31-12-2014, 03:41 PM | #11 |
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Re: व्यक्तित्व के शत्रु
"बुराई नौका में छिद्र के समान है। वह छोटी हो या बड़ी, एक दिन नौका को डूबो देती है।" -कालिदास "समस्त महान ग़लतियों की तह में अभिमान ही होता है।" -रस्किन "जिसे होश है वह कभी घमंड नहीं करता।" -शेख सादी "जिसे खुद का अभिमान नहीं, रूप का अभिमान नहीं, लाभ का अभिमान नहीं, ज्ञान का अभिमान नहीं, जो सर्व प्रकार के अभिमान को छोड़ चुका है, वही संतहै।" -महावीर स्वामी "जिस त्याग से अभिमान उत्पन्न होता है, वह त्याग नहीं, त्याग से शांति मिलनी चाहिए, अंतत: अभिमान का त्याग ही सच्चा त्याग है।" -विनोबा भावे
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13-01-2015, 11:32 PM | #12 |
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Re: व्यक्तित्व के शत्रु
व्यक्तित्व के शत्रु / मोह व अहंकार
"ज्यों-ज्यों अभिमान कम होता है, कीर्ति बढ़ती है।" -यंग "अभिमान करना अज्ञानी का लक्षण है।" (सूत्रकृतांग) "जिनकी विद्या विवाद के लिए, धन अभिमान के लिए, बुद्धि का प्रकर्ष ठगने के लिए तथा उन्नति संसार के तिरस्कार के लिए है, उनके लिए प्रकाश भी निश्चय ही अंधकार है।" -क्षेमेन्द्र विचित्रता तो यह है कि अभिमान से मनुष्य ऊँचा बनना चाहता है किंतु परिणाम सदैव नीचा बनने का आता है. निज बुद्धि का अभिमान ही, शास्त्रों की, सन्तों की बातों को अन्त: करण में टिकने नहीं देता. 'मान' भी विवेक को भगा देता है और व्यक्ति को शील सदाचार से गिरा देता है. अभिमान से अंधा बना व्यक्ति अपने अभिमान को बनाए रखने के लिए दूसरों का अपमान पर अपमान किए जाता है और उसे कुछ भी गलत करने का भान नहीं रहता. यह भूल जाता है कि प्रतिपक्ष भी अपने मान को बचाने में पूर्ण संघर्ष करेगा. आत्मचिंतन के अभाव में मान को जानना तो दूर पहचाना तक नहीं जाता. वह कभी स्वाभिमान की ओट में तो कभी बुद्धिमत्ता की ओट में छुप जाता है. मान सभी विकारों में सबसे अधिक प्रभावशाली व दुर्जेय है. मान को मार्दव अर्थात् मृदुता व कोमल वृति से जीता जा सकता है. अहंकार को शांत करने का एक मात्र उपाय है 'विनम्रता'.
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13-01-2015, 11:36 PM | #13 |
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Re: व्यक्तित्व के शत्रु
व्यक्तित्व के शत्रु /माया-मोह
मोह वश मन, वचन, काया की कुटिलता द्वारा प्रवंचना अर्थात् कपट, धूर्तता, धोखा व ठगी रूप मन के परिणामों को माया कहते है. माया व्यक्ति का वह प्रस्तुतिकरण है जिसमें व्यक्ति तथ्यों को छद्म प्रकार से रखता है.कुटिलता, प्रवंचना, चालाकी, चापलूसी, वक्रता, छल कपट आदि माया के ही रूप है. साधारण बोलचाल में हम इसे बे-ईमानी कहते है. अपने विचार अपनी वाणी अपने वर्तन के प्रति ईमानदार न रहना माया है. माया का अर्थ प्रचलित धन सम्पत्ति नहीं है, धन सम्पत्ति को यह उपमा धन में माने जाते छद्म, झूठे सुख के कारण मिली है. माया वश व्यक्ति सत्य का भी प्रस्तुतिकरण इस प्रकार करता है जिससे उसका स्वार्थ सिद्ध हो. माया ऐसा कपट है जो सर्वप्रथम ईमान अथवा निष्ठा को काट देता है. मायावी व्यक्ति कितना भी सत्य समर्थक रहे या सत्य ही प्रस्तुत करे अंततः अविश्वसनीय ही रहता है. तथ्यों को तोड़ना मरोड़ना, झांसा देकर विश्वसनीय निरूपित करना, कपट है. वह भी माया है जिसमें लाभ दर्शा कर दूसरों के लिए हानी का मार्ग प्रशस्त किया जाता है. दूसरों को भरोसे में रखकर जिम्मेदारी से मुख मोड़ना भी माया है. हमारे व्यक्तित्व की नैतिक निष्ठा को समाप्त प्रायः करने वाला दुर्गुण 'माया' ही है..
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13-01-2015, 11:40 PM | #14 |
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Re: व्यक्तित्व के शत्रु
व्यक्तित्व के शत्रु /माया-मोह
आईए देखते है महापुरूषों के कथनो में माया का यथार्थ : “माया दुर्गति-कारणम्” – (विवेकविलास) - माया दुर्गति का कारण है.. “मायाशिखी प्रचूरदोषकरः क्षणेन्.” – (सुभाषित रत्न संदोह) - माया ऐसी शिखा है को क्षण मात्र में अनेक पाप उत्पन्न कर देती है.. “मायावशेन मनुजो जन-निंदनीयः.” – (सुभाषित रत्न संदोह) -कपटवश मनुष्य जन जन में निंदनीय बनता है.. "यदि तुम मुक्ति चाहते हो तो विषयों को विष के समान समझ कर त्याग दो औरक्षमा, ऋजुता (सरलता), दया और पवित्रता इनको अमृत की तरह पी जाओ।" - चाणक्यनीति - अध्याय 9 "आदर्श, अनुशासन, मर्यादा, परिश्रम, ईमानदारी तथा उच्च मानवीय मूल्यों के बिना किसी का जीवन महान नहीं बन सकता है।" - स्वामी विवेकानंद.
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13-01-2015, 11:42 PM | #15 |
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Re: व्यक्तित्व के शत्रु
व्यक्तित्व के शत्रु /माया-मोह
"बुद्धिमत्ता की पुस्तक में ईमानदारी पहला अध्याय है।" - थॉमस जैफर्सन "कोई व्यक्ति सच्चाई, ईमानदारी तथा लोक-हितकारिता के राजपथ पर दृढ़तापूर्वक रहे तो उसे कोई भी बुराई क्षति नहीं पहुंचा सकती।" - हरिभाऊ उपाध्याय "ईमानदारी, खरा आदमी, भलेमानस-यह तीन उपाधि यदि आपको अपने अन्तस्तल सेमिलती है तो समझ लीजिए कि आपने जीवन फल प्राप्त कर लिया, स्वर्ग का राज्यअपनी मुट्ठी में ले लिया।" - अज्ञात "सच्चाई, ईमानदारी, सज्जनता और सौजन्य जैसे गुणों के बिना कोई मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं हो सकता।" -अज्ञात "अपने सकारात्मक विचारों को ईमानदारी और बिना थके हुए कार्यों में लगाएऔर आपको सफलता के लिए प्रयास नहीं करना पड़ेगा, अपितु अपरिमित सफलता आपकेकदमों में होंगी।" - अज्ञात
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13-01-2015, 11:48 PM | #16 |
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Re: व्यक्तित्व के शत्रु
व्यक्तित्व के शत्रु /माया-मोह
"बुद्धि के साथ सरलता, नम्रता तथा विनय के योग से ही सच्चा चरित्र बनता है।" -अज्ञात "मनुष्य की प्रतिष्ठा ईमानदारी पर ही निर्भर है।" - अज्ञात वक्रता प्रेम और विश्वास की घातक है. कपट, बे-ईमानी, अर्थात् माया, शील औरचरित्र (व्यक्तित्व)का नाश कर देती है. माया करके हमें प्रतीत होता है किहमने बौद्धिक चातुर्य का प्रदर्शन कर लिया. सौ में से नब्बे बार व्यक्तिमात्र समझदार दिखने के लिए, बेमतलब मायाचार करता है. किंतु इस चातुर्य केखेल में हमारा व्यक्तित्व संदिग्ध बन जाता है. माया एक तरह से बुद्धि कोलगा कुटिलता का नशा है. कपट, अविद्या (अज्ञान) का जनक है. और अपयश का घर. माया हृदय में गड़ा हुआ वह कांटा है जो निष्ठावान रहने ही नहीं देता. माया को आर्जव अर्थात् ऋजुता (सरल भाव) से जीता जा सकता है.
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14-01-2015, 01:13 AM | #17 |
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Re: व्यक्तित्व के शत्रु
धोबी पछाड मार दिया रजनीशजी !
मानव जात में पाये जाने वाले दूर्गुणो का क्रिस्टल क्लियर परिभाषएं !! |
14-01-2015, 01:09 PM | #18 |
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Re: व्यक्तित्व के शत्रु
काम क्रोध मद लोभ की जौ लौं मन में खान।
तौ लौं पण्डित मूरखौं तुलसी एक समान।। |
20-01-2015, 10:28 PM | #19 | |
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Re: व्यक्तित्व के शत्रु
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21-01-2015, 04:16 PM | #20 |
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Re: व्यक्तित्व के शत्रु
हमारे पूर्वज मनीषी कह गए हैं जो की बिलकुल सही बातें हैं.. और मेरे ख्याल से सब जानते भी हैं एइसे स्वाभाव के दुष्प्रभाव को ,किन्तु बदले की भावना, से त्राहित व्यक्ति अपने व्यक्तित्व के इन शत्रु को भूलकर सामने वाले को प्रताड़ित करते रहते हैं कभी भाषा से कभी अपने अहंकार से रजनीश जी, किन्तु ये- ये नही समझते की इससे उनका ही नुकसान हो रहा होता है..
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