15-01-2012, 12:54 PM | #11 |
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Re: मौलिक शायरी
यादों को सीने से लगाकर दिल के जख्मों को भुलायेंगे सोमबीर सिंह सरोया |
15-01-2012, 01:16 PM | #12 |
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Re: मौलिक शायरी
मन चाहे खुश हो या दुखी कुछ कहता ज़रूर है.दुःख बाँटने से कम होता है और सुख बाँटने से बढ़ता है तो क्यों ना मन की बात आपसे बांटू ......
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15-01-2012, 02:12 PM | #13 |
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Re: मौलिक शायरी
दिल जालों का क्या
जहाँ रात पड़े वहां सो जाइये रिश्दे हुए जख्मों पे तू ही बता क्या लाइए सोमबीर सिंह सरोया |
26-01-2012, 06:45 AM | #14 |
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Re: मौलिक शायरी
आपके रंजो-ग़म अपने से लगे हैं, इक रवायत के करम से लगे हैं
ढाल लो इसी सूरत में खुद को, रह जाओगे वरना ख़ाक में मिल कर आपने जो दर्द साझा किया है, हमने भी इक यह वादा किया है आप पिलाते रहें अमृत रस रोज, आते रहेंगे हम हुमा बन कर _______________________________________ रवायत : परम्परा, हुमा : फारसी विश्वास के अनुसार मर-मर कर जी उठने वाला पक्षी !
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु Last edited by Dark Saint Alaick; 26-01-2012 at 06:56 AM. |
26-01-2012, 07:06 AM | #15 |
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Re: मौलिक शायरी
मित्र ! आपका कलाम पुरअसर है, लेकिन बुरा न मानें, एक खरी बात कहना चाहता हूं ! आपकी शायरी के इस असर को आपकी भाषाई ग़लतियां ख़ाक में मिला देती हैं ! पोस्ट करने से पहले एक बार टाइप किए गए पर एक नज़र फिर डाल लें, तो बेहतर नतीज़ा आएगा - आपके लिए भी और हम जैसे पाठकों के लिए भी ! मसलन इसी सृजन को देखिए, एक बार मैंने पढ़ा, (यह मान कर कि संभवतः 'के' छूट गया है) दिल के जालों ... फिर समझ में आया कि यह दिलजलों है ! ... और दूसरी लाइन को आप ही बताइए, पाठक दिमाग लगा कर पढ़े तो रिश्ते पढ़े या रिसते ... लेकिन लिखा गया कैसे पढ़े ?
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27-01-2012, 11:02 PM | #16 |
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Re: मौलिक शायरी
दिल आज फिर उनको याद करके रो रहा है ,
लेकिन वो जालिम जाने कौन सी गोली खाके चैन की नींद सो रहा , रो रो कर दिल आंसुओ से दामन भीगो रहा है . लेकिन वो जालिम जानेकिसके ख्वाबों में खो रहा है सोमबीर सिंह सरोया |
27-01-2012, 11:06 PM | #17 |
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Re: मौलिक शायरी
चलो कुछ ऐसा लिखे की जमाना रोने पे मजबूर हो जाये .
पानी बनके आँखों निकले आंसू तो बोझ दिल का दूर हो जाये . सोमबीर सिंह सरोया . Last edited by sombirnaamdev; 27-01-2012 at 11:17 PM. |
27-01-2012, 11:09 PM | #18 | |
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Re: मौलिक शायरी
Quote:
जहाँ रात पड़े वहां सो जाइये रिसते हुए जख्मों पे तू ही बता क्या लाइए |
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27-01-2012, 11:16 PM | #19 |
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Re: मौलिक शायरी
दिल पे बोझ बन के जो छायाहै
मेरे महबूब तेरे दिए दुखों का साया है भूल चुके थे जिसे हम वो ज़माना फिर याद आया है जालिम तेरी याद ने जाने कितनी बार रुलाया है सोमबीर सिंह सरोया |
27-01-2012, 11:22 PM | #20 |
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Re: मौलिक शायरी
भूल से हम उन्हें भूलना चाहते थे
पर ये हमारी भूल थी क्योंकि खुदा ने उनको ही भूल का नाम दे दिया सोमबीर सिंह सरोया |
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