My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > Art & Literature > Hindi Literature
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 08-12-2010, 02:13 PM   #11
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!

आज मुझसे बोल, बादल!


तम भरा तू, तम भरा मैं,
ग़म भरा तू, ग़म भरा मैं,
आज तू अपने हृदय से हृदय मेरा तोल, बादल
आज मुझसे बोल, बादल!


आग तुझमें, आग मुझमें,
राग तुझमें, राग मुझमें,
आ मिलें हम आज अपने द्वार उर के खोल, बादल
आज मुझसे बोल, बादल!


भेद यह मत देख दो पल-
क्षार जल मैं, तू मधुर जल,
व्यर्थ मेरे अश्रु, तेरी बूंद है अनमोल, बादल
आज मुझसे बोल, बादल!


हरिवंशराय बच्चन
teji is offline   Reply With Quote
Old 08-12-2010, 02:14 PM   #12
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!

आज़ादी का गीत

चांदी, सोने, हीरे मोती से सजती गुड़िया
इनसे आतंकित करने की घडियां बीत गई
इनसे सज धज कर बैठा करते हैं जो कठपुतले
हमने तोड़ अभी फेंकी हैं हथकडियां

परम्परागत पुरखो की जागृति की फिर से
उठा शीश पर रक्खा हमने हिम-किरीट उजव्व्ल
हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल

चांदी, सोने, हीरे, मोती से सजवा छाते
जो अपने सिर धरवाते थे अब शरमाते
फूल कली बरसाने वाली टूट गई दुनिया
वज्रों के वाहन अम्बर में निर्भय गहराते

इन्द्रायुध भी एक बार जो हिम्मत से ओटे
छत्र हमारा निर्मित करते साठ-कोटी करतल
हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल


हरिवंशराय बच्चन
teji is offline   Reply With Quote
Old 08-12-2010, 02:15 PM   #13
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!

आत्मदीप / हरिवंशराय बच्चन
मुझे न अपने से कुछ प्यार,
मिट्टी का हूँ, छोटा दीपक,
ज्योति चाहती, दुनिया जब तक,
मेरी, जल-जल कर मैं उसको देने को तैयार|


पर यदि मेरी लौ के द्वार,
दुनिया की आँखों को निद्रित,
चकाचौध करते हों छिद्रित
मुझे बुझा दे बुझ जाने से मुझे नहीं इंकार|


केवल इतना ले वह जान
मिट्टी के दीपों के अंतर
मुझमें दिया प्रकृति ने है कर
मैं सजीव दीपक हूँ मुझ में भरा हुआ है मान|


पहले कर ले खूब विचार
तब वह मुझ पर हाथ बढ़ाए
कहीं न पीछे से पछताए
बुझा मुझे फिर जला सकेगी नहीं दूसरी बार|
teji is offline   Reply With Quote
Old 08-12-2010, 02:15 PM   #14
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!

आत्मपरिचय / हरिवंशराय बच्चन

मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ, फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ;
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं सासों के दो तार लिए फिरता हूँ!

मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ,
जग पूछ रहा है उनको, जो जग की गाते,
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ!

मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ,
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ;
है यह अपूर्ण संसार ने मुझको भाता
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ!

मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ,
सुख-दुख दोनों में मग्न रहा करता हूँ;
जग भ्व-सागर तरने को नाव बनाए,
मैं भव मौजों पर मस्त बहा करता हूँ!

मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूँ,
उन्मादों में अवसाद लए फिरता हूँ,
जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,
मैं, हाय, किसी की याद लिए फिरता हूँ!

कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना?
नादन वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना!
फिर मूढ़ न क्या जग, जो इस पर भी सीखे?
मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भूलना!

मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,
मैं बना-बना कितने जग रोज़ मिटाता;
जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,
मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता!

मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
हों जिसपर भूपों के प्रसाद निछावर,
मैं उस खंडर का भाग लिए फिरता हूँ!

मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना;
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना!

मैं दीवानों का एक वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता नि:शेष लिए फिरता हूँ;
जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ!
teji is offline   Reply With Quote
Old 08-12-2010, 02:18 PM   #15
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!

आदर्श प्रेम / हरिवंशराय बच्चन
प्यार किसी को करना लेकिन
कह कर उसे बताना क्या
अपने को अर्पण करना पर
और को अपनाना क्या


गुण का ग्राहक बनना लेकिन
गा कर उसे सुनाना क्या
मन के कल्पित भावों से
औरों को भ्रम में लाना क्या


ले लेना सुगंध सुमनों की
तोड उन्हे मुरझाना क्या
प्रेम हार पहनाना लेकिन
प्रेम पाश फैलाना क्या


त्याग अंक में पले प्रेम शिशु
उनमें स्वार्थ बताना क्या
दे कर हृदय हृदय पाने की
आशा व्यर्थ लगाना क्या
teji is offline   Reply With Quote
Old 08-12-2010, 02:18 PM   #16
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!

आ रही रवि की सवारी / हरिवंशराय बच्चन
आ रही रवि की सवारी।

नव-किरण का रथ सजा है,
कलि-कुसुम से पथ सजा है,
बादलों-से अनुचरों ने स्वर्ण की पोशाक धारी।
आ रही रवि की सवारी।

विहग, बंदी और चारण,
गा रही है कीर्ति-गायन,
छोड़कर मैदान भागी, तारकों की फ़ौज सारी।
आ रही रवि की सवारी।

चाहता, उछलूँ विजय कह,
पर ठिठकता देखकर यह-
रात का राजा खड़ा है, राह में बनकर भिखारी।
आ रही रवि की सवारी।
teji is offline   Reply With Quote
Old 08-12-2010, 02:18 PM   #17
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!

इतने मत उन्मत्त बनो / हरिवंशराय बच्चन

इतने मत उन्मत्त बनो!
जीवन मधुशाला से मधु पी
बनकर तन-मन-मतवाला,
गीत सुनाने लगा झुमकर
चुम-चुमकर मैं प्याला-
शीश हिलाकर दुनिया बोली,
पृथ्वी पर हो चुका बहुत यह,
इतने मत उन्मत्त बनो।

इतने मत संतप्त बनो।
जीवन मरघट पर अपने सब
आमानों की कर होली,
चला राह में रोदन करता
चिता-राख से भर झोली-
शीश हिलाकर दुनिया बोली,
पृथ्वी पर हो चुका बहुत यह,
इतने मत संतप्त बनो।

इतने मत उत्तप्त बनो।
मेरे प्रति अन्याय हुआ है
ज्ञात हुआ मुझको जिस क्षण,
करने लगा अग्नि-आनन हो
गुरू-गर्जन, गुरूतर गर्जन-
शीश हिलाकर दुनिया बोली,
पृथ्वी पर हो चुका बहुत यह,
इतने मत उत्तप्त बनो।
teji is offline   Reply With Quote
Old 08-12-2010, 02:20 PM   #18
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!

इस पार उस पार / हरिवंशराय बच्चन

इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!


यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का,
लहरालहरा यह शाखाएँ कुछ शोक भुला देती मन का,
कल मुर्झानेवाली कलियाँ हँसकर कहती हैं मगन रहो,
बुलबुल तरु की फुनगी पर से संदेश सुनाती यौवन का,
तुम देकर मदिरा के प्याले मेरा मन बहला देती हो,
उस पार मुझे बहलाने का उपचार न जाने क्या होगा!
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!


जग में रस की नदियाँ बहती, रसना दो बूंदें पाती है,
जीवन की झिलमिलसी झाँकी नयनों के आगे आती है,
स्वरतालमयी वीणा बजती, मिलती है बस झंकार मुझे,
मेरे सुमनों की गंध कहीं यह वायु उड़ा ले जाती है!
ऐसा सुनता, उस पार, प्रिये, ये साधन भी छिन जा*एँगे,
तब मानव की चेतनता का आधार न जाने क्या होगा!
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!


प्याला है पर पी पाएँगे, है ज्ञात नहीं इतना हमको,
इस पार नियति ने भेजा है, असमर्थबना कितना हमको,
कहने वाले, पर कहते है, हम कर्मों में स्वाधीन सदा,
करने वालों की परवशता है ज्ञात किसे, जितनी हमको?
कह तो सकते हैं, कहकर ही कुछ दिल हलका कर लेते हैं,
उस पार अभागे मानव का अधिकार न जाने क्या होगा!
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!


कुछ भी न किया था जब उसका, उसने पथ में काँटे बोये,
वे भार दिए धर कंधों पर, जो रोरोकर हमने ढोए,
महलों के सपनों के भीतर जर्जर खँडहर का सत्य भरा!
उर में एसी हलचल भर दी, दो रात न हम सुख से सोए!
अब तो हम अपने जीवन भर उस क्रूरकठिन को कोस चुके,
उस पार नियति का मानव से व्यवहार न जाने क्या होगा!
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!


संसृति के जीवन में, सुभगे! ऐसी भी घड़ियाँ आऐंगी,
जब दिनकर की तमहर किरणे तम के अन्दर छिप जाएँगी,
जब निज प्रियतम का शव रजनी तम की चादर से ढक देगी,
तब रविशशिपोषित यह पृथिवी कितने दिन खैर मनाएगी!
जब इस लंबेचौड़े जग का अस्तित्व न रहने पाएगा,
तब तेरा मेरा नन्हासा संसार न जाने क्या होगा!
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!


ऐसा चिर पतझड़ आएगा, कोयल न कुहुक फिर पाएगी,
बुलबुल न अंधेरे में गागा जीवन की ज्योति जगाएगी,
अगणित मृदुनव पल्लव के स्वर 'भरभर' न सुने जाएँगे,
अलिअवली कलिदल पर गुंजन करने के हेतु न आएगी,
जब इतनी रसमय ध्वनियों का अवसान, प्रिय हो जाएगा,
तब शुष्क हमारे कंठों का उद्गार न जाने क्या होगा!
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!


सुन काल प्रबल का गुरु गर्जन निर्झरिणी भूलेगी नर्तन,
निर्झर भूलेगा निज 'टलमल', सरिता अपना 'कलकल' गायन,
वह गायकनायक सिन्धु कहीं, चुप हो छिप जाना चाहेगा!
मुँह खोल खड़े रह जाएँगे गंधर्व, अप्सरा, किन्नरगण!
संगीत सजीव हुआ जिनमें, जब मौन वही हो जाएँगे,
तब, प्राण, तुम्हारी तंत्री का, जड़ तार न जाने क्या होगा!
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!


उतरे इन आखों के आगे जो हार चमेली ने पहने,
वह छीन रहा देखो माली, सुकुमार लताओं के गहने,
दो दिन में खींची जाएगी ऊषा की साड़ी सिन्दूरी
पट इन्द्रधनुष का सतरंगा पाएगा कितने दिन रहने!
जब मूर्तिमती सत्ताओं की शोभाशुषमा लुट जाएगी,
तब कवि के कल्पित स्वप्नों का श्रृंगार न जाने क्या होगा!
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!


दृग देख जहाँ तक पाते हैं, तम का सागर लहराता है,
फिर भी उस पार खड़ा कोई हम सब को खींच बुलाता है!
मैं आज चला तुम आओगी, कल, परसों, सब संगीसाथी,
दुनिया रोतीधोती रहती, जिसको जाना है, जाता है।
मेरा तो होता मन डगडग मग, तट पर ही के हलकोरों से!
जब मैं एकाकी पहुँचूँगा, मँझधार न जाने क्या होगा!
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!
teji is offline   Reply With Quote
Old 08-12-2010, 02:23 PM   #19
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!

एक और जंज़ीर तड़कती है, भारत माँ की जय बोलो / हरिवंशराय बच्चन


एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

इन जंजीरों की चर्चा में कितनों ने निज हाथ बँधाए,
कितनों ने इनको छूने के कारण कारागार बसाए,
इन्हें पकड़ने में कितनों ने लाठी खाई, कोड़े ओड़े,
और इन्हें झटके देने में कितनों ने निज प्राण गँवाए!
किंतु शहीदों की आहों से शापित लोहा, कच्चा धागा।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

जय बोलो उस धीर व्रती की जिसने सोता देश जगाया,
जिसने मिट्टी के पुतलों को वीरों का बाना पहनाया,
जिसने आज़ादी लेने की एक निराली राह निकाली,
और स्वयं उसपर चलने में जिसने अपना शीश चढ़ाया,
घृणा मिटाने को दुनियाँ से लिखा लहू से जिसने अपने,
“जो कि तुम्हारे हित विष घोले, तुम उसके हित अमृत घोलो।”
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

कठिन नहीं होता है बाहर की बाधा को दूर भगाना,
कठिन नहीं होता है बाहर के बंधन को काट हटाना,
ग़ैरों से कहना क्या मुश्किल अपने घर की राह सिधारें,
किंतु नहीं पहचाना जाता अपनों में बैठा बेगाना,
बाहर जब बेड़ी पड़ती है भीतर भी गाँठें लग जातीं,
बाहर के सब बंधन टूटे, भीतर के अब बंधन खोलो।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

कटीं बेड़ियाँ औ’ हथकड़ियाँ, हर्ष मनाओ, मंगल गाओ,
किंतु यहाँ पर लक्ष्य नहीं है, आगे पथ पर पाँव बढ़ाओ,
आज़ादी वह मूर्ति नहीं है जो बैठी रहती मंदिर में,
उसकी पूजा करनी है तो नक्षत्रों से होड़ लगाओ।
हल्का फूल नहीं आज़ादी, वह है भारी ज़िम्मेदारी,
उसे उठाने को कंधों के, भुजदंडों के, बल को तोलो।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।
teji is offline   Reply With Quote
Old 08-12-2010, 02:24 PM   #20
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!

एक नया अनुभव / हरिवंशराय बच्चन

मैनें चिड़िया से कहा, मैं तुम पर एक
कविता लिखना चाहता हूँ।
चिड़िया नें मुझ से पूछा, 'तुम्हारे शब्दों में
मेरे परों की रंगीनी है?'
मैंने कहा, 'नहीं'।
'तुम्हारे शब्दों में मेरे कंठ का संगीत है?'
'नहीं।'
'तुम्हारे शब्दों में मेरे डैने की उड़ान है?'
'नहीं।'
'जान है?'
'नहीं।'
'तब तुम मुझ पर कविता क्या लिखोगे?'
मैनें कहा, 'पर तुमसे मुझे प्यार है'
चिड़िया बोली, 'प्यार का शब्दों से क्या सरोकार है?'
एक अनुभव हुआ नया।
मैं मौन हो गया!
teji is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks

Tags
favorite poems, hindi, hindi forum, hindi forums, hindi poems, literature, my favorite poems, nice poem, poems, poetry


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 12:29 AM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.