23-01-2013, 06:45 PM | #11 |
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Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
यूँही तेरी अदाओं ने मार रक्खा है दीपक खत्री 'रौनक' |
23-01-2013, 06:46 PM | #12 |
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Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
उसने ये कहा था उसके वास्ते रुकूँ
मौत! तुझसे आज एक वादा हो गया बड़ी हसीन उससे मुलाकात थी 'रौनक' आज फिर से जीने का इरादा हो गया दीपक खत्री 'रौनक' |
23-01-2013, 06:59 PM | #13 |
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Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
होंसला जो जिंदगी में आधा हो गया
एक तेरा गम ही जरा ज्यादा हो गया दीपक खत्री 'रौनक' |
23-01-2013, 07:00 PM | #14 |
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Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
देखों कैसे बढ़ गए रिश्तों के फाँसले ! बदले जहान में
पास जो हुआ दूरभाष से दिल से दूर हो गया दीपक खत्री 'रौनक' |
23-01-2013, 07:01 PM | #15 |
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Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
अँधा बनाती इस चकाचौंध मे
उम्मीद की एक किरण चाहता हूँ सही न जाये ये जिस्त अब 'रौनक' क़ैद मे हूँ रिहाई चाहता हूँ दीपक खत्री 'रौनक' |
23-01-2013, 07:03 PM | #16 |
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Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
अंजाम-ए-इश्क मेरा जुदा हो गया
हुब्ब से मेरे वो खुदा हो गया घेरा इस कदर श्याह रात ने हमको उजाला हरेक लम्हे से फ़ना हो गया हुए जो घाव दिल के अब नासूर मलहम-ए-दिल मेरा खफा हो गया निकला हूँ अब जो तेरे रंजो गम से फिर से जीने का इरादा हो गया न हो जाये कहीं गुनाह फिर से वही मेलजोल उस से गर ज्यादा हो गया उलझ कर रह जाये न कहीं जिंदगी 'रौनक' उल्फत मे गर कहीं वादा हो गया दीपक खत्री 'रौनक' |
23-01-2013, 07:04 PM | #17 |
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Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
ग़ज़ल
मत बोल के लाचार अदाकार हैं हम सब आ जाए अगर वक्त तो हथियार हैं हम सब दिलदार है मदहोश शराबी न समझना बस खास इशारों के तलबगार हैं हम सब माना के खंज़र पीठ मे अपनों ने है मारा सोचूं गर इस सम्म के हिस्सेदार हैं हम सब चाही है दिलोंजान से आराम परस्ती आराम बेशूमार के परस्तार हैं हम सब जालिम हंसा खूब बेहिसाब देकर गम खो कर अपनी आस वफादार हैं हम सब आजाद ख्यालात फिकरदार है 'रौनक' हाँ उन्स-ओ-मोहब्बत के परस्तार हैं हम सब दीपक खत्री 'रौनक' |
23-01-2013, 07:07 PM | #18 |
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Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
ग़ज़ल
आरज़ू कर खास सब हिस्से आना है हौंसलों की जीत का नशा आला है जान जाता जो फ़कीर की मजबूरी जो देता दिल खोल उसे खुदा माना है सोचना छोड़ा किसी से वादा जो था प्यार को पूरा फिकरनशीं माना है लाज़मी तूं कर वही इशारा जो हो ज़िन्दगी की चाल शूल की माला है महफ़िल-ए-रौनक मे आलम-ए- तन्हाई हर कोई कहता रहा समां आला है दीपक खत्री 'रौनक' |
23-01-2013, 07:09 PM | #19 |
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Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
उम्र कट जाये ऐसी कहानी देदे
खुद के हाथों से कोई निशानी देदे बात कर होश की जोश का जिक्र करदे शान बढ़ जाये ऐसी रवानी देदे दीपक खत्री 'रौनक' |
23-01-2013, 07:13 PM | #20 |
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Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
उम्मीद भरी आँख का इशारा था तुझको
नज़र का सवाल वो आखिरी था इश्क के लिए प्यार की निशानी है कभी ताजमहल 'रौनक' तो कभी मोहब्बत का है मकबरा किसी के लिए दीपक खत्री 'रौनक' |
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