29-10-2010, 07:43 PM | #12 | |
Special Member
|
Quote:
पर दादा मेहनतकश का बनियान हो या जुराब मेहनत की खुशबू तो आएगी ही अब अगर लोग इससे भी बेहोश होने लगे तो खुदा खैर करे
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
|
29-10-2010, 09:04 PM | #13 | |
Diligent Member
Join Date: Oct 2010
Location: जयपुर (राजस्थान)
Posts: 1,366
Rep Power: 18 |
Quote:
कि जो व्यक्ति खूब मेहनत करके पसीना बहाता है उसके पसीने में बदबू नहीं होती लेकिन यहाँ हसीं मजाक चल रहा है इसलिए मैंने कविता लिखी |
|
29-10-2010, 09:19 PM | #14 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100 |
भाई जी , अनजाना जी , निशाँत भाई, तारा बाबू और सिकंदर भाई आप सभी का अभिनंदन है सूत्र मेँ । सर्वथा मृत तरंगोँ के कारण मैँ खिन्न हूँ । आपके होठोँ को आपके कानोँ तक खीचने का कार्य फिर कभी । धन्यवाद ।
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 Last edited by jai_bhardwaj; 29-10-2010 at 09:21 PM. |
29-10-2010, 09:23 PM | #15 |
Diligent Member
Join Date: Oct 2010
Location: जयपुर (राजस्थान)
Posts: 1,366
Rep Power: 18 |
रिजल्ट साफ़ है
किसी भी चीज को ज्यादा खीचने से वो मृत हो जाती है |
29-10-2010, 10:28 PM | #16 |
Special Member
|
तो मैंने कौन सा तोप छोड़ दिया
मैंने भी तो बस वही आगे बढाया जो आपने शुरू किया आखिर बुजुर्गों की परम्परा बढ़ाना हमारा कर्त्तव्य जो ठहरा
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
30-10-2010, 10:45 AM | #17 |
Diligent Member
Join Date: Oct 2010
Location: जयपुर (राजस्थान)
Posts: 1,366
Rep Power: 18 |
|
30-10-2010, 12:39 PM | #18 |
Special Member
|
जो हुक्म दादा
ये लो झेलो :- कौन कहता है, एक म्यान में - दो तलवारें नहीं होती! शादी के बाद वह दोनों तलवारें एक ही - मकान में तो होती है.
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
30-10-2010, 12:44 PM | #19 |
Special Member
|
करें क्या शिकायत अँधेरा नहीं है
अजब रौशनी है कि दिखता नहीं है ये क्यों तुमने अपनी मशालें बुझा दीं ये धोखा है कोई, सवेरा नहीं है ये कैसी है बस्ती, ना दर, ना दरीचा हवा के बिना दम घुटता नहीं है! नई है रवायत या डर हादसों का यहाँ कोई भी शख्स हंसता नहीं है
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
Bookmarks |
Tags |
ghazals, hindi poems, poems, shayaris |
|
|