12-08-2012, 01:55 PM | #11 |
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Re: इस्लाम के पैग़म्बर :हज़रत मुहम्मद (सल्ल. )-प
इस्लाम के इस पहलू पर विचार व्यक्त करते हुए सरोजनी नायडू कहती हैं-‘‘यह पहला धर्म था जिसने जम्हूरियत (लोकतंत्र) की शिक्षा दी और उसे एक व्यावहारिक रूप दिया। क्योंकि जब मीनारों से अज़ान दी जाती है और इबादत करने वाले मस्जिदों में जमा होते हैं तो इस्लाम की जम्हूरियत (जनतंत्र) एक दिन में पाँच बार साकार होती है, ‘अल्लाहु अकबर’ यानी ‘‘ अल्लाह ही बड़ा है।’’भारत की महान कवियत्री अपनी बात जारी रखते हुए कहती हैं-‘‘मैं इस्लाम की इस अविभाज्य एकता को देख कर बहुत प्रभावित हुई हूँ, जो लोगों को सहज रूप में एक-दूसरे का भाई बना देती है। जब आप एक मिस्री, एक अलजीरियाई, एक हिन्दूस्तानी और एक तुर्क (मुसलमान) से लंदन में मिलते हैं तो आप महसूस करेंगे कि उनकी निगाह में इस चीज़ का कोई महत्त्व नहीं है कि एक का संबंध मिस्र से है और एक का वतन हिन्दुस्तान आदि है।’’ |
12-08-2012, 01:55 PM | #12 |
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Re: इस्लाम के पैग़म्बर :हज़रत मुहम्मद (सल्ल. )-प
इंसानी भाईचारा और इस्लाम
महात्मा गाँधी अपनी अद्भूत शैली में कहते हैं- ‘‘ कहा जाता है कि यूरोप वाले दक्षिणी अफ्ऱीक़ा में इस्लाम के प्रासार से भयभीत हैं, उस इस्लाम से जिसने स्पेन को सभ्य बनाया, उस इस्लाम से जिसने मराकश तक रोशनी पहुँचाई और संसार को भईचारे की इंजील पढ़ाई। दक्षिणी अफ्ऱीक़ा के यूरोपियन इस्लाम के फैलाव से बस इसलिए भयभीत हैं कि उनके अनुयायी गोरों के साथ कहीं समानता की माँग न कर बैठें। अगर ऐसा है तो उनका डरना ठीक ही है। यदि भाईचारा एक पाप है, यदि काली नस्लों की गोरों से बराबरी ही वह चीज़ है, जिससे वे डर रहे हैं, तो फिर (इस्लाम के प्रसार से) उनके डरने का कारण भी समझ में आ जाता है।’’ |
12-08-2012, 01:56 PM | #13 |
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Re: इस्लाम के पैग़म्बर :हज़रत मुहम्मद (सल्ल. )-प
हज: मानव-समानता का एक जीवन्त प्रमाण
दुनिया हर साल हज के मौक़े पर रंग, नस्ल और जाति आदि के भेदभाव से मुक्त इस्लाम के चमत्कारपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय भव्य प्रदर्शन को देखती है। यूरोपवासी ही नहीं, बल्कि अफ्ऱीक़ी, फ़ारसी, भारतीय, चीनी आदि सभी मक्का में एक ही दिव्य परिवार के सदस्यों के रूप में एकत्र होते हैं, सभी का लिबास एक जैसा होता है। हर आदमी बिना सिली दो सफ़ेद चादरों में होता है, एक कमर पर बंधी होती है तथा दूसरी कंधों पर पड़ी हुई। सब के सिर खुले हुए होते हैं। किसी दिखावे या बनावट का प्रदर्शन नहीं होता। लोगों की ज़ुबान पर ये शब्द होते हैं-‘‘मैं हाज़िर हूँ, ऐ ख़ुदा मैं तेरी आज्ञा के पालन के लिए हाज़िर हूँ, तू एक है और तेरा कोई शरीक नहीं।’’इस प्रकार कोई ऐसी चीज़ बाक़ी नहीं रहती, जिसके कारण किसी को बड़ा कहा जाए, किसी को छोटा। और हर हाजी इस्लाम के अन्तर्राष्ट्रीय महत्व का प्रभाव लिए घर वापस लौटता है। प्रोफ़सर हर्गरोन्ज (Hurgronje) के शब्दों में- ‘‘पैग़म्बरे-इस्लाम द्वारा स्थापित राष्ट्रसंघ ने अन्तर्राष्ट्रीय एकता और मानव भ्रातृत्व के नियमों को ऐसे सार्वभौमिक आधारों पर स्थापित किया है जो अन्य राष्ट्रों को मार्ग दिखाते रहेंगे।’’वह आगे लिखता है-‘‘वास्तविकता यह है कि राष्ट्रसंघ की धारणा को वास्तविक रूप देने के लिए इस्लाम का जो कारनामा है, कोई भी अन्य राष्ट्र उसकी मिसाल पेश नहीं कर सकता।’’ |
12-08-2012, 01:57 PM | #14 |
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Re: इस्लाम के पैग़म्बर :हज़रत मुहम्मद (सल्ल. )-प
इस्लाम: स्म्पूर्ण संसार के लिए एक प्रकाशस्तंभ
इस्लाम के पैग़म्बर ने लाकतान्त्रिक शासन-प्रणाली को उसके उत्कृष्टतम रूप में स्थापित किया। ख़लीफ़ा उमर और ख़लीफ़ा अली (पैग़मम्बर इस्लाम के दामाद), ख़लीफ़ा मन्सूर, अब्बास (ख़लीफ़ा मामून के बेटे) और कई दूसरे ख़लीफ़ा और मुस्लिम सुल्तानों को एक साधारण व्यक्ति की तरह इस्लामी अदालतों में जज के सामने पेश होना पड़ा। हम सब जानते हैं कि काले नीग्रो लोगों के साथ आज भी ‘सभ्य!’ सफे़द रंगवाले कैसा व्यवहार करते है? फिर आप आज से चैदह शताब्दी पूर्व इस्लाम के पैग़म्बर के समय के काले नीग्रो बिलाल के बारे में अन्दाज़ा कीजिए। इस्लाम के आरम्भिक काल में नमाज़ के लिए अज़ान देने की सेवा को अत्यन्त आदरणीय व सम्मानजनक पद समझा जाता था और यह आदर इस ग़ुलाम नीग्रो को प्रदान किया गया था। मक्का पर विजय के बाद उनको हुक्म दिया गया कि नमाज़ के लिए अज़ान दें और यह काले रंग और मोटे होंठोंवाला नीग्रो गुलाम इस्लामी जगत् के सब से पवित्र और ऐतिहासिक भवन, पवित्र काबा की छत पर अज़ान देने के लिए चढ़ गया। उस समय कुछ अभिमानी अरब चिल्*ला उठे, ‘‘आह, बुरा हो इसका, यह काला हब्शी अज़ान के लिए पवित्र काबा की छत पर चढ़ गया है।’’शायद यही नस्ली गर्व और पूर्वाग्रह था जिसके जवाब में आप(सल्ल.) ने एक भाषण (ख़ुत्बा) दिया। वास्तव में इन दोनों चीज़ों को जड़-बुनियाद से ख़त्म करना आपके लक्ष्य में से था। अपने भाषण में आपने फ़रमाया-‘‘सारी प्रशंसा और शुक्र अल्लाह के लिए है, जिसने हमें अज्ञानकाल के अभिमान और अन्य बुराइयों से छुटकारा दिया। ऐ लोगो, याद रखो कि सारी मानव-जाति केवल दो श्रेणियों में बँटी हैः एक धर्मनिष्ठ अल्लाह से डरने वाले लोग जो कि अल्लाह की दृष्टि में सम्मानित हैं। दूसरे उल्लंघनकारी, अत्याचारी, अपराधी और कठोर हृदय लोग हैं जो ख़ुदा की निगाह में गिरे हुए और तिरस्कृत हैं। अन्यथा सभी लोग एक आदम की औलाद हैं और अल्लाह ने आदम को मिट्टी से पैदा किया था।’’इसी की पुष्टि क़ुरआन में इन शब्दों में की गई है-‘‘ऐ लोगो ! हमने तमको एक मर्द और एक औरत से पैदा किया और तुम्हारी विभिन्न जातियाँ और वंश बनाए ताकि तुम एक-दूसरे को पहचानो, निस्सन्देह अल्लाह की दृष्टि में तुममें सबसे अधिक सम्मानित वह है जो (अल्लाह से) सबसे ज़्यादा डरनेवाला है। निस्सन्देह अल्लाह ख़ूब जाननेवाला और पूरी तरह ख़बर रख़नेवाला है।’’ (क़ुरआन,49:13) |
12-08-2012, 01:57 PM | #15 |
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Re: इस्लाम के पैग़म्बर :हज़रत मुहम्मद (सल्ल. )-प
इस्लाम: स्म्पूर्ण संसार के लिए एक प्रकाशस्तंभ
इस्लाम के पैग़म्बर ने लाकतान्त्रिक शासन-प्रणाली को उसके उत्कृष्टतम रूप में स्थापित किया। ख़लीफ़ा उमर और ख़लीफ़ा अली (पैग़मम्बर इस्लाम के दामाद), ख़लीफ़ा मन्सूर, अब्बास (ख़लीफ़ा मामून के बेटे) और कई दूसरे ख़लीफ़ा और मुस्लिम सुल्तानों को एक साधारण व्यक्ति की तरह इस्लामी अदालतों में जज के सामने पेश होना पड़ा। हम सब जानते हैं कि काले नीग्रो लोगों के साथ आज भी ‘सभ्य!’ सफे़द रंगवाले कैसा व्यवहार करते है? फिर आप आज से चैदह शताब्दी पूर्व इस्लाम के पैग़म्बर के समय के काले नीग्रो बिलाल के बारे में अन्दाज़ा कीजिए। इस्लाम के आरम्भिक काल में नमाज़ के लिए अज़ान देने की सेवा को अत्यन्त आदरणीय व सम्मानजनक पद समझा जाता था और यह आदर इस ग़ुलाम नीग्रो को प्रदान किया गया था। मक्का पर विजय के बाद उनको हुक्म दिया गया कि नमाज़ के लिए अज़ान दें और यह काले रंग और मोटे होंठोंवाला नीग्रो गुलाम इस्लामी जगत् के सब से पवित्र और ऐतिहासिक भवन, पवित्र काबा की छत पर अज़ान देने के लिए चढ़ गया। उस समय कुछ अभिमानी अरब चिल्*ला उठे, ‘‘आह, बुरा हो इसका, यह काला हब्शी अज़ान के लिए पवित्र काबा की छत पर चढ़ गया है।’’शायद यही नस्ली गर्व और पूर्वाग्रह था जिसके जवाब में आप(सल्ल.) ने एक भाषण (ख़ुत्बा) दिया। वास्तव में इन दोनों चीज़ों को जड़-बुनियाद से ख़त्म करना आपके लक्ष्य में से था। अपने भाषण में आपने फ़रमाया-‘‘सारी प्रशंसा और शुक्र अल्लाह के लिए है, जिसने हमें अज्ञानकाल के अभिमान और अन्य बुराइयों से छुटकारा दिया। ऐ लोगो, याद रखो कि सारी मानव-जाति केवल दो श्रेणियों में बँटी हैः एक धर्मनिष्ठ अल्लाह से डरने वाले लोग जो कि अल्लाह की दृष्टि में सम्मानित हैं। दूसरे उल्लंघनकारी, अत्याचारी, अपराधी और कठोर हृदय लोग हैं जो ख़ुदा की निगाह में गिरे हुए और तिरस्कृत हैं। अन्यथा सभी लोग एक आदम की औलाद हैं और अल्लाह ने आदम को मिट्टी से पैदा किया था।’’इसी की पुष्टि क़ुरआन में इन शब्दों में की गई है-‘‘ऐ लोगो ! हमने तमको एक मर्द और एक औरत से पैदा किया और तुम्हारी विभिन्न जातियाँ और वंश बनाए ताकि तुम एक-दूसरे को पहचानो, निस्सन्देह अल्लाह की दृष्टि में तुममें सबसे अधिक सम्मानित वह है जो (अल्लाह से) सबसे ज़्यादा डरनेवाला है। निस्सन्देह अल्लाह ख़ूब जाननेवाला और पूरी तरह ख़बर रख़नेवाला है।’’ (क़ुरआन,49:13) |
12-08-2012, 01:58 PM | #16 |
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Re: इस्लाम के पैग़म्बर :हज़रत मुहम्मद (सल्ल. )-प
महान परिवर्तन
इस प्रकार पैग़म्बरे-इस्लाम हृदयो में ऐसा ज़बरदस्त परिवर्तन करने में सफल हो गए कि सबसे पवित्र और सम्मानित समझे जानेवाले अरब ख़ानदानों के लोगों ने भी इस नीग्रो गुलाम की जीवन-संगिनी बनाने के लिए अपनी बेटियों से विवाह करने का प्रस्ताव किया। इस्लाम के दूसरे ख़लीफ़ा और मुसलमानों के अमीर (सरदार) जो इतिहीस में उमर महान(फ़ारूक़े आज़म) के नाम से प्रसिद्ध हैं, इस नीग्रो को देखते ही तुरन्त खड़े हो जाते और इन शब्दों में उनका स्वागत करते, ‘‘हमारे बड़े, हमारे सरदार आ गए।’’ धरती पर उस समय की सबसे अधिक स्वाभिमानी क़ौम, अरबों में क़ुरआन और पैग़म्बर मुहम्मद ने कितना महान परिवर्तन कर दिया था। यही कारण है कि जर्मनी के एक बहुत बड़े शायर गोयटे ने पवित्र क़ुरआन के बारे में अपने उद्गार प्रकट करते हुए एलान किया है-‘‘यह पुस्तक हर युग में लोगों पर अपना अत्यधिक प्रभाव डालती रहेगी।’’इसी कारण जॉर्ज बर्नाड शॉ का भी कहना है-‘‘अगर अगले सौ सालों में इंग्लैंड ही नहीं, बल्कि पूरे यूरोप पर किसी धर्म के शासन करने की संभावना है तो वह इस्लाम है।’’ |
12-08-2012, 01:59 PM | #17 |
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Re: इस्लाम के पैग़म्बर :हज़रत मुहम्मद (सल्ल. )-प
इस्लाम: नारी-उद्धारक
इसलाम की यह लोकतांत्रिक विशेषता है कि उसने स्त्री को पुरुष की दासता से आज़ादी दिलाई। सर चाल्र्स ई.ए. हेमिल्टन ने कहा है-‘‘इस्लाम की शिक्षा यह है कि मानव अपने स्वभाव की दृष्टि से बेगुनाह है। वह सिखाता है कि स्त्री और पुरुष दोनों एक ही तत्व से पैदा हुए, दोनों में एक ही आत्मा है और दोनों में इसकी समान रूप से क्षमता पाई जाती कि वे मानसिक, आध्यात्मिक और नैतिक दृष्टि से उन्नति कर सकें।’’ स्त्रियों को सम्पत्ति रखने का अधिकार अरबों में यह परम्परा सुदृढ़ रूप से पाई जाती थी कि विरासत का अधिकारी तन्हा वही हो सकता जो बरछा और तलवार चलाने में सिद्धस्त हो। लेकिन इस्लाम अबला का रक्षक बनकर आया और उसने औरत को पैतृक विरासत में हिस्सेदार बनाया। उसने औरतों को आज से सदियों पहले सम्पत्ति में मिल्कियत का अधिकार दिया। उसके कहीं बारह सदियों बाद 1881ई. में उस इंग्लैंड ने, जो लोकतंत्र का गहवारा समझा जाता है, इस्लाम के इस सिद्धान्त को अपनाया और उसके लिए ‘दि मैरीड वीमन्स एक्ट’ (विवाहित स्त्रियों का अधिनियम) नामक क़ानून पास हुआ। लेकिन इस घटना से बारह सदी पहले पैग़म्बरे-इस्लाम यह घोषणा कर चूके थे-‘‘औरत-मर्द युग्म में औरतें मर्दों का दूसरा हिस्सा हैं। औरतों के अधिकार का आदर होना चाहिए।’’‘‘ इस का ध्यान रहे कि औरतें अपने निश्चित अधिकार प्राप्त कर पा रही हैं (या नहीं)।’’अध्याय .3विश्वसनीय व्यक्तित्व (अल-अमीन) सुनहरे साधन इस्लाम का राजनैतिक और आर्थिक व्यवसथा से सीधा संबंध नहीं है, बल्कि यह संबंध अप्रत्यक्ष रूप में है और जहाँ तक राजनैतिक और आर्थिक मामले इंसान के आचार व्यवहार को प्रभावित करते हैं, उस सीमा में दोनों क्षेत्रों में निस्सन्देह उसने कई अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्धान्त प्रतिपादित किए हैं। प्रोफ़सर मेसिंगनन के अनुसार ‘इस्लाम दो प्रतिकूल अतिशयों के बीच सन्तुलन स्थापित करता है और चरित्र-निर्मान का, जो कि सभ्यता की बुनियाद है, सदैव ध्यान में रखता है।’ इस उद्देश्य को प्राप्त करने और समाज-विरोधी तत्वों पर क़ाबू पाने के लिए इस्लाम अपने विरासत के क़ानून और संगठित एवं अनिवार्य ज़कात की व्यवस्था से काम लेता है। और एकाधिकार (इजारादारी), सूदख़ोरी, अप्राप्त आमदनियों व लाभों को पहले ही निश्चित कर लेने, मंडियों पर क़ब्ज़ा कर लेने, ज़ख़ीरा अन्दोज़ी ;भ्वंतकपदहद्ध बाज़ार का सारा सामान ख़रीदकर कीमतें बढ़ाने के लिए कृत्रिम अभाव पैदा करना, इन सब कामों को इस्लाम ने अवैध घोशित किया है। इस्लाम में जुआ भी अवैध है। जबकि शिक्षा-संस्थाओं, इबादतगाहों तथा चिकित्सालयों की सहायता करने, कुएँ खोदने, यतीमख़ाने स्थापित करने को पुण्यतम काम घोषित किया । कहा जाता है कि यतीमख़ानों की स्थापना का आरम्भ पैग़म्बरे-इस्लाम की शिक्षा से ही हुआ। आज का संसार अपने यतीमख़ानों की स्थापना के लिए उसी पैग़म्बर का आभारी है, जो कि ख़ुद यतीम था। कारलायल पैग़म्बर मुहम्मद के बारे में अपने उद्गाार प्रकट करते हुए कहता है-‘‘ ये सब भलाइयाँ बताती हैं कि प्रकृति की गोद में पले-बढ़े मरुस्थलीय पुत्र के हृदय में, मानवता, दया और समता के भाव का नैसर्गिक वास था।’’एक इतिहासकार का कथन है कि किसी महान व्यक्ति की परख तीन बातों से की जा सकती है-1. क्या उसके समकालीन लोगों ने उसे साहसी, तेजस्वी और सच्चे आचरण का पाया?2. क्या उसने अपने युग के स्तरों से उँचा उठने में उल्लेखनीय महानता का परिचय दिया?3. क्या उसने सामान्यतः पूरे संसार के लिए अपने पीछे कोई स्थाई धरोहर छोड़ी?इस सूचि को और लम्बा किया जा सकता है, लेकिन जहाँ तक पैग़म्बर मुहम्मद का संबंध है वे जाँच की इन तीनों कसौटियों पर पूर्णतः खरे उतरते हैं। अन्तिम दो बातों के संबंध में कुछ प्रमाणों का पहले ही उल्लेख किया जा चुका है।इन तीन कसौटियों में पहली है, क्या पैग़म्बरे-इस्लाम को आपके समकालीन लोगों ने तेजस्वी, साहसी और सच्चे आचरणवाला पाया था? बेदाग़ आचरण ऐतिहासिक दस्तावेज़ें साक्षी हैं कि क्या दोस्त, क्या दुश्मन, हज़रत मुहम्मद के सभी समकालीन लोगों ने जीवन के सभी मामलों व सभी क्षेत्रों में पैग़म्बरे- इस्लाम के उत्कृष्ट गुणों, आपकी बेदाग़ ईमानदारी, आपके महान नैतिक सद्गुणों तथा आपकी अबाध निश्छलता और हर संदेह से मुक्त आपकी विश्वसनीयता को स्वीकार किया है। यहाँ तक कि यहूदी और वे लोग जिनको आपके संदेश पर विश्वास नहीं था, वे भी आपको अपने झगड़ों में पंच या मध्यस्थ बनाते थे, क्योंकि उन्हें आपकी निरपेक्षता पर पूरा यक़ीन था। वे लोग भी जो आपके संदेश पर ईमान नहीं रखते थे, यह कहने पर विवश थे-‘‘ऐ मुहम्मद, हम तुमको झूठा नहीं कहते, बल्कि उसका इंकार करते हैं जिसने तुमको किताब दी तथा जिसने तुम्हें रसूल बनाया।’’ वे समझते थे कि आप पर किसी (जिन्न आदि) का असर है, जिससे मुक्ति दिलाने के लिए उन्होंने आप पर सख्ती भी की। लेकिन उनमें जो बेहतरीन लोग थे, उन्होंने देखा कि आपके ऊपर एक नई ज्योति अवतरित हुई है और वे उस ज्ञान को पाने के लिए दौड़ पड़े। पैग़म्बरे-इस्लाम की जीवनगाथा की यह विशिष्टता उल्लेखनीय है कि आपके निकटतम रिश्तेदार, आपके प्रिय चचेरे भाई, आपके घनिष्ट मित्र, जो आप को बहुत निकट से जानते थे, उन्होंने आपके पैग़ाम की सच्चाई को दिल से माना और इसी प्रकार आपकी पैग़म्बरी की सत्यता को भी स्वीकार किया। पैग़मम्बर मुहम्मद पर ईमान ले आने वाले ये कुलीन शिक्षित एवं बुद्धिमान स्त्रियाँ और पुरुष आपके व्यक्तिगत जीवन से भली-भाँति परिचित थे। वे आपके व्यक्तित्व में अगर धोखेबाज़ी और फ्राड की ज़रा-सी झलक भी देख पाते तो आपमें धनलोलुपता देखते या आपमें आत्म विश्वास की कमी पाते तो आपके चरित्र-निर्माण, आत्मिक जागृति तथा समाजोद्धार की सारी आशाएं ध्वस्त होकर रह जातीं।1इसके विपरीत हम देखते हैं कि अनुयायियों की निष्ठा और आपके प्रति उनके समर्थन का यह हाल था कि उन्होंने स्वेच्छा से अपना जीवन आपको समर्पित करके आपका नेतृत्व स्वीकार कर लिया। उन्होंने आपके लिए यातनाओं और ख़तरों को वीरता और साहस के साथ झेला, आप पर ईमान लाए, आपका विश्वास किया, आपकी आज्ञाओं का पालन किया और आपका हार्दिक सम्मान किया और यह सब कुछ उन्होंने दिल दहला देनेवाली यातनाओं के बावजूद किया तथा सामाजिक बहिष्कार से उत्पन्न घोर मानसिक यंत्रणा को शान्तिपूर्वक सहन किया। यहाँ तक कि इसके लिए उन्होने मौत तक की परवाह नहीं की। क्या यह सब कुछ उस हालत में भी संभव होता यदि वे अपने नेता में तनिक भी भ्रष्टता या अनैतिकता पाते? 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12-08-2012, 01:59 PM | #18 |
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Re: इस्लाम के पैग़म्बर :हज़रत मुहम्मद (सल्ल. )-प
इस्लाम: नारी-उद्धारक
इसलाम की यह लोकतांत्रिक विशेषता है कि उसने स्त्री को पुरुष की दासता से आज़ादी दिलाई। सर चाल्र्स ई.ए. हेमिल्टन ने कहा है-‘‘इस्लाम की शिक्षा यह है कि मानव अपने स्वभाव की दृष्टि से बेगुनाह है। वह सिखाता है कि स्त्री और पुरुष दोनों एक ही तत्व से पैदा हुए, दोनों में एक ही आत्मा है और दोनों में इसकी समान रूप से क्षमता पाई जाती कि वे मानसिक, आध्यात्मिक और नैतिक दृष्टि से उन्नति कर सकें।’’ स्त्रियों को सम्पत्ति रखने का अधिकार अरबों में यह परम्परा सुदृढ़ रूप से पाई जाती थी कि विरासत का अधिकारी तन्हा वही हो सकता जो बरछा और तलवार चलाने में सिद्धस्त हो। लेकिन इस्लाम अबला का रक्षक बनकर आया और उसने औरत को पैतृक विरासत में हिस्सेदार बनाया। उसने औरतों को आज से सदियों पहले सम्पत्ति में मिल्कियत का अधिकार दिया। उसके कहीं बारह सदियों बाद 1881ई. में उस इंग्लैंड ने, जो लोकतंत्र का गहवारा समझा जाता है, इस्लाम के इस सिद्धान्त को अपनाया और उसके लिए ‘दि मैरीड वीमन्स एक्ट’ (विवाहित स्त्रियों का अधिनियम) नामक क़ानून पास हुआ। लेकिन इस घटना से बारह सदी पहले पैग़म्बरे-इस्लाम यह घोषणा कर चूके थे-‘‘औरत-मर्द युग्म में औरतें मर्दों का दूसरा हिस्सा हैं। औरतों के अधिकार का आदर होना चाहिए।’’‘‘ इस का ध्यान रहे कि औरतें अपने निश्चित अधिकार प्राप्त कर पा रही हैं (या नहीं)।’’अध्याय .3विश्वसनीय व्यक्तित्व (अल-अमीन) सुनहरे साधन इस्लाम का राजनैतिक और आर्थिक व्यवसथा से सीधा संबंध नहीं है, बल्कि यह संबंध अप्रत्यक्ष रूप में है और जहाँ तक राजनैतिक और आर्थिक मामले इंसान के आचार व्यवहार को प्रभावित करते हैं, उस सीमा में दोनों क्षेत्रों में निस्सन्देह उसने कई अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्धान्त प्रतिपादित किए हैं। प्रोफ़सर मेसिंगनन के अनुसार ‘इस्लाम दो प्रतिकूल अतिशयों के बीच सन्तुलन स्थापित करता है और चरित्र-निर्मान का, जो कि सभ्यता की बुनियाद है, सदैव ध्यान में रखता है।’ इस उद्देश्य को प्राप्त करने और समाज-विरोधी तत्वों पर क़ाबू पाने के लिए इस्लाम अपने विरासत के क़ानून और संगठित एवं अनिवार्य ज़कात की व्यवस्था से काम लेता है। और एकाधिकार (इजारादारी), सूदख़ोरी, अप्राप्त आमदनियों व लाभों को पहले ही निश्चित कर लेने, मंडियों पर क़ब्ज़ा कर लेने, ज़ख़ीरा अन्दोज़ी ;भ्वंतकपदहद्ध बाज़ार का सारा सामान ख़रीदकर कीमतें बढ़ाने के लिए कृत्रिम अभाव पैदा करना, इन सब कामों को इस्लाम ने अवैध घोशित किया है। इस्लाम में जुआ भी अवैध है। जबकि शिक्षा-संस्थाओं, इबादतगाहों तथा चिकित्सालयों की सहायता करने, कुएँ खोदने, यतीमख़ाने स्थापित करने को पुण्यतम काम घोषित किया । कहा जाता है कि यतीमख़ानों की स्थापना का आरम्भ पैग़म्बरे-इस्लाम की शिक्षा से ही हुआ। आज का संसार अपने यतीमख़ानों की स्थापना के लिए उसी पैग़म्बर का आभारी है, जो कि ख़ुद यतीम था। कारलायल पैग़म्बर मुहम्मद के बारे में अपने उद्गाार प्रकट करते हुए कहता है-‘‘ ये सब भलाइयाँ बताती हैं कि प्रकृति की गोद में पले-बढ़े मरुस्थलीय पुत्र के हृदय में, मानवता, दया और समता के भाव का नैसर्गिक वास था।’’एक इतिहासकार का कथन है कि किसी महान व्यक्ति की परख तीन बातों से की जा सकती है-1. क्या उसके समकालीन लोगों ने उसे साहसी, तेजस्वी और सच्चे आचरण का पाया?2. क्या उसने अपने युग के स्तरों से उँचा उठने में उल्लेखनीय महानता का परिचय दिया?3. क्या उसने सामान्यतः पूरे संसार के लिए अपने पीछे कोई स्थाई धरोहर छोड़ी?इस सूचि को और लम्बा किया जा सकता है, लेकिन जहाँ तक पैग़म्बर मुहम्मद का संबंध है वे जाँच की इन तीनों कसौटियों पर पूर्णतः खरे उतरते हैं। अन्तिम दो बातों के संबंध में कुछ प्रमाणों का पहले ही उल्लेख किया जा चुका है।इन तीन कसौटियों में पहली है, क्या पैग़म्बरे-इस्लाम को आपके समकालीन लोगों ने तेजस्वी, साहसी और सच्चे आचरणवाला पाया था? बेदाग़ आचरण ऐतिहासिक दस्तावेज़ें साक्षी हैं कि क्या दोस्त, क्या दुश्मन, हज़रत मुहम्मद के सभी समकालीन लोगों ने जीवन के सभी मामलों व सभी क्षेत्रों में पैग़म्बरे- इस्लाम के उत्कृष्ट गुणों, आपकी बेदाग़ ईमानदारी, आपके महान नैतिक सद्गुणों तथा आपकी अबाध निश्छलता और हर संदेह से मुक्त आपकी विश्वसनीयता को स्वीकार किया है। यहाँ तक कि यहूदी और वे लोग जिनको आपके संदेश पर विश्वास नहीं था, वे भी आपको अपने झगड़ों में पंच या मध्यस्थ बनाते थे, क्योंकि उन्हें आपकी निरपेक्षता पर पूरा यक़ीन था। वे लोग भी जो आपके संदेश पर ईमान नहीं रखते थे, यह कहने पर विवश थे-‘‘ऐ मुहम्मद, हम तुमको झूठा नहीं कहते, बल्कि उसका इंकार करते हैं जिसने तुमको किताब दी तथा जिसने तुम्हें रसूल बनाया।’’ वे समझते थे कि आप पर किसी (जिन्न आदि) का असर है, जिससे मुक्ति दिलाने के लिए उन्होंने आप पर सख्ती भी की। लेकिन उनमें जो बेहतरीन लोग थे, उन्होंने देखा कि आपके ऊपर एक नई ज्योति अवतरित हुई है और वे उस ज्ञान को पाने के लिए दौड़ पड़े। पैग़म्बरे-इस्लाम की जीवनगाथा की यह विशिष्टता उल्लेखनीय है कि आपके निकटतम रिश्तेदार, आपके प्रिय चचेरे भाई, आपके घनिष्ट मित्र, जो आप को बहुत निकट से जानते थे, उन्होंने आपके पैग़ाम की सच्चाई को दिल से माना और इसी प्रकार आपकी पैग़म्बरी की सत्यता को भी स्वीकार किया। पैग़मम्बर मुहम्मद पर ईमान ले आने वाले ये कुलीन शिक्षित एवं बुद्धिमान स्त्रियाँ और पुरुष आपके व्यक्तिगत जीवन से भली-भाँति परिचित थे। वे आपके व्यक्तित्व में अगर धोखेबाज़ी और फ्राड की ज़रा-सी झलक भी देख पाते तो आपमें धनलोलुपता देखते या आपमें आत्म विश्वास की कमी पाते तो आपके चरित्र-निर्माण, आत्मिक जागृति तथा समाजोद्धार की सारी आशाएं ध्वस्त होकर रह जातीं।1इसके विपरीत हम देखते हैं कि अनुयायियों की निष्ठा और आपके प्रति उनके समर्थन का यह हाल था कि उन्होंने स्वेच्छा से अपना जीवन आपको समर्पित करके आपका नेतृत्व स्वीकार कर लिया। उन्होंने आपके लिए यातनाओं और ख़तरों को वीरता और साहस के साथ झेला, आप पर ईमान लाए, आपका विश्वास किया, आपकी आज्ञाओं का पालन किया और आपका हार्दिक सम्मान किया और यह सब कुछ उन्होंने दिल दहला देनेवाली यातनाओं के बावजूद किया तथा सामाजिक बहिष्कार से उत्पन्न घोर मानसिक यंत्रणा को शान्तिपूर्वक सहन किया। यहाँ तक कि इसके लिए उन्होने मौत तक की परवाह नहीं की। क्या यह सब कुछ उस हालत में भी संभव होता यदि वे अपने नेता में तनिक भी भ्रष्टता या अनैतिकता पाते? 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12-08-2012, 02:00 PM | #19 |
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Re: इस्लाम के पैग़म्बर :हज़रत मुहम्मद (सल्ल. )-प
पैग़म्बर से अमर प्रेम
आरम्भिक काल के इसलाम स्वीकार करनेवालों के ऐतिहासिक किस्से पढ़िए तो इन बेक़ुसूर मर्दों और औरतों पर ढाए गए ग़ैर इंसानी अत्याचारों को देखकर कौन-सा दिल है जो रो न पड़ेगा? एक मासूम औरत सुमैया को बेरहमी के साथ बरछे मार-मार कर हलाक कर डाला गया। एक मिसाल यासिर की भी है, जिनकी टांगों को दो ऊटों से बाँध दिया गया और फिर उन ऊँटों को विपरित दिशा में हाँका गया। ख़ब्बाब बिन अरत को धधकते हुए कोयलों पर लिटाकर निर्दयी ज़ालिम उनके सीने पर खड़ा हो गया, ताकि वे हिल-डुल न सकें, यहाँ तक कि उनकी खाल जल गई और चर्बी पिघलकर निकल पड़ी। और ख़ब्बाब बिन अरत के गोश्त को निर्ममता से नोच-नोचकर तथा उनके अंग काट-काटकर उनकी हत्या की गई। इन यातनाओं के दौरान उनसे पूछा गया कि क्या अब वे यह न चाहेंगे कि उनकी जगह पर पैग़म्बर मुहम्मद होते? (जो कि उस वक्त अपने घरवालों के साथ अपने घर में थे) तो पीड़ित खब्बाब ने ऊँचे स्वर में कहा कि पैग़म्बर मुहम्मद को एक कांटा चुभने की मामूली तकलीफ़ से बचाने के लिए भी वे अपनी जान, अपने बच्चों एवं परिवार, अपना सब कुछ कु़र्बान करने के लिए तैयार हैं। इस तरह के दिल दहलानेवाले बहुत-से वाक़िए पेश किए जा सकते हैं, लेकिन ये सब घटनाएँ आख़िर क्या सिद्ध करती हैं? ऐसा कैसे हो सका कि इस्लाम के इन बेटे और बेटियों ने अपने पैग़म्बर के प्रति केवल निष्ठा ही नहीं दिखाई, बल्कि उन्होंने अपने शरीर, हृदय और आत्मा का नज़राना पैश किया? पैग़म्बर मुहम्मद के प्रति उनके निकटतम अनुयायियों की यह दृढ़ आस्था और विश्वास, क्या उस कार्य के प्रति, जो पैग़म्बर मुहम्मद के सुपुर्द किया गया था, उनकी ईमानदारी, निष्पक्षता तथा तन्मयता का अत्यन्त उत्तम प्रमाण नहीं है? |
12-08-2012, 02:01 PM | #20 |
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Re: इस्लाम के पैग़म्बर :हज़रत मुहम्मद (सल्ल. )-प
उच्च सामर्थ्*यवान अनुयायी
ध्यान रहे कि ये लोग न तो निचले दर्जे के लोग थे और न कम अक्लवाले। आपके मिशन के आरम्भिक काल में जो लोग आपके चारों ओर जमा हुए वे मक्का के श्रेठतम लोग थे,उसके फूल और मक्खन, ऊँचे दर्जे के, धनी और सभ्य लोग थे। इनमें आपके ख़ानदान और परिवार के क़रीबी लोग भी थे जो आपकी अन्दरूनी और बाहरी जिन्दगी से भली-भाँति परिचित थे। आरम्भ के चारों ख़लीफ़ा भी, जो कि महान व्यक्तित्व के मालिक हुए, इस्लाम के आरम्भिक काल ही में इस्लाम में दाख़िल हुए। |
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