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Old 09-12-2012, 10:12 AM   #11
Sikandar_Khan
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Default Re: FDI इन रिटेल :: फायदा या नुकसान

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Originally Posted by dark saint alaick View Post
आपका यह तर्क बहुत ही उपयुक्त है, सिकंदरजी। आपने मात्रा कुछ ज्यादा ही लिखी है। मेरा अपार्टमेंट जहां है, वहां से तकरीबन एक किलोमीटर दूर एक कच्ची बस्ती है। उस चौराहे पर एक लकड़ी की स्टाल में एक दूकान चल रही है। मैं अपनी सिगरेट हमेशा उसी से खरीदता हूं। आपको यह जान कर ताज्जुब होगा कि वह होंडा सिटी में आता है और कच्ची बस्ती में रहने वालों को आज भी दो रुपए का तेल, एक रुपए की मिर्च, पांच रुपए का आटा आदि बिना किसी शिकन के बेचता है। शायद उसके होंडा सिटी में घूमने का एक बड़ा राज़ यह है। ऎसी स्थिति में क्या करेगा वालमार्ट?
मेरे विचार से वालमार्ट ऐसी स्थिति मे कुछ नही कर सकता है ! क्योँकि आज भी भारत की तकरीबन 70% से अधिक आबादी अपने पड़ोस की खुदरा किराना दुकान पर ही निर्भर है ! आप खुद ही सोचिए क्या वालमार्ट पाँच रुपए का आटा और दो रुपए का तेल कैसे बेच सकती है ?
कानपुर मे एक बहुत बड़ा मॉल जो की एशिया मे टॉप मे गिना जाता है ! जिसने पूरी दुनियां के अंतराष्ट्रीय ब्रांड के शोरुम और बिग बाजार भी है ! उस मॉल मे बहुत भीड़ होती है लेकिन उनमे खरीदारी करने वाले 10% और मॉल घूमने वाले 90% लोग ही होते हैँ |
मै खुद अपने नजदीकी बाजार या किराना दुकान से सामान खरीदना पसंद करता हूँ क्योँकि यहाँ पर उस रेट मे जो क्वालिटी मुझे मिल जाती हैँ ! वो बिगबाजार कभी नही दे सकता है |
__________________
Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..."

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Old 09-12-2012, 11:31 PM   #12
Dark Saint Alaick
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Default Re: FDI इन रिटेल :: फायदा या नुकसान

एक पत्रकार बी. पी. गौतम के विचार एफडीआई पर
(उनके फेसबुक पेज से)


एफडीआई के दूरगामी परिणाम बेहद घातक


विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफडीआई) देश भर में चर्चा का विषय बना हुआ है, लेकिन आम आदमी एफडीआई के बारे में इतना सब होने के बाद भी कुछ ख़ास नहीं जानता। असलियत में एफडीआई को लेकर आज जो कुछ हो रहा है, उसकी नींव वर्ष 1991 में ही रख दी गई थी। विदेशी निवेश की नीतियों को उदार बनाने की दृष्टि से वर्ष 1991 में ही एफडीआई की नींव रखी गई थी, जिसका पूरा असर आम आदमी को आज दिखाई दे रहा है और अब जो हो रहा है, उसका असर ऐसे ही कई वर्षों बाद नज़र आएगा। अगर, सामने दुष्परिणाम आये, तो उस समय भारत के पास करने को कुछ नहीं होगा, क्योंकि विदेशी कंपनियों के पास संसद की मंजूरी क़ानून के रूप में पहले से ही होगी।
अब सवाल उठता है कि आने वाले समय में भारत के लिए एफडीआई के क्या नुकसान हो सकते हैं?, तो सीधा सा जवाब है कि लाभ में बेचने वाला ही होता है, खरीदने वाला कभी नहीं होता। विदेश से वस्तु के बदले वस्तु आती, तो भारत की जनता को बराबर का लाभ होता, लेकिन दुकान, दुकानदार और दुकान में बिकने वाला सामान सब विदेशी ही होगा। दुकानदार (संबंधित कंपनी) की मर्जी का ही होगा, तो भारतीयों की मेहनत की कमाई उसी की जेब में जायेगी। उस के पैसे का टर्न ओवर सही से होता रहेगा, तो भारतीय अर्थव्यवस्था दौड़ती नज़र आयेगी, लेकिन संबंधित कंपनी अपना टर्न ओवर कम या बंद कर देगी, तो भारतीय अर्थव्यवस्था उसी गति से ऊपर-नीचे होती रहेगी, मतलब भारतीय अर्थव्यवस्था की धुरी विदेशी कंपनीयां बनने जा रही हैं। जिस देश की अर्थव्यवस्था विदेशियों के हाथ में चली जायेगी, वो देश दिखने में भले ही खुशहाल नज़र आये, पर वास्तव में खोखला ही होगा।
विश्व की अर्थव्यवस्था वर्ष 2008 में चरमराई, तब भारत उतना ही प्रभावित हुआ, जितना भारत में निवेश कर चुकी विदेशी कंपनीयां प्रभावित हुई थीं, इससे सबक लेकर भारत सरकार को विदेशी निवेश और कम करना चाहिए था, लेकिन भारत सरकार ने 14 दिसंबर 2012 को खुदरा क्षेत्र में सौ प्रतिशत प्रत्यक्ष निवेश की छूट प्रदान कर दी, इसके बाद 5 अक्टूबर 2012 को बीमा क्षेत्र में भी 49 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दे दी, जिसका दुष्परिणाम सामने आ ही गया है। अब विदेशी कंपनीयां कृषि, खनन, खुदरा व्यापार और अन्य विशेष आर्थिक क्षेत्रों में सौ प्रतिशत तक प्रत्यक्ष निवेश कर सकती हैं। रीयल स्टेट, वायदा वस्तु निगम, केबल टीवी नेटवर्क, नागरिक उड्डयन और बिजली क्षेत्र में 49 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का प्रावधान है। टीवी चैनल, सूचना प्रसारण और निजी बैंकिंग क्षेत्र में 74 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष निवेश किया जा सकता है। रक्षा और प्रिंट मीडिया क्षेत्र में 26 प्रतिशत तक, डीटीएच, एफएम, रेडियो और सार्वजनिक बैंकिंग क्षेत्र में 20 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश किया जा सकता है। विदेशी निवेश के लिए खोले जा रहे सभी क्षेत्र ऐसे हैं, जिनसे भारत के आम लोग सीधे प्रभावित होंगे, साथ ही कृषि और मीडिया क्षेत्र में विदेशी निवेश होने से देश पर अपरोक्ष रूप से विदेशी पूरी तरह हावी हो जायेंगे। विदेशी कंपनीयां पूरी तैयारी के साथ आ रही हैं, उनके पास पर्याप्त धन है, पर्याप्त संसाधन हैं, जिससे वह बाजार पर पूरी तरह छा जायेंगी, जबकि देश के व्यापारी जैसे-तैसे उत्पादन कर पाते हैं, उनके पास न पर्याप्त धन है और न ही पर्याप्त संसाधन। विदेशी गाँव-गाँव उत्पाद पहुंचाने में समर्थ हैं, उनके उत्पाद सामने होते हैं, तो ग्राहक उन्हें ही खरीदने को मजबूर भी हो जाता है और धीरे-धीरे देशी उत्पाद बाजार से पूरी तरह गायब ही हो जाते हैं। कई उत्पादों के साथ ऐसा हो भी चुका है, इसलिए भविष्य में भी ऐसा ही होने की संभावनाएं अधिक हैं।
इसके अलावा भारत में निवेश करने वाले प्रमुख देशों में मारिशस, सिंगापुर, अमेरिका, इंग्लैण्ड, नीदरलैंड, जापान, साईप्रस, जर्मनी, फ़्रांस और संयुक्त अरब अमीरात वगैरह से भारत को कुछ न कुछ लाभ फिर भी होगा, लेकिन पड़ोसी देश चीन भारत के बाजार में अधिकांशतः अपने उत्पाद ही उतारेगा, जिससे भारत को साफ़ तौर पर नुकसान ही है। सुरक्षा की दृष्टि से देखा जाए, तो चीन भारत का दुश्मन देश भी है, जो भारत का धन भारत के विरुद्ध ही उपयोग करेगा, ऐसे में भारत को ऐसी नीति बनानी चाहिए, जिससे चीन की आर्थिक स्थिति खराब हो, लेकिन सब कुछ जानते हुए भी भारत चीन को आर्थिक रूप से संपन्न होने में मदद कर रहा है, जिसका दुष्परिणाम सीमा पर स्पष्ट पड़ेगा। कुल मिला कर आने वाले वर्षों में भारत की अर्थ व्यवस्था विदेशियों के हाथों में ही होगी, इसलिए भारत की दृष्टि से एफडीआई नुकसान देह ही है।
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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Old 11-12-2012, 10:57 PM   #13
Advocate_Arham_Ali
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Advocate_Arham_Ali will become famous soon enough
Default Re: FDI इन रिटेल :: फायदा या नुकसान

इससे हमारे देश के कर्ता धर्ताओं का दोगलापन तो ज़ाहिर हो गया ........
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Old 11-12-2012, 11:02 PM   #14
malethia
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एक पत्रकार बी. पी. गौतम के विचार एफडीआई पर
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एफडीआई के दूरगामी परिणाम बेहद घातक


विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफडीआई) देश भर में चर्चा का विषय बना हुआ है, लेकिन आम आदमी एफडीआई के बारे में इतना सब होने के बाद भी कुछ ख़ास नहीं जानता। असलियत में एफडीआई को लेकर आज जो कुछ हो रहा है, उसकी नींव वर्ष 1991 में ही रख दी गई थी। विदेशी निवेश की नीतियों को उदार बनाने की दृष्टि से वर्ष 1991 में ही एफडीआई की नींव रखी गई थी, जिसका पूरा असर आम आदमी को आज दिखाई दे रहा है और अब जो हो रहा है, उसका असर ऐसे ही कई वर्षों बाद नज़र आएगा। अगर, सामने दुष्परिणाम आये, तो उस समय भारत के पास करने को कुछ नहीं होगा, क्योंकि विदेशी कंपनियों के पास संसद की मंजूरी क़ानून के रूप में पहले से ही होगी।
अब सवाल उठता है कि आने वाले समय में भारत के लिए एफडीआई के क्या नुकसान हो सकते हैं?, तो सीधा सा जवाब है कि लाभ में बेचने वाला ही होता है, खरीदने वाला कभी नहीं होता। विदेश से वस्तु के बदले वस्तु आती, तो भारत की जनता को बराबर का लाभ होता, लेकिन दुकान, दुकानदार और दुकान में बिकने वाला सामान सब विदेशी ही होगा। दुकानदार (संबंधित कंपनी) की मर्जी का ही होगा, तो भारतीयों की मेहनत की कमाई उसी की जेब में जायेगी। उस के पैसे का टर्न ओवर सही से होता रहेगा, तो भारतीय अर्थव्यवस्था दौड़ती नज़र आयेगी, लेकिन संबंधित कंपनी अपना टर्न ओवर कम या बंद कर देगी, तो भारतीय अर्थव्यवस्था उसी गति से ऊपर-नीचे होती रहेगी, मतलब भारतीय अर्थव्यवस्था की धुरी विदेशी कंपनीयां बनने जा रही हैं। जिस देश की अर्थव्यवस्था विदेशियों के हाथ में चली जायेगी, वो देश दिखने में भले ही खुशहाल नज़र आये, पर वास्तव में खोखला ही होगा।
विश्व की अर्थव्यवस्था वर्ष 2008 में चरमराई, तब भारत उतना ही प्रभावित हुआ, जितना भारत में निवेश कर चुकी विदेशी कंपनीयां प्रभावित हुई थीं, इससे सबक लेकर भारत सरकार को विदेशी निवेश और कम करना चाहिए था, लेकिन भारत सरकार ने 14 दिसंबर 2012 को खुदरा क्षेत्र में सौ प्रतिशत प्रत्यक्ष निवेश की छूट प्रदान कर दी, इसके बाद 5 अक्टूबर 2012 को बीमा क्षेत्र में भी 49 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दे दी, जिसका दुष्परिणाम सामने आ ही गया है। अब विदेशी कंपनीयां कृषि, खनन, खुदरा व्यापार और अन्य विशेष आर्थिक क्षेत्रों में सौ प्रतिशत तक प्रत्यक्ष निवेश कर सकती हैं। रीयल स्टेट, वायदा वस्तु निगम, केबल टीवी नेटवर्क, नागरिक उड्डयन और बिजली क्षेत्र में 49 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का प्रावधान है। टीवी चैनल, सूचना प्रसारण और निजी बैंकिंग क्षेत्र में 74 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष निवेश किया जा सकता है। रक्षा और प्रिंट मीडिया क्षेत्र में 26 प्रतिशत तक, डीटीएच, एफएम, रेडियो और सार्वजनिक बैंकिंग क्षेत्र में 20 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश किया जा सकता है। विदेशी निवेश के लिए खोले जा रहे सभी क्षेत्र ऐसे हैं, जिनसे भारत के आम लोग सीधे प्रभावित होंगे, साथ ही कृषि और मीडिया क्षेत्र में विदेशी निवेश होने से देश पर अपरोक्ष रूप से विदेशी पूरी तरह हावी हो जायेंगे। विदेशी कंपनीयां पूरी तैयारी के साथ आ रही हैं, उनके पास पर्याप्त धन है, पर्याप्त संसाधन हैं, जिससे वह बाजार पर पूरी तरह छा जायेंगी, जबकि देश के व्यापारी जैसे-तैसे उत्पादन कर पाते हैं, उनके पास न पर्याप्त धन है और न ही पर्याप्त संसाधन। विदेशी गाँव-गाँव उत्पाद पहुंचाने में समर्थ हैं, उनके उत्पाद सामने होते हैं, तो ग्राहक उन्हें ही खरीदने को मजबूर भी हो जाता है और धीरे-धीरे देशी उत्पाद बाजार से पूरी तरह गायब ही हो जाते हैं। कई उत्पादों के साथ ऐसा हो भी चुका है, इसलिए भविष्य में भी ऐसा ही होने की संभावनाएं अधिक हैं।
इसके अलावा भारत में निवेश करने वाले प्रमुख देशों में मारिशस, सिंगापुर, अमेरिका, इंग्लैण्ड, नीदरलैंड, जापान, साईप्रस, जर्मनी, फ़्रांस और संयुक्त अरब अमीरात वगैरह से भारत को कुछ न कुछ लाभ फिर भी होगा, लेकिन पड़ोसी देश चीन भारत के बाजार में अधिकांशतः अपने उत्पाद ही उतारेगा, जिससे भारत को साफ़ तौर पर नुकसान ही है। सुरक्षा की दृष्टि से देखा जाए, तो चीन भारत का दुश्मन देश भी है, जो भारत का धन भारत के विरुद्ध ही उपयोग करेगा, ऐसे में भारत को ऐसी नीति बनानी चाहिए, जिससे चीन की आर्थिक स्थिति खराब हो, लेकिन सब कुछ जानते हुए भी भारत चीन को आर्थिक रूप से संपन्न होने में मदद कर रहा है, जिसका दुष्परिणाम सीमा पर स्पष्ट पड़ेगा। कुल मिला कर आने वाले वर्षों में भारत की अर्थ व्यवस्था विदेशियों के हाथों में ही होगी, इसलिए भारत की दृष्टि से एफडीआई नुकसान देह ही है।
मुझे इस तारीख के बारे में थोडा संसय है ,कृपया मेरा संसय दूर करें !
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Old 12-12-2012, 11:28 PM   #15
Dark Saint Alaick
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Default Re: FDI इन रिटेल :: फायदा या नुकसान

आपने सही पकड़ा, मलेठियाजी। यह सितम्बर होना चाहिए।
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Old 13-12-2012, 03:21 PM   #16
ndhebar
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Default Re: FDI इन रिटेल :: फायदा या नुकसान

मुझे तो इससे कोई फर्क पड़ता नहीं दीखता
बल्कि खरीददारी के लिए एक और विकल्प बढ़ जायेगा
ये लोग अपनी आमदनी पर इनकम टैक्स भी पूरा भरेंगे तो सरकार को भी फायदा
और सरकार को फायदा तो हमें भी फायदा
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Old 14-12-2012, 03:24 AM   #17
Dark Saint Alaick
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Originally Posted by ndhebar View Post
मुझे तो इससे कोई फर्क पड़ता नहीं दीखता
बल्कि खरीददारी के लिए एक और विकल्प बढ़ जायेगा
ये लोग अपनी आमदनी पर इनकम टैक्स भी पूरा भरेंगे तो सरकार को भी फायदा
और सरकार को फायदा तो हमें भी फायदा
सरकार को तो कई फायदे होते ही रहते हैं, लेकिन उससे आपको कब फायदा हुआ?
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Old 14-12-2012, 06:13 PM   #18
ndhebar
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Originally Posted by dark saint alaick View Post
सरकार को तो कई फायदे होते ही रहते हैं, लेकिन उससे आपको कब फायदा हुआ?
सरकार को होने वाला फायदा ही तो हमें सुविधाओं के रूप में वापस मिलता है
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Old 15-12-2012, 06:04 PM   #19
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Default Re: FDI इन रिटेल :: फायदा या नुकसान

मल्टी ब्रांड रिटेल भारत के बाजारों में पीछे के रास्ते से पहले ही विदेश के बड़े बड़े रिटेलर्स के हाथ में जा ही चुका है...सबको पता है कि इनके रिटेल आउटलेट पहले ही खुल चुके हैं...और अगर इनको खुल कर आने दिया जाता है तो कम से कम इतना फायदा तो होगा कि जितने वैज्ञानिक तरीके से ये फसल से लेकर भंडारण और विपरण की कुशलता को देश में लेकर आयेंगे..उससे देश का ही फायदा होगा...!! पुरानी पीड़ी के किसान अगर इनसे सामंजस्य नहीं भी बैठा सके तो उनकी भी आने वाली पीढ़ी तैयार है इनके साथ बिजनेस करने के लिए जो कि पढ़ी लिखी है, पहले से अधिक कुशलता से कार्य करने के लिए बेताब है...!!

आज हमारे देश में खेती के क्षेत्र में जो भी तरक्की हुयी है वो नाकाफी है...और बहुत हद तक सरकारी मदद और सब्सिडी पर टिकी हुयी है...कब तक हम सीमित साधनों से खेती करते हुए, फ्री की बिजली, सब्सीडी वाली खाद और अकुशल विपरण व्यवस्था को ढोते रहेंगे...?? किसान अपने खेती को जिस वैज्ञानिक तरीके से कर सकते थे उस तरीके से ना करके दोयम दर्जे की कुशलता से कार्य कर रहे हैं...आने वाले समय में जिस तेजी से खेती योग्य भूमि घटती जा रही है..उसे देखते हुए हमें ना सिर्फ इस गति को रोकना होगा बल्कि खेती में और अधिक कुशलता लानी होगी..और वो सब्सिडी के रास्ते नहीं आ सकती...इस बात का हमें खास ध्यान रखना होगा..

किसान को अपनी खेती एक उद्योग के तौर पर चलानी होगी और उसे उद्योग को मिलने वाले सारे फायदे मिलने चाहिए और साथ ही साथ उसे देश की अर्थ व्यवस्था में टैक्स के तौर पर भी योगदान देना होगा...आखिर कब तक खेती को टैक्स फ्री रख कर हम अपनी ही तरक्की में बाधक बनते रहेंगे...?? इस तरह के प्रावधानों का सिर्फ नुक्सान ही होता है...और अगर मेरी बात गलत होती तो आज भारत का किसान इस हालत में नहीं होता जिस हालत में वो आज है...क्योंकि उसने आज तक अपने काम को उद्योग या उद्यम नहीं माना बल्कि सरकारों के रहमो करम पर चलने वाली एक आजीविका के रूप में देखा है जिसका फायदा छोटा किसान तो नहीं उठा पा रहा है पर वो किसान अवश्य उठा रहे हैं जिनको इससे इतनी आय होती है कि उनको किसी भी तरह की फ्री बिजली, और सब्सिडी की जरूरत नहीं होगी...!!

अगर रिटेल में एफ डी आई आती है तो छोटे छोटे किसानों को भी आधुनिक सुविधाओं से युक्त एक सिस्टम का हिस्सा बनने का मौक़ा मिलेगा...और ये बात ध्यान में रखनी होगी कि भारत के किसी भी किसान का शोषण नहीं हो सकेगा क्योंकि भारत सरकार और देश का क़ानून कभी भी इस बात की इजाजत नहीं देगा...!!

रही बात छोटे व्यापारियों की तो एक बात समझ लीजिए कि बिना बिल के अपना काम धंधा करने वाले ज्यादातर व्यापारी ऐसे हैं जिनको कि वैट और इनकम की लिस्ट में होना चाहिए पर वो इससे अपने आप को दूर ही रखते हैं...क्योंकि जो भी वो बचाते हैं सीधा उनकी ही जेब में जाता है...इसलिए ऐसा करना उनको फायदे मंद भी लगता है...

जब बड़े स्टोर खुलेंगे...तो वो खत्म नहीं होंगे क्योंकि जिनको उनसे खरीदारी करने में फ़ायदा या फक्र महसूस होगा वो उनसे ही खरीदारी करेंगे...और जिनको हर चीज बिल लेकर खरीदने में फक्र और सुविधा महसूस होगी वो इन स्टोर से खरीदारी करेंगे...!!

जब एक बड़ा स्टोर खुलता है तो उसका मालिक उसके अंदर नहीं बैठता बल्कि वो उसके अंदर बहुत सारे लोगों को नौकरी पर रखता है...काम करने के लिए, देखभाल करने के लिए और हिसाब किताब रखने के लिए...इसलिए वो हमेशा हर चीज को दुरस्त रखता है और पूरा टैक्स चुकाता है...और हमेशा ही हिसाब किताब परफेक्ट रखता है.... जबकि छोटा दुकानदार ( जिसकी दूकान दिन रात सोना उगल रही है...) कभी भी हिसाब किताब नहीं रखता, ज्यादातर सिर्फ माल बेचने और खरीदने में ही व्यस्त रहता है, ज्यादा लोगों को रोजगार मुहैया नहीं करवाता, और सब कुछ अपने नियंत्रण में होने के कारण अक्सर टैक्स को अपनी ही जेब में रख लेता है...

इन विदेशी रिटेल चैन के आने से भारत के खुदरा व्यापारियों का रवैया भी बदलेगा और वो भी अपने आप को इनसे टक्कर लेने के लिए तैयार करेंगे...और ठीक वैसा ही होगा जैसा कि इस देश में कम्प्युटर के आने से हुआ है...और अगर आप सभी को याद हो तो उस समय कम्प्युटर का जिस कदर विरोध हुआ था वैसा विरोध आज तक किसी भी चीज का नहीं हुआ है...और आज हकीकत सभी के सामने है...
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aksh
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मेरे विचार से वालमार्ट ऐसी स्थिति मे कुछ नही कर सकता है ! क्योँकि आज भी भारत की तकरीबन 70% से अधिक आबादी अपने पड़ोस की खुदरा किराना दुकान पर ही निर्भर है ! आप खुद ही सोचिए क्या वालमार्ट पाँच रुपए का आटा और दो रुपए का तेल कैसे बेच सकती है ?
कानपुर मे एक बहुत बड़ा मॉल जो की एशिया मे टॉप मे गिना जाता है ! जिसने पूरी दुनियां के अंतराष्ट्रीय ब्रांड के शोरुम और बिग बाजार भी है ! उस मॉल मे बहुत भीड़ होती है लेकिन उनमे खरीदारी करने वाले 10% और मॉल घूमने वाले 90% लोग ही होते हैँ |
मै खुद अपने नजदीकी बाजार या किराना दुकान से सामान खरीदना पसंद करता हूँ क्योँकि यहाँ पर उस रेट मे जो क्वालिटी मुझे मिल जाती हैँ ! वो बिगबाजार कभी नही दे सकता है |
ये लोग कोई छोटे मोटे लोग नहीं हैं...ये मार्केटिंग और रिटेल की दुनिया के दिग्गज हैं...!! सिकंदर भाई...जब एक दूर दराज गाँव में रहने वाली लड़की को पचास पैसे में शेम्पू और तेल का कोम्बी पैक ये लोग बेच सकते हैं..तो फिर ये लोग क्या नहीं कर सकते...?? ये लोग वो नहीं कर सकते जो कि हमारे खुदरा व्यापारी करते हैं...

५०० रूपये का उधर लो और एक महीने के बाद ५५० रूपये लौटाओ...अर्थात १० % प्रति माह का व्याज...साल भर से पहले ही पैसा डबल...??

चाय की पत्ती अगर २०० रूपये की एक किलो है...जो तो दस रूपये की २५ ग्राम चाय की पत्ती बेचकर ये लोग शायद उसे चार सौ रूपये किलो नहीं बेचेंगे...?? ये लोग शायद बेहद गरीब जनता का मदद के नाम पर शोषण नहीं कर सकेंगे...!! ऐसा मेरा मानना है...!! हकीकत का समना आपको और मुझे अभी करना है...और मुझे उम्मीद है कि चीजें बेहतर होंगी...!!
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