![]() |
#11 | |
VIP Member
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]() Quote:
__________________
Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..." click me
|
|
![]() |
![]() |
![]() |
#12 |
VIP Member
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]() कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम
उस निगाह-ए-आशना को क्या समझ बैठे थे हम रफ़्ता रफ़्ता ग़ैर अपनी ही नज़र में हो गये वाह री ग़फ़्लत तुझे अपना समझ बैठे थे हम होश की तौफ़ीक़ भी कब अहल-ए-दिल को हो सकी इश्क़ में अपने को दीवाना समझ बैठे थे हम बेनियाज़ी को तेरी पाया सरासर सोज़-ओ-दर्द तुझ को इक दुनिया से बेगाना समझ बैठे थे हम भूल बैठी वो निगाह-ए-नाज़ अहद-ए-दोस्ती उस को भी अपनी तबीयत का समझ बैठे थे हम हुस्न को इक हुस्न की समझे नहीं और ऐ 'फ़िराक़' मेहरबाँ नामेहरबाँ क्या क्या समझ बैठे थे हम
__________________
Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..." click me
|
![]() |
![]() |
![]() |
#13 |
VIP Member
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]() कोई नयी ज़मीं हो, नया आसमाँ भी हो
ए दिल अब उसके पास चले, वो जहाँ भी हो अफ़सुर्दगी- ए- इश्क़ में सोज़- ए- निहाँ भी हो यानी बुझे दिलों से कुछ उठता धुआँ भी हो इस दरजा इख़्तिलात और इतनी मुगैरत तू मेरे और अपने कभी दरमियाँ भी हो हम अपने ग़म-गुसार-ए-मोहब्बत न हो सके तुम तो हमारे हाल पे कुछ मेहरबाँ भी हो बज़्मे-तस्व्वुरात में ऐ दोस्त याद आ इस महफ़िले-निशात में ग़म का समाँ भी हो महबूब वो कि सर से क़दम तक ख़ुलूस हो आशिक़ वही जो इश्क़ से कुछ बदगुमाँ भी हो
__________________
Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..." click me
|
![]() |
![]() |
![]() |
Bookmarks |
|
|