My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > Art & Literature > Hindi Literature
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 27-01-2013, 11:23 PM   #11
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: छुआछूत (अस्पृश्यता) .. सिद्धांत या कलंक

अध्याय तीन के सन्दर्भ में प्राप्त हुई टिप्पणियाँ

2 टिप्पणियाँ:


1. Manu koun hota hai jiske baton per ham educated log aaj tak aankh band kar chal rahe hein? ham insan ki sabse badi pahchan insaniyat hai jo khota ja raha hai. Agar yeh vedon mein bhi likha hota to bhi sweekar karne yogya nahi hai.

rgds.



2. "Achhut" people used to clean the town, n "Maila" as well. They used to clean dead animals also. By handling all this dirt some different kind of smell used to spread around them n their clothes. Their immunity was strong as they had habit of all this from birth, but it was supposed to spread diseases in other people, which was the reason they stayed out of the town according to me.
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 27-01-2013, 11:26 PM   #12
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: छुआछूत (अस्पृश्यता) .. सिद्धांत या कलंक

अध्याय ४: क्या अछूत छितरे व्यक्ति हैं?

मेरा उत्तर है "हाँ"। गाँव में बसने वाली जाति और अछूतों की गण देवों की भिन्न्ता ही इसका सर्वश्रेष्ठ प्रमाण होगी पर इस तरह का अध्ययन अनुपलब्ध है।

भाषा का सहारा लेकर देखें तो अछूतों को दिए गये नाम, अन्त्य, अन्त्यज अन्त्यवासिन, अंत धातु से निकले हैं। हिन्दू पण्डितों का कहना है इन शब्दों का अर्थ अंत में पदा हुआ है मगर यह तर्क बेहूदा है क्योंकि अंत में तो शूद्र पैदा हुए हैं। जबकि अछूत तो ब्रह्मा की सृष्टि रचना से बाहर का प्राणी है। शूद्र सवर्ण है जबकि अछूत अवर्ण है। मेरी समझ में अन्त्यज का अर्थ सृष्टि क्रम का अंत नहीं, गाँव का अंत है। यह एक नाम है जो गाँव की सीमा पर रहने वाले लोगों को दिया गया।

दूसरा तथ्य महाराष्ट्र की सबसे बड़ी अछूत जाति महारो से सम्बन्धित है। इनके बारे में ध्यान देने योग्य है कि..
१. महाराष्ट्र के हर गाँव के गिर्द एक दीवार रहती है और महार उस दीवार के बाहर रहते हैं।
२. महार बारी बारी से गाँव की पहरेदारी करते हैं
३. महार हिन्दू गाँव वासियों के विरुद्ध अपने ५२ अधिकारों का दावा करते हैं जिनमें मुख्य हैं;
अ. गाँव के लोगों से खाना इकट्ठा करने का अधिकार
ब. फ़सल के समय हर गाँव से अनाज इकट्ठा करने का अधिकार
स. गाँव के मरे हुए पशुओ पर अधिकार

अनुश्रुति है कि ये अधिकार महारों को बरार के मुस्लिम राजाओं से प्राप्त हुए । इसका मतलब इतना ही हो सकता है कि इन प्राचीन अधिकारों को बरार के राजा ने नए सिरे से मान्यता दी।

ये तथ्य बहुत मामूली हैं फिर भी इतना तो प्रमाणित करते हैं कि अछूत आरंभ से ही गाँव से बाहर रहते आए हैं।




अध्याय चार के लिए ब्लॉगर महोदय को कोई भी टिप्पणी नहीं प्राप्त हुई।
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 27-01-2013, 11:28 PM   #13
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: छुआछूत (अस्पृश्यता) .. सिद्धांत या कलंक

अध्याय ५ : क्या ऐसे समानान्तर मामले हैं?

जी हाँ, आयरलैंड और वेल्स में भी इस तरह की घटनाएं घटी हैं। आयरलैंड के गाँवो के संगठन के बारे में जानकारी सर हेनरी मेन की किताब अर्ली हिस्ट्री ऑफ़ इन्स्टीट्यूशन्स में से मिलती है;

ब्रेहन का कानून एक कबायली समाज को चित्रित करता है, ऐसे समाज में कबीले की ज़्यादातर ज़मीन पर या तो मुखिया का या फिर अन्य कुलीन परिवारों का कब्ज़ा होता है। बाकी बची हुई बेकार या परती ज़मीन कबीले की सामूहिक सम्पत्ति होती है, जिस पर मूल रूप से मुखिया का नियंत्रण होता है। इस ज़मीन पर कबीले वाले पशु चराते है या इस ज़मीन मुखिया उन लोगो को बसाता है जो फ़्यूदहिर कहलाते हैं। ये अजनबी, छितरे हुए, बहिष्कृत लोग उसके पास संरक्षण के लिये आते हैं, इसके अलावा कबीले से उनका और कोई सम्बन्ध नहीं होता।

हेनरी मेन इन फ़्यूदहिर के बारे में आगे लिखते हैं; फ़्यूदहिर दूसरे कबीलों से भागे हुए अजनबी लोग थे जिनका सम्बन्ध अपने मूल कबीले से टूट चुका था.. एक हिंसक दौर से गुजरते हुए समाज में एक छितरे हुए आदमी के पास आश्रय और सुरक्षा पाने का एक मात्र उपाय था फ़्यूदहिर किसान बन जाना।

श्री सीमोम ने अपनी किताब ट्राइबल सिस्ट्म इन वेल्स में बताया है कि वेल्स के गाँव दो हिस्सो में बँटे होते, स्वतंत्र किसानों के घर और पराधीन किसानों के घर। इस विभाजन का कारण के बारे में वे लिखते हैं- आदिम कबायली समाज में दो स्वतंत्र व्यक्तियों के बीच सम्बन्ध का आधार रक्त सम्बन्ध ही था, जो रक्त सम्बन्धी न हो वह कबीले का हिस्सा नहीं हो सकता था। इस तरह आदिम वेल्स समाज में दो वर्ग थे; वेल्स रक्त वाले और अजनबी रक्त वाले। और इन दोनों के बीच चौड़ी खाई थी।

इस तरह से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत के अछूत ही अकेले ऐसे नहीं है जो गाँव से बाहर रहते हों। यह एक सर्वव्यापी परम्परा थी, जिसकी विशेषताएं थीं;
१. आदिम युग के गाँव दो हिस्से में बँटे रहते। एक हिस्से में कबीले के लोग रहते और दूसरे में अलग अलग कबीलों के छितरे लोग।
२. बस्ती का वह भाग जहाँ मूल कबीले के लोग रहते वह गाँव कहलाता। छितरे लोग गाँव के बाहर रहते।
३. छितरे लोगों को गाँव के बाहर करने का कारण था कि वह पराये थे और उनका मूल कबीले से कोई सम्बन्ध न था।


अध्याय पाँच के लिए ब्लॉगर महोदय को कोई भी टिप्पणी नहीं प्राप्त हुई।
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 27-01-2013, 11:30 PM   #14
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: छुआछूत (अस्पृश्यता) .. सिद्धांत या कलंक

अध्याय ६: छितरे लोगों की अलग बस्तियां अन्यत्र कैसे विलुप्त हो गईं?


आदिम समाज रक्त सम्बन्ध पर आधारित कबायली समूह था मगर वर्तमान समाज नस्लों के समूह में बदल चुका है। साथ ही साथ आदिम समाज खानाबदोश जातियों का बना था और वर्तमान समाज एक जगह बनी बस्तियों का समूह है। रक्त की समानता के स्थान पर क्षेत्र की समानता को एकता का सूत्र मान लेने से ही छितरे लोगों की अलग बस्तियां बाकी जगहों पर नष्ट हो गईं।

एक खास अवस्था पर पहुँचने पर आदिम समाज में नियम बना जिसे कुलीनता का नियम कहा गया, जिसके अनुसार बाहरी आदमी दल का हिस्सा बन सकता था।

श्री सीमोम के अनुसार वेल्स की ग्राम पद्धति में..१. सिमरू (दक्षिण वेल्स) में ९ पीढ़ियों तक लगातार रहने पर किसी अजनबी की सन्तति स्वयमेव कबीले का हिस्सा हो जाते।२. या फिर किसी अजनबी की सन्तति बार बार सिमरुओं में ही विवाह होने पर चौथी पीढ़ी में सिमरू हो जाते।

सवाल है भारत में ऐसा क्यों नहीं हुआ? जबकि मनु ने इसका उल्लेख (१०.६४-१०.६७) भी किया है कि यदि कोई शूद्र सात पीढ़ियों तक ब्राह्मण जाति में विवाह करे तो ब्राह्मण हो सकता है। मगर प्राचीन विधान के चातुर्वर्ण्य का नियम था कि एक शूद्र कभी भी ब्राह्मण नहीं बन सकता। और मनु इस से डिग नहीं सके। नहीं तो भारत में भी छितरा समुदाय गाँव की मुख्य धारा में घुल मिल जाता और उनकी अलग बस्तियों का अस्तित्व खत्म हो जाता।

ऐसा क्यों नहीं हुआ? इसका उत्तर यही है कि छुआछूत नाम के एक नए तत्व के आ जाने का परिणाम हुआ कि आज भारत के हर गाँव में अछूतों की अलग बस्ती है।



अध्याय छः के लिए ब्लॉगर महोदय को कोई भी टिप्पणी नहीं प्राप्त हुई।
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 27-01-2013, 11:34 PM   #15
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: छुआछूत (अस्पृश्यता) .. सिद्धांत या कलंक

अध्याय ७: छुआछूत की उत्पत्ति का आधार - नस्ल का अन्तर


समाज शास्त्री स्टैनली राइस के मतानुसार अस्पृश्यता दो बातों से उत्पन्न हुई; नस्ल और पेशा। दोनों बातों पर अलग अलग विचार करना होगा, इस अध्याय में हम नस्ल के अंतर से छुआछूत की उत्पत्ति के सिद्धान्त के सम्बन्ध में विचार करेंगे।

श्री राइस के नस्ल के सिद्धान्त के दो पहलू हैं;१. अछूत अनार्य हैं, अद्रविड़ हैं, मूल वासी हैं, और२. वे द्रविड़ो द्वारा पराजित हुए और अधीन बनाए गए।

श्री राइस के मतानुसार भारत पर दो आक्रमण हुए हैं। पहला आक्रमण द्रविड़ों का, जिन्होने वर्तमान अछूतों के पूर्वज भारत के अद्रविड़ मूल निवासियों पर विजय प्राप्त की और फिर उन्हे अछूत बनाया। दूसरा आक्रमण आर्यों का हुआ, जिन्होने द्रविड़ों को जीता। यह पूरी कथा बेहद अपरिपक्व है तथा इस से तमाम प्रश्न उलझ कर रह जाते हैं और कोई समाधान नहीं मिलता।

प्राचीन इतिहास का अध्ययन करते हुए बार बार चार नाम मिलते हैं, आर्य, द्रविड़, दास और नाग। क्या ये चार अलग अलग प्रजातियां हैं या एक ही प्रजाति के चार नाम हैं? श्री राइस की मान्यता है कि ये चार अलग नस्लें हैं।

इस मत को स्वीकार करने के पहले हमें इसकी परीक्षा करनी चाहिये।

i

अब ये निर्विवाद है कि आर्य दो भिन्न संस्कृतियों वाले हिस्सों में विभक्त थे। ऋगवेदी जो यज्ञो में विश्वास रखते और अथर्ववेदी जो जादू टोनों में विश्वास रखते। ऋगवेदियों ने ब्राह्मणो व आरण्यकों की रचना की और अथर्ववेदियों ने उपनिषदों की रचना की। यह वैचारिक संघर्ष इतना गहरा और बड़ा था कि बहुत बाद तक अथर्ववेद को पवित्र वाङ्मय नहीं माना गया और न ही उपनिषदों को। हम नहीं जानते कि आर्यों के ये दो विभाग दो नस्लें थी या नहीं, हम ये भी नहीं जानते कि आर्य शब्द किसी नस्ल का नाम ही है। इसलिये यह मानना कि आर्य कोई अलग नस्ल है गलत होगा।

इससे भी बड़ी गलती दासों को नागों से अलग करना है। दास भारतीय ईरानी शब्द दाहक का तत्सम रूप है। नागों के राजा का नाम दाहक था इसलिये सभी नागों को आम तौर पर दास कहना आरंभ हुआ।

तो नाग कौन थे? निस्संदेह वे अनार्य थे। ऋगवेद में वृत्र का ज़िक्र है। आर्य उसकी पूजा नहीं करते। वे उसे आसुरी वृत्ति का शक्तिशाली देवता मानते हैं और उसे परास्त करना अपना इष्ट। ऋगवेद में नागों का नाम आने से यह स्पष्ट है कि नाग बहुत प्राचीन लोग थे। और ये भी याद रखा जाय कि न तो वे आदिवासी थे और न असभ्य। राजपरिवारों और नागों के बीच विवाह सम्बन्धों का अनगिनत उदाहरण हैं। प्राचीन काल से नौवीं दसवीं शताब्दी तक के शिलालेख नागों से विवाह सम्बन्ध की चर्चा करते हैं।

नाग सांस्कृतिक विकास की ऊँची अवस्था को प्राप्त थे, साथ ही वे देश के एक बड़े भूभाग पर राज्य भी करते थे। महाराष्ट्र नागों का ही क्ष्रेत्र है, यहाँ के लोग और शासक नाग थे। ईसा की आरम्भिक शताब्दियों में आंध्र और उसके पड़ोसी राज्य नागों के अधीन थे। सातवाहन और उनके छुतकुल शातकर्मी उत्तराधिकारियों का रक्त नाग रक्त ही था। बौद्ध अनुश्रुति है कि कराची के पास मजेरिक नाम का एक नाग प्रदेश था। तीसरी और चौथी शताब्दियों में उत्तरी भारत में भी अनेक नाग नरेशों का शासन रहा है, यह बात पुराणों, प्राचीन लेखों और सिक्कों से सिद्ध होती है। इस तरह के तमाम साक्ष्य हैं जो इतिहास में नागों के लगातार प्रभुत्व को सिद्ध करते हैं।

अब आइये द्रविड़ पर, वे कौन थे? क्या वे और नाग अलग अलग लोग हैं या एक ही प्रजाति के दो नाम हैं? इस विषय पर दक्षिण के प्रसिद्ध विद्वान दीक्षितय्यर ने अपने रामायण में दक्षिन भारत नामक लेख में कहते हैं..


.............>
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 27-01-2013, 11:36 PM   #16
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: छुआछूत (अस्पृश्यता) .. सिद्धांत या कलंक



......................>


उत्तर पश्चिम में तक्षशिला, उत्तर पूर्व में आसाम और दक्षिण में श्री लंका तक, सर्प चिह्न वाले देवतुल्य नाग फैले हुए थे। एक समय वे अत्यन्त शक्तिशाली थे और श्रीलंका और मलाबार उनके कब्ज़े में रहे। मलाबार में आज भी नाग पूजा की परम्परा है। ऐसा लगता है कि ईसवी दौर आते आते नाग चेरों के साथ घुलमिल गये थे..

इसी विषय को सी एफ़ ओल्ढम आगे बढ़ाते हुए बताते हैं.. प्राचीन काल से द्रविड़ तीन भागों में बँटे हैं, चेर चोल और पान्ड्य.. तमिल भाषा में चेर नाग का पर्यायवाची है। इसके अतिरिक्त गंगा घाटी में चेरु या सिओरी कहलाने वाले एक प्राचीन प्रजाति रहती है, ऐसा माना जाता है कि उनका एक समय में गंगा घाटी के एक बड़े हिस्से पर उनका, यानी कि नागों का, आधिपत्य रहा है। ये कहा जा सकता है कि ये चेरु अपने द्रविड़ बंधु चेरों के सम्बन्धी हैं।

इसके अलावा दूसरी कडि़यां हैं जो दक्षिण के नागों को उत्तर भारत के नागों से मिलाती हैं। चम्बल में रहने वाले सरय, शिवालिक में सर या स्योरज और ऊपरी चिनाब में स्योरज। इसके अलावा हिमाचल की कुछ बोलियों में कीरा या कीरी का अर्थ साँप है हो सकता है किरात इसी से बना हो, जो एक हिमालय में रहने वाली एक प्रजाति है। नामों की समानता सदैव विश्वसनीय नहीं होती मगर ये सब लोग जिनके नाम मिलते जुलते हैं, सभी सूर्यवंशी है, सभी मनियर नाग को मानते हैं और ये सभी नाग देवता को अपना पूर्वज मानकर पूजते हैं।

तो यह स्पष्ट है कि नाग और द्रविड़ एक ही लोग हैं। मगर इस मत को स्वीकार करने में कठिनाई यह है कि यदि दक्षिण के लोग नाग ही हैं तो द्रविड़ क्यों कहलाते हैं? इस सम्बन्ध में तीन बातें ध्यान देने योग्य हैं। पहली भाषा सम्बन्धी बात पर सी एफ़ ओल्ढम साहब फ़रमाते हैं;

संस्कृत के वैयाकरण मानते हैं कि द्रविड़ भाषा को उत्तर भारत की लोक भाषाओं से सम्बन्धित मानते हैं, खासकर उन लोगों की बोलियों से जो असुरों के वंशज है। सभी बोलियों में पैशाची में संस्कृत का सबसे कम अंश है।

ऋगवेद के साक्ष्यों के अनुसार असुरों की भाषा आर्यों को समझ में नहीं आती थी। और अन्य साक्ष्यों से साफ़ होता है कि मनु के समय आर्य भाषा के साथ साथ म्लेच्छ या असुरों की भाषा भी बोली जाती थी, और जो महाभारत काल तक आते आते आर्य जातियों के लिये अगम्य हो गई। बाद के कालों में वैयाकरणों ने नाग भाषाएं बोलने वालों का ज़िक्र किया है। इस से पता चलता है कि कुछ लोगों द्वारा अपने पूर्वजों की भाषा त्याग दिये जाने के बावजूद कुछ लोग उस भाषा तथा संस्कृति का व्यवहार करते रहे, और ये कुछ लोग में पान्ड्य व द्रविड़ थे।

दूसरी ध्यान देने योग्य बात यह है कि द्रविड़ संस्कृत का मूल शब्द नहीं है। यह तमिल से दमित हुआ और फिर दमिल्ल से द्रविड़। तमिल का अर्थ कोई प्रजाति नहीं बल्कि एक सिर्फ़ एक भाषाई समुदाय है।

तीसरी ध्यान देने योग्य बात कि तमिल आर्यों के आने से पूर्व पूरे भारत में बोले जाने वाली भाषा थी। उत्तर के नागों ने अपनी भाषा द्रविड़ को छोड़ दिया और संस्कृत को अपना लिया जबकि दक्षिण के पकड़े रहे। चूंकि उत्तर के नाग अपनी भाषा को भूल चुके थे और द्रविड़ बोलने वाले लोग सिर्फ़ दक्षिण में सिमट कर रह गये थे इसीलिये उन्हे द्रविड़ पुकारना संभव हुआ।

तो यह समझा जाय कि नाग और द्रविड़ एक ही प्रजाति के दो भिन्न नाम हैं, नाग उनका संस्कृतिगत नाम है और द्रविड़ भाषागत। इस प्रकार दास वे ही हैं, जो नाग हैं, जो द्रविड़ हैं। और भारत में अधिक से अधिक दो ही नस्लें रही है, आर्य और द्रविड़। साफ़ है कि श्री स्टैनली राइस का मत गलत है, जो तीन नस्ल का अस्तित्व मानते हैं।

II

अगर यह मान भी लिया जाय कि कोई तीसरी नस्ल भी भारत में थी, तो यह साबित करने के लिये कि आज के अछूत प्राचीन काल के मूल निवासी ही हैं, दो प्रकार के अध्ययन का सहारा लिया जा सकता है; एक मानव शरीर शास्त्र (anthropometry) और दूसरा मानव वंश विज्ञान (ethonography)।

मानव शरीर शास्त्र के विद्वान डॉ धुरे ने अपने ग्रंथ 'भारत में जाति और नस्ल' में इन मसलों का अध्ययन किया । तमाम बातों के बीच ये बात भी सामने आई कि पंजाब के अछूत चूहड़े और यू पी के ब्राह्मण का नासिका माप एक ही है। बिहार के चमार और बिहार के ब्राह्मण का नासिका माप कुछ ज़्यादा भिन्न नहीं। कर्नाटक के अछूत होलेय का नासिका माप कर्नाटक के ब्राह्मण से कहीं ऊँचा है। यदि मानव शरीर शास्त्र विश्वसनीय है तो प्रमाणित होता है कि ब्राहमण और अछूत एक ही नस्ल के है। यदि ब्राह्मण आर्य है तो अछूत भी आर्य है, यदि ब्राह्मण द्रविड़ है तो अछूत भी द्रविड़ है, और यदि ब्राह्मण नाग है तो अछूत भी नाग है। इस स्थिति में राइस का सिद्धान्त निराधार सिद्ध होता है।

III

आइये अब देखें कि मानव वंश विज्ञान का अध्ययन क्या कहता है। सब जानते हैं कि एक समय पर भारत आदिवासी कबीलों के रूप में संगठित था। अब कबीलों ने जातियों का रूप ले लिया है मगर कबीलाई स्वरूप विद्यमान है। जिसे टोटेम या गोत्र के स्वरूप से समझा जा सकता है। एक टोटेम या गोत्र वाले लोग आपस में विवाह समबन्ध नहीं कर सकते। क्योंकि वे एक ही पूर्वज के वंशज यानी एक ही रक्त वाले समझे जाते। इस तरह का अध्ययन जातियों को समझने की एक अच्छी कसौटी बन सकता था मगर समाज शास्त्रियों ने इसे अनदेखा किया है और जनगणना आयोगों ने भी। इस लापरवाही का आधार यह गलत समझ है कि हिन्दू समाज का मूलाधार उपजाति है।

सच्चाई यह है कि विवाह के अवसर पर कुल और गोत्र के विचार को ही प्रधान महत्व दिया जाता है, जाति और उपजाति का विचार गौण है। और हिन्दू समाज अपने संगठन की दृष्टि से अभी भी कबीला ही है। और परिवार उसका आधार है।

महाराष्ट्र में श्री रिसले द्वारा एक अध्ययन से सामने आया कि मराठों और महारों में पाए जाने वाले कुल एक ही से हैं। मराठों में शायद ही कोई कुल हो जो महारों में ना हो। इसी तरह पंजाब में जाटों और चमारों के गोत्र समान हैं।

यदि ये बाते सही हैं तो आर्य भिन्न नस्ल के कैसे हो सकते हैं? जिनका कुल और गोत्र एक हो, वे सम्बन्धी होंगे। तो फिर भिन्न नस्ल के कैसे हो सकते हैं? अतः छुआछूत की उत्पत्ति का नस्लवादी सिद्धान्त त्याज्य है।



अध्याय सात के सन्दर्भ में प्राप्त हुई टिप्पणी

1 टिप्पणी:

1. ***** ji aap agar ye jaan lenga ki Beahmin kaun thea too Achoot kaun thea ka bhi pata lag jayaga.
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 27-01-2013, 11:39 PM   #17
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: छुआछूत (अस्पृश्यता) .. सिद्धांत या कलंक

अध्याय ८: छुआछूत की व्यवसायजन्य उत्पत्ति

श्री स्टैनली राइस के इस सिद्धान्त के अनुसार छुआछूत का कारण अछूतों के गंदे और अपवित्र पेशों से उपजता है। ये सिद्धान्त तार्किक लगता है। मगर इस तरह के पेशे दुनिया के हर समाज में पाये जाते हैं तो दूसरी जगहों पर उन्हे अछूत क्यों न समझा गया?

नारद स्मृति से पता चलता है कि आर्य स्वयं इस प्रकार के गंदे कार्य करते थे। नारद स्मृति के अध्याय ५ में कहा है कि पवित्र काम करने के लिये अन्य सेवकों का इस्तेमाल किया जाय जबकि अपवित्र काम जैसे झाड़ू लगाना, कूड़ा व जूठन उठाना, और शरीर के अंगो की मालिश करना दासों के विभाग में आता है। शेष काम पवित्र है जो अन्य सेवकों द्वारा किये जा सकते हैं।

सवाल उठता है कि ये दास कौन थे? क्या वे आर्य थे या अनार्य थे? आर्यों मे दास प्रथा थी और किसी भी वर्ण का आर्य दास हो सकता था। दास होने के पंद्रह तरीके नारद स्मृति में अलग से बताये हैं। और दास प्रथा के बारे में याज्ञवल्क्य ने कहा है कि यह प्रतिलोम क्रम से नहीं अनुलोम क्रम से लागू होती है। इसी पर विज्ञानेश्वर ने मिताक्षरी में व्याख्या करते हुए बताया है कि शूद्र का दास सिर्फ़ शूद्र हो सकता है जबकि एक ब्राह्मण, शूद्र वैश्य क्षत्रिय और ब्राह्मण सभी को दास बना सकता है। लेकिन एक ब्राह्मण सिर्फ़ ब्राह्मण का ही दास हो सकता है।

एक बार दास बन जाने के बाद दास के लिये नियत कर्तव्यों में जाति की कोई भूमिका न होती। दास चाहे ब्राह्मण हो या शूद्र उसे झाडू़ लगानी ही होगी। एक ब्राह्मण दास एक शूद्र के घर भले ही भंगी का काम न करे पर उस ब्राह्मण के घर तो करेगा ही जिसका वह दास है। अतः यह साफ़ है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, जो कि आर्य हैं, गंदे से गंदा, भंगी का काम करते हैं। जब यह काम एक आर्य के लिये घृणित नहीं था तो कैसे कहा जा सकता है कि गंदे और अपवित्र पेशे छुआछूत का आधार बन गये? इसलिये छुआछूत का व्यवसायजन्य उतपत्ति का सिद्धान्त भी खारिज करने योग्य है।



अध्याय आठ के लिए ब्लॉगर महोदय को कोई भी टिप्पणी नहीं प्राप्त हुई।
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 27-01-2013, 11:42 PM   #18
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: छुआछूत (अस्पृश्यता) .. सिद्धांत या कलंक

अध्याय ९: बौद्धों का अपमान - छुआछूत का मूलाधार

१८७० से चार जनगणनाओं मे धार्मिक आधारों पर ही लोगों को वर्गीकृत किया जाता था। मगर १९१० में पहली बार नया तरीका अपनाया गया और हिन्दुओ को तीन वर्गों में बाँटा गया; १. हिन्दू, २. जनजाति या आदिवासी, ३. अछूत। हिन्दुओ के भीतर वर्गीकरण करने के लिये दस कसौटियां तय की गईं।

१. ब्राह्मणों का प्रभुत्व नहीं मानते।

२. किसी ब्राह्मण या हिन्दू गुरु से गुरु मंत्र नहीं लेते।

३. देवों को प्रमाण नहीं मानते।

४. हिन्दू देवी देवताओं को नहीं पूजते।

५. अच्छे ब्राह्मण उनका संस्कार नहीं करते।

६. उनका कोई ब्राह्मण पुरोहित नहीं होता।

७. मंदिरों के गर्भ गृह में प्रवेश नहीं पा सकते।

८. स्पर्श या पास आकर अपवित्र कर देते है।

९. अपने मुर्दों को दफ़नाते हैं।

१०. गोमांस खाते हैं।

इन में से क्रम संख्या २, ५, ६, ७, और १० अछूतों से सम्बन्धित हैं और २, ५, व ६ पर इस अध्याय में चर्चा होगी।

सभी प्रांतो के जनगणना आयुक्तों ने पाया कि अछूतों के अपने पुजारी होते हैं। चूंकि ब्राह्मण अछूतों से स्वयं को ऊँचा मानते हैं और घृणा करते हैं इसलिये ये तथ्य मिले हैं ऐसा आम तौर पर समझा गया। किंतु यदि यह कहा जाय कि अछूत भी ब्राह्मणो को अपवित्र मानते हैं तो लोगों को आश्चर्य होगा। मगर एबे दुबोय को ऐसे तथ्य मिले हैं;"

आज भी गाँव में एक पैरिया (अछूत) ब्राह्मणों की गली से नहीं गुज़र सकता। दूसरी ओर एक पैरिया एक ब्राह्मण को अपनी झोपड़ियों के बीच से नहीं गुज़रने देगा क्यों कि उनके विश्वास के अनुसार यह अपशगुन उन्हे बरबाद कर देगा।"

मैसूर के हसन ज़िले के होलेय के बारे में लिखते हैं श्री मैकेन्ज़ी, गाँव की सीमा के बाहर उन होलियरो की बस्ती है, जिनके स्पर्श मात्र से लोग अपवित्र हो जाते हैं' बावजूद इसके सत्य यह भी है कि अगर एक ब्राह्मण होलियरों की बस्ती से बिना बेइज्जत हुए गुज़र पाए तो इसे अपना सौभाग्य समझता है। क्योंकि कोई ब्राह्मण उनकी बस्ती में आए इससे होलियरों को बड़ी आपत्ति है, और इस प्रकार आने वाले ब्राह्मण को वे सब मिल कर जूतों से मारते हैं।

इस अजीबोगरीब व्यवहार की क्या व्याख्या हो सकती है? याद रखा जाय कि अछूत हमेशा अछूत नहीं थे, वे उजड़े हुए कबीलों के लोग या छितरे लोग थे। तो वो क्या वजह थी कि ब्राह्मणों ने इनके धार्मिक रीति रिवाज़ को सम्पन्न कराने से क्यों इंकार कर दिया? या कहीं ऐसा तो नहीं कि इन छितरे लोगों ने ही ब्राह्मणों को मान्यता से देने इंकार कर दिया? इस परस्पर अपवित्रता की धारणा और परस्पर घृणा का कारण क्या है?


..........>
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 27-01-2013, 11:44 PM   #19
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: छुआछूत (अस्पृश्यता) .. सिद्धांत या कलंक


...............>

इसका एक स्पष्टीकरण यह हो सकता है कि ये छितरे लोग बौद्ध थे और इसी लिये वे ब्राह्मणों का न तो आदर करते थे और न उन्हे अपना पुरोहित बनाते थे। दूसरी ओर ब्राह्मण भी उन्हे पसन्द नहीं करते थे क्योंकि वे बौद्ध थे। अब इसका कोई प्रमाण नहीं कि वे बौद्ध थे मगर चूंकि उस वक्त अधिकाधिक लोग बौद्ध ही थे इसलिये ये माना जा सकता है कि वे बौद्ध थे। और बौद्धों के प्रति घृणा के प्रमाण मिलते हैं;नीलकंठ की पुस्तक प्रायश्चित मयूख में मनु का एक श्लोक आता है, जिसका अर्थ है-

'यदि कोई आदमी किसी बौद्ध, पाशुपत पुष्प, लोकायत, नास्तिक या किसी महापातकी का स्पर्श करेगा तो वह स्नान करके ही शुद्ध हो सकेगा'।

वृद्ध हारीत ने एक कदम आगे जाकर बौद्ध विहार में जाने को पाप घोषित किया है, जिससे मुक्त होने के लिये आदमी को स्नान करना होगा।

इस दुर्भावना का सबसे अच्छा प्रमाण मृच्छकटिक में है। नाटक का नायक चारुदत्त बौद्ध श्रमण के दर्शन मात्र को अपशगुन मानता है। और खलनायक शकार बौद्ध श्रमण को देखकर मारने की धमकी देता है और पीटता भी है। आम हिन्दू जनों की भीड़ बौद्ध श्रमण से बच बच कर चलती है। घृणा का भाव इतना प्रबल है कि जिस सड़क पर श्रमण चलता है हिन्दू उस पर चलना ही छोड़ देता है। देखें तो बौद्ध श्रमण और ब्राह्मण एक तरह से बराबर हैं। लेकिन ब्राह्मण मृत्युदण्ड और शारीरिक दण्ड से मुक्त है और बौद्ध श्रमण मारा जाता है बिना किसी प्रायश्चित या आत्मग्लानि के मानो इस में कोई बुराई ही न हो।

यह स्वीकार कर लेने में कि छितरे लोग बौद्ध थे, तमाम प्रश्नों के उत्तर हमारे लिये साफ़ हो जाते हैं। लेकिन क्या सिर्फ़ बौद्ध होना ही उनके अछूत होने के लिये पर्याप्त था? इस सवाल का सामना करेंगे हम अगले अध्याय में।



अध्याय नौ के सन्दर्भ में प्राप्त हुई टिप्पणी
1 टिप्पणी :


1. ye श्लोक मनु का nahi hai.. "यदि कोई आदमी किसी बौद्ध, पाशुपत पुष्प, लोकायत, नास्तिक या किसी महापातकी का स्पर्श करेगा तो वह स्नान करके ही शुद्ध हो सकेगा" Ye sab Manu aur Hindu Dharma ko Badnaam sabit karne ki koshish hai.
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 27-01-2013, 11:47 PM   #20
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: छुआछूत (अस्पृश्यता) .. सिद्धांत या कलंक

अध्याय १०: गोमांस भक्षण - छुआछूत का मूलाधार

अब बात की जाय जनसंख्या आयुक्त के प्रपत्र की संख्या १० की, जो गोमांस खाने से सम्बन्धित है। जनसंख्या के परिणामों से पता चलता है कि अछूत जातियों का मुख्य भोजन मरी गाय का मांस है। नीच से नीच हिन्दू भी गोमांस नहीं खाता। और दूसरी तरफ़ जितनी भी अछूत जातियां हैं, सब का सम्बन्ध किसी न किसी तरह से मरी हुई गाय से है, कुछ खाते हैं, कुछ चमड़ा उतारते हैं, और कुछ गाय के चमड़े से बनी चीज़ें बनाते हैं।

तो क्या गोमांस भक्षण का अस्पृश्यता से कुछ गहरा सम्बन्ध है? मेरा विचार से यह कहना तथ्यसंगत होगा कि वे छितरे लोग जो गोमांस खाते थे, अछूत बन गए।

वेदव्यास स्मृति का श्लोक कहता है; 'मोची, सैनिक, भील धोबी, पुष्कर, व्रात्य, मेड, चांडाल, दास, स्वपाक, कौलिक तथा दूसरे वे सभी जो गोमांस खाते हैं, अंत्यज कहलाते हैं।' वेदव्यास स्मृति के इस श्लोक के बाद तर्क वितर्क की कोई गुंजाइश नहीं रहनी चाहिये।

पूछा जा सकता है कि ब्राह्मणों ने बौद्धों के प्रति जो घृणा का भाव फैलाया था वह तो सामान्य रूप से सभी बौद्धों के विरुद्ध था तो फिर केवल छितरे लोग ही अछूत क्यों बने? तो अब हम निष्कर्ष निकाल सकते है कि छितरे लोग बौद्ध होने के कारण घृणा का शिकार हुए और गोमांस भक्षण के कारण अछूत बन गए।

गोमांसाहार को अस्पृश्यता की उत्पत्ति का कारण मान लेने से कई तरह के प्रश्न खड़े हो जाते हैं। मैं इन प्रश्नों का उत्तर निम्न शीर्षकों में देना चाहूँगा -

१. क्या हिन्दू कभी गोमांस नहीं खाते थे?

२. हिन्दुओं ने गोमांस खाना क्यों छोड़ा?

३. ब्राह्मण शाकाहारी क्यों बने?

४. गोमांसाहार से छुआछूत की उत्पत्ति क्यों हुई? और

५. छुआछूत का चलन कब से हुआ?



अध्याय दस के लिए ब्लॉगर महोदय को कोई भी टिप्पणी नहीं प्राप्त हुई।
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 11:35 PM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.