23-02-2011, 04:14 PM | #11 | |
Tech. Support
Join Date: Dec 2009
Location: Bangalore
Posts: 2,771
Rep Power: 35 |
Re: कुछ इमानदार कोशिश
Quote:
बाकी पढ़ने वाले पर निर्भर करता है, उसको सब फिल्मो की एक साथ जानकारी चाहिए, या किसी एक फिल्म की पूर्ण समीक्षा! जो चाहिए, वो मिले, तो फोरम का हित ही होगा! इसलिए तो मैं खुद आपके इस सूत्र को हर दुसरे दिन जरूर देख लेता हूँ! काफी अच्छी अच्छी फिल्मो के नाम मिले तो मुझे भी उनको देख कर उनकी समीक्षा लिखने में आसानी रहेगी!
__________________
|
|
23-02-2011, 08:17 PM | #12 |
Special Member
|
Re: कुछ इमानदार कोशिश
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
22-06-2011, 08:37 AM | #13 |
Member
Join Date: May 2011
Posts: 204
Rep Power: 16 |
Re: कुछ इमानदार कोशिश
इस श्रेणी में A WEDNESDAY एक बेहतरीन फिल्म है! बिना किसी धूमधाम और बड़े सितारों के बिना एक रोचक कहानी को बेहतरीन तरीके से परदे पे उतार दिया है निर्देशक ने! नसरुदीन शाह और अनुपम खेर की कमाल की अदाकारी! |
13-09-2011, 12:39 PM | #14 |
Member
Join Date: Sep 2011
Posts: 17
Rep Power: 0 |
Re: कुछ इमानदार कोशिश
IN 2010 and 2009 a lot of movies has folloped
|
16-10-2011, 12:36 PM | #15 |
Special Member
|
Re: कुछ इमानदार कोशिश
पिछले दिन मैंने ये फिल्म देखि
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
16-10-2011, 12:47 PM | #16 |
Special Member
|
Re: कुछ इमानदार कोशिश
इस फिल्म के लेखक -निर्देशक हैं अमोल गुप्ते
फिल्म 'स्टेनली का डब्बा' में टिफिन के डब्बे के मध्यम से एक बहुत ही संवेदनशील विषय को उठाने की कोशिश की गयी है. स्टेनली एक बाल-मजदूर है और शाम से देर रात तक अपने चाचा के होटल में काम करता है. स्टेनली एक हंसमुख चुलबुला सा बच्चा है और एक संभावित कहानीकार भी. टीचर ने अगर पूछ लिया, चेहरा गन्दा क्यूँ है तो पूरे एक्शन के साथ घटना बयाँ करता है कि माँ ने उसे कुछ लाने को भेजा. वहाँ उसने देखा एक छोटे लड़के को एक बड़ा लड़का पीट रहा था. फिर वो उस से भिड़ गया और यूँ हाथ घुमाया,यूँ घूंसे जमाये, यूँ उठा कर पटका. पूरा क्लास मंत्रमुग्ध हो उसकी बातें सुनता रहता है. टीचर के क्लास से बाहर जाते ही बच्चे उसके पीछे पड़ जाते हैं "स्टेनली फाइटिंग की स्टोरी सुना ना " और वो शुरू हो जाता है. रोज एक नई कहानी. जिसमे माँ ने उसे कहीं भेजा होता है.वो माँ पर एक रोचक निबंध भी लिखता है कि 'उसकी माँ बस से जम्प करती है और ट्रेन में उछल कर चढ़ जाती है. उसकी माँ एक सुपरवुमैन है '. पर जब लंच-टाइम होता है तो स्टेनली चुपचाप बाहर जाने लगता है और किसी बच्चे के पूछने पर कहता है, मैं कैंटीन से बड़ा पाव लेने जा रहा हूँ. उसके पास टिफिन नहीं होता. वो बाहर के नल से भर-पेट पानी पीकर आ जाता है. एक हिंदी के शिक्षक हैं. 'वर्मा सर' उनकी आदत है.लंच-टाइम में बच्चों की क्लास में ही घूमते रहते हैं और सबकी टिफिन से कुछ ना कुछ लेकर खाते रहते हैं. लेकिन स्टेनली को देखते ही हिकारत से कहते हैं..'डब्बा तो कभी लाता नहीं.." कहानी काफी रोचक है और निर्देशन भी सधा हुआ है. सभी कलाकारों का अभिनय सहज है. वर्मा सर के रूप में अमोल गुप्ते और स्टेनली के रूप में पार्थो ने अपना प्रभाव छोड़ा है. *बस जल्दी से देख डालिए और अपने अनुभव यहाँ बताना ना भूलियेगा
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
16-10-2011, 09:21 PM | #17 |
Junior Member
Join Date: Oct 2011
Posts: 1
Rep Power: 0 |
Re: कुछ इमानदार कोशिश
yeh film maine bhi dekhi hai. kaafi acchi hai.
|
Bookmarks |
Tags |
art, bollywood, cinema, indian cinema, low budget, movies, theater |
|
|