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![]() वाशिंगटन ! खगोलविदों ने एक संदिग्ध बौने ग्रह की खोज की है। उनका मानना है कि वह बर्फ से ढका हुआ है और शायद उसका वायुमंडल भी है। ‘स्नो व्हाइट’ उपनाम वाले इस उपग्रह नेप्चयून के बाहर स्थित है और वह क्यूपर बेल्ट के हिस्से के तौर पर सूर्य की परिक्रमा कर रहा है। क्यूपर बेल्ट बर्फ से बना है और वह नेप्चयून से बाहर सूर्य की परिक्रमा करता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक आधिकारिक तौर पर 2007 ओआर10 नाम वाला यह ग्रह वास्तविक रूप में लाल है और इसका आधे सतह पर पानी निर्मित बर्फ फैला हुआ है। माना जा रहा है कि यह बौना ग्रह मीथेन की पतली परत की वजह से लालीपन लिए हुए है। स्पेस डाट काम ने कैलिफोर्निया इंस्टिच्यूट आफ टेक्नोलॉजी के अग्रणी वैज्ञानिक माइक ब्राउन के हवाले से लिखा है, ‘‘जो आप यह मनमोहक तस्वीर देख रहे हैं वहां पर एक समय छोटी दुनिया थी। वहां पर पानी, ज्वालामुखी और वायुमंडल मौजूद था। अब यह जमा, मृत ग्रह है और इसका वायुमंडल धीरे-धीरे विलुप्त् हो रहा है।’’ 2007 में जब इस ग्रह को खोजा गया था तब ब्राउन ने अनुमान लगाया था कि स्नो व्हाइट एक अन्य बौने ग्रह ‘हौमिया’ के टूटने से बना है। ‘हौमिया’ फुटबॉल की तरह और पानी निर्मित बर्फ से आच्छादित था। इसीलिए इसका नाम स्नो व्हाइट रखा गया है। हालांकि बाद में किए गए अध्ययन से पता चला कि प्लूटो के करीब आधे आकार वाला स्नो व्हाइट वास्तव में क्यूपर बेल्ट की अन्य वस्तुओं की तरह लाल है।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु Last edited by Dark Saint Alaick; 06-02-2012 at 01:15 PM. |
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मस्तिष्क ट्यूमर के लिए जिम्मेदार जैव रासायनिक प्रक्रिया की पहचान
वाशिंगटन ! वैज्ञानिकों ने एक ऐसी जैव रासायनिक प्रक्रिया और इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न उत्पाद की पहचान करने का दावा किया है, जिसके बारे में उनका कहना है कि मस्तिष्क ट्यूमर के उत्पन्न होने और उसके विकास के लिए यह प्रक्रिया जिम्मेदार है। बेहद खतरनाक माने जाने वाले कुछ ट्यूमर के इलाज में इस खोज से मदद मिलने की उम्मीद है। यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल आफ हीडलबर्ग के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में एक अंतरराष्ट्रीय दल के मुताबिक, उन्होंने कायनुरेनाइन नाम के एक उत्पाद की ट्यूमर वृद्धि में भूमिका की पहचान कर ली है । वैज्ञानिकों ने बताया कि अमीनो अम्ल पर प्रतिक्रिया होने से पैदा होने वाला यह उत्पाद ट्यूमर निरोधक प्रतिरोधक तंत्र की प्रतिक्रिया को भी कमतर करता है । शोधकर्ताओं ने बताया कि इस नई खोज से मस्तिष्क ट्यूमर के सबसे आम और आक्रामक प्रकार ग्लियोमास के इलाज में नई आशा पैदा हुई है। ‘नेचर’ जरनल की रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके अलावा इस जैव रसायन की अन्य प्रकार के मस्तिष्क कैंसर में भी भूमिका होती है । वैज्ञानिकों का दावा है कि इस ऐतिहासिक खोज से अल्जाइमर्स, मोटर न्यूरॉन डिसीज और पर्किंसंस डिसीज के इलाज में भी अहम सफलता मिल सकती है।
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चीनी वैज्ञानिकों ने दावा किया कुष्ठरोग के इलाज में सफलता का
बीजिंग ! चीन में वैज्ञानिकों ने कुष्ठरोग के इलाज में एक बड़ी कामयाबी का दावा किया है जिससे इस रोग की पहचान शुरूआती चरण में हो सकेगी। वैज्ञानिक पत्रिका नेचर जेनेटिक्स के आनलाइन में छपी रिपोर्ट के अनुसार पूर्वी चीन में शानदांग प्रोविन्शियल इंस्टीट्यूट आफ डेकेटोलाजी एण्ड वेनेरेओलाजी में वैज्ञानिकों के एक दल ने इस बीमारी के लिये जिम्मेदार दो जीन आईएल23आर तथा आरएबी32 के पास दो नये जोखिम वाले स्थानों का पता लगाने का दावा किया है। वैज्ञानिकों के अनुसार इस खोज के बाद अब कुष्ठरोग को शुरूआत में ही पहचान पाना आासान हो जायेगा और नये तरीके से इलाज का मार्ग भी प्रशस्त होगा। अनुसंधान दल के नेता झांग फुरेन के अनुसार एक जेनेटिक डेटाबेस बनाया जायेगा जिससे उन लोगों की पहचान आसान होगी जिन्हें कुष्ठरोग होने की संभावना है। शिन्ह्वा संवाद समिति के अनुसार अध्ययन के लिये कुष्ठरोग से पीडित और स्वस्थ्य लोगों के 10000 से अधिक नमूने लिये गये और उनका विश्लेषण किया गया। उल्लेखनीय है कि चीन में दुनिया में कुष्ठरोग के पीड़ितों का दसवां हिस्सा रहता है ।
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कैंसर की वजहों का पता लगाने के लिए अब तक का सबसे बड़ा अध्ययन
लंदन ! ब्रिटेन का आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और भारत के 12 अग्रणी कैंसर केंद्र एक साथ मिलकर भारत में कैंसर की वजहों को पता लगाने के लिए अनुसंधान करने जा रहे हैं। विश्वविद्यालय ने आज कहा कि भारत के लिहाज से अबतक के सबसे बड़े इस अध्ययन में इस बात का पता लगाया जाएगा कि भारतीय जीवनशैली में क्या कोई ऐसे सामान्य कारक हैं, जिनकी वजहों से कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। आशंका है कि भारत में अगले दो दशक में कैंसर के मामलों में दो तिहाई की वृद्धि होगी और प्रति वर्ष कैंसर के 17 लाख नए मामले आएंगे। इंडोक्स कैंसर अनुसंधान नेटवर्क के तहत होने वाले इस अनुसंधान में पूरे भारत के 12 केंद्रों पर 30,000 लोगो को शामिल किया जाएगा।
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पुरूषों में मूत्राशय कैंसर के खतरे को कम करने में मददगार हो सकता है पानी
लंदन ! पानी पीने के असंख्य फायदों में एक फायदा और जुड़ गया है । एक नए शोध में दावा किया गया है कि पानी पीने से पुरूषों में मूत्राशय के कैंसर का खतरा कम हो सकता है । ब्राउन यूनिवर्सिटी के लगभग 48,000 लोगों पर किए गए इस शोध में कहा गया है कि जो पुरूष एक दिन में कम से कम 2,531 मिली पानी पीते हैं, उनमें मूत्राशय कैंसर का खतरा 24 फीसदी तक कम हो जाता है । शोधकर्ताओं के मुताबिक, ऐसा संभवत: इसलिए होता है क्योंकि पानी मूत्राशय में कैंसर पैदा करने वाले किसी भी तत्व को बाहर निकाल देता है । ‘द डेली टेलीग्राफ’ की खबर के मुताबिक, इस शोध में यह भी कहा गया है कि पुरूषों की उम्र बढ़ने के साथ उनके पानी पीने की प्रवृत्ति कम होती जाती है । इसलिए इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि पानी का सेवन अधिकाधिक किया जाए ।
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पुरूषों ने भी माना, कई काम एक साथ करने में बेहतर होती हैं महिलाएं
लंदन ! पुरुषों ने आखिरकार मान ही लिया है कि महिलाएं कई काम एक साथ करने (मल्टी टास्किंग) में उनसे कई गुना बेहतर होती हैं । एक नए शोध में इस बारे में दावा किया गया है । सर्वेक्षण आधारित इस शोध में शामिल तीन चौथाई पुरूषों ने कहा कि महिलाएं एक समय में चार से भी ज्यादा काम कर सकती हैं, जबकि वे ज्यादा से ज्यादा दो ही काम एक साथ कर सकते हैं । सर्वेक्षण के मुताबिक, हर चार में से एक पुरूष ने इस बात को स्वीकार किया कि जब वे एक समय में एक से ज्यादा काम करने की कोशिश करते हैं, तब उनमें से किसी एक को ही ठीक से कर पाते हैं । यह सर्वेक्षण बर्तन साफ करने वाले उपकरण बनाने वाली कंपनी कार्चर ने कराया है । सर्वेक्षण में शामिल केवल 16 फीसदी महिलाओं ने कहा कि वे पुरूषों से अपने काम में मदद के लिए कहती हैं ।
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नासा ने हल किया 2000 साल पुराने सुपरनोवा का रहस्य
वाशिंगटन ! नासा की दूरबीनों से किये गये नये अवरक्त प्रेक्षणों ने खुलासा किया है कि पहली बार दर्ज किया गया सुपरनोवा कैसे पैदा हुआ था और किस प्रकार इसके अवशेष ब्रह्मांड में दूर दूर तक फैल गये थे। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ने कल कहा कि उसके स्पित्जर अंतरिक्ष दूरबीन और व्यापक अवरक्त सर्वे अन्वेषक (डब्ल्यूआईएसई) ने 2000 साल पुराने रहस्य को हल ढूंढ निकाला है जब चीनी खगोलविज्ञानियों ने सितारे में विस्फोट को होते हुए देखा। इन नतीजों ने दिखाया कि सितारे में विस्फोट की घटना एक गहरी गुफानुमा जगह पर हुई थी जिसके कारण सितारे से निकलने वाले अवशेष सामान्य से कहीं ज्यादा तेजी से और काफी दूर तक बिखर गये। उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय के खगोलविज्ञानी और एस्ट्रोफिजिकल जर्नल के आनलाइन संस्करण में दूरबीन की खोज का विवरण देने वाले नये अध्ययन के प्रमुख लेखक ब्रायन विलियम्स ने कहा, ‘‘यह सुपरनोवा अवशेष काफी बड़ा, काफी तेज था।’’ उन्होंने कहा, ‘‘2000 साल पहले हुआ यह सुपरनोवा सामान्य सुपरनोवा से दो से तीन गुना बड़ा था। अब हम इसके कारण को सटीक तौर पर जान गये हैं।’’ 185 ईस्वी में चीन के खगोलविदों ने आसमान में एक ‘मेहमान सितारे’ का विवरण दर्ज किया है जो रहस्यमयी तरीके से दिखाई दिया और लगभग आठ माह तक दिखता रहा। 1960 तक वैज्ञानिकों ने यह निर्धारण कर लिया था कि यह रहस्यमयी पिंड पहली बार दर्ज किया गया सुपरनोवा था। बाद में उन्होंने इस पिंड की पहचान 8000 प्रकाश वर्ष दूर सुपरनोवा के अवशेष के तौर पर की लेकिन यह एक पहेली ही थी कि सितारे के गोलाकार अवशेष उम्मीद से कहीं बड़े क्यों थे। वैज्ञानिकों ने इस पिंड का नाम आरसीडब्ल्यू 86 रखा था। वाशिंगटन स्थित नासा के मुख्यालय में स्पित्जर और डब्ल्यूआईएसई कार्यक्रम के वैज्ञानिक बिल डांची ने कहा, ‘‘अंतरिक्ष में हमारी पहुंच को बढा देने वाली अनेक वेधशालाओं की मौजूदगी के चलते हम इस सितारे की मौत के बारे में आज पूरी तरह सटीक तरीके से जानकारी दे सकते हैं हालांकि हम पुराने खगोलविदों की तरह ब्रह्मांड में हो रही इन घटनाओं से आश्चर्यचकित हैं।’’
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इन्सोम्निया से हृदयाघात का खतरा अधिक
वाशिंगटन ! निश्चित रूप से यह एक ऐसी खबर है जो आपकी नींद उड़ा देगी, लेकिन सावधान हो जाइये, करवटें बदलते हुए रात गुजारने वाले लोगों को दिल का दौरा पड़ने का खतरा 27 से 45 फीसदी तक होता है। इन्सोम्निया यानी अनिद्रा पर यह अध्ययन नार्वे के ट्रोदीम स्थित विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के जन स्वास्थ्य विभाग ने किया है। अध्ययन के नतीजे ‘अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन’ जर्नल में प्रकाशित हुए हैं। नतीजों में कहा गया है कि एक तिहाई लोग अनिद्रा से पीड़ित हैं और उन्हें डॉक्टर की मदद लेनी चाहिए। संस्थान के प्रमुख अनुसंधानकर्ता लार्स एरिक लौग्सैंड ने कहा ‘‘नींद की समस्या एक आम बीमारी है और इसका इलाज हो सकता है। लेकिन ध्यान न देने पर यह गंभीर परिणाम दे सकती है।’’ अध्ययन के लिए 1995 - 97 में एक राष्ट्रीय सर्वे किया गया और 52,610 वयस्कों से सवाल पूछे गए। अस्पतालों के रिकॉर्ड और नार्वे के नेशनल कॉज आॅफ डेथ रजिस्ट्री के अनुसार, सर्वे के बाद 11 साल में अनुसंधानकर्ताओं ने 2,368 लोगों की पहचान की जिन्हें दिल का पहला दौरा पड़ा था। नींद न आने के कारणों के तौर पर अनुसंधानकर्ताओं ने उम्र, लिंग, वैवाहिक दर्जे, शिक्षा, रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल, मधुमेह, वजन, व्यायाम, शिफ्ट ड्यूटी, अवसाद और चिंता आदि की पहचान की ।
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अल्झाइमर के खतरे का संकेत देने वाली प्रक्रिया का पता चला
लंदन ! वैज्ञानिकों ने जीनों की ऐसी प्रक्रिया का पता लगाने का दावा किया है जिससे लोगों को अल्झाइमर की बीमारी होने के खतरे का पता चल सकता है। मैसाचुसेट्स इन्स्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलॉजी के अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि उनकी खोज मस्तिष्क को प्रभावित करने वाली बीमारी का शीघ्र पता लगाने में मददगार हो सकती है। साथ ही इससे डिमेन्श्यिा के एक आम प्रकार का इलाज भी खोजा जा सकता है। अल्झाइमर का अब तक कोई प्रभावी इलाज नहीं है और वर्तमान दवाओं से लोगों को इलाज में मामूली मदद ही मिलती है। अनुसंधानकर्ताओं ने खमीर की मदद से पता लगाया कि अल्झामर के खतरे के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले जीन मस्तिष्क में कोशिकाओं पर कैसे काम करते हैं। उन्होंने पहली बार बताया कि ये जीन एमाइलाइड नामक एक प्रोटीन को प्रभावित करते हैं। उन्होंने पाया कि एमाइलाइड ने खमीर में एंडोसाइटोसिस नामक एक अहम प्रक्रिया को बाधित कर दिया जो कि महत्वपूर्ण अणुओं को मस्तिष्क कोशिकाओं तक ले जाती थी। यह भी पाया गया कि पाइकैम सहित कई जीन एंडोसाइटोसिस को बाधित करने की एमाइलाइड की क्षमता पर असर डाल सकते हैं। इस प्रयोग से जीन और एमाइलाइड प्रोटीन में संबंध का पता चला जो अब तक अज्ञात था।
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मां को चाहिए, बच्चे को तीन साल की उम्र तक अपने साथ सुलाए
लंदन ! एक नए अध्ययन में कहा गया है कि जब तक बच्चा कम से कम तीन साल का नहीं हो जाता, मां को चाहिए कि उसे वह अपने साथ सुलाए। दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन विश्वविद्यालय के डॉ नील्स बर्गमेन की अगुवाई में अनुसंधानकर्ताओं ने एक अध्ययन में पाया है कि अगर बच्चों को अलग सोने दिया जाए तो उनका दिल अत्यंत तनावग्रस्त हो जाता है। लेकिन मां की छाती से लग कर सोने में उन्हें बहुत आराम मिलता है। डेली मेल में प्रकाशित इस अध्ययन में यह भी कहा गया है कि बच्चे को अलग सुलाने के कारण मां और बच्चे के बीच लगाव मुश्किल से स्थापित होता है। साथ ही बच्चे के मस्तिष्क को क्षति भी पहुंच सकती है जिसके कारण बच्चे को आगे जा कर व्यवहारगत समस्याएं भी हो सकती हैं।
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