20-10-2011, 09:52 PM | #11 |
Super Moderator
Join Date: Nov 2010
Location: Sherman Oaks (LA-CA-USA)
Posts: 51,823
Rep Power: 183 |
Re: साहित्यकारों के विनोद प्रसंग
अशोक वाजपेयी को लेकर एक और जातक कथा प्रचलित है। हुआ यह कि एक बार एक संन्यासी भारत भवन नामक गुफा में अपने शिष्यों सहित आकर ठहरा। उसने देखा कि खूंटी पर टंगे थैले से रोज रोटियां गायब हो जाती हैं। एक दिन संन्यासी नींद का बहाना कर जागता रहा। उसने देखा कि एक चूहा अपने बिल से निकल कर सीधा छलांग लगा कर खूंटी पर टंगे थैले से रोटियां निकाल कर वापस बिल में चला जाता है। अगले दिन संन्यासी ने शिष्यों को बुलाकर बिल खुदवाया तो वहां राष्ट्रीय खजाना गड़ा हुआ था। संन्यासी ने वहां से खजाना खाली करा दिया। अबकी बार चूहा आया, तो संन्यासी ने देखा कि वह छलांग नहीं लगा पा रहा है और सिर्फ एक-आध इंच ही उछल पा रहा है। संन्यासी ने अपने शिष्यों को बुलाकर समझाया कि चूहा राष्ट्रीय खजाने के प्रताप से ही लंबी छलांगें लगा रहा था।
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु Last edited by Dark Saint Alaick; 20-10-2011 at 10:22 PM. |
27-10-2011, 01:45 PM | #12 | ||
Special Member
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 43 |
Re: साहित्यकारों के विनोद प्रसंग
Quote:
Quote:
ये दोनों वाक्ये बहुत अच्छे लगे ........... |
||
31-10-2011, 03:15 PM | #13 |
Super Moderator
Join Date: Nov 2010
Location: Sherman Oaks (LA-CA-USA)
Posts: 51,823
Rep Power: 183 |
Re: साहित्यकारों के विनोद प्रसंग
सुसंस्कृत
अबूतालिब एक बार मास्को में थे। सड़क पर उन्हें किसी राहगीर से कुछ पूछने की आवश्यकता हुई। शायद यही कि मंडी कहा है। संयोग से कोई अंग्रेज ही उनके सामने आ गया। इसमें हैरानी की तो कोई बात नहीं- मास्को की सड़कों पर तो विदेशियों की कुछ कमी नहीं है। अंग्रेज अबुतालिब की बात न समझ पाया और पहले तो अंग्रेजी, फिर फ्रांसिसी, स्पेनी और शायद दूसरी भाषाओं में भी पूछ-ताछ करने लगा। अबु तालिब ने शुरू में रूसी, फिर लाक, अवार, लेजगीन, दार्गिन और कुमीन भाषाओं में अपनी बात समझाने की कोशिश की। आखिर में एक दूसरे को समझे बिना वो दोंनो अपनी-अपनी राह चले गए। एक बहुत ही सुसंस्कृत दागिस्तानी ने जो अंग्रेजी भाषा के ढाई शब्द जानता था, बाद में अबूतालिब को उपदेश देते हुए यह कहा- "देखा, संस्कृति का क्या महत्व है। अगर तुम कुछ अधिक सुसंस्कृत हाते, तो अंग्रेज से बात कर पाते। समझे न ?" "समझ रहा हूँ," अबूतालिब ने जवाब दिया। मगर अंग्रेज को मुझसे अधिक सुसंस्कृत कैसे मान लिया जाए ? वह भी तो उनमें से एक भी जबान नहीं जानता था, जिनमें मैंने उससे बात करने की कोशिश की ? -रसूल हमजातोव (मेरा दागिस्तान)
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
31-10-2011, 03:17 PM | #14 |
Super Moderator
Join Date: Nov 2010
Location: Sherman Oaks (LA-CA-USA)
Posts: 51,823
Rep Power: 183 |
Re: साहित्यकारों के विनोद प्रसंग
कवि और सुनहरी मछली का किस्सा
कहते है कि किसी अभागे कवि ने कास्पियन सागर में एक सुनहरी मछली पकड़ ली। कवि, कवि, मुझे सागर में छोड़ दो, सुनहरी मछली ने मिन्नत की। तो इसके बदले में तुम मुझे क्या दोगी ? "तुम्हारे दिल की सभी मुरादें पूरी हो जाएंगी।" कवि ने खुश होकर सुनहरी मछली को छोड़ दिया। अब कवि की किस्मत का सितारा बुलन्द होने लगा। एक के बाद एक उसके कविता-संग्रह निकलने लगे। शहर में उसका घर बन गया और शहर के बाहर बढ़िया बंगला भी। पदक और श्रम-वीरता के लिए तमगा भी उसकी छाती पर चमकने लगे। कवि ने ख्याति प्राप्त कर ली और सभी की जबान पर उसका नाम सुनाई देने लगा। ऊँचे से ऊँचे ओहदे उसे मिले और सारी दुनिया उसके सामने भुने हुए,प्याज और नींबू से कजेदार बने हुए सीख कबाब के समान थी। हाथ बढ़ाओ, लो और मजे से खाओ। जब वह अकादमीशियन तथा संसद-सदस्य बन गया था और पुरस्कृत हो चुका था, तो एक दिन उसकी पत्नी ने ऐसे ही कहा- “आह, इन सब चीजों के साथ-साथ तुमने सुनहरी मछली से कुछ प्रतिभा भी क्यों नहीं मांग ली ?” - रसूल हमजातोव (मेरा दागिस्तान)
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
02-11-2011, 09:15 AM | #15 |
Super Moderator
Join Date: Nov 2010
Location: Sherman Oaks (LA-CA-USA)
Posts: 51,823
Rep Power: 183 |
Re: साहित्यकारों के विनोद प्रसंग
रुपए ख़र्च करने का शौक़
अहमद बशीर अग्रेज़ी में सोचते है, पंजाबी बोलते और उर्दू में लिखते हैं। वह मां बोली का संजीदगी से एहतराम करते हैं। उनका कहना है कि लिखो बेशक जिस ज़बान में, बोलो तो अपनी ज़बान.. देश विभाजन के बाद मैं लाहौर गया, तो माहनामा ‘तख़लीक’ के संपादक अजहर जावेद ने मेरी मुलाकात कहानीकार यूनस जावेद से कराई और फिर यूनस जावेद के माध्यम से मैं अहमद बशीर से मिला। अहमद बशीर अब इस दुनिया में नही हैं। मैं जब-जब भी पाकिस्तान जाता हूं, तो उनकी अफ़सानानिगार बेटी नीलम बशीर से मुलाक़ात होती है। पिछले दिनों मैं लाहौर गया, तो बुशरा को रहमान द्वारा दी गई दावत में यूनस जावेद, नीलम बशीर और अहमद बशीर को नज़दीक से जानने वाले कई लोग मिल गए। बातों का केंद्र अहमद ही थे। और यूनस जावेद बता रहे थे कि मैं और अहमद बशीर कृष्णा नगर (लाहौर) के एक मकान में साथ-साथ रहते थे। बीए करने के बाद अहमद बशीर को पहली नौकरी फ़ौज में मिली, जहां से वह भगौड़ा हो गए। उन्हें दूसरी नौकरी कपड़ा इंसपैक्टर की मिली, जो रास नहीं आई। एक रोज़ मैंने बस यूं ही कह दिया कि तुम पत्रकार क्यों नही बन जाते और उन्होंने संज़ीदगी से पत्रकार बनने का फ़ैसला कर लिया और दैनिक अख़बार ‘इमरोज़’ के संपादक मौलाना चिराग़ हसन हसरत के पास नौकरी के लिए जा पहुंचे। मौलाना ने उनकी बात सुनी, कहा, इस समय कोई जगह ख़ाली नही है, फिर पूछा, कलर्की करोगे? अहमद बशीर ने कहा-‘नहीं’। सवाल हुआ अनुवाद कर सकते हो? जवाब ‘हां’ था। मौलाना ने पूछा-आजकल क्या करते हो? अहमद बशीर ने कहा कुछ भी नहीं। प्रश्न हुआ कि गुज़ारा कैसे होता है? उत्तर मिला कि रोटी एक दोस्त खिला देता है, कपड़े उसकी बीवी धुलवा देती है, सिग्रेट इधर-उधर से पी लेता हूं। चाय की आदत नहीं। मौलाना की भवे सिमटीं, फैलीं और फिर सिमट गईं तथा कुछ सोचते हुए बोले-‘अगर आपको नौकरी पर रख लिया जाए, तो कितने रुपयों की जरूरत होगी?’ अहमद बशीर ने तुरंत उत्तर दिया-‘पांच सौ। मुझे रुपए ख़र्च करने का शौक़ है।’ अहमद बशीर की बात सुनकर मौलाना बोले- ‘पांच सौ रुपए तो मुझे मिलते हैं। आप को कैसे दे सकते हैं। बशीर ने कहा, ‘तो न दें। आपने पूछा, मैंने बता दिया।’ हैरत ने मौलाना का संतुलन हिला दिया। कुछ देर ख़ामोशी और फिर बात आगे बड़ी, आधे घंटे के बाद दोनों ‘स्टेफ़लो’ में बैठे पी रहे थे। मौलाना को अहमद बशीर का अज़ीब होना और बशीर को मौलाना की मासूमियत पंसद आई थी। एक घंटे बाद दोनों खुल गए। मौलाना ने बागेशरी का अलाप सुनाया, बशीर ने फ़हश बोलिया सुनाईं॥ और यूं अहमद बशीर सहाफ़ी बन गए।
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
08-11-2011, 05:16 PM | #16 | |
Junior Member
Join Date: Nov 2011
Posts: 1
Rep Power: 0 |
Re: साहित्यकारों के विनोद प्रसंग
Quote:
|
|
19-02-2013, 04:14 PM | #17 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: साहित्यकारों के विनोद प्रसंग
आचार्य राम चन्द्र शुक्ल और आलोचना
एक बार की बात है कि शुक्ल जी का स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा था और डॉक्टर ने कोई चीज़ न खाने की ताकीद की थी. शुक्ल जी अपने कमरे में बैठ कर कुछ लिख रहे थे कि उनकी 6 -7 वर्ष की पौती वहां आई और पूछने लगी, 'दादा जी, आप क्या कर रहे हैं?' शुक्ल जी ने उत्तर दिया, 'हम आलोचना कर रहे हैं.' उनकी पौती भागी भागी बाहर गई और सबसे कहने लगी कि 'दादा जी आलू - चना खा रहे हैं.' |
19-02-2013, 04:46 PM | #18 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: साहित्यकारों के विनोद प्रसंग
महान लेखक शरत चन्द्र और मच्छर
एक डाकिया पत्र वितरण कर रहा था कि एक लिफ़ाफ़े पर पाने वाले का नाम पढ़ कर अचरज में पड़ गया. क्योंकि घर का नंबर नहीं किखा था अतः वह नाम पढ़ कर ही पत्र को सही व्यक्ति तक पहुंचाना चाहता था. लेकिन नाम लिखा था "श्रीमच्छरच्चन्द्र चैटर्जी". कुछ लोगों से असफल पूछताछ करने के बाद वह शरत चन्द्र जी के पास आकर बोला," आजकल लोग भी कैसे कैसे नाम रखने लग पड़े हैं, कि समझ ही नहीं आता. अपने मोहल्ले में कोई मच्छरचन्द्र जी रहने आये हैं क्या?" शरत चन्द्र जी ने कहा कि जरा ख़त मुझको दिखाना! पत्र को गौर से देखने के बाद शरत चन्द्र जी ने हँसते हुए कहा 'अरे! यह पत्र मेरा ही है'. जब डाकिये ने पत्र पर लिखे नाम के बारे में शंका व्यक्त की तो शरत बाबू ने कहा कि तुम नहीं समझोगे. यह समास का मामला है. वास्तव में यह पत्र उनके एक भाषाविद मित्र ने भेजा था जिन्होनें समास का प्रयोग करते हुए श्री+मत्+शरत+चन्द्र को संयुक्त रूप से श्रीमच्छरच्चन्द्र लिख दिया था. Last edited by rajnish manga; 19-02-2013 at 05:08 PM. |
18-03-2013, 12:26 AM | #19 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: साहित्यकारों के विनोद प्रसंग
एक बार आगरा के एक कवि सम्मेलन में ‘मधुशाला' के रचयिता हरिवंश राय बच्चन आमंत्रित थे. कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रेमचंद जी कर रहे थे. बच्चन जी के लिए पानी आया तो उन्होंने पास बैठे प्रेमचंद जी से पूछा,
“बाबूजी, पानी पियेंगे?” मुंशी प्रेमचंद ने पहले पानी की ओर देखा, फिर बच्चन की ओर देख कर एक शरारती मुस्कान के साथ बोले, “तुम्हारे हाथ से पानी पियेंगे?” फिर दोनों ठहाका लगा कर हंस पड़े. सारा मंच उन्हें देख रहा था. (साभार: नवनीत/ नवम्बर 2009) Last edited by rajnish manga; 18-03-2013 at 12:29 AM. |
18-03-2013, 12:38 AM | #20 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100 |
Re: साहित्यकारों के विनोद प्रसंग
हास्यरस से भरपूर प्रसंग पढ़कर मन प्रसन्न हो गया बन्धुओं। श्री अमृतलाल नागर जी बहुत ही हाजिर जवाब और विनोदप्रिय रहे हैं। क्या श्री नागर जी से सम्बंधित कोई प्रसंग इस सूत्र के लिए है? कृपया इनकी पुस्तक "नाच्यो बहुत गोपाल" एक बार अवश्य पढ़ें। धन्यवाद।
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
Bookmarks |
|
|