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#11 |
Senior Member
![]() ![]() ![]() ![]() Join Date: Feb 2011
Location: खानाबदोश
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![]() परन्तु भावनाओँ के अभाव मे भी मनुष्य अपूर्ण ही है । एक संवेदनशील मनुष्य चाहे तो सारी दुनिया को पराजित कर सकता है , परन्तु खुद से हारना उसकी नियति ही है ।
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ये दिल तो किसी और ही देश का परिंदा है दोस्तों ...सीने में रहता है , मगर बस में नहीं ...
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#12 |
Diligent Member
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वाणी संयम का पहला अभ्यास मितभाषण है। जहाँ आवश्यक हो वहाँ नपे-तुले शब्दों में अपनी बात कही जाए।
-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य |
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#13 |
Diligent Member
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शीतल शब्द उचारिये, अहं आनिये नाहिं।
तेरा प्रीतम तुझहि में, दुसमन भी तुझ माहिं संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि अपने मूंह से हमेशा ही ऐसे शब्दों का उच्चारण करो जो दूसरे को श्ीतलता प्रदान करें। अपने अहंकार में भरकर किसी से कठोर वचन मत कहो। सच बात तो यह है कि अपना दुश्मन या प्रेमी अपने अंदर ही है। |
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#14 |
Diligent Member
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हरिजन सोई जानिए, जिव्हा कहैं न मार।
आठ पहर चितवन रहै, गुरु का ज्ञान विचार।। संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि भगवान का सच्चा भक्त वही है जो अपनी जीभ से कभी यह नहीं कहता कि ‘इसे या उसे मार’। वह आठों पहर अपने गुरु के ज्ञान का विचार करते हुए अहिंसा भाव से रहता है। |
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#15 |
Diligent Member
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संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि भगवान का सच्चा भक्त वही है जो अपनी जीभ से कभी यह नहीं कहता कि ‘इसे या उसे मार’। वह आठों पहर अपने गुरु के ज्ञान का विचार करते हुए अहिंसा भाव से रहता है।
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#16 |
Diligent Member
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#17 |
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#18 |
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#19 |
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जीतने वाले कोई अलग काम नहीं करते, वे हर काम अलग ढंग से करते हैं.
-------शिव खेड़ा |
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#20 |
Senior Member
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गुब्बारा अपने रंग की वजह से नहीं उड़ता, बल्कि उसके अन्दर क्या है, इस वजह से उड़ता है.
------------शिव खेड़ा |
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