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#11 |
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![]() विष्णु बगलें झाँकने लगे। लक्ष्मी को जवाब न देते बना। ब्रह्मा ने नशे में गुर्राते हुए कहा- ’देखता हूँ- तुम लोग मिलकर मेरी बीबी सरस्वती को कैसे मिंगल बनाते हो? देवबुक के रिलेशनशिप स्टेटस में मेरा नाम हो या न हो। कोई फ़र्क नहीं पड़ता। अभी तक हमारा डिवोर्स नहीं हुआ है।’
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#12 |
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यह सुनकर लक्ष्मी से चुप नहीं रहा गया। लाखों-करोड़ों साल की दिल की भड़ास को निकालते हुए लक्ष्मी ने चिल्लाते हुए ब्रह्मा से कहा- ’अरे डिवोर्स नहीं हुआ तो क्या हुआ? तेरी शादी को मानता ही कौन देवता है, अधर्मी ब्रह्मा? तूने काम ही ऐसा किया है। अपनी ही पुत्री सरस्वती से जबरदस्ती विवाह कर लिया! इसीलिए तो सभी देवताओं ने मिलकर तुम्हें श्राप दे दिया कि तुम्हारी पूजा-अर्चना धरती पर कहीं नहीं होगी। तुमने बहुत हाथ-पैर जोड़ा, रोए-गिड़गिड़ाए। तब जाकर बड़ी मुश्किल से धरती पर अपना एक ही मन्दिर चलाने की परमीशन मिली है तुम्हें। ज़्यादा पकर-पकर करोगे तो वो भी बन्द करवा दूँगी। अपना काला मुँह लेकर इन्द्र दरबार में आने की हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी? तुम्हें देवराज इन्द्र ने अपने जन्मदिन का कार्ड भेजा कैसे? तुम्हें तो देवता समाज से कभी का निकाला जा चुका है।’
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#13 |
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इससे पहले ब्रह्मा कुछ बोलें, देवराज इन्द्र ने सकपकाकर अपनी सफाई देते हुए कहा- ’मैंने तो नहीं भेजा ब्रह्मा को जन्मदिन का कार्ड। बेशर्म है, बिना बुलाए बिना कार्ड के आ गया होगा।’
ब्रह्मा ने दाँत निकालकर कहा- ’बेशर्म बिल्कुल नहीं हूँ। मैं अपनी आॅल्टरनेटिव वाइफ़ गायत्री के साथ आया हूँ। मगर किसी ने मेरी बीबी सरस्वती को मिंगल करने की कोशिश की तो हाथ पर हाथ धरकर चुप नहीं बैठूँगा। देवलोक की ईंट से ईंट बजा दूँगा। ’
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#14 | |
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#15 |
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भीम जी, आपके लिए जवाब इधर लगा है। http://myhindiforum.com/showpost.php...8&postcount=24 Awww... आपका बहुत—बहुत धन्यवाद, आपने मुझे पागल कहा। कुछ लोग हदीस के हवाले से पैगम्बर मुहम्मद साहब को भी मानसिक रोगी बताते हैं—
“जबीर बिन अब्दुल्लाह ने कहा- एक बार जब काबा की फिर से मरम्मत हो रही थी, और मैं रसूल के साथ पत्थर ढो रहा था, मैंने रसूल से कहा- आप अपनी तहमद(कमरशीट) ऊंची कर दीजिये, ताकि उलझकर आपको चोट न लग जाये। फिर जैसे ही रसूल ने तहमद ऊँची की वह अचानक चिल्लाने लगे, लाओ मेरी तहमद, मेरी तहमद कहाँ है? जबकि तहमद कमर में बंधी हुई थी।” (बुखारी–जिल्द 5 किताब 58 हदीस 170) “आयशा ने कहा- रसूल हमेशा कल्पनाएँ (पसंद) करते रहते थे। उनको ऐसा भ्रम होता था कि वह कुछ काम कर रहे हैं, या कह रहे हैं, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं होता था। मैंने उनका इलाज भी करवाया था। एक दिन दो लोग रसूल के पास आये और बोले आपका दिमाग भ्रमित (Bewiched ) हो गया है।“ (बुखारी-जिल्द 4 किताब 54 हदीस 490 “आयशा ने कहा कि रसूल जब चाहे मुझसे कहते रहते थे- आयशा वहाँ देखो- जिब्राइल तुम्हें सलाम कर रहा है। लेकिन मुझे वहाँ कोई दिखाई नहीं देता था।” (बुखारी–जिल्द 8 किताब 74 हदीस 266)
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#16 | |
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![]() मेरा भी यही विचार है कि रजत जी को एक बार किसी अच्छे मनोचिकित्सक से तुरंत मिल लेना चाहिये। ![]() |
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#17 | |
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#18 | |
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#19 |
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आपने इस सूत्र का नाम रखा है - "गधा माँगे इन्साफ़", जो संभवत: दिये गए कहानी का शीर्षक भी है।
हमरी खाली खोपड़ियाँ मे ई बात अभी तक नहीं घुसी कि कहानी मे आउर शीर्षक मे तालमेल का है? कही हमही लोग उ गदहवा तो नहीं है - जो इंसाफ मांग रहे है। राधाकृष्*णजी का एक ठो कहानी पढ़े थे, स्कुल मे - नाम था - "वरदान का फेर" इस कहानी मे भी देवी देवता के संग एक तो मानव भी थे - बुधुदेव जी। हास्य-व्यंग्य खुब था। हास्य-व्यंग्य का होवे है? - तनिक जान लो कपिल शर्मा के ताऊ जी। |
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#20 |
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हे विप्रवर, हरिशंकर परसाई जी कथा - "भोलाराम का जीव" भी पढ़ लो।
ज्ञान चक्षु खुल जाएँगे। और भी है - जरूरत हो, तो मांग लेना, बिलकुल मत शरमाना। |
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