19-01-2014, 06:33 PM | #11 |
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Re: मो.रफी के सदाबहार गीतों का खजाना :.........
मित्रों आइये जाने पहले रफी साहब के बारे में :......... 700 फिल्में, 5000 गाने : From available figures, Rafi sang 4,525 Hindi film songs till his death in 1980, which were more than the number of songs sung by Mangeshkar till 1980. If you add his 112 non-Hindi film songs and 328 private non-film songs that have been documented, the total becomes 4,965 songs. So the truth is that Rafi never went beyond 5,000 songs (if we take into account some songs that were not documented). (Source: HT :.........) वर्ष 1949 मे नौशाद के संगीत निर्देशन मे दुलारी फिल्म में गाये गीत ‘सुहानी रात ढ़ल चुकी’ के जरिये रफी सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंच गये और इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। दिलीप कुमार, देवानंद, शम्मी कपूर, राजेन्द्र कुमार, शशि कपूर, राजकुमार जैसे नामचीन नायकों की आवाज कहे जाने लगे। मोहम्मद रफी ने हिन्दी फिल्मों के अलावे मराठी और तेलगू फिल्मों के लिये भी गाने गाये। मोहम्मद रफी अपने करियर में 6 बार फिल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित किये गये। रफी ने मात्र नौशाद के लिए कुल 149 गाने गाए. इनमें 81 गीत रफी के सोलो थे। रफी ने सबसे अधिक गाने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के लिए गाए [369 गाने] लता मंगेशकर के साथ 315 फिल्मों में 414 गाने गाए थे। :......... स्रोत :.........
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19-01-2014, 06:40 PM | #12 |
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Re: मो.रफी के सदाबहार गीतों का खजाना :.........
मित्रों आइये जाने पहले रफी साहब के बारे में :......... 700 फिल्में, 5000 गाने : 1950 के दशक में शंकर जयकिशन, नौशाद तथा सचिनदेव बर्मन ने रफ़ी से उस समय के बहुत लोकप्रिय गीत गवाए। यह सिलसिला 1960 के दशक में भी चलता रहा। संगीतकार रवि ने मोहम्मद रफ़ी का इस्तेमाल 1960 के दशक में किया। 1960 में फ़िल्म चौदहवीं का चांद के शीर्षक गीत के लिए रफ़ी को अपना पहला फ़िल्म फेयर पुरस्कार मिला। इसके बाद घराना (1961), काजल (1965), दो बदन (1966) तथा नीलकमल (1968) जैसी फिल्मो में इन दोनो की जोड़ी ने कई यादगार नगमें दिए। 1961 में रफ़ी को अपना दूसरा फ़िल्मफेयर आवार्ड फ़िल्म ससुराल के गीत तेरी प्यारी प्यारी सूरत को के लिए मिला। संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने अपना आगाज़ ही रफ़ी के स्वर से किया और 1963 में फ़िल्म पारसमणि के लिए बहुत सुन्दर गीत बनाए। इनमें सलामत रहो तथा वो जब याद आये (लता मंगेशकर के साथ) उल्लेखनीय है। 1965 में ही लक्ष्मी-प्यारे के संगीत निर्देशन में फ़िल्म दोस्ती के लिए गाए गीत चाहूंगा मै तुझे सांझ सवेरे के लिए रफ़ी को तीसरा फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिला। 1965 में उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा :......... स्रोत :.........
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19-01-2014, 06:44 PM | #13 |
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Re: मो.रफी के सदाबहार गीतों का खजाना :.........
मित्रों आइये जाने पहले रफी साहब के बारे में :......... गीता दत्त के साथ : एक-दो बार उन्होंने कैमरे का सामना किया : लेकिन वह भी फिल्म ‘लैला मजनूं’ में तेरा जलवा जिसने देखा… गीत में स्वर्णलता और नजीर के साथ समूह में। इसके अलावा कुछ पलों के रोल के लिए फिल्म ‘जुगनू’ में भी वह दिखाई पड़े, लेकिन इसके बाद उन्होंने कभी कैमरे के सामने आने की इच्छा नहीं जताई :......... स्रोत :.........
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19-01-2014, 06:47 PM | #14 |
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Re: मो.रफी के सदाबहार गीतों का खजाना :.........
मित्रों आइये जाने पहले रफी साहब के बारे में :......... मोहम्मद रफी ने ओपी नैय्यर के लिए लगभग 200 गाने गाए हैं : जिन अभिनेताओं के लिए पार्श्वगायन किया : अमिताभ बच्चन, अशोक कुमार, आइ एस जौहर, ऋषि कपूर, किशोर कुमार, गुरु दत्त, गुलशन बावरा, जगदीप, जीतेन्द्र, जॉय मुखर्जी, जॉनी वाकर, तारिक हुसैन, देव आनन्द, दिलीप कुमार, धर्मेन्द्र, नवीन निश्छल, प्राण, परीक्षित साहनी, पृथ्वीराज कपूर, प्रदीप कुमार, फ़िरोज ख़ान, बलराज साहनी, भरत भूषण, मनोज कुमार, महमूद, रणधीर कपूर, राजकपूर, राज कुमार, राजेन्द्र कुमार, राजेश खन्ना, विनोद खन्ना, विनोद मेहरा, विश्वजीत, सुनील दत्त, संजय खान,संजीव कुमार, शम्मी कपूर, शशि कपूर, किशोर कुमार :......... स्रोत :.........
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19-01-2014, 06:49 PM | #15 |
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Re: मो.रफी के सदाबहार गीतों का खजाना :.........
मित्रों आइये जाने पहले रफी साहब के बारे में :......... अन्य भाषाओं में भी पार्श्वगायन किया : एन टी रामा राव (तेलगू फिल्म भाले तुम्मडु तथा आराधना के लिए), अक्किनेनी नागेश्वर राव (हिन्दी फिल्म – सुवर्ण सुन्दरी के लिए) रफी को अल्लाह की देन थी कि वह हर प्रकार के गीत, ग़ज़ल, नगमें, कव्वाली और राग आदि सहजत्ता से गा सकते थे। रफी की आवाज़ का जादू सुनने वालों के सिर चढ़ कर बोलता था। रफी ने अपने चार दशक के गायन कॅरिअर के दौरान हिन्दी, उर्दू, पंजाबी के अतिरिक्त भारत और विश्व की बहुत सी भाषाओं (कोंकणी, भोजपुरी, ओडिआ, बंगाली, मराठी, सिन्धी, कन्नड़, गुजराती, तेलुगू, मैथिली, असमी, अंग्रेज़ी, फारसी, स्पैनिश व डच आदि) में गाने गाये हैं :......... स्रोत :.........
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19-01-2014, 06:52 PM | #16 |
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Re: मो.रफी के सदाबहार गीतों का खजाना :.........
मित्रों आइये जाने पहले रफी साहब के बारे में :......... नौशाद के साथ : पार्श्वगायन योडिलिंग की शुरूआत : बॉलीवुड में बार बार पिच बदल कर गाने यानी योडिलिंग की शुरूआत रफ़ी ने ही पाश्र्वगायन के दौरान की थी। उनके कुछ पुराने गीत ‘हैलो स्वीट सेवेन्टीन’ ‘ओ चले हो कहाँ’, ‘दिल के आइने में’ और ‘उनसे रिप्पी टिप्पी हो गयी’ इसके उदाहरण हैं :......... स्रोत :.........
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19-01-2014, 06:55 PM | #17 |
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22-01-2014, 12:15 PM | #18 |
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Re: मो.रफी के सदाबहार गीतों का खजाना :.........
मित्रों आइये जाने पहले रफी साहब के बारे में :......... सचिनदेव बर्मन के साथ : बड़े संगीतकारों की संगत में ख्याति निखरती ही गई : संगीतकार नौशाद के साथ तो रफी का ताउम्र अटूट संबंध रहा और उनकी कुछ फिल्मों को छोड़कर लगभग सभी फिल्मों के लिए उन्होंने गाने गाए. संगीतकार ओपी नैयर उनके घनिष्ठ मित्र थे और अपनी लगभग हर फिल्म के लिए उन्होंने रफी से ही गाने गवाए. हालांकि रफी मितुभाषी और कुछ ही लफ्जों में अपनी बात कहने वाले इंसान थे और शिष्ट हास-परिहास करते थे, लेकिन नैयर के साथ उनकी बातचीत में गालियां चलती थीं. रफी अपने काम के दौरान कभी इस बात का ख्याल नहीं रखते थे कि संगीतकार बड़ा है या छोटा. वह पूरी ईमानदारी के साथ गाने पर ही ध्यान देते हुए उसे बेहतर से बेहतर बनाने की कोशिश में लगे रहते थे. कई बार ऐसा भी होता था कि नये संगीतकार के पास उन्हें देने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं होते थे, ऐसी स्थिति में वह बिना कुछ लिए उसके लिए गाने गा दिया करते थे. संबंधों का भी वह बड़ा ख्याल रखते थे. अपने साथी गायक किशोर कुमार की फिल्म ‘शाबाश डैडी’ में गीत गाने के लिए उन्होंने टोकन के रूप में सिर्फ एक रूपए लिए थे :......... स्रोत :.........
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22-01-2014, 12:19 PM | #19 |
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Re: मो.रफी के सदाबहार गीतों का खजाना :.........
मित्रों आइये जाने पहले रफी साहब के बारे में :......... नौशाद के साथ : बड़े संगीतकारों की संगत में ख्याति निखरती ही गई : एक बार का वाकया है. संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल अपनी पहली फिल्म “छैला बाबू” के लिए एक गजल “तेरे प्यार ने मुझे गम दिया, तेरे गम की उम्र दराज हो” गीत गाने का अनुरोध लेकर उनके पास पहुंचे और कहा कि उनके पास उन्हें देने के लिए पर्याप्त राशि नहीं है. रफी यह सुनने के बाद भी गजल गाने के लिए तुरंत राजी हो गए. रिकार्डिंग के बाद फिल्म निर्माता ने रफी को एक हजार रूपए दिए. जिसे उन्होंने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को देते हुए कहा “जाओ, तुम दोनों इससे कुछ मिठाई खरीद लाओ. यह तुम्हारी सुंदर संगीत रचना के लिए इनाम है. रफी अपने काम के लिए कितने समर्पित थे. यह बात इस वाकये से पता चलती है. साठ के दशक के आखिरी समय में रफी एक शो के लिए विदेश जाने वाले थे. इससे एक दिन पहले लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने उनसे कहा कि यदि वह उनके गीतों की रिकार्डिंग किए बिना विदेश चले गए तो उनकी दो फिल्में दो महीने लेट हो जाएंगी. वह रफी से एक ही दिन में पांच या छह गीतों की रिकार्डिंग कराना चाहते थे. ऐसी स्थिति में रफी ने अगले दिन सुबह दस से रात ग्यारह बजे तक ताडदेव के फेमस लैब्स में उन गीतों की रिकार्डिंग करायी. नौशाद द्वारा सुरबद्ध गीत तेरा खिलौना टूटा (फ़िल्म अनमोल घड़ी, 1946) से रफ़ी को प्रथम बार हिन्दी जगत में ख्याति मिली। इसके बाद शहीद, मेला तथा दुलारी में भी रफ़ी ने गाने गाए जो बहुत प्रसिद्ध हुए :......... स्रोत :.........
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24-01-2014, 09:18 PM | #20 |
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Re: मो.रफी के सदाबहार गीतों का खजाना :.........
मित्रों आइये जाने पहले रफी साहब के बारे में :......... मन्नाडे और तलत महमूद के साथ : नौशाद ने तलत महमूद को सिगरेट पीने के कारण रिजेक्ट कर दिया रफी को ले लिया : 1951 में जब नौशाद फ़िल्म बैजू बावरा के लिए गाने बना रहे थे तो उन्होने अपने पसंदीदा गायक तलत महमूद से गवाने की सोची थी। कहा जाता है कि उन्होने एक बार तलत महमूद को धूम्रपान करते देखकर अपना मन बदल लिया और रफ़ी से गाने को कहा। बैजू बावरा के गानों ने रफ़ी को मुख्यधारा गायक के रूप में स्थापित किया। इसके बाद नौशाद ने रफ़ी को अपने निर्देशन में कई गीत गाने को दिए। संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन को उनकी आवाज पसंद आयी और उन्होंने भी रफ़ी से गाने गवाना आरंभ किया। शंकर जयकिशन उस समय राज कपूर के पसंदीदा संगीतकार थे, पर राज कपूर अपने लिए सिर्फ मुकेश की आवाज पसन्द करते थे। बाद में जब शंकर जयकिशन के गानों की मांग बढ़ी तो उन्होंने लगभग हर जगह रफ़ी साहब का प्रयोग किया। यहाँ तक की कई बार राज कपूर के लिए रफी साहब ने गाया। संगीतकार सचिन देव बर्मन तथा उल्लेखनीय रूप से ओ पी नैय्यर को रफ़ी की आवाज़ बहुत रास आयी और उन्होने रफ़ी से गवाना आरंभ किया। ओ पी नैय्यर का नाम इसमें स्मरणीय रहेगा क्योंकि उन्होने अपने निराले अंदाज में रफ़ी-आशा की जोड़ी का काफी प्रयोग किया और उनकी खनकती धुनें आज भी उस जमाने के अन्य संगीतकारों से अलग प्रतीत होती हैं। उनके निर्देशन में गाए गानो से रफ़ी को बहुत ख्याति मिली। अन्य संगीतकारों रवि, मदन मोहन, गुलाम हैदर, जयदेव, सलिल चौधरी इत्यादि संगीतकारों की पहली पसंद रफ़ी साहब बन गए। :......... स्रोत :.........
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