18-08-2013, 02:04 PM | #11 |
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Re: देवरानी जेठानी की कहानी
लाला की घरवाली बोली कि कल को दो रुपये का कुसुंभ भेज देना। हम रैनी तो चढ़ा लें और गोटा किनारी लेते आना। दिन कै रह गये हैं। आगे सीना-पिरोना है। लाला बोले यह सब काम दौलतराम कर देगा और भाई छोटेलाल कल चौधरी को बुला के पूछो तो सही कि कितने-कितने गाड़ी हो हैं। छोटेलाल ने कहा कि पहिले सवारी लिखी जायँ कि कितनी बहिली जायँगी। तब दो जगह पूछकर किराये कर लेंगे। दौलत राम ने कहा चबीनी तो दो दिन पहिले हो जायगी, क्*योंकि गर्मी के दिन हैं। बहुत दिन में पकवान बुस जा है। अगले दिन यहॉं से बुलन्*द शहर की चिट्ठी का उत्*तर लिख दिया गया है और थोड़े दिन पीछे वहॉं से नाई साहे चिट्ठी ले के आया। उसमें सात बान लौंडे के और पॉंच बान लौंडिया के लिखे थे। तिवास के दिन सारी बिरादरी को जेवनहार हुई। जो जीवने नहीं आया, उसका परोसा घर बैठे गया। जब लौंडा घोड़ी चढ़ लिया रात को बारात चल दी और हापुड़ जा ठहरी। वहॉं लाला ने पहिले ही आदमी भेज दिये थे कि वहॉं जाकर बन्*शीधर से कह के बाग में कढ़ाई चढ़वा दें। सो वहॉं सब सामान तैयार था। लाला ने बरातियों से कहॉं लो भाई, न्*हा-धो के पहिले भोजन कर लो। रात को चबीनी बॉंट के फिर चल दिये और दो पहर से पहिले बुलन्*द शहर जा पहुँचे। शहर के बाहर से बेटीवाले के घर खबर करने को नाई भेज दिया। जब बारात चढ़ ली गाड़ीवानों से दाने-भूसे पर तकरार हुई। ताशेवालों और जाजकियों ने एक-एक आदमी के दो-दो परोसे मॉंगे। जब वार-द्वारी हो चुकी, तब नौशे को जनवासे में ले गए। और जब लौंडा फेरों पर से उठ के थापा पूजने गया, वहॉं उसने यह चार छन कहे और एक-एक छन का एक-एक रुपया लिया। 1- छन पिराकी आईयॉं और छन पिराकी जोड़ा दूसरा छन जब कहूँगा जब ससुर देगा घोड़ा। 2- छन पिराकी आईयॉं और छन पिराकी धार। अब का छन जब कहूँ जब सासू देंगी हार। 3- छन पिराकी आईयॉं और छन पिराकी बोता। धौंसा लेके ब्*याहने आया सर्वसुख का पोता। यह सुनकर सब स्त्रियॉं हँस पड़ी और कहा तीन हुए। एक और कह दो। 4- छन पिराकी आईयॉं और छन पिराकी खुरमा तुम्*हारी बेटी ऐसी रक्*खूँ जैसे ऑंखों में का सुरमा।। दो रात बरात वहॉं रही और विदा होकर बराती आनन्*दपूर्वक अपने घर आ गए। यहॉं खोडि़ये में अर्थात विवाहवाली रात को अड़ौसन और बिरादरी की स्त्रियें इक्*ट्ठी हुई। सबने गाया-बजाया। पैसा-पैसा बेल का दिया नाच-कूद हो रहा था कि चौधरी की बहु ने कहा-अरी दौलतराम की बहु कहॉं है? उसकी सास बोली अपने घर पड़ी सोवे है। उसने कहा यहॉं क्*यों नहीं आई? कहीं लड़ी तो नहीं थी। छोटेलाल की बहु ने कहा नहीं जी, यहॉं तो उसे किसी ने आधी बात भी नहीं कही। वह बोली उसे मैं लाऊँ हूँ और दो चार लुगाइयों को साथ ले उसके घर पहुँची और शर्माशर्मी सोती को उठा के लायी और सबके बीच बिठा के उससे ढोलक बजवायी। वह बेचारी गाना बजाना क्*या जाने थी। ढोलकी के बजते ही सब लुगाई हँस पड़ीं। वह वहॉं से उठ खड़ी हुई और रूस के अपने घर चली गई। सबने मनाया फिर न बैठी। अब लाला सर्वसुख जी बहुत बूढ़े हो गए थे, दूकान का काम तो बड़े बेटे दौलतराम ने सँभाल लिया था परन्*तु लाठी ले-के ढुलकते-ढुलकते दोपहर पीछे रोटी खा के दूकान चले जाया करें थे। छोटेलाल यह कहा करे था कि लाला जी अब तुम बैठ के भगवान का भजन करो और इस जगत की माया मोह को छोड़ो। छोटी बहु सुसरे की बड़ी टहल करे थी। बिछौना बिछाना, धोती धोना, रात को गर्म दूध करके पिलाना यह सब काम यही करे थी और अपने भनेलियों से कहती कि जी यह हमारे तीर्थ हैं। हमारे कहॉं भाग जो अपने बड़ों की टहल करें। धर्म-शास्*त्र में लिखा है कि जो अपने बड़ों की टहल करते हैं उनके कुल की वृद्धि होती है, और स्*वर्ग प्राप्*त होता है। जब कभी वह बूढ़ा दौलतराम की बहु से पानी मॉंगता वा और काम को कहता तो काम तो क्*या करती, परंतु कहती कि उत्*ता मरता भी तो ना है। रात-दिन कान खा है। वह कहता हॉं बहु सच है, हमारी वह कहावत है-दॉंत घिसे और खुर घिसे, पीठ बोझ ना ले। ऐसे बूढ़े बैल को कौन बॉंध भुस दे। बुढि़या उतनी नहीं थक गई थी। अपना काम अपने हाथ से कर ले थी। छोटेलाल की बहु से कहा करे थी अरे तेली के बैल की तरह दिन-भर इतना मत पिले। मॉंदी पड़ जायगी तो हमें पानी कौन पकड़ावेगा? और बहु हमारे पक्*के पात हैं। आज मरे कल दूसरा दिन। तेरा कच्*चा कुनबा है। इसी बात पर दौलतराम की बहु कहती कि देख बुढि़या दोजगन को। छोटी बहु को कैसी चाहे है? एक दिन बैठे बिठाये बड़े लाला को ताप चढ़ आई तीसरे दिन खॉंसी हो गई फिर सांस हो आया। हकीमजी को बुलाया। उन्*होंने नाड़ी देखके कहा कि लाला सर्वसुख जी की अब रामनगर की तैयारी है। औषधी मैं बतलाये देता हूँ, पिलाओ। और लाला से बोले कि लाला सर्वसुखजी, अब अच्*छा समय है कि भगवान की दया से बेटे-पोते मौजूद हैं। वह बोले हकीमजी कोई ऐसी औषधी दो कि अबकी बिरियॉं मैं बच जाऊँ और दौलतराम और छोटेलाल का साझा बाँट दूँ। मैं जानू हूँ कि मेरे पीछे फ़जीता होगा। हकीम जी तो चले गये। लाला बेटे-पोतों की ओर देख ऑंसू भर लाये। उन दोनों का जी भर आया। बेचारी बुढि़या रोने लगी। छोटेलाल ने कहा कि लाला जी, घबराओ मत। भगवान ने चाहा तो अच्*छे हो जाओगे। अगले दिन गौदान कराया और गंज की दूकान पुन्*य करके पुरोहित को दी। पॉंचवें दिन लाला का हाल बेहाल हो गया। जब नाड़ी बहुत मंद पड़ गयी गंगाजल मुँह में डालने लगे और फिर जमीन पर उतार कर पंचरत्*न मुँह में डाला। जब लाला काल कर गये, बेटे हाय लालाजी-लालाजी कहते हुए बाहर आन बैठे। मुरदे के चारों ओर स्त्रियॉं घिर आयीं और रोने-पीटने लगीं। बाहर जब मुहल्*ले और बिरादरी के लोग इकट्ठे हो गए, बिमान बनाने की ठहरी। ताशेवाले और जाजकी बुलाये गये। जब कोई मुहल्*ले वा बिरादरी में से आता, यह कहता कि लाला सर्वसुखजी बड़े भाग्*यवान थे जिनके बेटे-पोते मौजूद हैं। उनका आज तो खुशी का दिन है। कोई कहता कि साहिब जहॉं मिल जायें थे पहिले से पहिले ही राम-राम कर लें थे। अच्*छा स्*वभाव था। पुरोहित जी बोले कि महाराज, उन्*होंने अपने जीते जी एक काम अच्*छा किया इस काल में जितने कँगले आये सबको पाव-पाव भर दाने दिये। जब दोनों भाई भद्र हो चुके, पिंजरी को उठा अन्*दर ले गए और मुर्दे को न्*हाला-धुला तख्तों पर रख दिया और एक दोशाला ऊपर डाल दिया और जरी की झालर ऊपर लगायी चारों ओर झंडियॉं लगायी गयीं। एक पोते को घडि़याल बजाने को दी। शेष दोनों में से एक को शंख, दूसरे को घण्*टा दिया। सुखदेई का बेटा शिवदयाल यहॉं मण्*डी में मूँज बेचने आया था। नाना का मरना सुनते ही भागा आया। लोग बोले साहेब धेवता भी आन पहुँचा। इसके हाथ में मोरछल दो। फिर राम-राम सत्*य कहते मुर्दे को मरघट में ले पहुँचे। औरतें भी पीछे से सूर्य कुण्*ड न्*हाने गयीं। तीन दिन तक बड़े हॉंसे तमाशे रहे तीसरे दिन जब उठावनी हो चुकी, दसवें दिन न्*हान धोवन हुआ। ग्*यारवें दिन एकादशा में अचारज को बहुत माल दिया और लाला के हुलास सूँघने की चॉंदी की डिबिया भी दे दी। तेरहवीं के दिन सारी बिरादरी की जेवनार हुई। पक्*का परोसा किया और मुहल्*ले में भी बॉंटा। अगले दिन से छोटेलाल नौकरी पर जाने लगा। दौलतराम दूकान के धंधे में लग गया। बुढि़या अब सुस्*त रहने लगी। दौलतराम की बहु के अभिमान का कुछ ठिकाना नहीं रहा। ऐसी बढ़कर बातें मारती और कहती कि जो कुछ करे है, मेरा ही मालिक करे है। और यह सारी मेरी ही मालिक की कमाई है। जो चीज लाला के सामने छोटेलाल के घर दूकान से आया करे थी, आना बन्*द हो गई। बुढि़या बहुतेरा कहती पर उसकी कौन सुने था। बहु के सिखाये में आके दौलतराम की दृष्टि भी फिर गई। छोटेलाल ने एक दिन अपने घर में सलाह कि की भाई तो सारा माल-मता दबा बैठा। साझा बॉंटने के नाम से बात नहीं करता। अब क्*या करें? उसने कहा सुनो जी हम क्*या छाती पर रख कर ले जाऍंगे और आगे कौन ले गया है? बिरादरी वाले कहेंगे कि बाप के मरते ही फजीता हुआ। जब तक बुढि़या बैठी है, चुप ही रहो। आगे जो होगा देखी जायगी। भगवान का दिया हमारे यहॉं भी सब कुछ है। बाप को मरे छह महीने बीते होंगे कि बुढि़या मर गई। दौलत राम की बहु बोली बाप का मरना तो बड़े बेटे ने किया मॉं का मरना छोटा बेटा करेगा। चौधरी की बहु ने कहा कि दूकान तो अभी साझे में है? उसने बोली कि हैं किसका साझा? अपना खाना अपना पीना। बाहर मर्दो में भी यही चर्चा फैली। दौलतराम ने एक न मानी। छोटेलाल का ही खर्च उठा। मॉं को बड़े गाजे बाजे के साथ निकाला। पहिले से अच्*छी बिरादरी की जेवनहार कर दी। जब छोटेलाल ने देखा बड़ा भाई किसी प्रकार से नहीं मानता, साझा बॉंटने के नाम लड़ने को दौड़े है। एक वकील की सलाह से तकसीम की अर्जी दे दी। इस पर जवाबदेही दौलतराम ने की कि यह सब मेरा पैदा किया हुआ है। हाकिम ने इस मुकदमे को पंचायत में भेज दिया। पंचों ने न्*याय की रीति से आधा बॉंट दिया। दौलतराम को पंचों का कहा अंगीकार करना पड़ा क्*योंकि उन्*होंने समझा दिया कि जो तुम इसके न मानोगे और आगरे की सुध धरोगे तो बिगड़ जाओगे। मण्*डी की दूकान दौलत राम के पास रही। तिसपर भी दौलत राम की बहु कहने लगी कि हमकों पंचों ने लुटवा दिया। जिस हवेली में दोनों भाई रहें थे छोटेलाल के हिस्*से में आई। इस कारण दौलतराम को दूसरी हवेली में जाना पड़ा। जिस दिन दौलतराम की बहु उठ के गई चलती-चलती दो खिडकियों के किवाड़ और चौखट उतार के ले चली। जूँ ही दोवारी पहुँची चौखट से ठोकर खा के गिरी। बोली हे भगवान उत्*ते बैरी यहॉं भी चैन नहीं देते! और बड़-बड़ करती चली गई। समाप्त
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