25-11-2010, 04:26 PM | #11 |
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Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???
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25-11-2010, 04:30 PM | #12 |
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Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???
इश्वर की इस श्रृष्टि में हर चीज यूनिक है मतलब कोई एक चीज अपने आप में अकेली ही है. स्थूल विकास पृकृति के ऊपर होता है और हर जगह अलग अलग देवता क्यों है ??? लेकिन देवता या इश्वर जरूर है. भारत के अन्दर अध्यात्म बहुत पुराना है यहाँ लोगो की रुचि इश्वर के बारे में ज्यादा है और भोतिक के बारे में कम. विश्व में कहीं भी इतने साधू संत नहीं मिलेंगे जितने भारत में है शायद विश्व में कोई विरला ही उदाहरण मिले जहां राज सिंहासन त्यागकर लोग इश्वर को पाने के लिए निकले हो. इसलिए आस्था की अधिकता ने अधिक देवी देवताओं को जन्म दे दिया.
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25-11-2010, 04:32 PM | #13 |
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Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???
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25-11-2010, 05:52 PM | #14 |
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Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???
काफी सारे मित्रों ने विचार रखे हैं, सभी का आभार |
मेरा उत्तर इस बार थोडा अपेक्षाकृत लम्बा है और कुछ तथ्यों को मैं पुनः पुष्ट करना चाहता हूँ अतः कल रखूँगा किन्तु मुझे विश्वास है की वह जानकारी आपको चौंकाएगी और एक सुखद आश्चर्य होगा | -अमित |
25-11-2010, 07:22 PM | #15 | |
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Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???
मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ
Quote:
सबसे पहले बेहतरीन सूत्र बनाने हेतु अटल को बधाई भाई धर्म में मेरी रूचि कम ही है अतः क्षमा करना अगर कुछ गलती हो जाये मेरा मानना है की हिन्दू धर्म सही मायनो में लोकतंत्र की तरह है जीतनी डफली उतनी राग, सभी को अपना अपना करने की आजादी और सबको अपने में समाने को सर्वथा तैयार जितना लचीलापन इस धर्म में है कहीं नहीं रही बात रामायण और महाभारत की तो ऐसा मेरा मानना है की ये बहुत ही चतुर लेखकों की बेहतरीन रचना है जो आज तक प्रशांगिक है
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25-11-2010, 08:51 PM | #16 |
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Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???
मित्र अटल जी, इस गंभीर विषय को मजाक में न लें .. आपका सूत्र बेहद अहम् विषय वस्तु पर आधारित है. तनिक सा भी मजाक या ग़लतफ़हमी सूत्र की दिशा बदल सकती है.
बाइबल के और कुरान के अनुसार प्रथम स्त्री और पुरुष का नाम 'आदम और हव्वा' (एडम&इव). किन्तु इस बात का कोई पुख्ता साक्ष्य नहीं है की यह कहानी सत्य है. इसी प्रकार एक धर्म ग्रन्थ में कहीं कहा गया है की 'प्रथ्वी थाली की तरह चपटी है.' यदि मनुष्य गलत कर्म करेंगे तो यह पलट जाएगी. . जिस समय आइजक न्यूटन नें गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत दिया तथा यह बताया की 'धरती गेंद की तरह गोल है' तो लोगों नें उन्हें धर्म का विरोधी बता कर मौत की सजा सुना दी. लेकिन उनकी मृत्यु के पश्चात् जब सभी को यह पता चला की वास्तव में उन्होंने जो कहा था वह सत्य था.. तब भी किसी की इतनी हिम्मत नहीं हुई की कोई कह सके की उस धर्म ग्रन्थ में जो लिखा है वो गलत है. लेकिन दोस्तों.. हिन्दू धर्म के ग्रंथों में हजारों वर्ष पहले ही प्रथ्वी को गोल ही बताया गया है (गेंद की तरह)
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25-11-2010, 09:02 PM | #17 | |
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Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???
Quote:
निशांत भाई, मैं आपके विचारों की कद्र करता हूँ .. तथा आपके सभी कथनों का समर्थन करता हूँ .. लेकिन यह कहना की 'रामायण' और 'महाभारत' केवल लेखकों की रचनाएं हैं'. .... मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ. मित्र, रामायण तथा महाभारत में जिन स्थानों और समय या व्यक्तियों तथा घटनाओं का जिक्र है वो सभी या उनके निशान आज भी मौजूद हैं. महाभारत कल के सभी शहर (कुरुक्षेत्र,कंधार,इन्द्रप्रस्थ,मथुरा आदि ) आज भी मौजूद हैं. उनके बनाए हुए कुछेक किलों आदि के अवशेष भी मौजूद हैं. और यह एक ऐतिहासिक घटना थी इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता. हाँ कहीं कहीं अतिश्योक्ति अलंकर का उदाहरण देखने को मिल सकता है लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है की यह केवल मिथ्या बात है. रामायण काल के अवशेष केवल भारत ही नहीं अपितु श्रीलंका में भी मौजूद हैं. यहाँ तक की वानर सेना द्वारा बनाया गया सेतु भी अभी तक मौजूद है. इसी प्रकार के हजारों उदाहरण आपको भारत और विश्व के कई देशों में देखने को मिल जाएंगे जो इन ग्रंथों से सम्बंधित हैं. मित्र, उस ज़माने में कितना ही चतुर लेखक क्यों न हो पूरे भारत का और श्रीलंका का भ्रमण करके इतना बड़ा मनगढ़ंत ग्रन्थ नहीं लिख सकता. हाँ कहीं कहीं अलंकारों का प्रयोग अवश्य है लेकिन सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता. मित्र अटल जी, आपसे निवेदन है की कृपया पटाक्षेप करें तथा अपने अनमोल विचारों से इस सूत्र को जल्दी आगे बढाएं. धन्यवाद.
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25-11-2010, 10:05 PM | #18 |
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Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???
मित्रो में वैसे तो इस मामले में अपने आपको बिलकुल ही निम्न कोटि का और निरा अज्ञानी ही मान कर चलता हूँ फिर भी में एक बात को रेखांकित करना चाहूंगा कि क्या ऐसे हो सकता है कि सभी धर्मों के अनुयायियों के लिए उनके इश्वर अलग अलग हों. ऐसा नहीं हो सकता क्योकि अगर ऐसा होता तो शायद इस धरती पर आज कुछ भी शेष नहीं होता और वो इनकी आपस की लड़ाई की भेंट चढ़ गया होता.
यानि कि एक बात तो माननी ही पड़ेगी कि कोई एक ही शक्ति है जो पूरे ब्रह्माण्ड को चला रही है और उसी शक्ति को हम अलग अलग नामों से जानते और पुकारते हैं. उदाहरण के लिए सूर्य सभी धर्मो के मानने वालों के लिए एक ही है. ( ऐसा नहीं है कि हिन्दुओं का सूर्य अलग है और मुसलमानों का सूरज अलग). अपनी अपनी धार्मिक मान्यताओं के चलते सभी धर्मों में कुछ महान नाम जुड़ते चले गए और वो कालांतर में पूज्य होते चले गए. और हिन्दू धर्म में ऐसा कुछ ज्यादा ही हुआ. जैसे कि सूत्रधार ने बताया है कि ईसाई धर्म में सिर्फ एक गोड, एक बाइबल, एक क्राइस्ट होता है पर विभाजन तो वहां पर भी है और जितना भी मैंने पढ़ा है कि उनके चर्च भी अलग होते हैं और रोम के बिशप को सभी चर्च अपना लीडर नहीं मानते. कुछ मुख्य ग्रुप बनने के बाद ईसाईयों में भी बहुत से सब ग्रुप हैं जो मुख्यतः पूजा विधि और विश्वास में भिन्नता की वजह से बने हैं. इसलिए उनके अन्दर भी बहुत से सिद्धांतों और संतो को माना जाता है और उनको सम्मान और आदर की दृष्टि से देखा जाता है. और अगर देखा जाए तो ये सभी देवता ही हुए. आज अगर मदर टेरेसा को संत की पदवी मिली तो कालांतर में वो देवी के जैसे ही पूजी और सम्मानित होंगी. हिन्दू धर्म में ऋषि, मुनि, संतों की एक बहुत ही अटूट परंपरा रही है और इन लोगों ने जो भी अध्ययन किया उसके आधार पर धर्म को परिभाषित करते रहे और नए नए देवी देवता और इश्वर का जन्म होता गया और नए नए वाद चले और उनके अनुयायी पैदा हुए और उनके बीच में भी कुछ मतभेद हुए तो और मतों और परम्पराओं ने जन्म लिया और ये आज तक चल रहा है. हम आज भी देखते हैं कि किसी छोटी सी जगह पर अचानक ही कोई नया मंदिर किसी नए देवता या देवी के नाम से बन जाता है तो ये क्रम आज तक चल रहा है. हम सभी को अपनी अपनी आस्था का एक निजी प्रतीक शायद ज्यादा मायने रखता है और इसी क्रम में नए नए देवी देवताओं का जन्म आज तक जारी है. हम लोग सूर्य, चन्द्र, वायु, जल, अग्नि को तो देवता के तौर पर मानते ही रहे क्योंकि इनके बिना मनुष्य का जीवन असंभव था, कालांतर मैं इनमें और भी धर्म गुरुओं और विद्वानों के नाम जुड़ते गए जो आज भगवन के तरह ही पूजे जा रहे हैं. हिन्दू धर्म में सहिष्णुता की इतनी प्रचुर मात्र मौजूद रही कि कालांतर में कूड़ा डालने के स्थान को भी पूजा जाने लगा. ( हिन्दू धर्म में शादी आदि के मौके पर घूरा पूजन होता है. घूरा = कूड़ा करकट डालने का स्थान). यानि कि जो स्थान आपके घर को साफ़ सुथरा रके और आपकी गन्दगी को अपने में समाहित कर ले वो भी पूज्यनीय हो गया. ( भावना की महानता को देखें ). तो मेरे विचार से सभी देवी देवता इसी प्रकार पैदा हुए होंगे और शायद ये सच है कि एक शक्ति जो पूरे संसार को चला रही है वो हिन्दू धर्म की विविधता के चलते यहाँ पर कुछ ज्यादा ही विभाजित हो कर बहुत सारे देवी देवताओं में तब्दील हो गयी.
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25-11-2010, 10:06 PM | #19 | |
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Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???
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Jalwa bhai as I initiated this thread I am more than serious but its my biggest weakness that I can't tolerate unappropriate posts. Abhay ji is frequent poster of this forum and if he do some research he can certainly improve the overall quality of his posts, I appreciate that he devote so much time in grooming this platform. Most of the users of this forum are under 30s and out of these youngsters many are students yet. I DO expect scholar type answers from students not emotional and jay ho type answers. Anyway enough of my feelings. Let's keep thread on track. I'll try to get my post on topic tomorrow. Thanks to everyone for devoting time to this subject. I promise to give you content you'll not find at many places. Good Night, Amit |
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26-11-2010, 04:34 AM | #20 | ||
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Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???
Quote:
मैंने चतुर लेखकों की बेहतरीन रचना कहा है ना की "मिथ्या कल्पना" मैं एक बात और स्पष्ट कर दूँ की मैं नास्तिक नहीं हूँ, हिन्दू धर्म में मेरी अटूट आस्था है हाँ अन्धविश्वास नहीं करता, तथ्यों पर आधारित बातें ज्यादा पसंद है वनिस्पत किस्से कहानियों के Quote:
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