो गया। अपनी मृत्यु की तिथि और समय की भविष्यवाणी वे पहले ही कर चूके थे।

नास्त्रेदमस ने अपने संबंध मे जो कुछ गिनी-चुनी भविष्यवाणियां की थी, उनमें से एक यह भी थी कि उनकी मौत के २२५ साल बाद कुद समाजविरोधी तत्व उनकी कब्र खोदेंगे और उनके अवशेषों को निकालने का प्रयास करेंगे लेकिन तुरंत ही उनकी मौत हो जाएगी। वास्तव मे ऐसी ही हुआ। फ्रांसिसी क्रांति के बाद १७९१ में तीन लोगों ने नास्त्रेदमस की कब्र को खोदा, जिनकी तुरंत मौत हो गयी।
Attached Images
This post has an attachment which you could see if you were registered. Registering is quick and easy
teji is offline   Reply With Quote
Old 08-01-2011, 10:06 PM   #13
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: ##### विश्व प्रसिद्ध हस्तियाँ #####

क्लियोपाट्रा ७


क्लियोपाट्रा (January 69 BC–November 30, 30 BC) पुरातन ईजिप्त की एक ग्रीक वंश की रानी थी। क्लियोपेट्रा, मिस्र की टालमी वंश की यवन रानियों का सामान्य प्रचलित नाम। मूलत: यह सिल्युक वंशी अंतियोख महान की पुत्री टालमी (पंचम) की पत्नी का नाम था। किंतु इस नाम की ख्याति ११वें तालेमी की पुत्री ओलीतिज़ के कारण है। उसका जन्म लगभग ६९ ई. में हुआ था। उससे पूर्व इस वंश में इस नाम की छह रानियाँ हो चुकी थीं। इस कारण उसे क्लियोपेट्रा (सप्तम) कहते हैं।

जब क्लियोपट्रा १७ वर्ष की थी तभी उसके पिता की मृत्यु हो गई। पिता की वसीयत के अनुसार उसे तथा उसके छोटे तोलेमी दियोनिसस को संयुक्त रूप से राज्य प्राप्त हुआ और वह मिस्री प्रथा के अनुसार अपने इस भाई की पत्नी होने वाली थी। किंतु राज्याधिकार के लिये कश्मकश के परिणामस्वरूप उसे राज्य से हाथ धोकर सीरिया भाग जाना पड़ा। फिर भी उसने साहस नहीं त्यागा। उसी समय जूलियस सीज़र पोंपे का पीछा करता हुआ मिस्र आया। वहाँ वह क्लियोपेट्रा पर आसक्त हो गया और उसकी ओर से युद्ध करने को तैयार हो गया।

फलस्वरूप तोलेमी मारा गया और क्लियोपेट्रा मिस्र के राजसिंहासन पर बैठी। मिस्र की प्राचीन प्रथा के अनुसार वह अपने एक अन्य छोटे भाई के साथ मिलकर राज करने लगी। किंतु शीघ्र ही उसने अपने इस छोटे भाई को विष दे दिया और रोम जाकर जूलियस सीज़र की रखेल के रूप में रहने लगी। उससे उसके एक पुत्र भी हुआ किंतु रोमवालों को यह संबंध किसी प्रकार न भाया। अत: सीज़र की हत्या (४४ ई. पूर्व) कर दी गई। तब वह मिस्र वापस चली आई।

४१ ई. पू. मार्क अंतोनी भी क्लियोपेट्रा की सुंदरता का शिकार हुआ। दोनों ने शीत ऋतु एक साथ सिकंदरिया में व्यतीत की। रोमनों ने उनका विरोध किया। ओक्तावियन (ओगुस्तस) ने उसपर आक्रमण कर २ सितंबर ३१ ई. पू. को आक्तियम के युद्ध में उसे पराजित कर दिया। क्लियोपेट्रा अपने ६० जहाजों के साथ युद्धस्थल से सिकंदरिया भाग आई।

अंतानी भी उससे आ मिला किंतु सफलता की आशा न देख ओक्तावियन के कहने पर अंतोनी की हत्या करने पर तैयार हो गई और अंतोनी को साथ साथ मरने के लिये फुसलाकर उस समाधि भवन में ले गई जिसे उसने बनवाया था। वहां अतानी ने इस भ्रम में कि क्लियोपेट्रा आत्महत्या कर चुकी है, अपने जीवन का अंत कर लिया। ओक्तावियन क्लियोपेट्रा के रूप जाल में न फँसा। जनश्रुति के अनुसार उसने उसकी एक डंकवाले जंतु के माध्यम से हत्या कर दी। इस प्रकार २९ अगस्त, ३० ई. पू. उसकी मृत्यु हुई और टालेमी वंश का अंत हो गया। मिस्र रोमनों के अधीन हो गया।

क्लियोपेट्रा का नाम आज तक प्रेम के संसार में उपाख्यान के रूप में प्रसिद्ध है। वह उतनी सुंदर न थी जितनी कि मेधाविनी। कहते हैं वह अनेक भाषाएँ बोल सकती थी और एक साथ अन्यवेशीय राजदूतों से एक ही समय उनकी विभिन्न भाषाओं में बात किया करती थी। उसकी चतुराई से एक के बाद एक अनेक रोमन जनरल उसके आश्रित और प्रियपात्र हुए। अंतोनी के साथ तो उसने विवाह कर उसके और अपने संयुक्त रूप के सिक्के भी ढलवाए। उससे उसके तीन संतानें हुई। धनी वह इतनी थी कि भारत के गरम मसाले, मलमल और मोती भरे जहाज सिकंदरिया के बंदर में खरीद लिया करती थी। अनेक कलाकारों ने क्लियोपेट्रा के रूप अनुकरण पर अपनी देवीमूर्तियाँ गढ़ीं। साहित्य में वह इतनी लोकप्रिय हुई कि अनेक भाषाओं के साहित्यकारों ने उसे अपनी कृतियों में नायिका बनाया। अंग्रेजी साहित्य में तीन नाटककारों- शेक्सपियर, ड्राइडन और बर्नाड शा- ने अपने नाटकों को उसके व्यक्तित्व से सँवारा है।
Attached Images
This post has an attachment which you could see if you were registered. Registering is quick and easy
teji is offline   Reply With Quote
Old 08-01-2011, 10:24 PM   #14
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: ##### विश्व प्रसिद्ध हस्तियाँ #####

मेरी क्युरी


मेरी क्युरी (७ नवंबर १८६७ - ४ जुलाई १९३४) विख्यात भौतिकविद और रसायनशास्त्री थी। मेरी ने रेडियम की खोज की थी। विज्ञान की दो शाखाओं (भौतिकी एवं रसायन विज्ञान) में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाली वह पहली वैज्ञानिक हैं। वैज्ञानिक मां की दोनों बेटियों ने भी नोबल पुरस्कार प्राप्त किया। बडी बेटी आइरीन को १९३५ में रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ तो छोटी बेटी ईव को १९६५ में शांति के लिए नोबेल पुरस्कार मिला।

मेरी का जन्म पोलैंड के वारसा नगर में हुआ था। महिला होने के कारण तत्कालीन वारसॉ में उन्हें सीमित शिक्षा की ही अनुमति थी। इसलिए उन्हें छुप-छुपाकर उच्च शिक्षा प्राप्त करनी पड़ी। बाद में बड़ी बहन की आर्थिक सहायता की बदौलत वह भौतिकी और गणित की पढ़ाई के लिए पेरिस आईं। उन्होंने फ़्रांस में डॉक्टरेट पूरा करने वाली पहली महिला होने का गौरव पाया। उन्हें पेरिस विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर बनने वाली पहली महिला होने का गौरव भी मिला। यहीं उनकी मुलाक़ात पियरे क्यूरी से हुई जो उनके पति बने। इस वैज्ञानिक दंपत्ति ने १८९८ में पोलोनियम की महत्त्वपूर्ण खोज की। कुछ ही महीने बाद उन्होंने रेडियम की खोज भी की। चिकित्सा विज्ञान और रोगों के उपचार में यह एक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी खोज साबित हुई।

१९०३ में मेरी क्यूरी ने पी-एच.डी. पूरी कर ली। इसी वर्ष इस दंपत्ति को रेडियोएक्टिविटी की खोज के लिए भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला। १९११ में उन्हें रसायन विज्ञान के क्षेत्र में रेडियम के शुद्धीकरण (आइसोलेशन ऑफ प्योर रेडियम) के लिए रसायनशास्त्र का नोबेल पुरस्कार भी मिला। विज्ञान की दो शाखाओं में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाली वह पहली वैज्ञानिक हैं। वैज्ञानिक मां की दोनों बेटियों ने भी नोबल पुरस्कार प्राप्त किया। बडी बेटी आइरीन को १९३५ में रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ तो छोटी बेटी ईव को १९६५ में शांति के लिए नोबेल पुरस्कार मिला।
Attached Images
This post has an attachment which you could see if you were registered. Registering is quick and easy
teji is offline   Reply With Quote
Old 08-01-2011, 11:17 PM   #15
khalid
Exclusive Member
 
khalid's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: सीमाँचल
Posts: 5,094
Rep Power: 36
khalid has a brilliant futurekhalid has a brilliant futurekhalid has a brilliant futurekhalid has a brilliant futurekhalid has a brilliant futurekhalid has a brilliant futurekhalid has a brilliant futurekhalid has a brilliant futurekhalid has a brilliant futurekhalid has a brilliant futurekhalid has a brilliant future
Send a message via Yahoo to khalid
Default Re: ##### विश्व प्रसिद्ध हस्तियाँ #####

मैँ सझता हुँ इस से बेहतर सुत्र कोई हो नहीँ सकता है आपको कोटी कोटी धन्यवाद
__________________
दोस्ती करना तो ऐसे करना
जैसे इबादत करना
वर्ना बेकार हैँ रिश्तोँ का तिजारत करना
khalid is offline   Reply With Quote
Old 09-01-2011, 12:05 AM   #16
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: ##### विश्व प्रसिद्ध हस्तियाँ #####

फिदेल कास्ट्रो

दिदेल कास्त्रो क्यूबा के राजनेता हैं। वे क्यूबा की क्रान्ति के प्रमुख नेता हैं जो सन् १९५९ की फरवरी से १९७६ के दिसम्बर तक क्यूबा के प्रधानमंत्री रहे और उसके बाद क्यूबा के राष्ट्रपति बने। २००८ के फरवरी में स्वेच्छा से उन्होने पदत्याग कर दिया। सम्प्रति वे क्यूबा की कम्युनिस्ट पार्टी के प्रथम सचिव (सेक्रेटरी) हैं। फिदेल कास्त्रो को अमरीका विरोधी रुख़ के लिए दुनिया भर में जाना जाता है।

फिदेल कास्त्रो का जन्म 1926 में क्यूबा के फिदेल अलेजांद्रो कास्त्रो परिवार में हुआ था जो काफ़ी समृद्ध माना जाता था. फिदेल कास्त्रो ने हवाना विश्वविद्यालय से क़ानून की डिग्री ली लेकिन वह अपने ख़ुद के ख़ुशहाल परिवार और बहुत से ग़रीबों के बीच के अंतर को देखकर बहुत घबराए और इस परेशानी की वजह से वह मार्क्सवादी-लेनिनवादी क्रांतिकारी बन गए.
1953 में उन्होंने क्यूबा के राष्ट्रपति फुलगेंसियो बतिस्ता की सत्ता के ख़िलाफ़ हथियार उठा लिए. जनक्रांति शुरू करने के इरादे से 26 जुलाई को फिदेल कास्त्रो ने अपने 100 साथियों के साथ सैंतियागो डी क्यूबा में सैनिक बैरक पर हमला किया लेकिन नाकाम रहे.

इस हमले के बाद फिदेल कास्त्रो और उनके भाई राउल बच तो गए लेकिन उन्हें जेल में डाल दिया गया. दो साल बाद उन्हें माफ़ी देते हुए छोड़ दिया गया लेकिन फिदेल कास्त्रो ने बतिस्ता शासन के ख़िलाफ़ अभियान बंद नहीं किया. यह अभियान उन्होंने मैक्सिको में निर्वासित जीवन जीते हुए चलाया. वहाँ उन्होंने एक छापामार संगठन बनाया जिसे "26 आंदोलन" का नाम दिया गया.

फिदेल कास्त्रो के क्रांतिकारी आदर्शों को क्यूबा में काफ़ी समर्थन मिला और 1959 में उनके संगठन ने बतिस्ता शासन का तख़्ता पलट दिया. बतिस्ता के शासन को भ्रष्टाचार, असमानता और अन्य तरह की परेशानियों का प्रतीक माना जाने लगा था.
क्यूबा के नए शासकों में अर्जेंटीना के क्रांतिकारी चे ग्वारा भी शामिल थे जिन्होंने आम लोगों को ज़मीन देने और ग़रीबों के अधिकारों की हिफ़ाज़त करने का वादा किया.

फिदेल कास्त्रो ने ज़ोर दिया कि उनकी विचारधारा मुख्य रूप से क्यूबाई है, “एक सुनियोजित अर्थव्यवस्था में कोई साम्यवाद या मार्क्सवाद नहीं है बल्कि प्रतिनिधिक लोकतंत्र और सामाजिक न्याय असली तत्व हैं.”

फिदेल कास्त्रो पर अमरीकी राष्ट्रपति ड्वाइट आइज़नहावर ने लगाम कसने की कोशिश की और उन्होंने दावा किया कि उन्हें सोवियत संघ और उसके नेता निकिता ख़्रुश्चेव की बाहों में धकेला गया. उस समय क्यूबा शीतयुद्ध का मैदान बन गया. अप्रैल 1961 में अमरीका ने फिदेल कास्त्रो का तख़्ता पलट करने की कोशिश की और ऐसा उसने निर्वासन में जीवन जीने वाले क्यूबाइयों की एक सेना बनाकर किया. लेकिन क्यूबाई सैनिकों ने आक्रमण का मज़बूत जवाब दिया जिसमें बहुत से लोग मारे गए और लगभग एक हज़ार को पकड़ लिया गया.

एक साल बाद अमरीका के एक जासूसी विमान ने पता लगाया कि सोवियत संघ से कुछ मिसाइलें क्यूबा की तरफ़ भेजी जा रही हैं. बस वहीं पर ऐसा लगा कि दुनिया मानो परमाणु युद्ध के कगार पर पहुँच गई थी. दोनों महाशक्तियाँ एक दूसरे के सामने तनी हुई खड़ी थीं लेकिन सोवियत नेता ने आख़िर रास्ता दिया. सोवियत संघ ने क्यूबा से अपने मिसाइल वापिस हटा लिए और इसके बदले अमरीका ने गुप्त रूप से तुर्की से अपने हथियार हटा लिए.
अलबत्ता फिदेल कास्त्रो अमरीका के दुश्मन नंबर एक बने रहे. एक क्यूबाई मंत्री का कहना है कि अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए ने कम से कम 600 बार फिदेल कास्त्रो को मारने की कोशिश की.

फिदेल कास्त्रो को मारने का एक तरीका यह भी सोचा गया था कि एक सिगार में विस्फोटक भरकर उन्हें पीने के लिए दिया जाए. ग़ौरतलब है कि फिदेल कास्त्रो सिगार पीने के शौकीन हैं.
फिदेल कास्त्रो के ख़िलाफ़ और बहुत से तरीकों की साज़िश रची गई जो बहुत ख़तरनाक और दिलचस्प थीं. उनमें से एक यह भी थी कि उनकी दाढ़ी पकड़कर खींच दी जाए.

सोवियत संघ ने क्यूबा में बेतहाशा धन पहुँचाया. उसने क्यूबा में पैदा होने वाली चीनी बड़े पैमाने पर ख़रीदी और बदले में भरे हुए जहाज़ क्यूबा के बंदरगाहों पर पहुँचाए. उनमें ऐसा सामान भरा होता था जो अमरीकी प्रतिबंधों का मुक़ाबला करने में मददगार साबित होता था.
राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो ने सोवियत संघ पर इतनी निर्भरता के बावजूद क्यूबा को गुट निरपेक्ष आंदोलन में काफ़ी आगे रखा. लेकिन 1980 में सोवियत नेता मिखाइल गोर्बोच्योफ़ का युग राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो की क्रांति के लिए बहुत ख़तरनाक साबित हुआ. सोवियत संघ ने क्यूबा की अर्थव्यवस्था में अपने सहयोग से हाथ खींच लिया और उसकी चीनी ख़रीदनी बंद कर दी.
सोवियत संघ के इस बहिष्कार और अमरीकी प्रतिबंधों के बावजूद क्यूबा ने हिम्मत नहीं हारी. हालाँकि खाद्य सामग्री के लिए लोगों की लंबी लाइनें बढ़ने के साथ-साथ उनमें नाराज़गी बढ़ती गई.

1990 के दशक के मध्य तक आते-आते बहुत से क्यूबाई बहुत नाराज़ हो गए थे. हज़ारों ने समुद्र से होकर फ्लोरिडा की तरफ़ भागने का रास्ता अपनाया, उनमें से बहुत से डूब भी गए.
यह एक तरह से फिदेल कास्त्रो के ख़िलाफ़ अविश्वास व्यक्त करने जैसा था. यहाँ तक कि फिदेल कास्त्रो की बेटी एलिना फर्नांडीज़ ने भी बग़ावत का रास्ता अपनाया और अमरीका के मियामी में पनाह ली.

फिदेल कास्त्रो ने अमरीकी बहिष्कार को एक बहाने के तौर पर इस्तेमाल करके देश में लोकतंत्र बहाल नहीं होने दिया है और सिर्फ़ एक दलीय शासन चलाते रहे हैं. लेकिन उनके शासन काल में क्यूबा में बहुत सी सुविधाएँ हैं. सबके लिए मुफ़्त चिकित्सा सुविधाएँ हैं, 98 प्रतिशत साक्षरता है और क्यूबा में शिशु मृत्यु दर पश्चिमी देशों के मुक़ाबले ख़राब नहीं है.
फिदेल कास्त्रो जब-तब अमरीका को भड़काकर कूटनीतिक लड़ाई में शामिल हो जाते हैं. उन्होंने वेनेज़ुएला को भी अपने पाले में मिला रखा है जहाँ उनके घनिष्ठ मित्र ह्यूगो शावेज़ शासन करते हैं और वह भी अमरीका-विरोधी रुख़ रखते हैं.

क्यूबा में बहुत से लोग जहाँ एक तरफ़ फिदेल कास्त्रो को नापसंद करते हैं, वहीं बहुत से ऐसे भी हैं जो उनसे सच्चा लगाव रखते हैं. लगभग आधी सदी के शासन के बाद भी फिदेल कास्त्रो क्यूबा में एक करिश्माई व्यक्तित्व हैं.
Attached Images
This post has an attachment which you could see if you were registered. Registering is quick and easy
teji is offline   Reply With Quote
Old 09-01-2011, 12:11 AM   #17
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: ##### विश्व प्रसिद्ध हस्तियाँ #####

चाणक्य


चाणक्य कौटिल्य नाम से भी विख्यात हैं। वे महान् सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। उन्होने नदवंश का नाश करके चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया। वे राजनीति और कूटनीति के साक्षात् मूर्ति थे। उनका अर्थशास्त्र राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि का महान ग्रंन्थ है। अर्थशास्त्र मौर्यकालीन भारतीय समाज का दर्पण माना जाता है। कहते हैं कि चाणक्य राजसी ठाट-बाट से दूर एक छोटी सी कुटिया में रहते थे।

उनके नाम पर एक धारावाहिक भा बना था जो दूरदर्शन पर १९९० के दशक में दिखाया जाता था ।

चाणक्य या कहें कि विष्णुगुप्त अथवा कौटिल्य, ने तक्षशिला विश्वविद्यालय में वेदों का गहन अध्ययन किया. क्या यह गौरव का विषय नहीं कि दुनियाँ के सबसे पुराने विश्वविद्यालय, तक्षशिला और नालन्दा भारतीय उपमहाद्वीप में थे. और हाँ, ध्यान देने योग्य बात यह है कि हम ५०० से ४०० वर्ष ईसा पूर्व की बात कर रहे हैं. तक्षशिला एक सुस्थापित शिक्षण संस्थान था और माना जाता है कि पाणिनी ने संस्कृत व्याकरण की रचना यहीं की थी. चाणक्य भी बाद में यहाँ नीतिशास्त्र के व्याख्याता हुए (कुशाग्र छात्र, है न!). ऐसा कहा जाता है कि वे व्यवहारिक उदाहरणों से पढ़ाते थे. यूनानी लोगों के तक्षशिला पर चढ़ाई करने कारण से वहाँ एक राजनैतिक उथल-पुथल मच गयी और चाणक्य को मगध में आकर बसना पड़ा. उन्हें नि:संदेह एक राजा के निर्माता के रूप में अधिक जाना जाता है. चंद्रगुप्त मौर्य विशेष रूप से उनकी सलाह मानते थे. शत्रुओं की कमज़ोरी को पहचाकर उसे अपने काम में लाने की विशिष्ट प्रतिभा के चलते चाणक्य हमेशा अपने शत्रुओं पर हावी रहे. उन्होंने तीन पुस्तकों की रचना की- ‘अर्थशास्त्र‘, ‘नीतिशास्त्र’ तथा ‘चाणक्य नीति’. ‘नीतिशास्त्र’ में भारतीय जीवन के तौर-तरीकों का विवरण है तो ‘चाणक्य नीति’ में उन विचारों का लेखा-जोखा है जिनमें चाणक्य विश्वास करते थे और जिनका वे पालन करते थे.

राष्ट्रीय नीतियों, रणनीतियों तथा विदेशी संबंधो पर लिखी गई ‘अर्थशास्त्र’ उनकी सर्वाधिक विख्यात पुस्तक है. प्रबंधन की दृष्टि से एक राजा तथा प्रशासन की भूमिका तथा कर्तव्यों को यह पुस्तक स्पष्ट करती है. यह पुस्तक एक राज्य के सफल संचालन से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालती है. उदाहरण के लिये यह न सिर्फ़ आपदाओं तथा अनाचारों से निपटने की राह बताती है बल्कि अनुशासन तथा नीति-निर्धारण के तरीकों का भी उल्लेख करती है. इसी विषय पर लिखी एक और पुस्तक है ‘द प्रिंस‘ जो कि मैकियावेली द्वारा रचित है, हालांकि विषय समान होते हुए भी यह पुस्तक चाणक्य के ‘अर्थशास्त्र’ से सर्वथा भिन्न है. मैकियावेली पन्द्रहवीं शताब्दी के इतालवी राजनैतिक दार्शनिक थे. अपनी सत्ता को का़यम रखने के लिये एक महत्वाकांक्षी उत्तराधिकारी को क्या नीतियाँ अपनानी चाहिये, उनकी किताब इसी विषय पर केंद्रित है. उनके विचार अतिवादी माने जाते हैं क्योंकि उनके मतानुसार तानाशाही राज्य में स्थिरता बनाये रखने का सर्वोत्कृष्ट मार्ग है. शक्ति तथा सत्ता प्राप्ति को उन्होंने नैतिकता से भी महत्वपूर्ण माना है. लगभग २००० वर्षों के अंतराल वाली इन दो कृतियों की तुलना करना बेहद रोचक है.

दुनियाँ मुख्यत: मैकियावेली को ही जानती है। भारतीय होने के नाते हम कम से कम इतना तो ही कर ही सकते है कि सर झुका कर उस महान शख्सियत को नमन करें जिसका नाम था - चाणक्य।
Attached Images
This post has an attachment which you could see if you were registered. Registering is quick and easy
teji is offline   Reply With Quote
Old 09-01-2011, 12:17 AM   #18
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: ##### विश्व प्रसिद्ध हस्तियाँ #####

फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल


फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल (१२ मई १८२०-१३ अगस्त १९१०) को आधुनिक नर्सिग आन्दोलन का जन्मदाता माना जाता है। दया व सेवा की प्रतिमूर्ति फ्लोरेंस नाइटिंगेल "द लेडी विद द लैंप" (दीपक वाली महिला) के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनका जन्म एक समृद्ध और उच्चवर्गीय ब्रिटिश परिवार में हुआ था। लेकिन उच्च कुल में जन्मी फ्लोरेंस ने सेवा का मार्ग चुना। १८४५ में परिवार के तमाम विरोधों व क्रोध के पश्चात भी उन्होंने अभावग्रस्त लोगों की सेवा का व्रत लिया। दिसंबर १८४४ में उन्होंने चिकित्सा सुविधाओं को सुधारने बनाने का कार्यक्रम आरंभ किया था। बाद में रोम के प्रखर राजनेता सिडनी हर्बर्ट से उनकी मित्रता हुई।

नर्सिग के अतिरिक्त लेखन और अनुप्रयुक्त सांख्यिकी पर उनका पूरा ध्यान रहा। फ्लोरेंस का सबसे महत्वपूर्ण योगदान क्रीमिया के युद्ध में रहा। अक्टूबर १८५४ में उन्होंने ३८ स्त्रियों का एक दल घायलों की सेवा के लिए तुर्की भेजा। इस समय किए गए उनके सेवा कार्यो के लिए ही उन्होंने लेडी विद द लैंप की उपाधि से सम्मानित किया गया। जब चिकित्सक चले जाते तब वह रात के गहन अंधेरे में मोमबत्ती जलाकर घायलों की सेवा के लिए उपस्थित हो जाती। लेकिन युद्ध में घायलों की सेवा सुश्रूषा के दौरान मिले गंभीर संक्रमण ने उन्हें जकड़ लिया था। १८५९ में फ्लोरेंस ने सेंट थॉमस अस्पताल में एक नाइटिंगेल प्रक्षिक्षण विद्यालय की स्थापना की। इसी बीच उन्होंने नोट्स ऑन नर्सिग पुस्तक लिखी। जीवन का बाकी समय उन्होंने नर्सिग के कार्य को बढ़ाने व इसे आधुनिक रूप देने में बिताया। १८६९ में उन्हें महारानी विक्टोरिया ने रॉयल रेड क्रॉस से सम्मानित किया। ९० वर्ष की आयु में १३ अगस्त, १९१० को उनका निधन हो गया।

उनसे पहले कभी भी बीमार घायलो के उपचार पर ध्यान नहीं दिया जाता था किन्तु इस महिला ने तस्वीर को सदा के लिये बदल दिया। उन्होंने क्रीमिया के युद्ध के समय घायल सैनिको की बहुत सेवा की थी। वे रात-रात भर जाग कर एक लालटेन के सहारे इन घायलों की सेवा करती रही इस लिए उन्हें लेडी विथ दि लैंप का नाम मिला था उनकी प्रेरणा से ही नर्सिंग क्षेत्र मे महिलाओं को आने की प्रेरणा मिली थी।
Attached Images
This post has an attachment which you could see if you were registered. Registering is quick and easy
teji is offline   Reply With Quote
Old 09-01-2011, 12:31 AM   #19
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: ##### विश्व प्रसिद्ध हस्तियाँ #####

हरगोविन्द खुराना


हरगोविंद खुराना (जन्म: ९ जनवरी १९२२) नोबल पुरस्कार सम्मानित भारतीय वैज्ञानिक हैं। आपका जन्म अविभाजित भारतवर्ष के रायपुर (जिला मुल्तान, पंजाब) नामक कस्बे में हुआ था। पटवारी पिता के चार पुत्रों में ये सबसे छोटे थे। प्रतिभावान् विद्यार्थी होने के कारण स्कूल तथा कालेज में इन्हें छात्रवृत्तियाँ मिलीं। पंजाब विश्वविद्यालय से सन् 1943 में बी. एस-सी. (आनर्स) तथा सन् 1945 में एम. एस-सी. (ऑनर्स) परीक्षाओं में ये उत्तीर्ण हुए तथा भारत सरकार से छात्रवृत्ति पाकर इंग्लैंड गए। यहाँ लिवरपूल विश्वविद्यालय में प्रोफेसर ए. रॉबर्टसन् के अधीन अनुसंधान कर इन्होंने डाक्टरैट की उपाधि प्राप्त की। इन्हें फिर भारत सरकार से शोधवृत्ति मिलीं और ये जूरिख (स्विट्सरलैंड) के फेडरल इंस्टिटयूट ऑव टेक्नॉलोजी में प्रोफेसर वी. प्रेलॉग के साथ अन्वेषण में प्रवृत्त हुए।

भारत में वापस आकर डाक्टर खुराना को अपने योग्य कोई काम न मिला। हारकर इंग्लैंड चले गए, जहाँ केंब्रिज विश्वविद्यालय में सदस्यता तथा लार्ड टाड के साथ कार्य करने का अवसर मिला1 सन् 1952 में आप वैकवर (कैनाडा) की ब्रिटिश कोलंबिया अनुसंधान परिषद् के जैवरसायन विभाग के अध्यक्ष नियुक्त हुए। सन् 1960 में इन्होंने संयुक्त राज्य अमरीका के विस्कान्सिन विश्वविद्यालय के इंस्टिट्यूट ऑव एन्ज़ाइम रिसर्च में प्रोफेसर का पद पाया और अब इसी संस्था के निदेशक है। यहाँ उन्होंने अमरीकी नागरिकता स्वीकार कर ली।

डाक्टर खुराना जीवकोशिकाओं के नाभिकों की रासायनिक संरचना के अध्ययन में लगे रहे हैं। नाभिकों के नाभिकीय अम्लों के संबंध में खोज दीर्घकाल से हो रही है, पर डाक्टर खुराना की विशेष पद्धतियों से वह संभव हुआ। इनके अध्ययन का विषय न्यूक्लिऔटिड नामक उपसमुच्चर्यों की अतयंत जटिल, मूल, रासायनिक संरचनाएँ हैं। डाक्टर खुराना इन समुच्चयों का योग कर महत्व के दो वर्गों के न्यूक्लिप्रोटिड इन्जाइम नामक यौगिकों को बनाने में सफल हो गए हैं।

नाभिकीय अम्ल सहस्रों एकल न्यूक्लिऔटिडों से बनते हैं। जैव कोशिकओं के आनुवंशिकीय गुण इन्हीं जटिल बहु न्यूक्लिऔटिडों की संरचना पर निर्भर रहते हैं। डॉ. खुराना ग्यारह न्यूक्लिऔटिडों का योग करने में सफल हो गए थे तथा अब वे ज्ञात शृंखलाबद्ध न्यूक्लिऔटिडोंवाले न्यूक्लीक अम्ल का प्रयोगशाला में संश्लेषण करने में सफल हो गए है। इस सफलता से ऐमिनो अम्लों की संरचना तथा आनुवंशिकीय गुणों का संबंध समझना संभव हो गया है और वैज्ञानिक अब आनुवंशिकीय रोगों का कारण और उनको दूर करने का उपाय ढूँढने में सफल हो सकेंगे।

डाक्टर खुराना की इस महत्वपूर्ण खोज के लिए उन्हें अन्य दो अमरीकी वैज्ञानिकों के साथ सन् 1968 का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। आपको इसके पूर्व सन् 1958 में कैनाडा के केमिकल इंस्टिटयूट से मर्क पुरस्कार मिला तथा इसी साल आप न्यूयार्क के राकफेलर इंस्ट्टियूट में वीक्षक (visiting) प्रोफेसर नियुक्त हुए। सन् 1959 में ये कैनाडा के केमिकल इंस्ट्टियूट के सदस्य निर्वाचित हुए तथा सन् 1967 में होनेवाली जैवरसायन की अंतरराष्ट्रीय परिषद् में आपने उद्घाटन भाषण दिया। डा. निरेनबर्ग के साथ आपको पचीस हजार डालर का लूशिया ग्रौट्ज हॉर्विट्ज पुरस्कार भी सन् 1968 में ही मिला है।
Attached Images
This post has an attachment which you could see if you were registered. Registering is quick and easy
teji is offline   Reply With Quote
Old 09-01-2011, 12:36 AM   #20
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: ##### विश्व प्रसिद्ध हस्तियाँ #####

मार्टिन लूथर किंग


डॉ. मार्टिन लूथर किंग, जूनियर ( 15 जनवरी, 1929 – 4 अप्रैल, 1968) अमेरिका के एक पादरी, आन्दोलनकारी एवं अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकारों के संघर्ष के प्रमुख नेता थे। उन्हें अमेरिका का गांधी भी कहा जाता है। उनके प्रयत्नों से अमेरिका में नागरिक अधिकारों के क्षेत्र में प्रगति हुई; इसलिये उन्हें आज मानव अधिकारों के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। दो चर्चों ने उनको सन्त के रूप में भी मान्यता प्रदान की है।

डॉ. मार्टिन लूथर किंग, जूनियरका का जन्म सन् 1929 में अट्लांटा, अमेरिका में हुआ था। डॉ. किंग ने संयुक्त राज्य अमेरिका में नीग्रो समुदाय के प्रति होने वाले भेदभाव के विरुद्ध सफल अहिंसात्मक आंदोलन का संचालन किया। सन् 1955 का वर्ष उनके जीवन का निर्णायक मोड़ था। इसी वर्ष कोरेटा से उनका विवाह हुआ, उनको अमेरिका के दक्षिणी प्रांत अल्बामा के मांटगोमरी शहर में डेक्सटर एवेन्यू बॅपटिस्ट चर्च में प्रवचन देने बुलाया गया और इसी वर्ष मॉटगोमरी की सार्वजनिक बसों में काले-गोरे के भेद के विरुद्ध एक महिला श्रीमती रोज पार्क्स ने गिरफ्तारी दी। इसके बाद ही डॉ. किंग ने प्रसिद्ध बस आंदोलन चलाया।

पूरे 381 दिनों तक चले इस सत्याग्रही आंदोलन के बाद अमेरिकी बसों में काले-गोरे यात्रियों के लिए अलग-अलग सीटें रखने का प्रावधान खत्म कर दिया गया। बाद में उन्होंने धार्मिक नेताओं की मदद से समान नागरिक कानून आंदोलन अमेरिका के उत्तरी भाग में भी फैलाया। उन्हें सन 1964 में विश्व शांति के लिए सबसे कम् उम्र मे नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया। कई अमेरिकी विश्वविद्यालयों ने उन्हें मानद उपाधियां दीं। धार्मिक व सामाजिक संस्थाओं ने उन्हें मेडल प्रदान किए। 'टाइम' पत्रिका ने उन्हें 1963 का 'मैन ऑफ द इयर' चुना। वे गांधीजी के अहिंसक आंदोलन से बेहद प्रभावित थे। गांधीजी के आदर्शों पर चलकर ही डॉ. किंग ने अमेरिका में इतना सफल आंदोलन चलाया, जिसे अधिकांश गोरों का भी समर्थन मिला।

सन् 1959 में उन्होंने भारत की यात्रा की। डॉ. किंग ने अखबारों में कई आलेख लिखे। 'स्ट्राइड टुवर्ड फ्रीडम' (1958) तथा 'व्हाय वी कैन नॉट वेट' (1964) उनकी लिखी दो पुस्तकें हैं। सन् 1957 में उन्होंने साउथ क्रिश्चियन लीडरशिप कॉन्फ्रेंस की स्थापना की। डॉ. किंग की प्रिय उक्ति थी- 'हम वह नहीं हैं, जो हमें होना चाहिए और हम वह नहीं हैं, जो होने वाले हैं, लेकिन खुदा का शुक्र है कि हम वह भी नहीं हैं, जो हम थे।' 4 अप्रैल, 1968 को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई।
Attached Images
This post has an attachment which you could see if you were registered. Registering is quick and easy
teji is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks

Tags
famous people, heroes, history, legends, villains, world famous people


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 07:46 AM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.