My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > Art & Literature > Hindi Literature
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 10-11-2012, 03:17 PM   #11
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: आधे-अधूरे - मोहन राकेश

पुरुष एक : मैं क्या कह रहा हूँ ? चुप ही बैठा हूँ यहाँ। (अखबार में पढ़ता) नाले का बाँध पूरा करने के लिए बारह साल के लड़के की बलि (अखबार से बाहर) आप चाहे जो कह ले, मेरे मुँह से एक लफ्ज भी न निकले। (फिर अखबार में से) उदयपुर में मड्ढा गाँव में बाँध के ठेकेदार का अमानुषिक कृत्य। (अखबार से बाहर) हद होती है हर चीज की ।
स्त्री बड़ी लड़की के कंधे पर हाथ रखे उसे पढ़ने की मेज के पास ले जाती है।
स्त्री : यहाँ बैठ ।
बड़ी लड़की पलकें झपकती वहाँ कुरसी पर बैठ जाती है।
: सच-सच बता, तुझे वहाँ किसी चीज की शिकायत है ?
बड़ी लड़की : शिकायत किसी चीज की नहीं...।
स्त्री : तो ?
बड़ी लड़की : और हर चीज की है।
स्त्री : फिर भी कोई खास बात ?
बड़ी लड़की : खास बात कोई भी नहीं...
स्त्री : तो ?
बड़ी लड़की : और सभी बातें खास हैं ।
स्त्री : जैसे ?
बड़ी लड़की : जैसे... सभी बातें।
स्त्री : तो मेरा मतलब है कि... ?
बड़ी लड़की : मेरा मतलब है...कि शादी से पहले मुझे लगता था कि मनोज को बहुत अच्छी तरह जानती हूँ। पर अब आ कर...अब आ कर लगाने लगा है कि वह जानना बिलकुल जानना नहीं था।
स्त्री : (बात की गहराई तक जाने की तरह) हूँ !... तो क्या उसके चरित्र में कुछ ऐसा है जो... ?
बड़ी लड़की : नहीं। उसके चरित्र में ऐसा कुछ नहीं है। इस लिहाज से बहुत साफ आदमी है वह।
स्त्री : तो फिर क्या उसके स्वभाव में कोई ऐसी बात है जिससे...?
बड़ी लड़की : नहीं स्वभाव उसका हर आदमी जैसा है, बल्कि आम आदमी से ज्यादा खुशदिल कहना चाहिए उसे।
स्त्री : (और भी गहराई में जा कर कारण खोजती) तो फिर ?
बड़ी लड़की : यही तो मैं भी नहीं समझ पाती। पता नहीं कहाँ पर क्या है जो गलत है !
स्त्री : उसकी आर्थिक स्थिति ठीक है ?
बड़ी लड़की : ठीक है।
स्त्री : सेहत ?
बड़ी लड़की : बहुत अच्छी है।
पुरुष एक : (बिना उधर देखे) सब-कुछ अच्छा-ही-अच्छा है फिर तो...। शिकायत किस बात की है ?
teji is offline   Reply With Quote
Old 10-11-2012, 03:18 PM   #12
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: आधे-अधूरे - मोहन राकेश

स्त्री : (पुरुष एक से) तुम बात समझने भी दोगे ? (बड़ी लड़कीसे) जब इनमें से किसी बात की शिकायत नहीं है तुझे, तब या तो कोई बहुत खास वजह होनी चाहिए, या...
बड़ी लड़की : या ?
स्त्री : या...या...मैं अभी नहीं कह सकती।
बड़ी लड़की : वजह सिर्फ वह हवा है जो हम दोनों के बीच से गुजरती है।
पुरुष एक : (उस ओर देख कर) क्या कहा... हवा ?
बड़ी लड़की : हाँ, हवा।
पुरुष एक : (निराशा भाव से सिर हिला कर , मुँह फिर दूसरी तरफ करता) य ह वजह बताई है इसने...हवा!
स्त्री : (बड़ी लड़की के चेहरे को आँखों से टटोलती) मैं तेरा मतलब नहीं समझी ?
बड़ी लड़की : (उठती हुई) मैं शायद समझा भी नहीं सकती (अस्थिर भाव से कुछ कदम चलती) किसी दूसरे को तो क्या, अपने को भी नहीं समझा सकती। (सहसा रुक कर) ममा, ऐसा भी होता है क्या कि...
स्त्री : कि ?
बड़ी लड़की : कि दो आदमी जितना ज्यादा साथ रहें, एक हवा में साँस लें, उतना ही ज्यादा अपने को एक-दूसरे से अजनबी महसूस करें ?
स्त्री : तुम दोनों ऐसा महसूस करते हो ?
बड़ी लड़की : कम-से-कम अपने लिए तो कह ही सकती हूँ।
स्त्री : (पल-भर उसे देखती रह कर) तू बैठ कर क्यों नहीं बात करती ?
बड़ी लड़की : मैं ठीक हूँ इसी तरह।
स्त्री : तूने जो बात कही है, वह अगर सच है, तो उसके पीछे क्या कोई-न-कोई ऐसी अड़चन नहीं है जो...
बड़ी लड़की : पर कौन-सी अड़चन ?...उसके हाथ से छलक गई चाय की प्याली, या उसके दफ्तर से लौटने में आधा घंटे की देरी-ये छोटी-छोटी बातें अड़चन नहीं होतीं, मगर अड़चन बन जाती हैं। एक गुबार-सा है जो हर वक्त भरा रहता है और मैं इंतजार में रहती हूँ जैसे कि कब कोई बहाना मिले जिससे उसे बाहर निकाल लूँ। और आखिर... ?
स्त्री चुपचाप आगे सुनने कि प्रतीक्षा करती है।
: आखिर वह सीमा आ जाती है जहाँ पहुँच कर वह निढाल हो जाता है। जहाँ पहुँच कर वह निढाल हो जाता है। ऐसे में वह एक बात कहता है।
बड़ी लड़की : कि मैं इस घर से ही अपने अंदर कुछ ऐसी चीज ले कर गई हूँ जो किसी भी स्थिति में मुझे स्वाभाविक नहीं रहने देतीं।
स्त्री : (जैसे किसी ने उसे तमाचा मार दिया हो) क्या चीज ?
बड़ी लड़की : मैं पूछती हूँ क्या चीज,तो भी उसका एक ही जवाब होता है।
स्त्री : वह क्या ?
बड़ी लड़की : कि इसका पता मुझे अपने अंदर से, या इस घर के अंदर से चल सकता है। वह कुछ नहीं बता सकता।
teji is offline   Reply With Quote
Old 10-11-2012, 03:19 PM   #13
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: आधे-अधूरे - मोहन राकेश

पुरुष एक : (फिर उस तरफ मुड़ कर) यह सब कहता है वह ? और क्या-क्या कहता है ?
स्त्री : वह इस वक्त तुमसे बात नहीं कर रही।
पुरुष एक : पर बात तो मेरे घर की हो रही है।
स्त्री : तुम्हारा घर ! हँह !
पुरुष एक : तो मेरा घर नहीं है यह ? कह दो, नहीं है।
स्त्री : सचमुच तुम अपना घर समझते इसे तो...
पुरुष एक : कह दो, कह दो, जो कहना चाहती हो।
स्त्री : दस साल पहले कहना चाहिए था मुझे...जो कहना चाहती हूँ।
पुरुष एक : कह दो अब भी...इससे पहले कि दस-ग्यारह साल हो जाएँ।
स्त्री : नहीं होने पाएँगे ग्यारह साल... इसी तरह चलता रहा सब- कुछ तो।
पुरुष एक : (एकटक उसे देखता , काट के साथ) नहीं होने पाएँगे सचमुच...? काफी अच्छा आदमी है जगमोहन ! और फिर दिल्ली में उसका ट्रांसफर भी हो गया है। मिला था उस दिन कनॉट प्लेस में। कह रहा था, आएगा किसी दिन मिलने।
बड़ी लड़की : (धीरज खो कर) डैडी !
पुरुष एक : ऐसी क्या बात कही है मैंने? तारीफ ही की है उस आदमी की।
स्त्री : खूब करो तारीफ...और भी जिस-जिस की हो सके तुमसे। (बड़ी लड़की से) मनोज आज जो तुमसे कहता है यह सब, पहले जब खुद यहाँ आता रहा है, रात-दिन यहीं रहता रहा है, तब क्या उसे पता नहीं चला कि...
बड़ी लड़की : यह मैं उससे नहीं पूछती।
स्त्री : पर क्यों नहीं पूछती ?
बड़ी लड़की : क्योंकि मुझे कहीं लगता है कि...कैसे बताऊँ, क्या लगता है? वह जितने विश्वास के साथ यह बात कहता है, उससे... मुझे अपने से एक अजीब सी चिढ़ होने लगती है। मन करता है आस-पास कि हर चीज को तोड़-फोड़ डालूँ। कुछ ऐसा कर डालूँ जिससे....
स्त्री : जिससे ?
बड़ी लड़की : जिससे उसके मन को कड़ी-से-कड़ी चोट पहुँचा सकूँ। उसे मेरे लंबे बाल अच्छे लगते हैं। इसलिए सोचती हूँ, इन्हें जा कर कटा आऊँ। वह मेरे नौकरी करने के हक में नहीं है। इसलिए चाहती हूँ कहीं भी, कोई भी छोटी-मोटी नौकरी कर लूँ। कुछ भी ऐसी बात जिससे एक बार तो वह अंदर से वह तिलमिला उठे। पर कर मैं कुछ भी नहीं पाती और जब नहीं कर पाती, तो खीज कर...
स्त्री : यहाँ चली आती है ?
बड़ी लड़की पल-भर चुप रह कर सिर हिला देती है।
बड़ी लड़की : नहीं।
स्*त्री : तो ?
बड़ी लड़की : कई-कई दिनों के लिए अपने को उससे काट लेती हूँ। पर धीरे-धीरे हर चीज फिर उसी ढर्रे पर लौट आती है। सब-कुछ उसी तरह होने लगता है जब तक कि हम... जब तक कि हम नए सिरे से उसी खोह में नहीं पहुँच जाते। मैं यहाँ आती हूँ... यहाँ आती हूँ तो सिर्फ इसलिए कि...
स्त्री : तेरा अपना घर है।
बड़ी लड़की : मेरा अपना घर !...हाँ। और मैं आती हूँ कि एक बार फिर खोजने
की कोशिश कर देखूँ कि क्या चीज है वह इस घर में जिसे ले कर बार-बार मुझे हीन किया जाता है।(लगभग टूटे स्वर में) तुम बता सकती हो ममा, कि क्या चीज है वह? और कहाँ है वह ? इस घर के खिड़कियों-दरवाजों में ? छत में? दीवारों में ? तुममें ? डैडी में ? किन्नी में अशोक में ? कहाँ छिपी है वह मनहूस चीज जो वह कहता है मै इस घर से अपने अंदर ले कर गई हूँ ?
(स्त्री की दोनों बाँहें हाथ में ले कर) बताओ ममा, क्या है ? कहाँ है वह इस घर में ?
teji is offline   Reply With Quote
Old 10-11-2012, 03:19 PM   #14
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: आधे-अधूरे - मोहन राकेश

काफी लंबा वक्फा। कुछ देर बड़ी लड़की के हाथ स्त्री की बाँहों पर रुके रहते हैं। और दोनों की आँखें मिली रहती हैं। धीरे-धीरे पुरुष एक की गरदन उनकी तरफ मुड़ती है। तभी स्त्री आहिस्ता से बड़ी लड़की के हाथ अपनी बाँहों से हटा देती है। उसकी आँखें पुरुष एक से मिलती हैं और वह जैसे उससे कुछ कहने के लिए कुछ कदम उसकी तरफ बढ़ाती है। बड़ी लड़की जैसे अब भी अपने सवाल का जवाब चाहती , अपनी जगह पर रुकी उन दोनों को देखती रहती है। पुरुष एक स्त्री को अपनी ओर आते देख आँखें उधर से हटा लेता है और एक-दो पल असमंजस में रहने के बाद अनजाने में ही अखबार को गोल करके दोनों हाथो से उसकी रस्सी बटने लगता है। स्त्री आधे रास्ते में ही कुछ कहने का विचार छोड़ कर अपने को सहेजती है। फिर बड़ी लड़की के पास वापस जा कर हलके से उसके कंधे को छूती है। बड़ी लड़की पल-भर आँखें मूँदे रह कर अपने आवेग दबाने का प्रयत्न करती है , फिर स्त्री का हाथ कंधे से हटा कर एक कुरसी का सहारा लिए उस पर बैठ जाती है। स्त्री यह समझ न आने से कि अब उसे क्या करना चाहिए, पल-भर दुविधा में हाथ उलझाए रहती है। उसकी आँखें फिर एक बार पुरुष एक से मिल जाती हैं। और वह जैसे आँखों से ही उसका तिरस्कार कर अपने को एक मोढ़े की स्थिति बदलने में व्यस्त कर लेती है। पुरुष एक अपनी जगह से उठ पड़ता है। अखबार की रस्सी अपने हाथों में देख कर अटपटा महसूस करता है। और कुछ देर अनिश्चित खड़ा रहने के बाद फिर से बैठ कर उस रस्सी के टुकड़े करने लगता है। तभी छोटी लड़की बाहर के दरवाजे से आती है और उन तीनों को उस तरह देख कर अचानक ठिठक जाती है।
छोटी लड़की : कुछ पता ही नहीं चलता यहाँ तो।
तीनों में से केवल एक ही स्त्री उसकी तरफ देखती है।
स्त्री : क्या कह रही है तू ?
छोटी लड़की : बताओ चलता है कुछ पता ? स्कूल से आई हूँ, तो तुम भी हो डैडी भी हैं, बिन्न-दी भी हैं- पर सबलोग ऐसे चुप हैं जैसे...
स्त्री : (स्त्री उसकी तरफ आती है) तू अपना बता कि आते ही चली कहाँ गई थी ?
छोटी लड़की : कहीं भी चली गई थी। घर पर था कोई जिसके पास बैठती यहाँ ? दूध गरम हुआ है मेरा ?
स्त्री : अभी हुआ जाता है।
छोटी लड़की : अभी हुआ जाता है ! स्कूल में भूख लगे तो कोई पैसा नहीं होता पास
में। और घर आने पर घंटा-घंटा दूध ही नहीं होता गरम।
स्त्री : कहा है न तुमसे, अभी गरम हुआ जाता है। (पुरुष एक से) तुम उठ रहे हो या मैं जाऊँ ?
पुरुष एक अखबार के टुकड़े को दोनों हाथों में समेटे उठ खड़ा होता है।
पुरुष एक : (कोई भी कड़वी चीज निगलने की तरह) जा रहा हूँ मैं ही...।
अखबार के टुकड़े पर इस तरह नजर डाल लेता है जैसे कि वह कोई महत्वपूर्ण दस्तावेज था जिसे टुकड़े-टुकड़े कर दिया है।
स्त्री : (छोटी लड़की से) तू फिर एक किताब फाड़ लाई है आज ?
पुरुष एक चलते-चलते रुक जाता कि इस महत्वपूर्ण प्रकरण का भी निपटारा भी देख ही ले।
छोटी लड़की : अपने आप फट गई, तो मैं क्या करूँ ? आज सिलाई की क्लास में फिर वही हुआ मेरे साथ। मिस ने कहा....
स्त्री : तू मिस की बात बाद में करना। पहले यह बता कि..
छोटी लड़की : रोज कहती हो, बाद में करना। आज भी मुझे रीलें ला कर न दीं, तो मैं स्कूल नहीं जाऊँगी कल से। मिस ने सारी क्लास के सामने मुझसे कहा कि...
स्त्री : तू और तेरी मिस ! रोग लगा रखा है जान को !
छोटी लड़की : तो उठा लो न मुझे स्कूल से। जैसे शोकी मारा-मारा फिरता है सारा दिन, मैं भी फिरती रहा करूँगी।
teji is offline   Reply With Quote
Old 10-11-2012, 03:20 PM   #15
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: आधे-अधूरे - मोहन राकेश

बड़ी लड़की इस बीच काफी अस्थिर महसूस करती छोटी लड़की को देखती है।
बड़ी लड़की : (अपने को रोक पाने में असमर्थ) तुझे तमीज से बात करना नहीं आता ? बड़ा भाई है तेरा।
छोटी लड़की : क्यों...फिरता नहीं मारा-मारा सारा दिन ?
बड़ी लड़की : किन्नी !
छोटी लड़की : तुम यहाँ थीं, तो क्या कुछ कहा करती थीं उसके बारे में? तुम्हारा भी तो बड़ा भाई है। चाहे एक ही साल बड़ा है, है तो बड़ा ही।
बड़ी लड़की : (स्त्री से) ममा, तुमने इस लड़की की जबान बहुत खोल दी है।
पुरुष एक : अगर यही बात मैं कह दूँ ना इससे....।
स्त्री : पहले जो-जो कहना है, वह कह लो तुम। उसके बाद देख लेना अगर...
पुरुष एक : (अहाते के दरवाजे की तरफ चलता) कहना क्या है ? कहता ही नहीं कभी । मैं दूध गरम कर रहा हूँ इसका ।
दरवाजे से निकल जाता है ।
छोटी लड़की : कल मुझे रीलों का डिब्बा जरूर चाहिए और मिस बैनर्जी ने सब लड़कियों से कहा है आज कि फाऊंडर्स-डे पी. टी. के लिए तीन-तीन नए किट...
स्त्री : कितने ?
छोटी लड़की : तीन-तीन। सब लड़कियों को बनाने हैं। और तुमने कहा था क्लिप और मोजे इस हफ्ते जरूर आ जाएँगे, आ गए हैं ? कितनी शरम आती है मुझे फटे मोजे पहन कर स्कूल जाते!
पल-भर की औघड़ खामोशी।
स्त्री : (जैसे अपने को उस प्रकरण से बचाने की कोशिश में) अच्छा, देख... स्कूल से आ कर तू अपना बैग यहाँ खुला छोड़ गई थी ! मैंने आ कर बंद किया है। पहले इसे अंदर रख कर आ।
छोटी लड़की : तुमने मेरी बात सुनी है ?
स्त्री : सुन ली है।
छोटी लड़की : तो जवाब क्यों नहीं दिया कुछ? (कोने से बैग उठा कर झटके से अंदर को चलती) मै कर रही हूँ क्लिप और मोजों की बात और कह रही हैं बैग रख कर आ अंदर ।
चली जाती है। बड़ी लड़की कुरसी से उठ पड़ती है।
बड़ी लड़की : हम कह पाते थे कभी इतनी बात ? आधी बात भी कह दें इससे, तो रासें इस तरह कस दी जाती थीं कि बस !
स्त्री पल-भर अपने में डूबी खड़ी रहती है।
स्त्री : (चेष्टा से अपने को सहेज कर) क्या कहा तूने ?
बड़ी लड़की : मैंने कहा कि...(सहसा स्त्री के भाव के प्रति सचेत हो कर) तुम सोच रही थीं कुछ ?
स्त्री : नहीं...सोच नहीं रही थी (इधर-उधर नजर डालती) देख रही थी कि और कुछ समेटने को तो नहीं है। अभी कोई आनेवाला है बाहर से और....।
बड़ी लड़की : कौन आनेवाला है ?
पुरुष एक दूध के गिलास में चीनी हिलाता अहाते के दरवाजे से आता है।
पुरुष एक : सिंघानिया। इसका बॉस। वह नया आना शुरू हुआ है आजकल।
गिलास डायनिंग टेबल पर छोड़ कर बिना किसी की तरफ देखे वापस चला जाता है। स्त्री कड़ी नजर से उसे जाते देखती है। बड़ी लड़की स्त्री के पास जाती है।
बड़ी लड़की : ममा !
स्त्री की आँखें घूम कर बड़ी लड़की के चेहरे पर अस्थिर होती हैं। कह कुछ नहीं पाती।
: क्या बात है, ममा !
स्त्री : कुछ नहीं।
बड़ी लड़की : फिर भी ?
स्त्री : कहा है ना, कुछ नहीं।
वहाँ से हट कर कबर्ड के पास चली जाती है और उसे खोल कर अंदर से कोई चीज ढूँढ़ने लगती है।
बड़ी लड़की : (उसके पीछे जा कर) ममा !
स्त्री कोई उत्तर न दे कर कबर्ड में से एक मेजपोश निकाल लेती और कबर्ड बंद कर देती है।
: तुम तो आदी हो रोज-रोज ऐसी बातें सुनने की। कब तक इन्हें मन पर लाती रहोगी ?
स्त्री उसका वाक्य पूरा होने तक रुकी रहती है फिर जाकर तिपाई का मेजपोश बदलने लगती है।
: (उसकी तरफ आती) एक तुम्हीं करनेवाली हो सब-कुछ इस घर में। अगर तुम्हीं....
स्त्री के बदलते भाव को देख कर बीच में ही रुक जाती है। स्त्री पुराने मेजपोश को हाथों में लिए एक नजर उसे देखती है , फिर उमड़ते आवेग को रोकने की कोशिश में चेहरा मेजपोश से ढँक लेती है।
: (काफी धीमे स्वर में) ममा !
स्त्री आहिस्ता से मोढ़े पर बैठती हुई मेजपोश चेहरे से हटाती है।
स्त्री : (रुलाई लिए स्वर में) अब मुझसे नहीं होता, बिन्नी। अब मुझसे नहीं सँभलता।
teji is offline   Reply With Quote
Old 10-11-2012, 03:20 PM   #16
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: आधे-अधूरे - मोहन राकेश

पुरुष एक अहाते के दरवाजे से आता है-दो जले टोस्ट एक प्लेट में लिए। स्त्री के शब्द उसके कानो में पड़ते हैं , पर वह जानबूझ कर अपने चेहरे से कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं होने देता। प्लेट दूध के गिलास के पास छोड़ कर किताबों के शेल्फ की तरफ चला जाता है और उसके निचले हिस्से में रखी फाइलों में से जैसे कोई खास फाइल ढूँढ़ने लगता है। बड़ी लड़की बात करने से पहले पल भर को वक्फा ले कर उसे देखती है।
बड़ी लड़की : (विशेष रूप से उसी को सुनाती , स्त्री से) जो तुमसे नहीं सँभलता, वह और किससे सँभल सकता है इस घर में... जान सकती हूँ ?
पुरुष एक जैसे फाइल की धूल झाड़ने के लिए उसे दो-एक जोर के हाथ लगा कर पीट देता है।
: जब से बड़ी हुई हूँ तभी से देख रही हूँ। तुम सब-कुछ सह कर भी रात-दिन अपने को इस घर के लिए हलाक करती रही हो और...
पुरुष एक अब एक और फाइल को उससे भी तेज और ज्यादा बार पीट देता है
स्त्री : पर हुआ क्या है उससे?
न सह पाने की नजर से पुरुष एक की तरफ देख कर मोढ़े से उठ पड़ती है। पुरुष एक दोनों फाइलों को जोर-जोर आपस में से टकराता है।
: (एकाएक पुरुष एक की थप-थप से उतावली पड़ कर) तुम्हें सारे घर में यह धूल इसी वक्त फैलानी है क्या ?
पुरुष एक : जुनेजा की फाइल ढूँढ़ रहा था। नहीं ढूँढ़ता।
जैसे-तैसे फाइलों को उसकी जगह में वापस ठूँसने लगता है। छोटी लड़की पाँव पटकती अंदर से आती है।
छोटी लड़की : देख लो ममा, यह मुझे फिर तंग कर रहा है।
बड़ी लड़की : (लगभग डाँटती) तू चिल्ला क्यों रही है इतना ?
छोटी लड़की : चिल्ला रही हूँ क्योंकि शोकी अंदर मुझे...
बड़ी लड़की : शोकी-शोकी क्या होता है ? तू अशोक भापाजी नहीं कह सकती ?
छोटी लड़की : अशोक भापाजी ?... वह ?
व्यंग्य के साथ हँसती है।
स्त्री : अशोक अंदर क्या कर रहा है इस वक्त ? मैं सोचती थी कि वह...
छोटी लड़की : पड़ा सो रहा था अब तक। मैंने जा कर जगा दिया, तो लगा मेरे बाल खींचने।
लड़का अंदर से आता है। लगता है , दो-तीन दिन से उसने शेव नहीं की।
लड़का : कौन सो रहा था ? मैं ? बिलकुल झूठ।
बड़ी लड़की : शेव करना छोड़ दिया है क्या तूने ?
लड़का : (अपने चेहरे को छूता) फ्रेंचकट रखने की सोच रहा हूँ। कैसी लगेगी मेरे चेहरे पर ?
छोटी लड़की : (उतावली पकड़ कर) मेरी बात सुनी नहीं किसी ने। अंदर मेरे बाल खींच रहा था और बाहर आ कर अपनी फ्रेंचकट बता रहा है।
डायनिंग टेबल से दूध का गिलास ले कर गटगट दूध पी जाती है। पुरुष एक इस बीच शेल्फ और फाइलों से उलझा रहता है। एक फाइल को किसी तरह अंदर समाता है तो कुछ और फाइलें बाहर को गिर आती है , उन्हें सँभालता है, तो पहले की फाइलें पीछे गिर जाती हैं।
स्त्री : (लड़के के पास आती) तुमसे एक बात पूछूँ ?
लड़का : पूछो ।
स्त्री : इस लड़की की क्या उम्र है ?
लड़का : यही तो मै तुमसे पूछना चाहता हूँ कि बारह साल की उम्र में यह लड़की... ?
बड़ी लड़की : तेरह साल की उम्र में।
स्त्री : तेरह साल की लड़की कितनी बड़ी होती है?
स्त्री : तेरह साल की लड़की तेरह साल बड़ी होती है और तेरह साल
बड़ी ही होनी चाहिए उसे, जबकि यह लड़की....
स्त्री : बच्ची नहीं है अब जो तू इसके बाल खींचता रहे।
teji is offline   Reply With Quote
Old 10-11-2012, 03:21 PM   #17
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: आधे-अधूरे - मोहन राकेश

छोटी लड़की लड़के की तरफ जबान निकालती है। पुरुष एक फाइलों को किसी तरह समेट कर उठ पड़ता है।
लड़का : तब तो सचमुच मुझे गलती माननी चाहिए।
स्त्री : जरूर माननी चाहिए... ।
लड़का : कि मैंने खामखाह इसके हाथ से वह किताब छीन ली।
पुरुष एक : (अपनी तटस्थता बनाए रखने में असमर्थ , आगे आता) कौन- सी किताब ?
छोटी लड़की : झूठ बोल रहा है। मैंने कोई किताब नहीं ली इसकी।
टोस्टों वाली प्लेट हाथ में लिए मेज पर बैठ जाती है।
पुरुष एक : (लड़की के पास पहुँच कर) कौन-सी किताब ?
लड़का : (बुशर्ट के अंदर से किताब निकाल कर दिखाता) यह किताब।
छोटी लड़की : झूठ, बिलकुल झूठ। मैंने देखी भी नहीं यह किताब।
लड़का : (आँखे फाड़ कर उसे देखता) नहीं देखी ?
छोटी लड़की : (कमजोर पड़ कर ढीठपन के साथ) तू तकिए के नीचे रख कर सोए, तो भी नहीं। मैंने जरा निकाल कर देख देख-भर ली, तो...।
पुरुष एक : (हाथ बढ़ा कर) मैं देख सकता हूँ ?
लड़का : (किताब वापस बुशर्ट में रखता) नहीं...आपके देखने की नहीं है। (स्त्री से) अब फिर पूछो मुझसे कि इसकी उम्र कितने साल है ?
बड़ी लड़की : क्यों अशोक... यह वही किताब है न कैसानोवा... ?
पुरुष : (ऊँचे स्वर में) ठहरो (बारी-बारी से उन सबकी ओर देखता) पहले मैं यह जान सकता हूँ यहाँ किसी से कि मेरी उम्र कितने साल की है ?
कुछ पलों का व्यवधान , जिसमें सिर्फ छोटी लड़की की मुँह और टाँगें चलती रहती हैं ।
स्त्री : ऐसी क्या बात कह दी किसी ने कि...
पुरुष : (एक-एक शब्द पर जोर देता) मैं पूछ रहा हूँ कि मेरी उम्र कितने साल की है ? कितने साल है मेरी उम्र ?
स्त्री : (उठ रही स्थिति के लिए तैयार हो कर) यह तुम्हें पूछ कर जानना है क्या ?
पुरुष एक : हाँ, पूछ कर ही जानना है आज। कितने साल हो चुके हैं मुझे जिंदगी का भार ढोते ? उनमें से कितने साल बीते हैं मेरे परिवार की देख-रेख करते ? और उस सबके बाद मैं आज पहुँचा कहाँ हूँ ? यहाँ कि जिसे देखो वही मुझसे उलटे ढंग से बात करता है ? जिसे देखो, वही मुझसे बदतमीजी से पेश आता है ?
लड़का : (अपनी सफाई देने की कोशिश में) मैंने तो सिर्फ इसलिए कहा था, डैडी, कि...
पुरुष एक : हर-एक के पास एक-न-एक वजह होती है। इसने इसलिए कहा था। उसने उसलिए कहा था। मैं जानना चाहता हूँ कि मेरी क्या यही हैसियत है इस घर में कि जो जब जिस वजह से जो भी कह दे मैं चुपचाप सुन लिया करूँ ? हर वक्त की दुत्कार, हर वक्त की कोंच, बस यही कमाई है यहाँ मेरी इतने सालों की...
teji is offline   Reply With Quote
Old 10-11-2012, 03:21 PM   #18
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: आधे-अधूरे - मोहन राकेश

स्त्री : (वितृष्णा से उसे देखती) यह सब किसे सुना रहे हो तुम ?
पुरुष एक : किसे सुना सकता हूँ ? कोई है जो सुन सकता है ? जिन्हें सुनना चाहिए, वे सब तो एक रबड़-स्टैंप के सिवा कुछ समझते ही नहीं मुझे। सिर्फ जरूरत पड़ने पर इस स्टैंप का ठप्पा लगा कर...
स्त्री : यह बहुत बड़ी बात नहीं कह रहे तुम ?
लड़का : (उसे रोकने की कोशिश में) ममा...!
स्त्री : मुझे सिर्फ इतना पूछ लेने दे इनसे कि रबड़-स्टैंप के माने क्या होते हैं? एक अधिकार, एक रुतबा, एक इज्जत यही न ?
लड़का : (फिर उसी कोशिश में) सुनो तो सही, ममा... !
स्त्री : (बिना किसी तरफ ध्यान दिए) यह सब कब-कब मिला है इनसे किसी को भी इस घर में ? किस माने में ये कहते है कि....?
पुरुष-एक : किसी माने में नहीं । मैं इस घर मेँ एक रबड़-स्टैंप भी नहीं, सिर्फ एक रबड़ का टुकड़ा हूँ--बार-बार घिसा जानेवाला रबड़ का टुकड़ा। इसके बाद क्या कोई मुझे वजह बता सकता है, एक भी ऐसी वजह, कि क्यों मुझे रहना चाहिए इस घर में?
सब लोग चुप रहते हैं।
: नहीं बता सकता न ?
स्त्री : मैंने एक छोटी-सी बात पूछी है तुमसे...
पुरुष एक : (सिर हिलाता) हाँ...छोटी-सी बात ही तो है यह। अधिकार, रुतबा, इज्जत - यह सब बाहर के लोगों से मिल सकता है इस घर को। इस घर का आज तक कुछ बना है, या आगे बन सकता है, तो सिर्फ बाहर के लोगों के भरोसे। मेरे भरोसे तो सब-कुछ बिगड़ता आया है और आगे बिगड़-ही-बिगड़ सकता है। (लड़के की तरफ इशारा करके) यह आज तक बेकार क्यों घूम रहा है ? मेरी वजह से। (बड़ी लड़की की तरफ इशारा करके) यह बिना बताए एक रात घर से क्यों भाग गई थी ? मेरी वजह से। (स्त्री के बिलकुल सामने आ कर) और तुम भी...तुम भी इतने सालों से क्यों चाहती रही हो कि... ?
स्त्री : (बौखला कर , शेष तीनों से) सुन रहे हो तुम लोग ?
पुरुष एक : अपनी जिंदगी चौपट करने का जिम्मेदार मैं हूँ। इन सबकी जिंदगियाँ चौपट करने का जिम्मेदार मैं हूँ। फिर भी मैं इस घर से चिपका हूँ क्योंकि अंदर से मैं आराम-तलब हूँ, घरघुसरा हूँ, मेरी हड्डियों में जंग लगा है।
स्त्री : मैं नहीं जानती, तुम सचमुच ऐसा महसूस करते हो या.. ?
पुरुष : सचमुच महसूस करता हूँ। मुझे पता है, मैं एक कीड़ा हूँ जिसने अंदर-ही-अंदर इस घर को खा लिया है (बाहर के दरवाजे की तरफ चलता) पर अब पेट भर गया है मेरा। हमेशा के लिए भर गया है (दरवाजे के पास रुक कर) और बचा भी क्या है जिसे खाने के लिए और रहता रहूँ यहाँ ?
चला जाता है। कुछ देर के लिए सब लोग जड़-से हो रहते हैं। फिर छोटी लड़की हाथ के टोस्ट को मुँह की ओर ले जाती है।
बड़ी लड़की : तुम्हारा खयाल है, ममा...?
स्त्री : लौट आएँगे रात तक। हर शुक्र-शनीचर यही सब होता है यहाँ।
छोटी लड़की : (जूठे टोस्ट को प्लेट में वापस पटकती है) थू:-थू:।
बड़ी लड़की : (काफी गुस्से के साथ) तुझे क्या हो रहा है वहाँ ?
छोटी लड़की : मुझे क्या हो रहा है यहाँ ? यह टोस्ट है, कोयला है ?
स्त्री : (दाँत भींचे) तू इधर आएगी एक मिनट ?
छोटी लड़की : नहीं आऊँगी।
बड़ी लड़की : नहीं आएगी ?
छोटी लड़की : नहीं आऊँगी। (सहसा उठ कर बाहर को चलती) अंदर जाओ, तो बाल खींचे जाते हैं। बाहर आओ, तो किटपिट-किटपिट-किटपिट और खाने को कोयला - अब उधर आ कर इनके तमाचे और खाने हैं।
चली जाती है।
लड़का : (उसके पीछे जाने को हो कर) मैं देखता हूँ इसे कम-से-कम लड़की को तो मुझे...
दरवाजे के पास पहुँचता ही है कि पीछे से स्त्री आवाज दे कर उसे रोक लेती है।
स्त्री : सुन।
लड़का : (किसी तरह निकल जाने की कोशिश में) पहले मैं जा कर इसे...
स्त्री : (काफी सख्त स्वर में) पहले तू आ कर यहाँ... बात सुन मेरी।
लड़का किसी जरूरी काम पर जाने से रोक लिए जाने की मुद्रा में लौट कर स्त्री के पास आ जाता है।
लड़का : बताओ।
teji is offline   Reply With Quote
Old 10-11-2012, 03:22 PM   #19
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: आधे-अधूरे - मोहन राकेश

स्त्री : कम-से-कम तुझे इस वक्त कहीं नहीं जाना है। वह आज फिर आनेवाला है थोड़ी देर में और...
लड़का : ('मुझे क्या, कोई आनेवाला है तो ?' की मुद्रा में) कौन आनेवाला है?
बड़ी लड़की : ममा का बॉस...क्या नाम है उसका ?
लड़का : अच्छा, वह... आदमी !
बड़ी लड़की : तू मिला है उससे ?
लड़का : दो बार।
बड़ी लड़की : कहाँ ?
लड़का : इसी घर में।
स्त्री : (बड़ी लड़की से) दोनों बार के लिए बुलाया था मैंने उसे, आज भी इसी की खातिर?
लड़का : (कुछ तीखा पड़ कर) मेरी खातिर ? मुझे क्या लेना-देना है उससे ?
बड़ी लड़की : ममा उसके जरिए तेरी नौकरी के लिए कोशिश कर रही होंगी न... ।
लड़का : मुझे नहीं चाहिए नौकरी। कम-से-कम उस आदमी के जरिए हरगिज नहीं।
बड़ी लड़की : क्यों, उस आदमी को क्या है ?
लड़का : चुकंदर है। वह आदमी है जिसे बैठने का शऊर है, न बात करने का।
स्त्री : पाँच हजार तनख्वाह है उसकी। पूरा दफ्तर सँभलता है।
लड़का : पाँच हजार तनख्वाह है, पूरा दफ्तर सँभलता है, पर इतना होश नहीं है कि अपनी पतलून के बटन...
स्त्री : अशोक !
लड़का : तुम्हारा बॉस न होता, तो उस दिन मैं कान से पकड़ कर घर से निकाल दिया होता। सोफे पे टाँग पसारे आप सोच कुछ रहे हैं, जाँघ खुजलाते देख किसी तरफ रहे है और बात मुझसे कर रहे हैं... (नकल उतारता) 'अच्छा, यह बतलाइए कि आपके राजनीतिक विचार क्या हैं?' राजनीतिक विचार हैं मेरी खुजली और उसकी मरहम !
स्त्री : (अपना माथा सहला कर बड़ी लड़की से) ये लोग हैं जिनके लिए मैं जानमारी करती हूँ रात-दिन।
लड़का : पहले पाँच सेकंड आदमी की आँखों में देखता रहेगा फिर होंठों के दाहिने कोनो से जरा-सा मुस्कुराएगा। फिर एक-एक लफ्ज को चबाता हुआ पूछेगा... (उसके स्वर में) 'आप क्या सोचते हैं, आजकल युवा लोगों में इतनी अराजकता क्यों है?' ढूँढ़-ढूँढ़ कर सरकारी हिंदी के लफ्ज लाता है-युवा लोगों में ! अराजकता !
स्त्री : तो फिर ?
लड़का : तो फिर क्या ?
स्त्री : तो फिर क्या मरजी है तेरी ?
लड़का : किस चीज को ले कर ?
स्त्री : अपने-आपको।
लड़का : मुझे क्या हुआ ?
स्त्री : जिंदगी में तुझे भी कुछ करना-धरना है या बाप ही की तरह...?
लड़का : (फिर तीखा पकड़ कर) हर बात में खामखाह उनका जिक्र क्यों बीच में लाती हो ?
स्त्री : पढ़ाई थी, तो तूने पूरी नहीं की। एयर-फ्रिज में नौकरी दिलवाई थी, तो वहाँ से छह हफ्ते बाद छोड़ कर चला आया। अब मैं नए सिरे से कोशिश करना चाहती हूँ तो...
लड़का : पर क्यों करना चाहती हो ? मैंने कहा है तुमसे कोशिश करने के लिए ?
बड़ी लड़की : तो तेरा मतलब है कि तू...जिंदगी-भर कुछ भी नहीं करना चाहता?
लड़का : ऐसा कहा है मैंने ?
बड़ी लड़की : तो नौकरी के सिवा ऐसा क्या है जो तू....?
लड़का : यह मैं नहीं कह सकता। सिर्फ इतना कह सकता हूँ कि जिस चीज में मेरी अंदर से दिलचस्पी नहीं है...।
स्त्री : दिलचस्पी तो तेरी...।
बड़ी लड़की : ठहरो ममा... !
स्त्री : तू ठहर, मुझे बात करने दे। (लड़के से) दिलचस्पी तो तेरी सिर्फ तीन चीजों में है- दिन-भर ऊँघने में, तस्वीरे काटने में और...घर की यह चीज वह चीज ले जा कर....
लड़का : (कड़वी नजर से उसे देखता) इसे घर कहती हो तुम ?
स्त्री : तो तू इसे क्या समझ कर रहता है यहाँ ?
लड़का : मैं इसे...
बड़ी लड़की : (उसे बोलने न देने के लिए) देख अशोक, ममा के यह सब कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि...
लड़का : मैं नहीं जानता मतलब ? तू चली गई है यहाँ से, मैं तो अभी यहीं रहता हूँ।
स्त्री : (हताश भाव से) तो क्यों नहीं तू भी फिर... ?
बड़ी लड़की : (झिड़कने के स्वर में) कैसी बात कर रही हो, ममा !
स्त्री : कैसी बात कर रही हूँ ? यहाँ पर सब लोग समझते क्या हैं मुझे ? एक मशीन, जोकि सबके लिए आटा पीस कर रात को दिन और दिन को रात करती रहती है? मगर किसी के मन में जरा- सा भी खयाल नहीं है इस चीज के लिए कि कैसे मैं.. ।
teji is offline   Reply With Quote
Old 10-11-2012, 03:22 PM   #20
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: आधे-अधूरे - मोहन राकेश

इस बीच ही बाहर के दरवाजे पर पुरुष दो की आकृति दिखाई देती है जो किवाड़ को हलके से खटखटा देता है। स्त्री चौंक कर उधर देखती है और अपनी अधकही बात को बीच में ही चबा जाती है।
:(स्वर को किसी तरह सँभालती) आप?.. आ गए हैं आप ? ...आइए-आइए अंदर।
बड़ी लड़की : (दायित्वपूर्ण ढंग से दरवाजे की तरफ बढ़ती) आइए।
पुरुष दो अभ्यस्त मुद्रा में उनके अभिवादन का उत्तर देता अंदर आ जाता है।
स्त्री : यह मेरी बड़ी लड़की बिन्नी। अशोक तो आपसे मिल ही चुका है।
पुरुष दो : अच्छा-अच्छा यही है वह लड़की। तुम चर्चा कर रही थीं इसकी। इसका ऑपरेशन हुआ था न पिछले साल...न-न-न न। वह तो मिसेज माथुर की लड़की का ? नहीं शायद...पर हुआ था किसी की लड़की का।
स्त्री : यहाँ आ जाइए सोफे पर !
सोफे की तरफ बढ़ते हुए पुरुष दो की आँखें लड़के से मिल जाती हैं। लड़का चलते ढंग से उसे हाथ जोड़ देता है। पुरुष दो फिर उसी अभ्यस्त ढंग से उत्तर देता है।
पुरुष दो : (बैठता हुआ) इतने लोगों से मिलना-जुलना होता है कि...(अपनी घड़ी देख कर) पाँच मिनट हैं सात में। उनका अनुरोध था, सात तक अवश्य पहुँच जाऊँ। कई लोगों को बुला रखा है उन्होंने - विशेष रूप से मिलने के लिए (बड़ी लड़की को ध्यान से देखता, स्त्री से) तुमने बताया था कुछ इसके विषय में। किस कॉलेज में है यह?
स्त्री : अब कॉलेज में नहीं है...
पुरुष दो : हाँ-हाँ-हाँ...बताया था तुमने। (बड़ी लड़की से) बैठो न। (स्त्री से) बैठो तुम भी।
स्त्री सोफे के पास कुरसी पर बैठ जाती है। बड़ी लड़की कुछ दुविधा में खड़ी रहती है।
स्त्री : बैठ जा, खड़ी क्यों है ?
बड़ी लड़की : ये जल्दी चले जाएँगे, सोच रही थी चाय का पानी... ।
पुरुष दो : नहीं-नहीं, चाये-वाय नहीं इस समय। वैसे भी बहुत कम पीता हूँ। एक लेख था कहीं रिजर्ड डाइजेस्ट में था?... कि अधिक चाय पीने से (जाँघ खुजलाता) रीडर्स डाइजेस्ट भी क्या चीज निकालते हैं ! अपने यहाँ तो बस ये कहानियाँ वो कहानियाँ, कोई अच्छी पत्रिका मिलती ही नहीं देखने को। एक अमेरिकन आया हुआ था पिछले दिनों। बता रहा था कि...
लड़का जो इतनी देर परे खड़ा रहता है , अब बढ़ कर उनके पास आ जाता हैं।
लड़का : (स्त्री से) ऐसा है ममा, कि...
स्त्री : रुक अभी। (पुरुष दो से) एक प्याली भी नहीं लेंगे ?
पुरुष दो : ना, बिलकुल नहीं।...अंतरराष्ट्रीय संपर्क हैं कंपनी के, सो सभी देशों के लोग मिलने आते रहते हैं। जापान से तो पूरा प्रतिनिधि-मंडल ही आया हुआ था पिछले दिनों...। कुछ भी कहिए, जापान ने सबकी नाक में नकेल कर रखी है आजकल। अभी उस दिन मैं जापान की पिछले वर्ष की औद्योगिक सांख्यकी देख रहा था... ।
लड़का : मैं क्षमा चाहूँगा क्योंकि...
स्त्री : तुमसे कहा है, रुक अभी थोड़ी देर। (पुरुष दो से) आप कॉफी पसंद करते हों, तो...
पुरुष दो : न चाय, न कॉफी। एक घटना सुनाऊँ आपको, कॉफी पीने के संबंध में। आज की बात नहीं, बहुत साल पहले की है। तब की जब मैं विश्वविद्यालय की साहित्य-सभा का मंत्री था। (मन में उस बात का रस लेता) हैं-हैं-ह-हैं-हाँ-हैं।...साहित्यिक गतिविधियों में रुचि आरंभ से ही थी। सो... (बड़ी लड़की और लड़के से) बैठ जाओ तुम लोग।
बड़ी लड़की बैठ जाती है।
लड़का : बात यह है कि...
स्त्री : (उठती हुई) ! मैं थोड़ा नमकीन ले कर आ रही हूँ।
लड़के को बैठने के लिए कोंच कर अहाते के दरवाजे से चली जाती है। लड़का असंतुष्ट भाव से उसे देखता है , फिर टहेलता हुआ पढ़ने की मेज के पास चला जाता है। बड़ी लड़की से आँख मिलने पर हलके से मुँह बनाता है और कुरसी का रुख थोड़ा सोफे की तरफ करके बैठ जाता है।
पुरुष दो : (बड़ी लड़की से) तुम्हें पहले कहीं देखा है... नहीं देखा ?
बड़ी लड़की : मुझे ?...आपने ?
पुरुष दो : किसी इंटरव्यू में ?
बड़ी लड़की : नहीं तो।
पुरुष दो : फिर भी लगता है देखा है।...कोई और होगी। बिलकुल तुम्हारे जैसी थी। विचित्र बात नहीं है यह ?
बड़ी लड़की : क्या ?
पुरुष दो : कि बहुत-से लोग एक-दूसरे जैसे होते हैं। हमारे अंकल हैं एक। पीठ से देखो - मोरारजी भाई लगते हैं।
लड़का इस बीच मेज की दराज खोल कर तस्वीरें निकाल लेता है और उन्हें मेज पर फैलाने लगता है।
लड़का : हमारी आंटी हैं एक। गरदन काट कर देखो - जीता लोलोब्रिजिदा नजर आती हैं।
पुरुष दो : हाँ !...कई लोग होते हैं ऐसे। जीवन की विचित्रताओं की ओर ध्यान देने लगें, तो कई बार तो लगता है कि... (सहसा जेबें टटोलता) भूल तो नहीं आया घर पर ?(जेब से चश्मा निकाल कर वापस रखता) नहीं। तो मैं कह रहा था कि...क्या कह रहा था ?
बड़ी लड़की : कि जीवन की विचित्रताओं की ओर ध्यान देने लगें, तो...
teji is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 02:54 AM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.