26-01-2014, 09:45 PM | #11 |
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Re: लोककथा संसार
बदी का फल आलेख: शशिप्रभा गोयल किसी गांव में दो मित्र रहते थे। बचपनसे उनमें बड़ी घनिष्टता थी। उनमें से एक का नाम था पापबुद्धि और दूसरे का धर्मबुद्धि । पापबुद्धि पाप के काम करने में हिचकिचाता नहीं था। कोई भी ऐसा दिन नहीं जाता था, जबकि वह कोई-न-कोई पाप ने करे, यहां तक कि वह अपने सगे-सम्बंधियों के साथ भी बुरा व्यवहार करने में नहीं चूकता था। दूसरा मित्र धर्मबुद्धि सदा अच्छे-अच्छे काम किया करता था। वह अपने मित्रों की कठिनाइयों को दूर करने के लिए तन, मन, धन से पूरा प्रयत्न करता था। वह अपने चरित्र के कारण प्रसिद्व था। धर्मबुद्धि को अपने बड़े परिवार का पालन-पोषण करना पड़ता था। वह बड़ी कठिनाईयों से धनोपार्जन करता था। एक दिन पापबुद्धि ने धर्मबुद्धि के पास जाकर कहा, "मित्र ! तूने अब तक किसी दूसरे स्थानों की यात्रा नहीं की। इसलिए तुझे और किसी स्थान की कुछ भी जानकारी नहीं है। जब तेरे बेटे-पोते उन स्थानों के बारे में तुझसे पूछेंगे तो तू क्या जवाब देगा ? इसलिए मित्र, मैं चाहता हूं कि तू मेरे साथ घूमने चल।" धर्मबुद्धि ठहरा निष्कपट। वह छल-फरेब नहीं जानता था। उसने उसकी बात मान ली। ब्राह्राण से शुभ मुहूर्त निकलवा कर वे यात्रा पर चल पड़े। चलते-चलते वे एक सुन्दर नगरी में जाकर रहने लगे। पापबुद्धि ने धर्मबुद्धि की सहायता से बहुत-सा धन कमाया। जब अच्छी कमाई हो गई तो वे अपने घर की ओर रवाना हुए। रास्ते में पापबुद्धि मन-ही-मन सोचने लगा कि मैं इस धर्मबुद्धि को ठग कर इस सारे धन को हथिया लूं और धनवान बन जाऊं। इसका उपाय भी उसने खोज लिया। दोनों गांव के निकट पहुंचे। पापबुद्धि ने धर्मबुद्धि से कहा, "मित्र, यह सारा धनगांव में ले जाना ठीक नहीं।" यह सुनकर धर्मबुद्धि ने पूछा, "इसको कैसे बचाया जा सकता है? "
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26-01-2014, 09:47 PM | #12 |
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Re: लोककथा संसार
पापबुद्धि ने कहा, "सारा धन अगर गांव में ले गये तो इसे भाई बटवा लेंगे और अगर कोई पुलिस को खबर कर देगा तो जीना मुश्किल हो जायगा। इसलिए इस धन में से आवश्यकता के अनुसार थोड़ा-थोड़ा लेकर बाकी को किसी जंगल में गाड़ दें। जब जरुरत पड़ेगी तो आकर ले जायेंगे।"
यह सुनकर धर्मबुद्धि बहुत खुश हुआ। दोनों ने वैसा ही किया और घर लौट गए। कुछ दिनों बाद पापबुद्धि उसी जंगल में गया और सारा धन निकालकर उसके स्थान पर मिटटी के ढेले भर आया। उसने वह धन अपने घर में छिपा लिया। तीन-चार दिन बाद वह धर्मबुद्धि के पास जाकर बोला, "मित्र, जो धन हम लाये थे वह सब खत्म हो चुका है। इसलिए चलो, जंगल में जाकर कुछ धन और लें आयें।" धर्मबुद्धि उसकी बात मान गया और अगले दिन दोनों जंगल में पहुंचे। उन्होंने गुप्त धन वाली जगह गहरी खोद डाली, मगर धन का कहीं भी पता न था। इस पर पापबुद्वि ने बड़े क्रोध के साथ कहा, " धर्मबुद्धि, यह धन तूने ले लिया है।" धर्मबुद्धि को बड़ा गुस्सा आया। उसने कहा, "मैंने यह धन नहीं लिया। मैंने अपनी जिंदगी में आज तक ऐसा नीच काम कभी नहीं किया ।यह धन तूने ही चुराया है।" पापबुद्वि ने कहा, "मैंने नहीं चुराया, तूने ही चुराया है। सच-सच बता दे और आधा धन मुझे दे दे, नहीं तो मैं न्यायधीश से तेरी शिकायत करूंगा।" धर्मबुद्धि ने यह बात स्वीकार कर ली। दोनों न्यायालय में पहुंचे। न्ययाधीश को सारी घटना सुनाई गई। उसने धर्मबुद्वि की बात मान ली और पापबुद्धि को सौ कोड़े का दण्ड दिया। इस पर पापबुद्धि कांपने लगा और बोला, "महाराज, वह पेड़ पक्षी है। हम उससे पूछ लें तो वह हमें बता देगा कि उसके नीचे से धन किसने निकाला है।" यह सुनकर न्यायधीश ने उन दोनों को साथ लेकर वहां जाने का निश्यच किया। पापबुद्धि ने कुछ समय के लिए अवकाश मांगा और वह अपने पिता के पास जाकर बोला, "पिताजी, अगर आपको यह धन और मेरे प्राण बचाने हों तो आप उस पेड़ की खोखर में बैठ जायं और न्यायधीश के पूछने पर चोरी के लिए धर्मबुद्धि का नाम ले दें।"
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26-01-2014, 09:48 PM | #13 |
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Re: लोककथा संसार
पिता राजी हो गये। अगले दिन न्यायधीश, पापबुद्धि और धर्मबुद्धि वहां गये। वहां जाकर पापबुद्धि ने पूछा, "ओ वृक्ष ! सच बता, यहां का धन किसने चुराया है।"
खोखर में छिपे उसके पिता ने कहा, " धर्मबुद्धि ने।" यह सुनकर न्यायधीश धर्मबुद्धि को कठोर कारावास का दण्ड देने के लिए तैयार हो गये। धर्मबुद्धि ने कहा, "आप मुझे इस वृक्ष को आग लगाने की आज्ञा दे दें। बाद में जो उचित दण्ड होगा, उसे मैं सहर्ष स्वीकार कर लूंगा।" न्यायधीश की आज्ञा पाकर धर्मबुद्धि ने उस पेड़ के चारों ओर खोखर में मिटटी के तेल के चीथड़े तथा उपले लगाकर आग लगा दी। कुछ ही क्षणों में पापबुद्धि का पिता चिल्लाया "अरे, मैं मरा जा रहा हूं। मुझे बचाओ।" पिता के अधजले शरीर को बाहर निकाला गया तो सच्चाई का पता चल गया। इस पर पापबुद्धि को मृत्यु दण्ड दिया गया। धर्मबुद्धि खुशी-खुशी अपने घर लौट गया।
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26-01-2014, 10:00 PM | #14 |
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Re: लोककथा संसार
निमाड़ी लोककथा
सेवा का फल आलेख: रामनारायण उपाध्याय (निमाड़ नाम कतिपय पुस्तकों में निमाउड़ के रूप में लिखा गया है। कालान्तर में तथा कई अवस्थाओं से गुजरने के बाद निमाउड़, नेमावड़ या निमाड़ नाम सरल रूप से निमाड़ हो गया। भौगोलिक सीमाओं की बात करें तो निमाड़ के एक तरफ़ विन्ध्य पर्वत और दूसरी तरफ़ सतपुड़ा हैं, जबकि मध्य में नर्मदा नदी है।विश्व की प्राचीनतम नदियों में से एक बड़ी नदी नर्मदा का उद्भव और विकास निमाड़ में ही हुआ।) छोटे-से गणपति महाराज थे। उन्होंने एक पुड़िया में चावल लिया, एक में शक्कर ली, सीम में दूध लिया और सबके यहां गये। बोले, "कोई मुझे खीर बना दो।" किसी ने कहा, मेरा बच्चा रोता है; किसी ने कहा, मैं स्नान कर रहा हूं; किसी ने कहा, मैं दही बिलो रही हूं। एक ने कहा, "तुम लौंदाबाई के घर चले जाओ। वे तुम्हें खीर बना देंगी।" वे लौंदाबाई के घर गये। बोले, "बहन, मुझे खीर बना दो।" उसने बड़े प्यार से कहा, "हां-हां, लाओ, मैं बनाये देती हूं।" उसने कड़छी में दूध डाला, चावल डाले, शक्कर डाली और खीर बनाने लगी तो कड़छी भर गई। तपेले में डाली तो तपेला भर गया, चरवे में डाली तो चरवा भर गया। एक-एक कर सब बर्तन भर गये। वह बड़े सोच में पड़ी कि अब क्या करूं ? गणपति महाराज ने कहा, "अगर तुम्हें किन्हीं को भोजन कराना हो तो उन्हें निमंत्रण दे आओ।" वह खीर को ढककर निमंत्रण देने गई। लौटकर देखा तो पांचों पकवान बन गये थे। उसने सबको पेट भरकर भोजन कराया। लोग आश्चर्यचकित रह गये। पूछा, "क्यों बहन, यह कैसे हुआ ?" उसने कहा, "मैंने तो कुछ नहीं किया। सिर्फ अपने घर आये अतिथि को भगवान समझकर सेवा की, यह उसी का फल था। जो भी अपने द्वार आए अतिथि की सेवा करेगा, अपना काम छोड़कर उसका काम पहले करेगा, उस पर गणपति महाराज प्रसन्न होंगे। **
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26-01-2014, 10:07 PM | #15 |
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Re: लोककथा संसार
निमाड़ की लोककथा
बड़ा कौन? भूख, प्यास, नींद और आशा चार बहनें थीं। एक बार उनमें लड़ाई हो गई। लड़ती-झगड़ती वे राजा के पास पहुंचीं। एक ने कहा, "मैं बड़ी हूं।" दूसरी ने कहा, " मैं बड़ी हूं।" तीसरी ने कहा, "मैं बड़ी हूं।" चौथी ने कहा, "मैं बड़ी हूं।" सबसे पहले राजा ने भूख से पूछा, "क्यों बहन, तुम कैसे बड़ी हो ?" भूख बोली, "मैं इसलिए बड़ी हूं, क्योंकि मेरे कारण ही घर में चूल्हे जलते हैं, पांचों पकवान बनते हैं और वे जब मुझे थाल सजाकर देते हैं, तब मैं खाती हूं, नहीं तो खाऊं ही नहीं।" राजा ने अपने कर्मचारियों से कहा, "जाओ, राज्य भर में मुनादी करा दो कि कोई अपने घर में चूल्हे न जलाये, पांचों पकवान न बनाये, थाल न सजाये, भूख लगेगी तो भूख कहां जायगी ?" सारा दिन बीता, आधी रात बीती। भूख को भूख लगी। उसने यहां खोजा, वहां खोजा; लेकिन खाने को कहीं नहीं मिला। लाचार होकर वह घर में पड़े बासी टुकड़े खाने लगी। प्यास ने यह देखा, तो वह दौड़ी-दौड़ी राजा के पास पहुंची। बोली, "राजा! राजा ! भूख हार गई। वह बासी टुकड़े खा रही है। देखिए, बड़ी तो मैं हूं।" राजा ने पूछा, तुम कैसे बड़ी हो ? प्यास बोली, "मैं बड़ी हूं क्योंकि मेरे कारण ही लोग कुएं, तालाब बनवाते हैं, बढ़िया बर्तानों में भरकर पानी रखते हैं और वे जब मुझे गिलास भरकर देते हैं, तब मैं उसे पीती हूं, नहीं तो पीऊं ही नहीं।" राजा ने अपने कर्मचारियों से कहा, "जाओ, राज्य में मुनादी करा दो कि कोई भीअपने घर में पानी भरकर नहीं रखे, किसी का गिलास भरकर पानी न दे। कुएं-तालाबों पर पहरे बैठा दो। प्यास को प्यास लगेगी तो जायगी कहां?" सारा दिन बीता, आधी रात बीती। प्यास को प्यास लगी। वह यहां दौड़ी। वहां दौड़, लेकिन पानी की कहां एक बूंद न मिली। लाचार वह एक डबरे पर झुककर पानी पीने लगी। >>>
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26-01-2014, 10:10 PM | #16 |
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Re: लोककथा संसार
नींद ने देखा तो वह दौड़ी-दौड़ी राजा के पास पहुंची और बोली, "राजा ! राजा ! प्यास हार गई। वह डबरे का पानी पी रही है। सच, बड़ी तो मैं हूं।"
राजा ने पूछा, "तुम कैसे बड़ी हो?" नींद बोली, "मैं ऐसे बड़ी हूं कि लोग मेरे लिए पलंग बिछवाते हैं, उस पर बिस्तर डलवाते हैं और जब मुझे बिस्तर बिछाकर देते हैं तब मैं सोती हूं, नहीं तो सोऊं ही नहीं। राजा ने अपने कर्मचारियों से कहा, "जाओ, राज्य भर में यह मुनादी करा दो कोई पलंग न बनवाये, उस पर गद्दे न डलवाये ओर न बिस्तर बिछा कर रखे। नींद को नींद आयेगी तो वह जायगी कहां ?" सारा दिन बीता। आधी रात बीती। नींद को नींद आने लगी।उसने यहां ढूंढा, वहां ढूंढा, लेकिन बिस्तर कहीं नहीं मिला। लाचार वह ऊबड़-खाबड़ धरती पर सो गई। आशा ने देखा तो वह दौड़ी-दौड़ी राजा के पा पहुंची। बोली, "राजा ! राजा ! नींद हार गयी। वह ऊबड़-खाबड़ धरती पर सोई है। वास्तव में भूख, प्यास और नींद, इन तीनों में मैं बड़ी हूं।" राजा नेपूछा, "तुम कैसे बड़ी हो ?" आशा बोली, "मैं ऐसे बड़ी हूं कि लोग मेरी खातिर ही काम करते हैं। नौकरी-धन्धा, मेहनत और मजदूरी करते हैं। परेशानियां उठाते हैं। लेकिन आशाके दीप को बुझने नहीं देते।" राजा ने अपने कर्मचारियों से कहा, "जाओ, राज्य में मुनादी करा दो। कोई काम न करे, नौकरी न करे। धंधा, मेहनत और मजदूरी न करे और आशा का दीप न जलाये। आशा को आश जागेगी तो वह जायेगी कहां?" सारा दिन बीता। आधी रात बीती। आशा को आश जगी। वह यहां गयी, वहां गयी। लेकिन चारों ओर अंधेरा छाया हुआ था। सिर्फ एक कुम्हार टिमटिमाते दीपक के प्रकाश में काम कर रहा था। वह वहां जाकर टिक गयी। और राजा ने देखा, उसका सोने का दिया, रुपये की बाती तथा कंचन का महल बन गया। जैसे उसकी आशा पूरी हुई, वैसे सबकी हो। **
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27-01-2014, 06:25 PM | #17 |
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बड़ी महत्वपूर्ण ज्ञानवर्धक लघुकथाऐ :.........
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28-01-2014, 02:33 PM | #18 |
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Re: लोककथा संसार
चीनी लोककथा
पश्चिमी झील और सफ़ेद नाग की कहानी पूर्वी चीन के हानचाओ शहर में स्थित पश्चिमी झील अपने असाधारण प्राकृतिक सौंदर्य के कारण विश्वविख्यात है । 14वीं शताब्दी में इटली के मशहूर यात्री मार्कोपोलो जब हानचाओ आया, उस नेपश्चिमी झील की खूबसूरती देख कर उस की इन शब्दों में सराहना की कि ‘जब मैं यहां पहुंचा, तो लगा जैसे मैं स्वर्ग में आ गया हूँ।‘ पश्चिमी झील पूर्वी चीन के चेच्यांग प्रांत की राजधानी हानचाओ शहर का एक मोती मानी जाती है । वह तीनों तरफ पहाड़ों से घिरी है, झील के पानी स्वच्छ और दृश्य मनमोहक है । चीन के प्राचीन महाकवि पाई च्युई और सु तुंगपो के नाम से नामंकित दो तटबंध पाई बांध और सु बांध झील के स्वच्छ जल राशि के भीतर दो हरित फीतों की तरह लेटे मालूम पड़ते हैं । तटबंधों पर कतारों में हरेभरे पेड़ खड़े झील के सौंदर्य में चार चांद लगा देते हैं । सदियों से बड़ी संख्या में कवियों और चित्रकारों ने पश्चिमी झील के सुन्दर दृश्यों का कविता और चित्रों में वर्णन किया है । पश्चिमी झील के दस खूबसूरत दृष्य चीन में हर व्यक्ति की जुबान पर रहते है जिन में सु बांध का वासंती सौंदर्य , अनूठे प्रांगण में कमल का तालाब , झील की जल राशि पर शरद कालीन चांद की परछाई, टूटे पुल पर बर्फ की खूबसूरती, विलो पेड़ों के झुंड में कोयल की मदिर कूक, कमल-तालाब में सुनहरी मछलियों का दर्शन,त्रिपगोडों के बीच पानी पर चांदनी , लेफङ पगोडे पर सुर्यास्त का अनोखा दृश्य, नानपिन मठ में संध्या वेला की घंटी तथा दूर पर्वतशिखर पर मेघों का मनोहर आच्छादन शामिल हैं। >>>
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28-01-2014, 02:38 PM | #19 |
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Re: लोककथा संसार
पश्चिमी झील के बारे में अनेक मनमोहक लोक कथाएं प्रचलित हैं , जिन में से टूटे पुल पर बर्फ नामक सौंदर्य में चर्चिक टूटे पुल से जुड़ी एक लोक कथा आज तक चीनियों में असाधारण रूप से लोकप्रिय है । इस कथा में सफेद नाग से मानव सुन्दरी में परिवर्तित एक युवती और श्युस्यान नाम के युवक के सच्चे प्रेम का वर्णन किया गया है । दोनों की पहली मुलाकात इस टूटे पुल पर ही हुई थी ।
लोककथा का कथानक इस प्रकार हैः एक सफेद नाग ने हजार साल तक कड़ी तपस्या कर अंत में मानव का रूप धारण किया , वह एक सुन्दर व शीलवती युवती में परिणत हुई , एक नीले नाग ने भी पांच सौ साल तक तपस्या की तथा वह एक छोटी लड़की के रूप में बदल गई , नाम पड़ा श्योछिंग । पाईल्यांगची नाम की सफेद नाग वाली युवती और श्योछिंग दोनों सखी के रूप मं पश्चिमी झील की सैर पर आयीi जब दोनों टूटे पुल के पास पहुंची तो भीड़ के बीच एक सुधड़ बड़ा सुन्दर युवा दिखाई पड़ा । पाईल्यांगची को उस युवा से प्यार हो गया। श्योछिंग ने अलोकिक शक्ति से वर्षा बुलाई , वर्षा में श्युस्यान नाम का वह सुन्दर युवा छाता उठाए झील के किनारे पर आया । वर्षा के समय पाईल्यांगची और श्योछिंग के पास छाता नहीं था अतः वे बुरी तरह पानी से भीग गयीं, उन की मदद के लिए श्युस्यान ने अपनी छाता उन दोनों को थमा दिया, खुद वह पानी में भीगता रहा। ऐसे सच्चरित्र युवा से पाईल्यांगची बहुत प्रभावित हुइ और उसे दिल दे बैठी और श्युस्यान के दिल में भी उस खूबसूरत युवती पाईल्यांगची के लिये प्यार का अंकुर फूटा। श्योछिंग की मदद से दोनों की शादी हुई और उन्हों ने झील के किनारे दवा की एक दुकान खोली , श्युस्यान बीमारियों की चिकित्सा जानता था , दोनों पति-पत्नी निस्वार्थ रूप से मरीजों का इलाज करते थे और स्थानीय लोगों में वे बहुत लोकप्रिय हो गये। >>>
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28-01-2014, 02:44 PM | #20 |
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Re: लोककथा संसार
लेकिन शहर के पास स्थित चिनशान मठ के धर्माचार्य फाहाई पाईल्यांगची को निशिचर समझता था । उस ने गुप्त रूप से श्य़ुस्यान को उस की पत्नी का रहस्य बताया कि वह सफेद नाग से बदली हुई थी । उस ने श्युस्यान को पाईल्यांगची का असली रूप देखने की एक तरकीब भी बताई। श्युस्यान को फाहाई की बातों से आशंका हुई । चीन का त्वानवू पर्व प्राचीन काल से ही खूब हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता रहा है। इस उत्सव पर लोग चावल से बनाई मदिरा पीते थे , वे मानते थे कि इससे किसी भी प्रकार के अमंगल से बचा जा सकता है। इस उत्सव को मनाने के दिन श्युस्यान ने फाहाई द्वारा बताए तरीके से अपनी पत्नी पाईल्यांगची को मदिरा पिलाई। इन दिनों पाईल्यांगची गर्भवर्ती थी, मदिरा उस के लिए हानिकर थी, लेकिन पति के बारंबार कहने पर उसे मदिरा का सेवन करना पड़ा। मदिरा पीने के बाद वह सफेद नाग के रूप में बदल गयी, जिस से भय खा कर श्योस्यान की मौत हो गयी। अपने पति की जान बचाने के लिए गर्भवती पाईल्यांगची हजारों मील दूर तीर्थ खुनलुन पर्वत में रामबाण औषधि गलोदर्म की चोरी करने गयी । गलोदर्म की चोरी के समय उस ने जान हथली पर रख कर वहां के रक्षकों से घमासान युद्ध लड़ा , पाईल्यांगची के सच्चे प्रेम भाव से प्रभावित हो कर रक्षकों ने उसे रामबाण औषधि भेंट की । पाईल्य़ांगची ने अपने पति की जान बचायी , श्युस्यान भी अपनी पत्नी के सच्चे प्यार के वशभूत हो गया , दोनों के बीच का प्रेम पहले से भी अधिक प्रगाढ़ हो गया ।
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