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Old 07-04-2013, 05:05 PM   #11
bindujain
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तेरी याद आ गई






जिंदगी फिर मुझको बहला गई
तेरी याद आ गई


कुछ ख्याल आँसू बनकर
आँखों में आ उतरे
कुछ देर रहे भटकते
फिर गालों पर आ झरे
तू आँसू बनकर मुझको सहला गई
तेरी याद आ गई

मैं कुछ सूखा, कुछ रूखा
खड़ा था कबसे अपने ही मन में
वो हँसी उठी कहीं अतीत से
बादल बन छा गई फिर आंगन में
तू बारिश बनकर मुझको नहला गई
तेरी याद आ गई

वीरान दरख़्त एक उगा था मुझ में
ना पत्ते ना फूल बस खामोशी
और थी धुएँ और बर्फ में दबी
अहसासों की लंबी होती बेहोशी
तू दीप बनकर जली, बर्फ वो पिघला गई
तेरी याद आ गई

सूखे पत्तों की आहट ही कब से
बस सुन रहा था में
गुम हो चुकी थी रोशनी
अंधेरों को ही बुन रहा था मैं
तू चाँद सी निकली, चाँदनी फैला गई
तेरी याद आ गई

जिंदगी फिर मुझको बहला गई
तेरी याद आ गई
__________________
मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
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Old 09-04-2013, 06:30 PM   #12
jai_bhardwaj
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यूँ तो हर लम्हा तनहा है ज़िन्दगी

पर फिर भी हर पल साथ है ज़िन्दगी

बेचैन कर देती है कई बार ज़िन्दगी

फिर भी हसीं लगती है हर पल ये ज़िन्दगी

हज़ारों सतरंगी सपनों,

अनगिनत रंगों में रंगी है ये ज़िन्दगी

कभी भीड़ में तनहा तो कभी

अपने में सिमटी नज़र आती है ज़िन्दगी

कभी पास तो कभी दूर नज़र आती है ज़िन्दगी

मुश्किल तमाम लेकर बढ़ती है ज़िन्दगी

संघर्षों से लड़कर जीना सिखाती है ज़िन्दगी

मन में फ़ैली घनघोर घटाओं

के साथ बरसती है ज़िन्दगी

काँटों से भरे पथ पर फूल

बिखेरती है ज़िन्दगी

कभी जीवन की राह में कड़ी धूप है ज़िन्दगी

तो कभी ममता की बड़ी छाँव है ज़िन्दगी

हर लम्हा एक नई राह दिखाती है ज़िन्दगी

वक्त के साथ सबकुछ सिखा देती है ज़िन्दगी
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
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पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

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Old 10-04-2013, 11:12 AM   #13
bindujain
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ज़िन्दगी ऐसे गुज़रती जा रही है,
जैसे कोई रेल चलती जा रही है,

मन लगा है स्वयं से नज़रें चुराने,
रुक गया है प्लेटफोर्म पर पुराने,
तन का सिग्नल लाल करती जा रही है,

खेत नदिया ताल पोखर छूटते हैं,
पटरियों पर कितने पत्थर टूटते हैं,
काल की भी दाल गलती जा रही है,

इक भिखारी गीत गाने में लगा है,
एक मोटू लाल खाने में लगा है,
धूप है, बत्ती भी जलती जा रही है,

है थकन से चूर मंजिल पाएगी ही,
आएगी मंजिल, कभी तो आएगी ही,
मन में कोई आस पलती जा रही है,

ज़िन्दगी ऐसे गुज़रती जा रही है,
जैसे कोई रेल चलती जा रही है.
__________________
मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
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Old 10-04-2013, 11:15 AM   #14
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कागज के पन्नों में जल रहे थे कुछ साल ज़िन्दगी के ,
धुआँ ही धुआँ से हो गये कई ख्याल ज़िन्दगी के ।
इन सभी में एक तेरी याद है बस जो दिल बेहलाती है ,
वरना शताते हैं हमे कई सारे सवाल ज़िन्दगी के ।
वफ़ा थी मोहब्बत में ,दोस्ती में थी बेवफ़ाई ,
होते है कई तजूर्बें बेमिसाल ज़िन्दगी के ।
हंसते चेहरे जलते पावं , नदिया चिडियाँ गावं ,
हर पल नजर आते हैं कमाल ज़िन्दगी के ।
शाम से सुबह ,सुबह से रात का सफ़र ,
मालिक हैं हम ऎसी बेहाल ज़िन्दगी के ।
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Old 10-04-2013, 07:53 PM   #15
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ज़िन्दगी एक सौगात है, कबूल कीजिये

ज़िन्दगी एक एहसास है, महसूस कीजिये

ज़िन्दगी एक दर्द है, बाँट लीजिये

ज़िन्दगी एक प्यास है, प्यार दीजिये

ज़िन्दगी एक जुदाई है, सब्र कीजिये

ज़िन्दगी एक आँसू है, जब्र कीजिये

ज़िन्दगी एक मिलन है, मुस्कुरा लीजिये

ज़िन्दगी आखिर ज़िन्दगी है, जी लीजिये
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पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

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Old 10-04-2013, 08:03 PM   #16
jai_bhardwaj
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सुनते थे तेरे अंजुमन में कांटे हैं ज़िन्दगी
लो, हम भी तेरे पास आये हैं ज़िन्दगी
काँटे मुझे पसंद हैं और चुभन भी इनकी
बस मुझसे कभी दूर जाना न ज़िन्दगी
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Old 10-04-2013, 09:09 PM   #17
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ज़िन्दगी एक सौगात है, कबूल कीजिये

ज़िन्दगी एक एहसास है, महसूस कीजिये

ज़िन्दगी एक दर्द है, बाँट लीजिये

ज़िन्दगी एक प्यास है, प्यार दीजिये

ज़िन्दगी एक जुदाई है, सब्र कीजिये

ज़िन्दगी एक आँसू है, जब्र कीजिये

ज़िन्दगी एक मिलन है, मुस्कुरा लीजिये

ज़िन्दगी आखिर ज़िन्दगी है, जी लीजिये
सूत्र पसंद करने तथा सहयोग करने का का शुक्रिया
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Old 10-04-2013, 09:10 PM   #18
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सुनते थे तेरे अंजुमन में कांटे हैं ज़िन्दगी
लो, हम भी तेरे पास आये हैं ज़िन्दगी
काँटे मुझे पसंद हैं और चुभन भी इनकी
बस मुझसे कभी दूर जाना न ज़िन्दगी


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Old 18-04-2013, 08:21 PM   #19
jai_bhardwaj
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ज़िन्दगी में दो लम्हा कोई मेरे पास ना बैठा,
आज सब मेरे पास बैठे जा रहे थे

कोइ तोहफा न मिला आजतक मुझको,
आज फूल ही फूल दिए जा रहे थे

तरस गया मैं किसी के हाथ से मिले एक कपडे को,
आज नए नए कपडे ओढ़ाए जा रहे थे

कभी दो कदम साथ ना चलने वाले,
आज काफिला बना कर चले जा रहे थे

आज पता चला कि मौत कितनी हसीं होती है,
और हम तो यूँ ही जिए जा रहे थे
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Old 26-04-2013, 08:50 PM   #20
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कुछ इस तरह से ज़िन्दगी बीती मेरी
कि हर ख्वाब धुंधला हो गया

शकल और सवाल दोनों अनजान थे मेरे लिए
बिना पहचान के यह फासला बनता गया

हाँ, बस इतना याद था मुझे कि वो मुझमे ही था कहीं
यही जवाब तो मुझे सवालों में उलझाता गया

क्या पूछता मैं उससे वो अनजान था मेरे लिए
फिर क्यों अपनी पहचान दे गया

अगर जाना ही था उसे तो
क्यों अपनी यादें मुझे दे गया

कभी कभी मैं सोचता हूँ, इन उलझे सवालों के बीच
उलझन के हर पहलू में ,वह रंग तो भर गया
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