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Old 14-12-2012, 02:48 AM   #11
Dark Saint Alaick
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Default Re: टूट गए सितार के तार

सम्मान-पुरस्कार



(चित्र में देखिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ पंडितजी)
उन्हें विभिन्न देशों-विश्वविद्यालयों की ओर से करीब 14 बार मानद डॉक्ट्रेट उपाधियों और मैग्सेसे अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।
वर्ष 1982 में प्रदर्शित फिल्म ‘गांधी’ के लिए सर्वश्रेष्ठ मौलिक संगीत के लिए उन्हें संगीतकार जॉर्ज फेंटन के साथ संयुक्त रूप से आस्कर के लिए नामांकित किया गया था।
तीन बार के ग्रैमी पुरस्कार विजेता पं. रविशंकर वर्ष 2012 में भी 55वें ग्रैमी पुरस्कारों के लिए नामांकित हुए।
संगीत के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए पं. रविशंकर को वर्ष 1962 में संगीत नाटक अकादमी अवार्ड, 1967 में पद्म भूषण और 1999 में देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से विभूषित किया गया।
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Old 14-12-2012, 02:51 AM   #12
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Default Re: टूट गए सितार के तार

फिल्मों में भी योगदान



पं. रविशंकर ने अपने लम्बे संगीत जीवन में कई फिल्मों के लिए संगीत निर्देशन किया। इसमें प्रख्यात फिल्मकार सत्यजीत रे की फिल्में और गुलजार द्वारा निर्देशित ‘मीरा’ भी शामिल है।
उन्होंने ‘धरती के लाल’ और ‘नीचा नगर’ जैसी फिल्मों में भी संगीत दिया।
पं. रविशंकर ने सत्यजीत रे की ‘अपु’ शृंखला पर आधारित तीन बांग्ला फिल्मों ‘पथेर पांचाली’, ‘अपराजिता’ और ‘अपुर संसार’ के अलावा अमेरिकी फिल्म ‘चार्ली’ के लिए भी संगीत दिया।
पं. रविशंकर ने भारत के अलावा कनाडा, यूरोप तथा अमेरिका में नृत्य नाटकों और फिल्मों के लिए भी संगीत तैयार किया।
टीवी चैनल दूरदर्शन की सिग्नेचर धुन ‘सत्यम, शिवम, सुंदरम’ का संगीत तैयार करने में पं. रविशंकर की भी अहम भूमिका रही।
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Old 15-12-2012, 06:58 PM   #13
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Default Re: टूट गए सितार के तार

इस परम संगीतज्ञ को मेरी भाव भीनी श्रृद्धांजलि...!!
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Old 15-12-2012, 07:03 PM   #14
aksh
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Originally Posted by dark saint alaick View Post
दिया संगीत को नया आयाम



(चित्र में देखिए पंडितजी को हैरीसन दम्पती के साथ)
हर भारतीय शास्त्रीय वाद्य यंत्र की तरह सितार को भी शुरुआती दौर में उपेक्षा की नजर देखा जाता था। यह इतना लोकप्रिया नहीं था, जितना कि आज है। वैश्विक स्तर पर सितार की धुनों पर सभी को झूमने पर मजबूर करने वाले पं. रविशंकर की साधना का ही कमाल था कि इस वाद्य यंत्र को वैश्विक पहचान मिली। उन्होंने सितार बजाने की परम्परा को नया आयाम दिया। इससे विदेशियों में भी भारतीय संगीत के प्रति रुचि बढ़ी। इसका लाभ उन्हें मिला और वह आगे बढ़ते गए। पं. रविशंकर ने दिल्ली आकाशवाणी के लिए आर्केस्ट्रा पार्टी बनाई थी। कुछ वर्षों तक इसके जरिए उन्होंने अलग-अलग रागों को बड़े ही अनोखे रूप में लोगों तक पहुंचाया। वह भारत के पहले कलाकार हैं, जिन्हें पश्चिमी फिल्मों में संगीत देने के प्रस्ताव मिले। सितार को इस बुलंदी पर पहुंचाने के लिए पं. रविशंकर ने कड़ा संघर्ष किया है। पश्चिमी देशों में उन्हें जो पहचान मिली, उसमें पश्चिमी संगीतज्ञ जॉर्ज हैरिसन का सहयोग जरूर रहा। असल में वर्ष 1966 में संगीत ग्रुप बीटल्स के सदस्य जॉर्ज हैरिसन पं. रविशंकर के शिष्य बने, उन्होंने कई नए राग बनाए। हैरिसन ने ही उन्हें ‘विश्व संगीत के पितामह’ की उपाधि दी थी। 92 वर्ष की उम्र में 12 दिसम्बर, 2012 की अलसुबह संगीत का यह वैश्विक सितारा अपनी सितार को छोड़कर हमेशा के लिए मौन हो गया।
जोर्ज हैरिसन ने पंडित रविशंकर जी को "संगीत के पितामह" की उपाधि देकर....पंडित जी को नहीं बल्कि खुद संगीत को सम्मानित किया...!!
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Old 15-12-2012, 08:52 PM   #15
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Default Re: टूट गए सितार के तार

पंडित रविशंकर ने संगीत की शिक्षा उस्ताद अलाउद्दीन से ग्रहण की। उस्ताद अलाउद्दीन अपने शिष्य रविशंकर से बेहद प्रभावित हुए। यही कारण रहा कि उन्होंने पंडित रविशंकर से अपनी बेटी अन्नपूर्णा का विवाह भी कर दिया। बाद में दोनों तलाक हो गया।
संगीत के साथ रविशंकर ने राजनीति के माध्यम से भी देश सेवा की। वे वर्ष 1986 से 1992 तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे।
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Old 15-12-2012, 08:58 PM   #16
bindujain
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संगीत के साथ रविशंकर ने राजनीति के माध्यम से भी देश सेवा की। वे वर्ष 1986 से 1992 तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे।
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Old 08-04-2013, 01:49 PM   #17
Dark Saint Alaick
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सितार का जादूगर


पं. रविशंकर के मूल स्वभाव में कहीं न कहीं संगीत आत्मसात था, इसलिए विश्व मंच पर उनके पैरों की थिरकन के बजाए उनके सितार के तारों ने समा बांधा और यही वजह थी कि धीरे-धीरे उनका मन सितार की आल्हादित करने वाली तरंगों में रमने लगा। सितार के बेजान धातु की तारों में पं. रवि शंकर का मन ऐसा रमा कि उनकी अंगुलियों ने इन्हें जब भी झंकृत किया, समूची दुनिया झूम उठी। सितार के निर्जीव तारों से देश-दुनिया के करोड़ों संगीतप्रेमियों के दिलों में सुरीली तान छेड़ने वाले पं. रवि शंकर 73 वर्षों तक संगीत की दुनिया में छाए रहे। ऐसा कहा जाता है कि जब पंडितजी सितार वादन करते थे, तब चारों दिशाएं उनके संगीत के मोहपाश से बच नहीं पाती थीं। संगीत के क्षेत्र में विशेष योगदान देने के लिए उन्हें वर्ष 1999 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उन्होंने कई देसी-विदेशी फिल्मों में भी संगीत भी दिया। विश्व संगीत के गॉडफादर के पर्याय पंडितजी ने कई मौलिक राग गढ़े। उनका वादन मौलिकता के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध था। भारत से कहीं ज्यादा उनकी पहचान पश्चिमी देशों में थी। अपनी अंतिम सांस तक संगीत की अथक साधना करते रहे पंडितजी संगीत का स्वर्णिम अध्याय लिखे। 92 वर्ष की उम्र में 12 दिसम्बर, 2012 की अलसुबह संगीत का यह वैश्विक सितारा सितार को छोड़ हमेशा के लिए मौन हो गया।
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Old 08-04-2013, 01:50 PM   #18
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दूसरे कलाकारों का सम्मान

देश-दुनिया को सितार के तारों से झंकृत कर देने वाले पं. रवि शंकर के मन में कलाकार होने के नाते हर दूसरे कलाकार के लिए सम्मान था। भले ही पं. रवि शंकर ने दुनिया के हर कोने में सितार की धुनें छेड़ी हों, लेकिन पार्श्व गायिका लता मंगेशकर और उनकी बहन आशा भोंसले के गीतों के वे बडेþ प्रशंसक रहे। यह उनकी साधना का ही कमाल था कि इस सितार जैसे वाद्य यंत्र को वैश्विक पहचान मिली। उन्होंने सितार बजाने की परम्परा को नया आयाम दिया। इससे विदेशियों में भी भारतीय संगीत के प्रति रुचि बढ़ी। इसका लाभ उन्हें मिला और वह आगे बढ़ते गए। पं. रवि शंकर ने दिल्ली आकाशवाणी के लिए आर्केस्ट्रा पार्टी बनाई थी। कुछ वर्षों तक इसके जरिए उन्होंने अलग-अलग रागों को बड़े ही अनोखे रूप में लोगों तक पहुंचाया। वह भारत के पहले कलाकार हैं, जिन्हें पश्चिमी फिल्मों में संगीत देने के प्रस्ताव मिले। सितार को इस बुलंदी पर पहुंचाने के लिए पं. रवि शंकर ने कड़ा संघर्ष किया है। पश्चिमी देशों में उन्हें जो पहचान मिली, उसमें पश्चिमी संगीतज्ञ जॉर्ज हैरिसन का सहयोग जरूर रहा। असल में वर्ष 1966 में संगीत ग्रुप बीटल्स के सदस्य जॉर्ज हैरिसन पं. रवि शंकर के शिष्य बने, उन्होंने कई नए राग बनाए। हैरिसन ने ही उन्हें ‘विश्व संगीत के पितामह’ की उपाधि दी थी।
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उलझी रही निजी जिंदगी

पं. रवि शंकर का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी में बंगाली ब्राह्मण बैरिस्टर श्याम शंकर के घर 7 अप्रेल, 1920 को हुआ था। उनका परिवार मूलत: पूर्वी बंगाल के जैस्सोर जिले के नरैल गांव का रहने वाला था। पं. रवि शंकर बचपन से ही संगीत के माहौल में पले-बढ़े और विभिन्न तरह के वाद्य यंत्रों के प्रति उनकी रुचि रही। उन्होंने अपने जीवन के पहले 10 सल बेहद गरीबी में बिताए। उनका पालन-पोषण उनकी मां ने किया, क्योंकि जब वह महज आठ वर्ष के थे, तब उनके सिर से पिता का साया उठ गया। पं. रवि शंकर बड़े भाई पं.उदय शंकर के बैले ट्रुप में थे। पं. रवि शंकर जब केवल 10 वर्ष के थे, तभी संगीत के प्रति उनका लगाव शुरू हुआ। भाइयों के जरिए ही उनकी रुचि संगीत में हुई। बकौल पंडितजी, पहले तो मैंने नृत्य सीखना शुरू किया, पर अधिक दिनों तक इस क्षेत्र में नहीं रहा। सितार के जादू से बंधे पं. रवि शंकर उस्ताद अलाउद्दीन खान से दीक्षा लेने मैहर पहुंचे और खुद को उनकी सेवा में समर्पित कर दिया। संगीत के अलावा पं. रवि शंकर पारिवारिक जीवन को भी लेकर काफी चर्चा में रहे। उन्होंने दो शादियां कीं। पहली शादी गुरु अलाउद्दीन खान की बेटी अन्नपूर्णा से हुई, लेकिन बाद में उनका तलाक हो गया। उनकी दूसरी शादी सुकन्या से हुई, जिससे उनकी एक संतान अनुष्का शंकर हैं। अनुष्का भी मशहूर सितार वादक हैं। इसके अलावा उनका सम्बंध एक अमेरिकी महिला सू जोंस से भी रहा, जिनसे उनकी एक बेटी नोरा जोंस हुई। हालांकि सू से उन्होंने शादी नहीं की।
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छाए टीवी-फिल्मों में

पं. रवि शंकर ने लम्बे संगीत जीवन में कई फिल्मों के लिए संगीत निर्देशन किया। इसमें प्रख्यात फिल्मकार सत्यजीत रे की फिल्में और गुलजार द्वारा निर्देशित ‘मीरा’ भी शामिल है। उन्होंने ‘धरती के लाल’ और ‘नीचा नगर’ जैसी फिल्मों में भी संगीत दिया। पं. रवि शंकर द्वारा सत्यजीत रे की ‘अपु’ शृंखला पर आधारित तीन बांग्ला फिल्मों ‘पथेर पांचाली’, ‘अपराजिता’ और ‘अपुर संसार’ के अलावा अमेरिकी फिल्म ‘चार्ली’ के लिए भी संगीत दिया गया। पं. रवि शंकर ने भारत के अलावा कनाडा, यूरोप तथा अमेरिका में नृत्य नाटकों और फिल्मों के लिए भी संगीत तैयार किया। टीवी चैनल दूरदर्शन की सिग्नेचर धुन ‘सत्यम, शिवम, सुंदरम’ का संगीत तैयार करने में पं. रवि शंकर की भी अहम भूमिका रही। पं. रवि शंकर को सबसे अधिक प्रसिद्धि 1960 के दशक में उस समय मिली, जब उन्हें हिप्पियों ने स्वीकारा। अपने मित्र जॉर्ज हैरिसन के साथ मोंटेरेरी और वुडस्टॉक महोत्सवों में हिस्सा लेने और बांग्लादेश में आयोजित होने वाले कंसर्ट्स में भाग लेने के बाद वे पश्चिमी देशों के घर-घर में पहचाने जाने लगे।
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