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Old 17-04-2013, 08:33 PM   #11
jai_bhardwaj
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Default Re: वास्तु के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य एवं बिना तो&

वास्तु नियम के अनुसार पूर्व एवं उत्तर दिशा में अधिक से अधिक दरवाजें, खिडकियाँ रखी जानी चाहिए.

ये भाग अधिक खुले होने से हवा और रोशनी अधिक मात्रा में प्रवेश करती है. प्रवेश करने वाली हवा दक्षिण-पश्चिम के कम दरवाजों-खिडकियों से धीरे धीरे बाहर निकलती है, जिससे कि भवन का वातावरण स्वच्छ, साफ एवं प्रदूषण मुक्त होता है.
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Old 17-04-2013, 08:34 PM   #12
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वास्तु नियम में यह भी प्रतिपादित किया गया है कि दक्षिण-पश्चिम भाग हमेशा ऊँचा होना चाहिए एवं दीवारें मोटी बनानी चाहिए. साथ ही इस दिशा में सीढी इत्यादि का भार दिया जाना चाहिए.

इसका उदेश्य है कि पृ्थ्वी जब सूर्य की परिक्रमा दक्षिण दिशा में करती है, तो सूर्य एक विशेष कोणीय स्थिति में होता है. अत: इस क्षेत्र में अधिक भार से संतुलन बना रहता है तथा ऊँची तथा मोटी दीवारें अधिक उष्मा से रक्षा करती हैं. इससे भवन में गर्मी में शीतलता एवं सर्दियों में उष्णता का अनुभव मिलता है.
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Old 17-04-2013, 08:34 PM   #13
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इसी प्रकार वास्तु नियम में दक्षिण-पूर्वीय (आग्नेय) कोण में 'अग्नेय उर्जा'---रसोई बनाने का प्रावधान किया गया,


क्यों कि इस क्षेत्र में पूर्व से प्रात:कालीन ताजगी से भरी हवा एवं सूर्य रश्मियों का प्रवेश होता है, जिससे कि रसोई में रखे पदार्थ अधिक समय तक शुद्ध एवं ताजे बने रहें.
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Old 17-04-2013, 08:35 PM   #14
jai_bhardwaj
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उत्तर क्षेत्र में विज्ञान अनुसार, पृ्थ्वी में चुंबकीय उर्जा सघन मात्रा में रहती है.

इससे इस क्षेत्र को सबसे पवित्र माना है और इसी कारण पूजा स्थल, साधनास्थली का निर्माण इस स्थान में उचित कहा गया है.
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Old 17-04-2013, 08:35 PM   #15
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वास्तु नियम में उत्तर-पूर्वी भाग में दैनिक उपभोग में आने वाले जल के स्त्रोत को बनाने का विधान निहित है.

विज्ञान की भी इसके पीछे ये मान्यता है कि उससे वह प्रदूषण मुक्त हो जाता है और शुद्ध रहता है. वैज्ञानिक युग में इस सिद्धान्त को इलैक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम सिद्धान्त से प्रतिपादित किया गया.
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Old 17-04-2013, 08:36 PM   #16
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दक्षिण दिशा में सिरहाना करने का महत्व प्रतिपादित है,


जिसका मूल कारण पृ्थ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र में पडने वाला प्रभाव है, क्यों कि सर्वविदित है कि चुम्बकीय प्रभाव उत्तर से दक्षिण की ओर रहता है. मानवीय जैव चुम्बकत्व भी सिर से पैर की ओर होता है. अत: सिर को उतरायण एवं पैरों को दक्षिणायण कहा गया है. यदि सिर उत्तर दिशा में रखा जाए तो पृ्थ्वी का उत्तरी ध्रुव मानव सिर के ध्रुव चुम्बकीय प्रभाव को अस्वीकार करेगा. इससे शरीर के रक्त संचार के लिए अनुकूल चुम्बकीय लाभ नहीं होगा.
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Old 17-04-2013, 08:36 PM   #17
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इसको आधुनिक मस्तिष्क वैज्ञानिकों नें भी माना है कि मस्तिष्कीय क्रिया क्षमता का मूलभूत स्त्रोत अल्फा तरंगों का पृ्थ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन का संबंध आकाशीय पिंडों से है और यही वजह है कि वास्तु कला शास्त्र हो या ज्योतिष शास्त्र, सभी अपने अपने ढंग से सूर्य से मानवीय सूत्र सम्बंधों की व्याख्या प्रतिपादित करते हैं. अत: वास्तु के नियमों को, भारतीय भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रख कर, भूपंचात्मक तत्वों के ज्ञान से प्रतिपादित किया गया है. इसके नियमों में विज्ञान के समस्त पहलुओं का ध्यान रखा गया है, जिनसे सूर्य उर्जा, वायु, चन्द्रमा एवं अन्य ग्रहों का पृ्थ्वी पर प्रभाव प्रमुख है तथा उर्जा का सदुपयोग, वायु मंडल में व्याप्त सूक्ष्म से सूक्ष्म शक्तियों का आंकलन कर, उन्हे इस वास्तु शास्त्र के नियमों में निहित किया गया है.
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Old 17-04-2013, 08:38 PM   #18
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अब बहुत से लोग ऎसे भी होते हैं जो कि जीवन में वास्तु इत्यादि को कोई महत्व नहीं देते, बल्कि अच्छी-बुरी कैसी भी परिस्थिति के लिए सिर्फ निज भाग्य को ही सर्वोपरी मानते हैं. ये ठीक है कि भाग्य सर्वोपरी है, बल्कि भाग्य का महत्व तो विश्व की सभी संस्कृ्तियों में स्वीकारा गया है. चूंकि किसी भी व्यक्ति के भाग्य का निर्धारण किन्ही दैवीय शक्तियों द्वारा हमारे सौरमंडल के सूर्य चन्द्रादि नवग्रहों की रश्मियों के माध्यम से ही होता है, अत: इन पर किसी का कोई नियन्त्रण भी नहीं होता.

इन कारकों का हमारे जीवन के विकास में अति महत्वपूर्ण स्थान है, परन्तु इनमें से बहुत सी विशेषताओं एवं गुणों को बदला नहीं जा सकता. यही व्यक्ति-विशेष की विशेषता के रूप में जाना जाता है.


अब अनेक व्यक्ति हैं, जो भाग्य जैसी किसी सत्ता में विश्वास नहीं करते. वो लोग अपने निज कर्म(पुरूषार्थ) को ही भाग्य निर्माता समझते हैं. परिश्रम या कर्म हमारे जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक है. अब देखिए, हममें से कुछ की अभिरूचि अध्ययन में, कुछ का लगाव धन में होता है तथा कुछ ऎसे भी लोग होते हैं, जो आरामपूर्वक जिन्दगी व्यतीत करना चाहते हैं. हम अपने जीवन की धारा का प्रवाह अपने मनोवांछित मार्ग की ओर ले जाने का भरकस प्रयास करते हैं, किन्तु कोई एक ऎसी अदृ्श्य शक्ति तो है ही, जो इस प्रवाह का मार्ग परिवर्तित कर देती है.

अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ती में लोग कुछ सीमा तक सफल भी होते हैं, किन्तु दुनिया में ऎसे लोगों की भी कोई कमी नहीं, जो इच्छा-पूर्ती में सफल नहीं हो पाते. ऎसे व्यक्ति अपनी असफलताओं के लिए भाग्य को दोषी ठहराने लगते हैं. वस्तुत: इसके लिए भी व्यक्ति के स्वयं के कर्म ही दोषी हैं, न कि भाग्य. भाग्य तो हमारे किए गए कर्मों का प्रतिसाद मात्र है. कर्म क्या है?---कर्म अर्थात हमारे द्वारा किए गए प्रयासों का नाम ही तो कर्म है. अपने जीवन में जिस भी सुख या दुख, सफलता-असफलता, हानि-लाभ को हम प्राप्त करते हैं, वो सब कुछ भी तो हमारे प्रयासों अर्थात कर्मों का ही तो परिणाम है.
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Old 17-04-2013, 08:39 PM   #19
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कर्म का व्यक्ति के जीवन में कितना अधिक प्रभाव पडता है, यह इस एक उदाहरण के माध्यम से सहज ही समझा जा सकता है---------एक व्यक्ति जिसनें अपने लिए एक नए घर का निर्माण किया, लेकिन उस नए घर में प्रवेश करते ही उसे बुरी तरह से आर्थिक समस्यायों का सामना करना पडा. बेचारे का खाना-पीना, सोना-जागना तक हराम हो गया. हालाँकि उसने घर का निर्माण पूरी तरह से वास्तुशास्त्र के नियमों के अनुरूप ही कराया, लेकिन फिर ऎसा क्या हुआ कि उसे उस घर में प्रवेश करते ही आर्थिक समस्यायों का सामना करना पड गया. देखा गया है कि इन्सान को जब किसी भीषण संकट, कष्ट, परेशानी का सामना करना पडता है तो अनायास ही मन में कईं प्रकार की शंकाएं, द्वन्द जन्म लेने लगते हैं. उस व्यक्ति के साथ भी यही हुआ...एक ओर तो उसके मन में ये विचार घर कर बैठा कि हो न हो मकान की ये जगह ही मनहूस है, दूसरी ओर ये शंका भी जन्म लेने लगी कि कहीं वास्तुशास्त्र के कारण ही तो ये सारी गडबड नहीं हुई ?
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Old 17-04-2013, 08:40 PM   #20
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Default Re: वास्तु के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य एवं बिना तो&

जब उसके मकान का सूक्ष्मतापूर्वक अवलोकन किया गया तो यही पाया कि मकान तो वाकई वास्तुशास्त्र अनुरूप बना है. सिर्फ एक ही दोष था कि उसका ईशान कोण 90 अंशों से कुछ अधिक था, जो कि लाभप्रद नहीं माना जाता. अब असमंजस ये कि क्या सिर्फ ईशान कोण ही उस व्यक्ति की समस्यायों का वास्तविक कारण है ? नहीं! वास्तव में मकान में ऎसा कोई दोष था ही नहीं, जिसे कि उसकी समस्यायों का वास्तविक कारण कहा जा सकता.
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