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Old 10-12-2010, 07:45 PM   #11
Sikandar_Khan
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चला इक दिन जो घर से पान खा कर
तो थूका रेल की खिड़की से आकर

मगर जोशे हवा से चाँद छींटे
परे रुखसार पे इक नाजनीन के


रुखसार ..... गाल
हुई आपे से वो फ़ौरन ही बाहर
लगी कहने अबे ओ खुश्क बन्दर

ज़बान को रख तू मुंह के दाएरे में
हमेशा ही रहे गा फायदे में

बहाने पान के मत छेड़ ऐसे
यही अच्छा है मुझ से दूर रह ले

तेरी सूरत तो है शोराफा के जैसी
तबियत है मगर मक्कार वहशी


shorafaa .... shareefon ,,,,, wahshi ... darindah


कहा मैं ने कहानी कुछ भी बुन लें
मगर मोहतरमा मेरी बात सुन लें

खुदा के वास्ते कुछ खोफ खाएं
ज़रा सी बात इतनी न बढ़ाएं

नहीं अच्छा है इतना पछताना
मुझे बस एक मौका देदो जाना

ज़बान को अपनी खुद से काट लूँ गा
जहां थूका है उस को चाट लूंगा
__________________
Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..."

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Last edited by Sikandar_Khan; 10-12-2010 at 07:47 PM. Reason: edit
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Old 11-12-2010, 04:39 PM   #12
Kumar Anil
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Originally Posted by sikandar View Post
किसी मुज्जमे की सीढियों पे एक बुज़ुर्ग को तन्हा बैठे देखा (मुज्जमे- शोपिंग काम्प्लेक्स)खामोश लब थरथाराते हाथ माथे से पसीना टपकते देखा

सोच रहे होगे कैसे गुज़रे सरे आज़-इखलास ज़िन्दगी के
(आज़-desire )
हर भूली बिसरी याद को उस एक बसर मे स्मिटते देखा

बचपना फिर जवानी फिर बुढ़ापा कोह्नाह-मशक हालत
( कोह्नाह-मशक-- experienced )हर असबाब को एक गहरी साँस मे टटुलते देखा

एक अबरो एक हया एक अदगी एक दुआ
बे परवाह गुज़रते नोजवानो से अपनी सादगी छुपाते देखा

सोचा जाके पूछों की क्योँ बैठे है यूँ तन्हा एकेले
पर हर रहगुज़र के बरीके से नाश-ओ-नसीर समझते देखा

क्या अच्छा किया क्या बुरा किया कोन से रिश्ते निभाए पूरे
हर एक अधूरे पूरे फ़र्ज़ इम्तिहान उम्मीद का इसबात जुटाते देखा
(इसबात-proof )

कभी लगा आसूदाह सा कभी लगा आशुफ्तः सा
(आसूदाह-satisfied आशुफ्तः-confused)
मुब्तादा इबारत के इबर्के-उबाल को बेकाम-ओ-कास्ते देखा (मुब्तादा--principle, इबारत-[size="2"]experience,इबर्के- perception बेकाम-ओ-कास्ते--expresing) [/size]

किसी मुज्जमे की सीढियों पे एक बुज़ुर्ग को तन्हा बैठे देखा


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सुभानअल्लाह ! जिँदगी के नफे - नुकसान का वास्तविक चिंतन मुज्जमेँ की सीढ़ियोँ से भला और कहाँ बेहतर हो सकता है । जिँदगी कभी आसूदाह सी कभी आशुफ्तः सी ही तो है तभी तो हमेँ मुकम्मल जहाँ नहीँ मिलता ।
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Old 12-12-2010, 11:41 PM   #13
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इश्क के गुलशन को गुल गुज़ार न कर!
ऐ नादान इंसान कभी किसी से प्यार न कर!
बहुत धोखा देते हैं मोहब्बत में हुस्न वाले,
इन हसीनो पर भूल कर भी ऐतबार न कर!

दिल से आपका ख्याल जाता नहीं!
आपके सिवा कोई और याद आता नहीं!
हसरत है रोज़ आपको देखूं,
वरना आप बिन जिंदा रह पाता नहीं!

वे चले तो उन्हें घुमाने चल दिए!
उनसे मिलने-जुलने के बहाने चल दिए!
चाँद तारों ने छेड़ा तन्हाई में ऐसी राग,
वे रूठे नहीं की उन्हें मानाने चल दिए!

वो मिलते हैं पर दिल से नहीं!
वो बात करते हैं पर मन से नहीं!
कौन कहता है वो प्यार नहीं करते,
वो प्यार तो करते हैं पर हमसे नहीं!

नाबिक निराश हो तो साहिल ज़रूरी है!
ज़न्नत की तलाश में हो तो इशारा ज़रूरी है!
मरने को तो कोई कहीं मर सकता है,
लेकिन ज़ीने के लिए सहारा ज़रूरी है!
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Old 12-12-2010, 11:45 PM   #14
Video Master
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घर की तामीर चाहे जैसी हो
इसमें रोने की जगह रखना!


जिस्म में फैलने लगा है शहर
अपनी तनहाइयाँ बचा रखना!


मस्जिदें हैं नमाजियों के लिए
अपने दिल में कहीं खुदा रखना!


मिलना-जुलना जहाँ जरुरी हो
मिलने-जुलने का हौसला रखना!


उम्र करने को है पचास को पार
कौन है किस पता रखना!
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Old 12-12-2010, 11:51 PM   #15
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एक लफ्जे-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है!
सिमटे तो दिले-आशिक, फैले तो ज़माना है!

हम इश्क के मारों का इतना ही फ़साना है!
रोने को नहीं कोई हंसने को ज़माना है!

वो और वफ़ा-दुश्मन, मानेंगे न माना है!
सब दिल की शरारत है, आँखों का बहाना है!

क्या हुस्न ने समझा है, क्या इश्क ने जाना है!
हम ख़ाक-नशीनो की ठोकर में ज़माना है!

ऐ इश्के-जुनूं-पेशा! हाँ इश्के-जुनूं पेशा,
आज एक सितमगर को हंस-हंस के रुलाना है!

ये इश्क नहीं आशां,बस इतना समझ लीजे
एक आग का दरिया है, और डूब के जाना है!

आंसूं तो बहुत से हैं आँखों में 'जिगर' लेकिन
बिंध जाए सो मोती है, रह जाए सो दाना है!
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Old 13-12-2010, 07:21 PM   #16
Sikandar_Khan
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किस तरफ का रास्ता लूंगा मैं
रुका नहीं तो मंजिल पा लूंगा मैं ...

तजुर्बे की हरारत को नहीं समझा तो
कहीं बे -वज़ह ज़मीर जला लूंगा मैं ...

कभी खींच कर लकीर काग़ज़ पर
बिना रक़म का मकान बना लूंगा मैं ...

कितने मासूम होते है मौसम के फूल
गर छू लिया तोह मुस्कुरा लूंगा मैं ...

अगर वहशत की आंधी और चली
देखना नफ़रत का पत्थर उठा लूंगा मैं ...
__________________
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Last edited by Sikandar_Khan; 08-04-2012 at 11:37 PM.
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Old 13-12-2010, 07:51 PM   #17
Sikandar_Khan
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अपने हाथों की लकीरों में बसाले मुझको
मैं हूं तेरा नसीब अपना बना ले मुझको

मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के मानी
ये तेरी सदादिली मार न डाले मुझको

मैं समंदर भी हूं मोती भी हूं गोतज़ान भी
कोई भी नाम मेरा लेके बुलाले मुझको

तूने देखा नहीं आईने से आगे कुछ भी
ख़ुदपरस्ती में कहीं तू न गवां ले मुझको

कल की बात और है मैं अब सा रहूं या न रहूं
जितना जी चाहे तेरा आज सताले मुझको
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Old 13-12-2010, 07:52 PM   #18
Sikandar_Khan
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ख़ुद को मैं बांट न डालूं कहीं दामन-दामन
कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको

मैं जो कांटा हूं तो चल मुझसे बचाकर दामन
मैं हूं अगर फूल तो जूड़े में सजाले मुझको

मैं खुले दर के किसी घर का हूं सामां प्यार
तू दबे पांव कभी आके चुराले मुझको

तर्क-ए-उल्फ़त की क़सम भी कोई होती है क़सम
तू कभी याद तो कर भूलाने वालो मुझको

बादा फिर बादा है मैं ज़हर भी पी जाऊं
शर्त ये है कोई बाहों में सम्भाले मुझको
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Old 13-12-2010, 07:56 PM   #19
Hamsafar+
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सिकंदर भाई बहुत ही सुन्दर गजलों का संग्रह !!
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हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है कृपया हिंदी में लेखन व् वार्तालाप करे ! हिंदी लिखने के लिए मुझे क्लिक करें!
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Old 13-12-2010, 09:21 PM   #20
Kumar Anil
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घर की तामीर चाहे जैसी हो
इसमें रोने की जगह रखना!


जिस्म में फैलने लगा है शहर
अपनी तनहाइयाँ बचा रखना!


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उम्र करने को है पचास को पार
कौन है किस पता रखना!

सुंदर , अति सुंदर ! दिल को छूने वाली रचना को हमारे लिए प्रस्तुत करने पर निःसन्देह बधाई के पात्र हैँ ।
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