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#11 |
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![]() ![]() आप तो लेखक है और जीवन के नो रस के बारे में आप भलीभांति परिचित होंगे। व्यंग-हास्य भी जीवन का एक रस है लेकिन व्यंग से भरी बाते भी अगर लोग व्यंग से नहीं लेंगे तो व्यंग का क्या होगा? ![]() या फिर...एक सूचि बना लेते है, की भाई फलां फलां मुद्दो पर आप काल्पनिक व्यंग भी नहीं कसेंगे; क्यों कि ईस से भारतीय संस्कृति पर आंच आती है...वगैरह वगैरह!
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#12 |
Diligent Member
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जी नही रजत जी मै बिलकुल क्रोधित न तब थी न अब हूँ शायद मई ही व्यंगात्मक कविताये नही समझती . आप एक अछे व्यंगात्मक कवितायेँ लिखने वाले कवी हैं और उसे अछे से समझने वाले दीप जी हैं उस कविता को समझकर ही तो उन्होंने एक महिला की एईसी तस्वीर लगाई थी क्यूंकि उन्हें व्यंग का बखूबी ज्ञान है. मेने तो सिरफ़ आप दोनों को सत सत वंदन किया था ....
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#13 |
Moderator
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मैने एक पियक्कड की तसवीर लगाई थी, जो महिला हुई तो क्या हो गया? उसको ले कर हमारे प्रिय रजत की कविता पर ही सब ने प्रश्न उठा दिए। एक अच्छे भले सुत्र को अदालत का कठहरा बना दिया।
ईस पर मेरी तरफ से भी नारी शक्ति को शत शत नमन स्वीकार करें । ![]()
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#14 |
Diligent Member
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[QUOTE=Deep_;546170]मैने एक पियक्कड की तसवीर लगाई थी, जो महिला हुई तो क्या हो गया? उसको ले कर हमारे प्रिय रजत की कविता पर ही सब ने प्रश्न उठा दिए। एक अच्छे भले सुत्र को अदालत का कठहरा बना दिया
दीप जी बहुत बहुत धन्यवाद Last edited by soni pushpa; 12-01-2015 at 03:05 PM. |
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#15 | |
Diligent Member
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‘क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात। क्या हरि का घट गयो, जो भृगु ने मारी लात।’ और हमने कहीं भी, कभी भी यह नहीं कहा कि हम आपसे बड़े हैं। सबूत के तौर पर पेश है एक montage- ![]() अतः हमें हर हालत में क्षमा प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त है। आपके द्वारा ‘अतिथि देवो भवः’ का उल्लेख करने के कारण एक नए अद्भुत विचार का जन्म हुआ, जिसे सधन्यवाद कविता में सम्मिलित किया जा रहा है और लाल रंग से दर्शाया जा रहा है। सधन्यवाद।
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