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07-11-2014, 12:02 AM | #1 |
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Re: ------------गुस्सा------------
[QUOTE=Arvind Shah;537659]नमस्कार मित्रों !
सोनीजी ने बहुत ही उत्तम विषय चुना है इस हेतु हार्दिक धन्यवाद ! मित्रों आप सभी के गुस्सा (क्रोध)सम्बन्धि विचार जानने पर मुझे कुछ अधुरापन सा लग रहा है ! बहुत बहुत धन्यवाददेना चाहूंगी आपको ,.. अरविन्द जी ,... आपने इस चर्चा को एक नया मोड़ दिया है . हम सब आपके अगले पॉइंट को पढ़ने के लिए उत्सुक हैं आप आपने विचार अवश्य यहाँ रखियेगा ... धन्यवाद |
08-11-2014, 12:50 AM | #2 | |
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Re: ------------गुस्सा------------
[QUOTE=soni pushpa;537660]
Quote:
जी आपको भी बहुत—बहुत धन्यवाद ! बहुत ही रोचक विषय चुना है सो मेरी भी उत्सुकता बढ गयी ! |
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08-11-2014, 01:32 AM | #3 |
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Re: ------------गुस्सा------------
... तो मित्रों अब हम मेरे दूसरे उदाहरण को समझते है ।
उदाहरण था — ...या आ रही बदबु से परेशान हो इत्र का छिड़काव कर मन को प्रसन्न करें ! मित्रो जब शरीर के अंगो में या वातावरण में बदबु आ रही हो तो सामान्यत: इत्र या परफ्युम को छिड़क के समाधान किया जाता है ! अब आप विचार किजिये कि ये सही समाधान है ? ...मित्रों इत्र के छिड़काव से वातावरण अवश्य सुगन्धमय हो जाता है ओर खुशबु को सुंघ के हमारा मन प्रसन्न होने लगता है ! ..पर मित्रों जिस समय हम खुशबु सुंघ रहे होते है उसके साथ—साथ बदबु भी सुंघ रहे होते है...पर हमें बदबु का एहसास नहीं होता !......कारण ये है कि इत्र की खुशबु की ज्यादा मात्रा के कारण हमारा दिमाग बदबु को सेन्स नहीं कर पाता और हमें सिर्फ खुशबु ही महसुस होती है ! ...तो मित्रों ये उदाहरण अच्छे से समझ के विचार किजिये कि क्या खुशबु ...बदबु का सही समाधान है क्या ? ...जब हम खुशबु को सुंध रहे होते है उस समय बदबु की उपस्थिति भी निश्चय ही है ! बदबु कहीं गई नहीं होती है वो तो बहीं की वहीं ही है !!! ..तो बताईये खुशबु ...बदबु का सही समाधान कैसे हुई ? मित्रो यहां बदबु की जगह क्रोध को और खुशबु की जगह हंसी को रख कर देखिये ... सब समझ में आ जायेगा !! मित्रों खुशबु हो या बदबु ... दोनों ही गंध मात्र है ! पहला दूसरे का सम्पूर्ण विकल्प कभी नहीं हो सकता !! तो मित्रों मेने ये प्रुव कर दिया कि हंसी, गुस्से का सहीं समाधान नहीं है !! क्रमश:...... |
08-11-2014, 06:29 PM | #4 |
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Re: ------------गुस्सा------------
बहुत बहुत धन्यवाद अरविन्द जी गुस्सा ब्लॉग पर आपनी प्रतिक्रिया प्रकट करने के लिए ..... आपके तर्क बहुत अछे और समझने वाले हैं . किन्तु आपसे एक निवेदन करना चाहूंगी की जब मैंने ब्लॉग शुरू किया तब पहले ही पेराग्राफ में गुस्से की वजह के बारे में लिखा है और उसका निदान करने के लिए पहले अपनी समस्यायों पर ध्यान के लिए कहा है ,... उसके बाद हँसना क्यूँ जरुर है हंसने के क्या फायदे है ये बताया गया है चूँकि , गुस्से से होते नुक्सान को पाठकों तक पहुचने का मेरा उद्देश्य था इसलिए गुस्से से होते नुकसान से संभलकर keise हँसाने के लाभ मिलते हैं उनका वर्णन करना जरुरी था उनके लाभ बताने जरुरी थे सिरफ़ गुस्से के बारे में लिखने से पाठक इस ब्लॉग को पढ़े बिना बंद कर देते क्यूंकि उन्हें मुझपर गुस्सा आ जाता
धन्यवाद... |
10-11-2014, 01:50 AM | #5 | |
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Re: ------------गुस्सा------------
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जी सोनीजी मैं आपकी बात से भी सहमत हूं ! पर से सतही कारण है !! असली जड़ नहीं है ! जब तक जडे नहीं काटी जायेगी तब तक असली समाधान नहीं होन वाला !! |
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10-11-2014, 10:28 AM | #6 | |
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Re: ------------गुस्सा------------
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keise इस समस्या की जड़ों को कटा जा सकता है? इस बारे में आपसे हम सब जानना चाहेंगे . इस ब्लॉग को कई लोग जब पढेंगे तब आपकी कही बातो से किसी को अपना गुस्सा कम करने की राह मिल जाये शायद . बहुत बहुत धन्यवाद ... |
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10-11-2014, 10:47 PM | #7 |
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Re: ------------गुस्सा------------
जी बिल्कुल मैं भी यही चाहता हू कि सभी उस स्त्रोत को जान लें जहां से क्रोध जनम लेता है !!
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08-11-2014, 04:40 PM | #8 |
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Re: ------------गुस्सा------------
सोनी पुष्पाजी इतना अच्छा विषय चुनने के लिए धन्यवाद। मैं मानती हूँ जिस तरह से हँसाना ,रोना ,भावुक होना ,संवेदनशील होना सामान्य क्रियाएँ हैं उसी तरह से गुस्सा होना भी एक सामान्य क्रिया है। महत्वपूर्ण ये है की हमें किन बातों पर और कब गुस्सा आता है। बे-बात ही गुस्सा करना ,अपने अहंकार के लिए कमज़ोरों पर गुस्सा करना ,अपनी इच्छा पूरी न होने पर गुस्सा करना ये कमज़ोर व्यक्तित्व की निशानी है। लेकिन कई बार कई बातों पर गुस्सा करना ज़रूरी होता है ,जैसे दिल्ली में दामिनी कांड हुआ था ऐसी घटनाओं पर गुस्सा आना स्वाभाविक है। ऐसे ही हमारे जीवन में कई बार ऐसी घटनाएं होती हैं की गुस्सा आना स्वाभाविक होता है। लेकिन गुस्से को प्रदर्शित करने का हमारा तरीका क्या है ये महत्वपूर्ण होता है। गुस्से में भी हमें हमारी गरिमा का ध्यान रखना चाहिए।
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08-11-2014, 06:44 PM | #9 |
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Re: ------------गुस्सा------------
[QUOTE=kuki;538486]सोनी पुष्पाजी इतना अच्छा विषय चुनने के लिए धन्यवाद। मैं मानती हूँ जिस तरह से हँसाना ,रोना ,भावुक होना ,संवेदनशील होना सामान्य क्रियाएँ हैं उसी तरह से गुस्सा होना भी एक सामान्य क्रिया है।
बहुत अछे विचार आपके प्रिय kuki जी बहुत बहुत धन्यवाद ,... जी हाँ गुस्सा भी एक मानव स्वाभाव की क्रिया ही है और आपके कहे अनुसार ये गुस्सा कही कही जरुरी भी है यदि गुस्सा न होता तब समाज में किसी को किसी का डर नही रहता सब अपनी मनमानी करते ... पर गुस्सा हरपल,.. हर समय के लिए अच्छा नही ,. जो की हमारे स्वाभाव में ढल जाता है जब गुस्सा हमारा ( याने की इंसानी स्वाभाव बन जाय )तब वो हमारे लिए कितना खतरनाक साबित होता है इस बारे में जाताना, ये मेरा आशय था इस ब्लॉग को लिखने के पीछे ... और जेइसे की आपने दामिनी कांड के समय की बात कही वो गुस्सा एकदम जायज़ है वो गुस्सा व्यक्तिगत नही बल्कि सामाजिक गुस्सा बन गया था पुरे मानव समाज के मन में इस दुखद और घृणित घटना के के लिए तिरस्कार से भरा गुस्सा था"" जो"" की सही था ... जब निठल्ले कर्मचारी के लिए मालिक गुस्सा करता है वो जायज़ है , किन्तु बिना वजह घर आते ही एक व्यक्ति अपने बीवी बच्चो पर बिना वजह बरस पड़े वो गुस्सा निहायत गलत बात है .. और ये गुस्सा उसके खुद के लिए हानिकारक है . धयवाद kuki जी.. |
09-11-2014, 08:12 PM | #10 |
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Re: ------------गुस्सा------------
सोनी पुष्पा जी मैं आपकी बात से सहमत हूँ की जब गुस्सा हमारा स्वभाव बन जाता है तो वो वाकई ख़राब होता है ,और सबसे ज़्यादा नुकसान हमें ही पहुंचता है। जैसे आपने कहा की कोई व्यक्ति घर आते ही अपने बीवी -बच्चों पर बरस पड़े तो ये सही नहीं है ,लेकिन कई बार हमें पता नहीं होता की कोई व्यक्ति ऐसा व्यव्हार क्यों कर रहा है ,हम सिर्फ ऊपर से देखते हैं। हो सकता है वो व्यक्ति वाकई परेशान हो ,बाहर या उसके ऑफिस में उसके साथ ख़राब व्यव्हार हुआ हो अच्छा काम करने के बाद भी उसका बॉस या उसके सहकर्मी उपेक्षा करते हों ,कमियां निकलते हों तो फ्रस्ट्रेशन में व्यक्ति अपना गुस्सा अपनों पर ही निकलता है। अगर कोई व्यक्ति बात -बात पर गुस्सा करता हो तो हमें उसके पीछे की वजह और उसकी परिस्थिति को समझने की कोशिश करनी चाहिए ,और हो सके तो उस व्यक्ति की मदद करनी चाहिए ताकि ये गुस्सा उस व्यक्ति का स्थाई स्वभाव ना बन पाये। हमें उसे इमोशनली सपोर्ट करना चाहिए।
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