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Old 17-11-2010, 09:39 PM   #11
jai_bhardwaj
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Default Re: प्रेम, प्रणय और धोखा

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Originally Posted by Pretatma View Post


न जाने क्यूँ गले से लिपट कर रोने लगा,
जब हम बरसों बाद मिले,
जाते हुए जिसने ने कहा था ....
की "तुम जैसे लाखों मिलेंगे"…!!!

सोचा है जब भी मैंने, कि धनवान तू बने /
शक दोस्त को खोने का मुझे, बारहा हुआ //
मिलते हैं आज हाथ 'जय', सटते हैं जिस्म भी /
लेकिन दिलों के बीच, बहुत फासला हुआ //
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

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Old 23-11-2010, 10:19 AM   #12
Kalyan Das
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Default Re: प्रेम, प्रणय और धोखा



हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी,
फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी !

सुबह से शाम तक बोझ ढोता हुआ,
अपनी ही लाश का खुद मज़ार आदमी !!

हर तरफ भागते दोड़ते रास्ते,
हर तरफ आदमी का शिकार आदमी !!

रोज़ जीता हुआ रोज़ मरता हुआ,
हर नए दिन , नया इंतज़ार आदमी !!

ज़िन्दगी का मुकद्दर सफ़र दर सफ़र,
आखरी सांस तक बेकरार आदमी !!
आखरी सांस तक बेकरार आदमी...............!!!
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"खैरात में मिली हुई ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती,
मैं अपने दुखों में भी रहता हूँ नवाबों की तरह !!"
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Old 25-11-2010, 09:29 AM   #13
ABHAY
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ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Default Re: प्रेम, प्रणय और धोखा

दिल में एक डर था जिसे अभी मिटा न सका जब
तुम्हे देखा दिल का दर्द मिट गया मगर एक प्रेम रोग लग गया अब
क्या करे हम न तुम मिलने आती हो न मिलने का वादा करती हो क्या होगा इस रोग का !
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Old 27-11-2010, 07:24 PM   #14
Kalyan Das
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Default Re: प्रेम, प्रणय और धोखा



तेरी चाहत में अक्सर
इस कदर गुजर जाता हूँ मैं !
की मीलों दूर होने पर भी,
तेरे दिल में सिमट जाता हूँ मैं !!
जब तेरी तन्हाई पेश -ए - नज़र पाता हूँ,
तो ठंडी ठंडी चंद आहें
भर कर रह जाता हूँ मैं !
हाय ये अलफ़ाज़ जो कभी,
लबों से बयान होते नहीं
और
आंसू, जिन्हें सिर्फ आँखों से पि जाता हूँ मैं ........!!!
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Old 27-11-2010, 11:28 PM   #15
jai_bhardwaj
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Default Re: प्रेम, प्रणय और धोखा


मैं और मेरा अकेलापन
सामने फ़ैली हुई पहाड़ियाँ
ढलता हुआ सूरज
पेड़ों के झुरमुट
लम्बे होते हुए साए
ऐसे में तुम बहुत याद आते हो
और तुम यहीं हो
हाँ यहीं तो हो !!
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Old 28-11-2010, 11:12 PM   #16
amit_tiwari
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Default Re: प्रेम, प्रणय और धोखा

तेरे इश्क ने बक्शी है ये सौगात मुसलसल
तेरा ज़िक्र हमेशा ! तेरी बात मुसलसल !

एक मुद्दत हुई तेरे कूचे से निकले हुए
रहती है फिर भी तुझसे मुलाकात मुसलसल !

दिल लगी, दिल की लगी बन जाती है कमबख्त
जब तसव्वुर में गुज़रती है रात मुसलसल

जब से देखा है ज़ुल्फ़-ऐ-परेशां का आलम
उलझे हुए रहते हैं मेरे दिन रात मुसलसल

मैं मुहब्बत में उस मुकाम पे पहुच चूका हूँ ऐ जाना
मेरी ज़ात में रहती है तेरी ज़ात मुसलसल !!!

Last edited by amit_tiwari; 28-11-2010 at 11:23 PM.
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Old 28-11-2010, 11:40 PM   #17
jai_bhardwaj
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Default Re: प्रेम, प्रणय और धोखा

जीवन समारोह सा लगता, साथ अगर तुम मेरे होते !
चाँद में अपनी बस्ती होती , गलियारे में तारे होते !!
फूलों का अपना रथ होता, जिसे स्वयं ही पवन घुमाता
किन्तु स्वप्न तो स्वप्न रह गए, स्वप्न कहाँ पूरे होते !!
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Old 29-11-2010, 05:00 AM   #18
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pooja 1990 will become famous soon enough
Default Re: प्रेम, प्रणय और धोखा

bhaiiji bahut khoob .lagta hai aapne pyar me dhoka kaya hai. aapki rachnao ko dekhkar yahi lagta hai. pranam dada ji
__________________
डेथ का दूसरा नाम पूजा चौहान .मरना है तो आ जाओ .में वेट कर रही हु .कच्चा चबा जाउंगी .

मेरे सभी सूत्र


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Old 29-11-2010, 06:17 PM   #19
Kalyan Das
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Default Re: प्रेम, प्रणय और धोखा

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Originally Posted by pooja 1990 View Post
bhaiiji bahut khoob .lagta hai aapne pyar me dhoka kaya hai. aapki rachnao ko dekhkar yahi lagta hai. pranam dada ji
पूजा जी, कृपया हिंदी में लिखने की कोशिश कीजिये !
भाईजी के बारे में आपका अंदाजा गलत है ! उनके लिए प्यार का परिभाषा अलग है !वो सबको प्यार करते हैं !! आजकल के सड़कछाप आशिक नहीं हैं !!
और ऐसे सज्जन को कोई धोखा दे नहीं सकता !!
दरअसल वो जो बेचते हैं (e. g. दर्द - ए- दिल) उसको खरीद ते नहीं !!
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Old 29-11-2010, 10:44 PM   #20
YUVRAJ
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Default Re: प्रेम, प्रणय और धोखा

दर्दो-ग़म दिल की तबीयत बन चुके।
अब यहां वहां आराम ही आराम है॥
इस दिल की किस्मत में तन्हाइयां थीं।
कभी जिसने अपना-पराया न जाना॥
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