26-03-2011, 10:07 PM | #11 |
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Re: ღ॰॰॰ღ बाल कवितायेँ ღ॰॰॰ღ
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27-03-2011, 12:17 AM | #12 |
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Re: ღ॰॰॰ღ बाल कवितायेँ ღ॰॰॰ღ
बड़ा मजा आता है हमको,
हम तो शोर मचाएँगे, हमको पता है टीचर जी, आकर डाँट लगाएँगे। करे न ज़रा शरारत कोई, ज़रा नहीं शोर मचाएँ। चुप रहना है खेल बड़ों का, हम कैसे समय बिताएँ?
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27-03-2011, 12:33 AM | #14 |
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Re: ღ॰॰॰ღ बाल कवितायेँ ღ॰॰॰ღ
पकने को तैयार खड़े हैं!
शाखाओं पर लदे पड़े हैं!! झूमर बनकर लटक रहे हैं! झूम-झूम कर मटक रहे हैं!! कोई दशहरी कोई लँगड़ा! फजरी कितना मोटा तगड़ा!! बम्बइया की शान निराली! तोतापरी बहुत मतवाली!! कुछ गुलाब की खुशबू वाले! आम रसीले भोले-भाले!!
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27-03-2011, 12:36 AM | #15 |
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Re: ღ॰॰॰ღ बाल कवितायेँ ღ॰॰॰ღ
इधर-उधर क्या देख रहो हो।
आओ मिलकर काम करें हम।। बात-बात पर झगड़ रहे हो। आओ मिलकर काम करें हम।। झगड़ा बढिय़ा बात नहीं है। आओ मिलकर काम करें हम।। काम से कभी न कतराएँ हम। आओ मिलकर काम करें हम।। काम होगा, नाम भी होगा। आओ मिलकर काम करें हम।।
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27-03-2011, 12:38 AM | #16 |
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Re: ღ॰॰॰ღ बाल कवितायेँ ღ॰॰॰ღ
हो गया उल्टा-पुल्टा इक दिन
उड़ गया हाथी पंखों के बिन। धरती से पाताल की ओर बीच चौराहे घनी भीड़ में भरी दुपहरी नाचा मोर। बकरी ने दो दिए थे अंडे बैठे थे शमशान में पंडे। गूँगी औरत करती शोर चूहों की दहाड़ सुनी तो सिर के बल पर भागे चोर। मुर्गा बोला म्याऊँ-म्याऊँ बिल्ली बोली कुकड़ू कूँ। बिना पतंग के उड़ गई डोर निकले तारे धरती पर तो छिप गया सूरज हो गई भोर।।
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27-03-2011, 12:41 AM | #17 |
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Re: ღ॰॰॰ღ बाल कवितायेँ ღ॰॰॰ღ
उल्लू होता सबसे न्यारा,
दिखे इसे चाहे अँधियारा । लक्ष्मी का वाहन कहलाए, तीन लोक की सैर कराए । हलधर का यह साथ निभाता, चूहों को यह चट कर जाता । पुतली को ज्यादा फैलाए, दूर-दूर इसको दिख जाए । पीछे भी यह देखे पूरा, इसको पकड़ न पाए जमूरा । जग में सभी जगह मिल जाता, गिनती में यह घटता जाता । ज्ञानीजन सारे परेशान, कहाँ गए उल्लू नादान।।
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27-03-2011, 12:46 AM | #18 |
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Re: ღ॰॰॰ღ बाल कवितायेँ ღ॰॰॰ღ
उल्लू का रंग-रूप निराला ।
लगता कितना भोला-भाला ।। अन्धकार इसके मन भाता । सूरज इसको नही सुहाता ।। यह लक्ष्मी जी का वाहक है । धन-दौलत का संग्राहक है ।। इसकी पूजा जो है करता । ये उसकी मति को है हरता ।। धन का रोग लगा देता यह । सुख की नींद भगा देता यह ।। सबको इसके बोल अखरते । बड़े-बड़े इससे हैं डरते ।। विद्या का वैरी कहलाता । ये बुद्धू का है जामाता ।। पढ़-लिख कर ज्ञानी बन जाना। कभी न उल्लू तुम कहलाना।।
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27-03-2011, 12:48 AM | #19 |
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Re: ღ॰॰॰ღ बाल कवितायेँ ღ॰॰॰ღ
लाल टोपी, काळो चश्मो, पै‘र पजामो झालरदार हाथ में डंडो, मुंह में सीटी, ऊंदर बणग्यो थाणेदार। मूंछ पलारी, टाई सुंवारी बांकी-बांकी चाल्यो चाल। गुवाड़ी में मारी दाकळ, टाबर होग्या आकळ-बाकळ, ऊंदरड़ी फुलाया गाल। बिल्ली नै सुधारूंलो, गुंडा नै सुंवारूंलो, पूछूंलो म्है कई सुवाल बिल रै सामी बिल्ली आई, ऊंदरियै री शामत आई, छयांया-म्यांयां सारा सुवाल।
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27-03-2011, 12:51 AM | #20 |
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Re: ღ॰॰॰ღ बाल कवितायेँ ღ॰॰॰ღ
एक किरण आई छाई,
दुनिया में ज्योति निराली रंगी सुनहरे रंग में पत्ती-पत्ती डाली डाली एक किरण आई लाई, पूरब में सुखद सवेरा हुई दिशाएं लाल लाल हो गया धरा का घेरा एक किरण आई हंस-हंसकर फूल लगे मुस्काने बही सुंगंधित पवन गा रहे भौरें मीठे गाने एक किरण बन तुम भी फैला दो दुनिया में जीवन चमक उठे सुन्दर प्रकाश से इस धरती का कण कण
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