01-05-2012, 11:07 AM | #11 |
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Re: लेटेस्ट तकनीकी ख़बरें !
ब्रिटेन के ग्लासगो विश्वविद्यालय में वैज्ञानिक ऐसा 3-डी प्रिंटर बनाने में जुटे हैं, जिससे दवाएं और अन्य रसायन तैयार किए जा सकते हैं. शोधकर्ताओं ने 1,250 पाउंड (लगभग एक लाख रुपए) की लागत से एक सिस्टम बनाया है, जिससे कार्बनिक मिश्रण और अकार्बनिक समूह तैयार किए जा सकते हैं. इनमें से कुछ कैंसर के इलाज में इस्तेमाल किए जाते हैं.वैज्ञानिकों का कहना है कि आगे चल कर इससे मरीजों की जरूरत के हिसाब से दवाएं तैयार की जा सकेंगी. उनका अनुमान है कि पांच साल के भीतर दवा कंपनियां इस तकनीक का इस्तेमाल कर सकेंगी जबकि आम लोगों के पास इस सुविधा को पहुंचने में 20 साल लग सकते हैं.
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02-05-2012, 10:55 AM | #12 |
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Re: लेटेस्ट तकनीकी ख़बरें !
भारत भी बना रहा है नेविगेशनल सिस्टम
चीन के प्रक्षेपण से पहले ही भारत भी बना रहा है नेविगेशनल सिस्टम,मंगलवार को जब चीन ने बीदो सिरीज़ के दो नेविगेशनल सैटेलाइट लॉंच किए कयास तब भी लगाए गए कि चीन के पास ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम आ गया तो वो उसका क्या प्रयोग करेगा.वरिष्ठ विज्ञान पत्रकार पल्लव बागला का कहना है कि चीन का नेविगेशनल सैटेलाइट प्रक्षेपत करना भारत के लिए कोई खतरे की बात नहीं है. विशेष बातचीत में पल्लव बागला ने कहा, “ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम जैसी प्रणाली अमरीका और रूस के पास पहले से है और चीन ऐसी प्रणाली तैयार करने वाला तीसरा देश बन सकता है. इसमें भारत के लिए कोई खतरे की बात नहीं है, इस तंत्र पर सभी देश काम कर रहें है.” पल्लव बागला का कहना है कि भारत भी खुद का नेविगेशनल सिस्टम तंत्र विकसित कर रहा है.
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03-05-2012, 10:01 PM | #13 |
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Re: लेटेस्ट तकनीकी ख़बरें !
yeh to acchi khabar hai..
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अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
04-05-2012, 11:36 AM | #14 |
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Re: लेटेस्ट तकनीकी ख़बरें !
मात्र एक पेपर से पता चलेगा, आपका ब्लड-ग्रुप ऑस्ट्रेलिया के मोनाश विश्वविद्यालय में शोधकर्ताओं की टीम ने कागज पर आधारित सेंसर विकसित किया है जो व्यक्ति का ब्लड ग्रुप शब्दों में लिखता है.इस सेंसर से गैर-विशेषज्ञों को नतीजों का विश्लेषण करने में मदद मिल सकती है, खासकर आपात स्थिति और मानवीय आपदाओं में. अध्ययन अंगवांडटे केमि नाम के जरनल में छपा है. ये सेंसर रक्त के एबीओ वर्गीकरण पर आधारित है, जिसके तहत रक्त को ए, बी, एबी, और ओ वर्गों में बांटा जाता है. साथ ही रक्त को आरएच पॉजीटिव और आरएच नेगेटिव में भी वर्गीकृत किया जाता है. एबीओ वर्गीकरण में ए या बी वर्ग से पता चलता है कि लाल रक्त कोशिकाओं में कौन से एंटीजन मौजूद हैं.
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Last edited by ~VIKRAM~; 04-05-2012 at 11:45 AM. |
05-05-2012, 11:08 AM | #15 |
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Re: लेटेस्ट तकनीकी ख़बरें !
सैमसंग ने अपना नया स्मार्टफोन गैलेक्सी एस3 बाजार में उतारा 4.8 इंच की स्क्रीन है जो पिछले मॉडल गैलेक्सी एस2 की 4.3 इंच वाली स्क्रीन से बड़ी है.क्रीन के मामले में ये 3.5 इंच वाले एपल के आईफोन 4एस और 4.3 इंच वाले नोकिया ल्यूमिया 900 से काफी बड़ा है. सैमसंग अपने फोन/टेबलेट हाइब्रिड गैलेक्सी नोट की लोकप्रियता से भी प्रभावति रहा होगा जिसमें बड़ी स्क्रीन है और वो बाजार के पंडितों की अनुमान से कहीं ज्यादा लोकप्रिय हुआ. दक्षिण कोरिया की कंपनी सैमसंग का कहना है कि उसके नए स्मार्टफोन में ‘इंटेलिजेंट कैमरा फीचर’ और चेहरे को पहचानने वाली तकनीक का मिला जुला रूप देखने को मिलेगा. मिसाल के तौर पर फोन में सामने की तरफ लगा कैमरा उसे इस्तेमाल करने वाली की आंखों की पहचान करेगा और जब तक वे उसे देखती रहेंगी, तब तक न तो फोन की लाइट बुझेगी और न ही वो लॉक होगा.इसके अलावा एस3 में पीछे की तरफ 8 मेगापिक्सल का कैमरा लगा है, जबकि सामने की तरफ वीडियो कॉल्स के लिए 1.9 मेगापिक्सल का कैमरा है.
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07-05-2012, 08:43 PM | #16 |
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बड़ा बड़ा चांद
महाचंद्रमा' या पूर्ण चंद्रमा की रोशनी से रविवार रात आसमान चमक उठा. धरती के करीब आने की वजह से चांद अपने आम तौर पर दिखने वाले आकार से कही ज्यादा बड़ा था.चांद की इस खगोलीय स्थिति को 'पेरिजी फुल मून' कहते है जिसमें चांद 14 फीसदी तक ज्यादा बड़ा दिखता है और 30 फीसदी तक अधिक चमकता है. ब्रिटेन के रॉयल एस्ट्रोनॉमी सोसाइटी के डॉक्टर रोबर्ट मैसी का कहना है कि चंद्रमा की रोशनी से ज्यादा उसका बड़ा आकार रोमांचिक करता है.उन्होंने कहा, ''हमारी आंखें रोशनी में आए बदलावों को झेल जाने में इतनी कारगर साबित होती है कि किसी तरह के बदलाव को पहचान पाना मुश्किल है.''
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10-05-2012, 08:05 PM | #17 |
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अब बिना ड्राइवर चलेगी, आपकी कार
अमरीका के नेवादा शहर में बिना चालक के चलने वाली कार को सड़कों पर दौड़ने के लिए हरी झंडी मिल गई है. हाईवे पर चलने वाली पहली कार होगी टोयोटा परायस जिसमें 'सर्च' कंपनी गूगल ने कुछ बदलाव किए हैं. गूगल बिना चालक की कारों की तकनीक में काफी काम कर रहा है.इस गाड़ी की पहली ड्राइव में लास वेगास की मशहूर सड़क भी शामिल थी.नेवादा में कुछ और कार कंपनियां भी खुद चलने वाली गाड़ियों के लाइसेंस लेने का प्रयास कर रही हैं. यह कार सड़क पर चल रहे बाकी यातायात को देखने के लिए अपनी छत पर लगे वीडियो कैमरों, सेंसरों और लेजर रेंज का इस्तेमाल करती हैं.इससे पहले, गूगल के इंजीनियरों ने इस कार का कैलिफोर्निया की सड़कों पर परीक्षण किया था,जिसमें सेन फ्रांसिस्को के गोल्डन गेट पुल को पार करना भी शामिल था. इन परीक्षणों के दौरान यह कार हर समय प्रशिक्षित चालक की निगरानी में रही. ये प्रशिक्षक सॉफ्टवेयर के फेल होने की सूरत में इसका नियंत्रण करने के लिए हमेशा तैयार रहता था.सॉफ्टवेयर इंजीनियर सेबेसटियन थ्रून के मुताबिक यह कार बिना किसी दुर्घटना के 1,40,000 मील का सफर तय कर चुकी है हालांकि एक ट्रैफिक लाइट पर इसे पीछे से एक कार ने धक्का जरूर दिया था
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15-05-2012, 11:33 AM | #18 |
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Re: लेटेस्ट तकनीकी ख़बरें !
रोशनी से चलनेवाली कृत्रिम आँख अमरीका में वैज्ञानिकों ने एक ऐसी कृत्रिम आँख बनाई है जो सोलर पैनल की तरह रोशनी से चार्ज होती हैवैज्ञानिकों ने पहले भी ऐसी कृत्रिम आँखें बनाई हैं मगर उन्हें बैटरी से चार्ज करना पड़ता है. इस कृत्रिम आँख में रेटिना को प्रतिरोपित कर मरीज की देखने की शक्ति को ठीक किया जाता है.अमरीका के स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित इस नई आँख के बारे में विज्ञान जर्नल – नेचर फोटोनिक्स – में बताया गया है. इस नई आँख में विशेष शीशों की जोड़ी का इस्तेमाल कर लगभगह इन्फ्रारेड किरणों के बराबर वाली रोशनी को आँखों में भेजा जाता है.इससे प्रतिरोपित रेटिना को ऊर्जा मिलती है और वो ऐसी सूचनाएँ भेजता है जिनसे कि मरीज देख सकता है.अधिक उम्र में अक्सर लोगों की आँखों में बुढ़ापे से जुड़े लक्षण में प्रकट होते हैं जिनसे कि वे कोशिकाएँ मर जाती हैं जो कि आँखों के भीतर रोशनी को पकड़ा करती हैं. आगे चलकर यही लक्षण अंधेपन में बदल जाता है. इस कृत्रिम रेटिना में आँखों के पीछे की नसें उत्तेजित होती हैं जिनसे कि कई बार आँखों के मरीजों को देखने में मदद मिलती है. ब्रिटेन में पहले ऐसे कृत्रिम रेटिना के प्रारंभिक परीक्षण किए गए थे जिनमें पाया गया कि दो ऐसे लोग जो पूरी तरह अंधे हो गए थे वे रोशनी को ग्रहण करने लगे और कई बार आकृतियों को भी समझने लगे. मगर इन परीक्षणों में रेटिना के पीछे एक चिप लगाने के साथ-साथ कान के पीछे एक बैटरी लगानी होती थी और एक तार से दोनों को जोड़ना पड़ता था. स्टैनफोर्ड के शोधकर्ताओं का कहना है कि उनका ये परीक्षण इलेक्ट्रोनिक्स और तारों की जटिलता को दूर करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. इस कृत्रिम रेटिना का अभी लोगों पर परीक्षण नहीं किया गया है मगर चूहों पर ये काम करता है.
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18-05-2012, 03:28 PM | #19 |
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Re: लेटेस्ट तकनीकी ख़बरें !
20 मिनट में एचआईवी टेस्ट
अमरीका में शोधकर्ता घर पर ही बैठकर 20 मिनट में एचआईवी वायरस टेस्ट कर पाने के करीब पहुँच गए हैं.इसे बनाने वाली कंपनी के अनुसार 20 मिनट में परिणाम बताने वाला यह टेस्ट पॉजिटिव रिजल्ट्स के लिए 93 प्रतिशत सही पाया गया है जबकि निगेटिव मामलों में यह 99.8 प्रतिशत सही है. अमरीका में लगभग 12 लाख लोग एचआईवी से ग्रस्त हैं जबकि हर साल वहाँ इसके 50,000 नए मामले सामने आते हैं.एफडीए की एक विशेषज्ञ समिति पहले ही इस टेस्ट को इजाजत देने के पक्ष में 17-0 से फैसला कर चुकी है. समिति का मानना है कि इससे इस बीमारी से पीड़ित लोगों को स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाएं मिल सकेंगी. उन्होंने समाचार एजेंसी एसोसियेटिड प्रेस को बताया, ''हम सदा नई सोच का स्वागत करते हैं और हम इसे भी उसी श्रेणी में मानते हैं. इससे न केवल संक्रमण घटाने में मदद मिलेगी बल्कि इससे ज्यादा लोगों का इलाज और देखभाल संभव हो पाएगी.''
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18-05-2012, 03:33 PM | #20 |
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Re: लेटेस्ट तकनीकी ख़बरें !
एयरलाइंस में भी इंटरनेट की रफ्तार बढ़ेगी इंटरनेट आज कई लोगों के लिए जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है. ईमेल, फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब के बिना उनकी जिंदगी अधूरी है.लेकिन हर रोज नई उड़ान भर रही टेक्नॉलजी के साथ कदम से कदम मिला कर चल रहे इन लोगों की जिंदगी मानों विमान में सफर करते वक्त थम जाती है वहां न ईमेल ठीक से काम करता है, न फेसबुक और न ही यूट्यूब. यूं तो कई एयरलाइंस हवाई सफर के दौरान इंटरनेट मुहैया कराने का दावा करती हैं लेकिन सभी विमानों में ये सुविधा मिलने के लिए अभी लंबा सफर तय करना है विमान में इंटरनेट मिलता भी तो हैं तो उसके लिए अकसर आपको ज्यादा दाम देने पड़ते हैं. इसके बाजवूद हवाई जहाज में वैसी स्पीड मिल पाना संभव नहीं जैसी जमीन पर मिलती है ब्रिटेन की टेलिकॉम कंसल्टिंग कंपनी मशीना रिसर्च के निदेशक मैट हटन कहते हैं, “अगर कोई सोचे कि वो हवाई सफर में घर की तरह वेब ब्राउजिंग कर सकता है, तो उसे निराशा ही होती है.” हटन बताते हैं कि वो विमान में अपने दफ्तर के ईमेल देखने और भेजने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं लेकिन ‘सेंड’ बटन पर क्लिक करने के बाद भी कई मिनटों तक ईमेल उनके आउटबॉक्स में रहता है और फिर आखिरकार इंतजार के बाद भेजा जाता है.
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